हरिराम अच्छा रिपोर्टर था। ज़ाहिर है, उसके संबंध सभी से अच्छे ही होंगे। मंत्री चिरौंजीलाल का भी वो नज़दीकी था। ये नज़दीकी तोपचंद और चम्मचलाल दोनों को ही खटकती थी। वो सोचते कि कैसे वे लोग मंत्री के ज्यादा नज़दीक जाएं। चम्मचलाल ने अपनी प्रभुभक्ति मंत्री के संदर्भ में कुछ ऐसा छाप डाला कि अगले दिन सुबह छह बजे…
संपादक तोपचंद गुस्से में गालियां बक रहे हैं। घर में इधर से उधर बैचेनी में फोन लेकर घूम रहे हैं और सोच रहे हैं कि साले चम्मचलाल ने ये क्या किया? मानो- मछली को पानी से निकालकर सुखाने के लिए रख दिया और कह रहा है कि सर, मछली डूब रही थी! मछली की तरह फड़फड़ा रहे थे तोपचंद। सांस लेना भी मुश्किल हो रहा था।
असल में चम्मचलाल ने भाग रे झंडू आया तूफान अखबार में एक तस्वीर के ऊपर हैडिंग लगाई-
मंत्री चिरौंजीलाल ने कहा- हम सब एक हैं
और इस हेडिंग के नीचे जो तस्वीर लगी थी, उसमें कुत्तों का झुंड बैठा था। इस फोटो का कैप्शन था-
मंत्री चिरौंजीलाल की सांस्कृतिक विकास के लिए बनाई कोर टीम में कलेक्टर मांगेलाल, एसपी अनोखेलाल, उद्योगपति किरोड़ीमल, लेखक चिप्पड़सेन व कुछ अन्य।
इसे चम्मचलाल ने लगवाया था। उसने फोटो सही लगाई थी, लेकिन लास्ट टाइम में फोटो रिप्लेस हो गई, जिस पर किसी की नजर नहीं गई। पर सुबह-सुबह हेडिंग और तस्वीर देखी, तो चम्मचलाल ने फौरन फोन बंद कर लिया।
तोपचंद ने चम्मचलाल को फोन पे फोन लगाए, मग़र एक ही साउंड- द नंबर यू हेव डायल्ड, इज़ स्वीच्ड ऑफ, प्लीज़ ट्राई लेटर..। जितनी बार तोपचंद ने नंबर लगाए, उतनी बार मन ही मन चम्मचलाल की पैंट उतारी। चम्मचलाल की माता-बहनों को याद किया।
आखिरकार साढ़े आठ बजे तोपचंद को चम्मचलाल का एक संदेश मिला-
सर, मेरी नानी का देहांत हो गया है। इसलिए मुझे तत्काल हरिद्वार जाना पड़ रहा है। मैं तेरहवीं के बाद ही आपसे मिल सकूंगा। कृपया मुझे अवकाश देने की कृपा करें।
धन्यवाद
इस मैसेज को देखकर तो तोपचंद अंगार की तरह लाल हो गया। उनकी पत्नी तभी चाय लेकर आई थीं, पर धुआं तोपचंद के कान से निकल रहा था और अचानक जोर से चिल्ला उठा- मा#@%$#.।
पत्नी डरकर कमरे में भाग गईं कि मैंने क्या कर दिया? तोपचंद के पास 8.30 बजे अखबार के मालिक सूखाराम के पीए का मैसेज आया। 11 बजे सूखाराम ने तोपचंद को मिलने बुलवाया।
तोपचंद कांपने लगा। सोचा- नौकरी तो गई। उसकी हालत कुछ ऐसी थी, जैसे छोटा भीम ने लड्डू खाकर ताबड़तोड़ घूंसे मारे हो। अचानक तोपचंद पजामा, बनियान और स्लीपर पहने ही घर से निकला और सीधे हरिराम के घर वैसे ही पहुंचा, जैसे राक्षसों से डरकर देव, महादेव के पास त्राहिमाम-त्राहिमाम करते जाते थे। हरिराम के छोटे से घर के बाहर बड़ी सी गाड़ी रुकी। अधनंगे तोपचंद ने कुंडी खड़काई। हरिराम ने दरवाजा खोला और कहा-अरे सर, आप…।
तोपचंद- हरिराम! तुम बचा लो…नहीं तो आज मैं निपट ही जाऊंगा। साले, चम्मचलाल ने बहुत बुरा फंसाया है। हरिराम को तोपचंद ने सारा माजरा बताया।
(तोपचंद की तोप आज बारूद के गोले की बजाय विनती, अनुनय-विनय के अश्रुगैस छोड़ रही है। )
हरिराम- सर, मैं क्या करूं इसमें? तोपचंद- आज 11 बजे मालिक सूखाराम ने बुलाया है। इससे पहले तुम मंत्री चिरौंजीलाल के पास जाओ और कैसे भी उन्हें मैनेज करो।
11 बजे से पहले मालिक सूखाराम के पास चिंरौजीलाल का फोन जाना चाहिए और ये लगना चाहिए कि वो नाराज नहीं हैं। हरिराम-ठीक है सर, कोशिश करता हूं? तोपचंद वापस घर आ गया।
हरिराम तैयार होकर 10 बजे पहुंचा मंत्री के बंगले पर। उधर, तोपचंद हर 15 मिनट में हरिराम से बात कर रहा था और पूछ रहा था- मुलाकात हुई क्या? जब मंत्री चिरौंजीलाल को पता चला कि हरिराम आया है, तो उसे बुलवाया।
हरिराम ने कहा- भाई साहब, बड़ी गलती हो गई अखबार में…जानबूझकर नहीं हुई…माफ कर दीजिए, ज़रा मालिक सूखाराम को फोन लगाकर कह दीजिए कि आप नाराज़ नहीं हैं।
मंत्री चिरौंजीलाल राजनेता थे। अख़बारों की दुनिया और उनकी ग़लतियों से वाक़िफ थे। व्यवहारिक भ्रष्ट थे।