ASML Chip War: वह डच मशीन जो तय करेगी अगला सुपरपावर कौन होगा?
The Dutch Machine That Will Decide Who Will Be the Next Superpower? चिप बनाने वाली मशीन: सुपरपावर की चाबी
ASML Chip War: पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी का एक ही नाम गूंज रहा है। यह नाम है एनवीडिया का। Nvidia एक बहुत बड़ी और शक्तिशाली कंपनी है। इसके चिप्स के बिना एआई मॉडल्स काम नहीं कर सकते। चैट जीपीटी जैसे मॉडल्स इन्हीं चिप्स पर निर्भर हैं। एनवीडिया का स्टॉक आसमान छू रहा है। पूरी दुनिया इसके चिप्स के लिए दीवानी है। लेकिन एनवीडिया ये चिप्स खुद नहीं बनाती है। इन्हें बनाने का काम ताइवान की एक कंपनी करती है। इस कंपनी का नाम टीएसएमसी है।
यही बात अमेरिका को सबसे ज्यादा परेशान करती है। दुनिया की सबसे जरूरी चिप्स ताइवान में बनती हैं। ताइवान एक ऐसा द्वीप है जिस पर चीन कभी भी अपना हक जता सकता है। इस डर से अमेरिका ने एक बड़ा कदम उठाया। अमेरिका ने 52 बिलियन डॉलर का चिप्स एक्ट पास किया। यह एक विशाल योजना थी। इसका मकसद था एडवांस चिप्स को यूएस की जमीन पर बनाना। इंटेल जैसी कंपनियां अमेरिका में नई फैक्ट्रियां लगा रही हैं।
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बस के आकार की एक खास मशीन
लेकिन इस पूरी कहानी में एक बहुत बड़ा पेंच है। चाहे टीएसएमसी हो या इंटेल की नई फैक्ट्रीज हों। इन सभी को चिप्स बनाने के लिए एक खास मशीन चाहिए। यह मशीन बस के आकार की होती है। इसकी कीमत 35,000 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है। और इसे बनाने वाली कंपनी दुनिया में सिर्फ एक है। यह कंपनी न अमेरिका की है, न ताइवान की और न ही चीन की। यह नीदरलैंड्स की एक छोटी यूरोपीय कंपनी है। इसका नाम Advanced Semiconductor Materials Lithography एएसएमएल (ASML) है।
सवाल यह है कि इस डच कंपनी की मशीन में ऐसा क्या है? एनवीडिया का एआई साम्राज्य इस पर टिका है। अमेरिका का चिप्स एक्ट भी इस पर निर्भर है। चीन का सुपरपावर बनने का सपना भी इसी मशीन से जुड़ा है। नीदरलैंड्स की यह कंपनी आज एएसएमएल चिप युद्ध का मोहरा बन गई है।
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चिप बनाने का विज्ञान: लिथोग्राफी का रहस्य
चिप आखिर बनती कैसे है, यह समझना जरूरी है। सोचिए आपको एक जटिल शहर बसाना है। इस शहर में अरबों घर और सड़कें होंगी। यह सब एक सुई की नोक बराबर जमीन पर करना है। चिप बनाना भी कुछ ऐसा ही है। जमीन का यह टुकड़ा वेफर कहलाता है। यह सिलिकॉन से बनी एक पतली गोल प्लेट होती है। शहर का नक्शा मास्क कहलाता है। यह चिप का ब्लूप्रिंट होता है।
इस नक्शे को जमीन पर छापने का काम लिथोग्राफी मशीन करती है। आप इसे दुनिया का सबसे एडवांस प्रोजेक्टर समझ सकते हैं। इस प्रक्रिया में वेफर पर केमिकल की परत बिछाई जाती है। यह परत रोशनी के प्रति संवेदनशील होती है। फिर लिथोग्राफी मशीन इस पर मास्क के जरिए रोशनी डालती है। रोशनी पड़ते ही केमिकल पर नक्शा छपने लगता है। इसके बाद वेफर को धोया जाता है। नक्शे का पैटर्न उस पर हमेशा के लिए बन जाता है।
लेकिन चिप 3D में बनती है, फ्लैट नहीं होती है। चिप एक ऊंची इमारत की तरह होती है। इसलिए यह प्रक्रिया सैकड़ों बार दोहराई जाती है। परत दर परतें एक के ऊपर एक आती हैं। तब जाकर एक 3D चिप तैयार होती है। इस प्रक्रिया में जिस रोशनी का उपयोग होता है, वह सबसे महत्वपूर्ण है।
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ईयूवी: ट्रांजिस्टर बढ़ाने का क्रांतिकारी उपाय (ASML Chip War)
दशकों तक डीयूवी यानी डीप अल्ट्रावायलेट लाइट का उपयोग होता था। यह एक खास तरह का लेजर था। इससे नक्शे छापने का काम अच्छे से चलता रहा। लेकिन फिर आया मूर्स लॉ, या मूर का नियम। इंटेल के सह-संस्थापक गॉर्डन मूर ने यह नियम दिया था। मूर ने कहा कि हर दो साल में चिप पर ट्रांजिस्टर की संख्या दोगुनी हो जाएगी। मतलब उसी जमीन पर हर दो साल में दोगुना बड़ा शहर बसाना है।
इसके लिए नक्शे की लाइनें और बारीक होनी जरूरी थी। डीयूवी टेक्नोलॉजी अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी। इसका मोटा मार्कर मोटी लाइनें बना रहा था। लाइनें आपस में मिल रही थीं। चिप का डिज़ाइन खराब हो रहा था। पूरी तकनीक उद्योग एक दीवार से टकरा गया था।
समाधान एक ऐसा पेन था जिसकी नोक बहुत बारीक हो। यहीं पर ASML की एंट्री होती है। ASML ने बारीक नोक वाला पेन बना लिया। यह पेन था ईयूवी यानी एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट लाइट।
ईयूवी की वेवलेंथ सिर्फ 13.5 नैनोमीटर होती है। डीयूवी की वेवलेंथ 193 नैनोमीटर थी। ईयूवी करीब 14 गुना ज्यादा बारीक रोशनी थी। इतनी बारीक रोशनी से ही अरबों ट्रांजिस्टर वाले चिप्स पर डिज़ाइन छापना संभव हो पाया।
DUV और EUV टेक्नोलॉजी में अंतर
EUV टेक्नोलॉजी, DUV से कहीं ज्यादा एडवांस है। नीचे दी गई तालिका दोनों के बीच मुख्य अंतर दिखाती है। यह तालिका मोबाइल पर आसानी से दिखेगी।
| विशेषता | DUV (डीप अल्ट्रावायलेट) | EUV (एक्सट्रीम अल्ट्रावायलेट) |
| वेवलेंथ | 193 नैनोमीटर (nm) | 13.5 नैनोमीटर (nm) |
| बारीकी | कम बारीक | लगभग 14 गुना ज्यादा बारीक |
| क्षमता | पुरानी पीढ़ी की चिप्स (28nm और ऊपर) | एडवांस चिप्स (7nm और नीचे) |
| माध्यम | हवा या तरल | वैक्यूम चैम्बर आवश्यक |
| निर्माता | कई कंपनियां (Nikon, Canon, ASML) | केवल ASML का एकाधिकार |
ASML की असंभव जंग: ऑक्सीजन का चमत्कार
ईयूवी लाइट बनाना एक बड़ी चुनौती थी। यह रोशनी इतनी शक्तिशाली होती है कि हवा, पानी या कांच से टकराकर खत्म हो जाती है। जापान की बड़ी कंपनियों ने कोशिश की, पर हार मान ली। उन्हें यह प्रोजेक्ट असंभव लगा।
लेकिन ASML ने हार नहीं मानी। 1997 में एएसएमएल ने इस तकनीक पर काम शुरू किया। सालों की कोशिश के बाद एक नया तरीका अपनाया गया। मशीन के अंदर पिघले हुए टिन की बूंद गिराई जाती थी। इस बूंद पर एक शक्तिशाली CO2 लेजर दागा जाता था। इतनी शक्ति से कि बूंद प्लाज्मा में बदल जाए। इस धमाके से जो रोशनी निकलती थी, वह ईयूवी होती थी।
यह काम एक सेकंड में 5000 बार करना होता था। पूरी मशीन को वैक्यूम चैम्बर में बनाया गया। कांच की जगह खास आईनों (mirrors) का इस्तेमाल हुआ। ये आईने इंसान द्वारा बनाई गई सबसे सपाट सतहों में से हैं।
समस्याएं बहुत थीं। लेजर के टकराने पर टिन की कालिक आईनों पर जम जाती थी। आईने गंदे होने से रोशनी कम हो जाती थी। इससे लाखों डॉलर का नुकसान होता था। एएसएमएल अरबों डॉलर इस प्रोजेक्ट में खर्च कर चुकी थी। 2017 तक लगा कि यह लड़ाई एएसएमएल हार जाएगी।
फिर 2018 में एक हादसा हुआ। एक इंजीनियर ने देखा कि मशीन खोलने पर आईने अपने आप साफ हो जाते हैं। टीम को शक हुआ कि हवा में मौजूद ऑक्सीजन कालिक से रिएक्ट कर रहा है। तुरंत टेस्ट किए गए। नतीजा चौंकाने वाला था। अगर वैक्यूम में हाइड्रोजन के साथ थोड़ी सी ऑक्सीजन मिला दी जाए, तो आईने साफ रहेंगे। 20 साल की समस्या का हल इतना आसान था। एक छोटा सा ऑक्सीजन पाइप लगाना पड़ा। इस एक पल ने ASML को टेक्नोलॉजी का बेताज बादशाह बना दिया।
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कॉर्पोरेट संघर्ष: निकॉन और पेटेंट की लड़ाई

एएसएमएल का जन्म एक दिग्गज कंपनी फिलिप्स के अंदर हुआ था। 1984 में एक नई कंपनी बनी। इसमें फिलिप्स और एएसएम इंटरनेशनल की हिस्सेदारी थी। नाम रखा गया एएसएम लिथोग्राफी (ASML)। यह मजबूरी की शादी थी। फिलिप्स छुटकारा पाना चाहती थी। एएसएम इंटरनेशनल निवेश कर रही थी।
- शुरुआत में इंजीनियरों ने ASML को मजाक में ‘ऑल सिस्टम्स मीट लेट’ कहा।
- कंपनी की पहली मशीन पीएस 2000 एक मज़ाक बनकर रह गई थी। मशीन से तेल की बदबू आती थी।
- चिप फैक्ट्रियों को धूल के एक कण से भी परहेज होता है। कंपनी बंद होने की कगार पर पहुँच गई।
- लेकिन 1986 में उन्हें एक मौका मिला। अमेरिकी चिप कंपनी एएमडी ने एक कॉन्टेस्ट रखा।
- एएसएमएल ने रात भर मेहनत और जुगाड़ से वह कॉन्टेस्ट जीता। इस जीत ने उन्हें बाजार में एंट्री दिलाई।
इसके बाद उसकी टक्कर जापान की निकॉन से हुई। निकॉन उस समय मार्केट का किंग था। 2001 में निकॉन ने ASML पर पेटेंट उल्लंघन का केस कर दिया। मकसद था कि एएसएमएल अमेरिका में अपनी मशीन न बेच पाए।
- एएसएमएल ने एक अनोखी चाल चली। उन्होंने गुपचुप तरीके से एक फर्जी कंपनी बनाई। नाम था टार्सियन।
- इस कंपनी ने डिजिटल कैमरों के पेटेंट खरीदने शुरू किए।
- 2017 में जब निकॉन ने दोबारा केस किया, तो एएसएमएल ने जाल फेंक दिया।
- टार्सियन ने सारे कैमरा पेटेंट एएसएमएल के नाम कर दिए।
- ASML ने निकॉन पर उनके कैमरा बिजनेस के लिए केस कर दिया।
- कोर्ट ने फैसला सुनाया कि निकॉन एएसएमएल के कैमरा पेटेंट का उल्लंघन कर रही है।
- निकॉन Nikon घुटनों पर आ गई और समझौता किया। एएसएमएल की इस जीत ने उसे एकाधिकार दिला दिया।
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ASML Chip War: एएसएमएल भू-राजनीति का केंद्र
एएसएमएल की कहानी में 2020 के बाद दो नए किरदार आए। अमेरिका और चीन। चीन को टेक्नोलॉजी का नया सुपरपावर बनना है। इसके लिए उसे दुनिया की बेस्ट चिप्स चाहिए। यह चिप्स केवल एएसएमएल की मशीन से बनती हैं।
- दूसरी तरफ अमेरिका को डर था। अमेरिका की बादशाहत छीनने का डर था।
- उन्हें डर था कि ताइवान की टीएसएमसी पर चीन की नजर है। ASML Chip War इसलिए शुरू हुआ।
- जो एएसएमएल को कंट्रोल करेगा, वही एआई के भविष्य को कंट्रोल करेगा।
- अमेरिका ने चीन का रास्ता रोकने का प्लान बनाया। पहला दांव था चिप्स एक्ट। 52 बिलियन डॉलर का पैकेज दिया गया।
- शर्त रखी गई कि पैसा लेने वाली कंपनी चीन में अपनी एडवांस टेक्नोलॉजी नहीं बढ़ाएगी।
- दूसरा हमला था एक्सपोर्ट कंट्रोल्स। अमेरिका ने नीदरलैंड सरकार पर दबाव डाला।
- एएसएमएल की सबसे एडवांस ईयूवी मशीन पर बैन लगा दिया गया।
- चीन के लिए ईयूवी का एक्सपोर्ट लाइसेंस रुकवा दिया गया।
- चीन ने हार नहीं मानी। उन्होंने पुरानी डीयूवी मशीन का इस्तेमाल करके ही चिप्स बनाईं।
- यह देखकर अमेरिका ने अक्टूबर 2022 में और सख्त नियम निकाले।
- एएसएमएल की अच्छी डीयूवी मशीनंस पर भी बैन लगा दिया गया।
- नीदरलैंड्स इस लड़ाई में बीच में फँस गया।
- एक तरफ उसका सहयोगी अमेरिका था। दूसरी तरफ बड़ा ग्राहक चीन था।
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ASML Chip War: एएसएमएल का वैश्विक इकोसिस्टम: नकल क्यों नहीं हो सकती?
चीन या कोई भी देश एएसएमएल की मशीन की नकल क्यों नहीं कर पा रहा है? चीन के पास अरबों डॉलर हैं। फिर भी वह ऐसी मशीन नहीं बना सकता। जवाब एक शब्द में है: इकोसिस्टम। एएसएमएल यह मशीन अकेले नहीं बनाती है।
मशीन के 90% से ज्यादा पुर्जे दुनिया भर की विशेषज्ञ कंपनियों से बनवाए जाते हैं।
- लेंस: मशीन का लेंस एक जर्मन कंपनी बनाती है। इसका नाम कार्ल ज़ाइस एजी (Zeiss) है।
- इसे दुनिया का बेस्ट ऑप्टिक सिस्टम माना जाता है।
- लेजर: मशीन को चलाने वाला लेजर जर्मनी की ट्रम्फ (Trumpf) बनाती है।
- अन्य पुर्जे: वैक्यूम चैम्बर, रोबोटिक आर्म्स जैसे हजारों पुर्जे सैकड़ों अलग-अलग कंपनियां बनाती हैं।
एएसएमएल ने सिर्फ एक मशीन नहीं बनाई है। उसने 40 सालों में इन सारी विशेषज्ञ कंपनियों का एक भरोसा का नेटवर्क बनाया है। चीन को अगर एएसएमएल को कॉपी करना है, तो उसे सिर्फ मशीन नहीं कॉपी करनी है। उसे ज़ाइस, ट्रम्फ और हजारों कंपनियों को कॉपी करना होगा। यह पूरे यूरोपीय मानकों के इकोसिस्टम को दोबारा बनाना होगा।
और इसी नेटवर्क को बनाने में एएसएमएल को 40 साल लग गए हैं।
- आज एएसएमएल एक सफल कंपनी है। लेकिन वह पहले से कहीं ज्यादा बंधी हुई है।
- उसका भविष्य अब वाशिंगटन और बीजिंग के बीच तय हो रहा है।
- ASML Chip War एक खुला और ग्लोबल दुनिया में शुरू हुआ।
- अब सवाल यह है कि क्या यह कंपनी दीवारों में बटती हुई इस नई दुनिया में टिक पाएगी।
- यह लड़ाई सिर्फ एक मशीन की नहीं है। यह तकनीक पर नियंत्रण की लड़ाई है।
- यह दुनिया के अगले सुपरपावर को तय करने की जंग है।
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