ख़त्म हुई शबनम-सलीम के इश्क की खूनी दास्तां, बस डेथ वारंट का इन्तजार…
मथुरा शबनम और सलीम के बेमेल इश्क की खूनी दास्तां अब फांसी के फंदे के करीब पहुंच गई है। उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले की शबनम और उसका प्रेमी सलीम अब एक साथ फांसी पर लटकाए जाएंगे। इसके लिए मथुरा की जेल में तैयारियां भी शुरू हो गई हैं।
बिहार के बक्सर जिले के जेल से फांसी का विशेष फंदा मंगवाया गया है और पवन जल्लाद भी इन दोनों को फांसी देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने दो बार फांसी घर का निरीक्षण भी किया है।
भारत को आजादी मिलने के बाद देश में पहली बार किसी महिला अपराधी को फांसी की सजा दी जाएगी। मथुरा स्थित उत्तर प्रदेश के इकलौते फांसी घर में अमरोहा की रहने वाली शबनम को फांसी पर लटकाया जाएगा। उसके साथ ही उसके प्रेमी को भी उसके किए की सजा के तौर पर फांसी दी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद अब हत्या के आरोप में बंद शबनम की फांसी की सजा को राष्ट्रपति ने भी बरकरार रखा है, ऐसे में अब उसका फांसी पर लटकना तय हो गया है। अभी फांसी की तारीख तय नहीं की गई है। डेथ वारंट जारी होते ही शबनम और सलीम को फांसी दे दी जाएगी।
बेमेल प्यार और कत्ल की खूनी दास्तां
अमरोहा जिले से हसनपुर क्षेत्र के गांव के बावनखेड़ी में रहने वाले शिक्षक शौकत अली के परिवार में पत्नी हाशमी, बेटा अनीस, राशिद, पुत्रवधु अंजुम, बेटी शबनम व दस महीने का मासूम पौत्र अर्श थे। इकलौती बेटी शबनम को पिता शौकत अली ने लाड़-प्यार से पाला था। एमए पास करने के बाद वह शिक्षामित्र हो गई। इतनी पढ़ी-लिखी शबनम का प्रेम प्रसंग गांव के ही आठवीं पास युवक सलीम से शुरू हो गया।
फिर उसके बाद दोनों शादी करना चाहते थे, लेकिन शबनम सैफी तो सलीम पठान बिरादरी से था, जिसकी वजह से शबनम के परिवारीजन को यह मंजूर नहीं हुआ। इश्क को परवान न चढ़ता देख दोनों ने ऐसा फैसला लिया जिसने देश को हिलाकर रख दिया।
14 अप्रैल, 2008 की रात को शबनम ने प्रेमी सलीम को घर बुलाया था और इससे पहले उसने पूरे परिवार को खाने में नींद की गोली खिलाकर सुला दिया था। उस दिन शबनम की फुफेरी बहन राबिया भी उनके घर आई हुई थी। रात में शबनम व सलीम ने मिलकर नशे की हालत में सो रहे पिता शौकत, मां हाशमी, भाई अनीस, राशिद, भाभी अंजुम, फुफेरी बहन राबिया व दस माह के भतीजे अर्श का गला काट कर मौत की नींद सुला दिया था।
घटना को अंजाम देकर सलीम तो वहां से भाग गया था, लेकिन शबनम रातभर घर में ही रही। तड़के उसने शोर मचा दिया कि बदमाश आ गए हैं। शोर सुनकर गांव के लोग मौके पर पहुंचे और वहां का नजारा देख पैरों तले जमीन खिसक गई। दुमंजले पर बने तीन कमरों में मासूम समेत सभी सात लोगों के गला कटे शव पड़े थे। दिन निकलने तक गांव बावनखेड़ी देशभर में छा गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती भी गांव पहुंची थीं.घटना के हालात देखते हुए शबनम पर ही शक की सुई गई।
इस मामले अमरोहा कोट में दो साल तीन महीने तक सुनवाई चली। आखिरकार 15 जुलाई 2010 को जिला जज एसएए हुसैनी ने शबनम और सलीम को तब तक फांसी के फंदे पर लटकाया जाए तब तक उनका दम न निकल जाए का फैसला सुनाया। फैसले को दस साल हो गए। लेकिन फांसी के फंदे को दोनों की गर्दन का इंतजार है।
घटना के बाद लोगों में दहशत हो गई। बीते दस साल के बाद भी क्षेत्र में लड़कियों के नाम शबनम नहीं रखते है। सब को लगता है जो अपने के साथ ऐसा कर सकती है ऐसे नाम लेने रखने में कोई फायदा नहीं है।
क्षेत्र के आसिफ अली ने बताया कि घटना के बाद रिश्तों का कत्ल करने वाली शबनम को ऐसे सजा मिली जो आगे ऐसा कोई सोच भी ना सके। आसपास के गांव में इस वजह से लड़कियों के नाम शबनम रखने से कतरा रहे है।