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हज़रत सैय्यद मख्दूम अशरफ़ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह पार्ट -2



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सरवारा शाहा करीमा
दस्तगीरा अशरफा
हुरमते रूहे पयंबर
यक नज़र कुन सुऐ मा

अमूमन बादशाह नाज़ो आराम से रहकर पले बढे होते है, अगर कही जाना भी हो, तो उनके साथ लाव लश्कर साथ होता है, मगर ये नवजवान “बादशाह ए सिमना” जिनकी उम्र अभी महेज़ 23 साल की है, तमाम एशो आराम को छोड़कर शाही तख्तो ताज को ठोकर मारते हुवे, राहे हक़ की राह में मुश्किल भरे सफ़र पर तन्हा निकल पड़े है। रास्ते में न जाने कितने ही मुसीबतों और खतरों का आपने सामना किया होगा। मगर अल्लाह वालो की बात ही अलग होती है बेशक उन्हे कोई खौफ नहीं होता है।

आप लगातार अपनी मंजिल की जानिब बढ़ते रहे । अल्लाह अल्लाह ये कैसा जज़्बा था बादशाह ए सिमना का। कांटों और चट्टानों के नुकीले पत्थरों ने आपके पैरों को ज़ख़्मी कर दिया था, लेकिन आपने इन सबकी परवाह न की। करते हुए, लगातार अपनी मंजिल की जानिब बढ़ते रहे I

और उस मां का क्या कहना, जिन्होंने अपने दिल के टुकड़े को, अल्लाह के सुपुर्द कर अपने तमाम हक़ ओ हुकूक बख्शते हुवे राहे हक़ की मंजिल की जानिब रवाना किया था।

कुर्बान जाइए उस बादशाह और उनकी वालेदा की अजमत पर, सुभान अल्लाह I और हो भी क्यों न आखिर इन रगों में “अली और फातिमा” का खून जो मौजूद है I तो भला दुशवारिया उनका क्या बिगाड़ सकती थी।

इस तरह अपने वक्त का बादशाह भूखा प्यासा, बे सरो सामा, लगातार बिना रुके, अपनी मंजिल की जानिब सफ़र करते बढे चले जा रहे थे I

जहां रात होती, आप वहीं ठहर जाते और अगली सुबह फिर सफ़र जारी कर देते I क्या ही खूब आला वो औला मरतबा है उनका जिन्हे मंजिल के साथ साथ पीर ओ मुरशिद की भी बशारत दी जा चुकी हो I सुभान अल्लाह।

“ओछ शरीफ” में अल्लाह के महबूब कामिल ए वली “हज़रत मखदूम जलालुद्दीन बुखारी ‘ जहांनिया जहाँगश्त रहमतुल्लाह अलेह” से मुलाकात

अल्लाह के वलियों की हर अदा ही निराली होती है।“हज़रत मखदूम जलालुद्दीन बुखारी ‘ जहांनिया जहाँगश्त रहमतुल्लाह अलेह” अपने वक्त के बहुत बड़े वली है उनकी शोहरत चारो दिशाओं मे फैली हुई थी।

अल्लाह के इस कामिल वली को तो अली के इस लाल के आने से पहले ही ख़बर हो चुकी थी लिहाज़ा देखते ही आपने उन्हे पहचान लिया, सिर्फ़ इतना ही नही उन्होंने आपको रूहानियत का इल्म भी अता करते हुवे उन्हें उनकी मंज़िल और उनके पीर ओ मुर्शीद के बारे में बताया I

वलिअल्लाहो की कैफियत और मर्तबे को हर कोई आसानी से नही समझ सकता। डायरेक्ट लाइन का दावा करने वाले तो इनके मर्तबे को कभी समझ ही नही सकेंगे , ये वो शमा है जो सीना ब सीना मुर्शीद के मार्फत ही जल सकती है जिसके लिए चाहें मीलो दूर का सफ़र करना पड़े, मुरीद को चलना होता है। हालाकि वह लोग भी सफर में दीन की खिदमत करने निकलते हैं मगर उनका ढुलमुल अकीदा उन्हे रूहानी व बातिनी इल्म सीखने नही देता है। मेरा ये दावा है की जिनका कोई कामिल पीर ओ मुर्शिद ही नहीं, वह दूसरों को सही और पुख़्ता दीन सिखला ही नही सकता है ।

वली अल्लाहो के मर्तबे और मकाम को सिर्फ उनके क़रीब रहकर की समझा जा सकता है जिसके लिए उनसे सच्ची निस्बत व अकीदा होना ज़रूरी है ।

“हज़रत मखदूम जलालुद्दीन बुखारी ‘ से जब हज़रत “मखदूमें सिमना” मिले तो उन्हें देखकर आपने फरमाया

“ मेरी और तुम्हारी मोहब्बत तो अजल से ही है, लेकिन अल्लाह ने “हजरत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलेह” को आपका पीर मुक़र्रर किया है, जो आपकी आमद के मुन्तजिर है, लेकिन मैने जो कुछ अल्लाह से पाया है, वो सारा इल्म तुम्हे अता करता हूँ I
सुभान अल्लाह

फिर आपने उन्हें कुछ हिदायतों के साथ आपको अपने हुजरे में बुलाया I

पहली शब् जब आप “हज़रत मखदूम जलालुद्दीन बुखारी रहमतुल्लाह अलैह के हुजरे मुबारक में इल्म सीखने हाज़िर हुवे तो आपने देखा की हज़रत का जिस्म ए मुबारक धीरे धीरे इतना वसीह (बड़ा) होता चला गया की वो पूरे हुजरे में समां गया,

आपने फरमाया

अपनी इस कैफियत और इल्म को मैंने तुम्हे भी अता कर दिया है I

फिर आपने उन्हें कल आने कहा,

दूसरी शब् आपने देखा की हज़रत का जिस्म सात टुकड़ो में तकसीम हो गया है, और बदन के अलग अलग उन सभी हिस्सों से “अस्मा-ए-इलाही” के ज़िक्र की सदाए बुलंद हो रही है I

इसी तरह से तीसरी शब् भी आपको बुलाया गया

और आपने देखा की हज़रत का जिस्म किसी शीशे की मानिंद इस तरह साफ़ और शफ्फाक चमक रहा था की अगर तलवों के नीचे पड़ी किसी सुई को सर के ऊपर से देखा जाए तो वो भी साफ़ नज़र आ जाये I

इस तरह हज़रत ने सिर्फ तीन रातो में ही न सिर्फ आपको रूहानियत के मंसब और मंज़र दिखलाया बल्कि आपने फ़रमाया की अपनी ये तमाम कैफियत और इल्म मैंने तुम्हे भी अता कर दिया है, सुभानअल्लाह I

ये होता है अल्लाह वालो का मकाम और अल्लाह वालो की सोहबत का असर जो अपने महबूब आशिको को अपने चाहने वालो को,और जिनसे वो मोहब्बत करते हो उन्हें जो चाहे, जब चाहे पल भर में अता कर देते है I

हजरत दाता गंज बख्श लाहौरी के मुकद्दस आस्ताने मे हाज़री

इस तरह से ओछ शरीफ़ के बाद आप लाहौर पहुंचे और हजरत दाता गंज बख्श की मुकद्दस दरगाह में आराम किया। सारी रात आपने इबादत की और फिर हज़रत दाता गंज बख्श की रूहानियत से भी आपने फुयुज़ व बरकात हासिल किया ।

दिल्ली में आमद

फिर इसके बाद आप दिल्ली आपका अगला पड़ाव था, जिसकी सिम्त आप लगातार बढ़ते चले जा रहे थे और इस तरह मुल्के हिन्दुस्तान के शहर दिल्ली में आपकी आमद हुवी, ये वो शहर था, जहाँ की हुजुर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ के खलीफा हज़रत कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलेह., नसीरुद्दीन चिराग देहलवी रहमतुल्ला अलेह.और बहोत से चिश्तिया चराग रौशन थे I इन तमाम मशायखे चिश्त, अहले बहिश्त अलैहिर्रहमा की जियारत से मुशर्रफ होते हुवे आपने उनके मुबारक आस्तानो पर हाज़री दी I उनसे भू आपने रूहानियत फैज़ हासिल किया I

गुलबर्गा शरीफ़ में हाजरी

कर्नाटका के शहर गुलबर्गा शरीफ़ के हजरत “ख्वाजा बंदा नवाज गेसू दराज़” रहमतुल्लाह अलेह की बारगाह में हाज़िर होकर आपने उनसे भी फैज़ हासिल किया।

“शेख शरफुद्दीन यहया मुनेरी रहमतुल्लाह अलेह की नमाज़ ए जनाजा पढ़ाया

फिर इसके बाद आप बिहार के इलाके “मुनीर शरीफ” पहुचे I

आपकी आमद के वक्त वहां के मशहूर बुज़ुर्ग मख्दुमे बिहार, “शेख शरफुद्दीन यहया मुनेरी रहमतुल्लाह अलेह” का विसाल हुवा था, विसाल से पहले आपने अपने मुरीदो को ताकिद किया था की एक सैय्यद ज़ादा बादशाह जिनका नाम मखदूम अशरफ होगा जो बादशाह ए सिमनान की सल्तनत तर्क करके आ रहा है, वही मेरे जनाजे की नमाज पढ़ाएगा।

जनाजा तैयार था, मुरीद राह में पलके बिछाए आपका इंतजार करते खड़े थे,तभी उन्होंने देखा कि एक नौजवान आ रहा है जिसके चेहरे में बालों में गर्द ओ गुबार थी, उन्हें देखकर
मुरीदो ने सोचा की यह तो बादशाह नहीं हो सकते हैं क्योंकि उनका नजरिया यह था कि बादशाह तो शानो शौकत से लाव लश्कर के साथ आएगा फिर भी उन्होंने आने वाले नौजवान का जब नाम पूछा और जब उन्होंने अपना नाम सैय्यद अशरफ बतलाया तो मुरीदो ने हैरान होकर पूछा

क्या आप ही सिमनान के बादशाह हैं

आपने जवाब दिया

हां, मगर इस वक्त मैं बादशाह नही बल्कि एक अदना सा फ़कीर हूं जो अपने पीर ओ मुर्शिद से मिलने बंगाल जा रहा है

हजरत शरफुद्दीन यहया मुनेरी रहमतुल्लाह अलेह के मुरीदों ने फिर इसके बाद आप से गुजारिश की, हुज़ूर हमारे पीर ने विसाल से पहले ही कह दिया था कि आप आने वाले है और उनके जनाजे की नमाज आप ही पढ़ाएंगे । लिहाजा आप से गुज़ारिश है की चल कर उनके जनाजे की नमाज पढ़ा दे ।

आपने गुस्ल किया और फिर जनाज़े की नमाज़ भी पढाई

जब हजरत को कब्र में दफना दिया गया तो लोगों ने देखा की हजरत का हाथ कब्र से बाहर आ गया है किसी को कुछ समझ नहीं आया ।

आख़िर क्या माजरा है ?

तब हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह ने फरमाया की

हज़रत के पास एक टोपी है जो सिलसिले दर सिलसिले से उनके पास है उसे हज़रत को पहनाना आप लोग भूल गए है।

मुरीदो को भी तब याद आ गया तो फ़ौरन वो टोपी लाई गई, और जब वो टोपी मुबारक हजरत को पहना दी गई तो हजरत ने अपना हाथ कब्र के अंदर कर लिया।

पीरो मुर्शिद “हजरत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह से मुलाकात”

बादशाहे सिमना को जिस पीरो मुरशिद की तलाश थी, आख़िरकार वो लम्हा भी आ ही गया। आप बिहार से होते हुवे सैकड़ों मील का मुश्किलों भरा सफ़र तय करने के बाद आखिरकार अपने पीरो मुर्शिद “हजरत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह” के शहर “पाण्डवा शरीफ” के करीब पहुंच गए I

इधर “हजरत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलेह, भी बेसब्री से अपने इस मुरीद का इन्तेज़ार कर रहे थे I

जब आपके शागिर्दों ने आपकी ये कैफियत और बेचैनी देखी तो वजह जाननी चाही तब आपने उन्हें बतलाया की

मेरा “अशरफ बादशाह ए सिमना” मेरे पास आ रहा है ।
सुभान अल्लाह ।

कुछ नादान मेरे आका ए मदनी के इल्मे गैब पर शक ओ शुबह करते है । यहां तो उनकी आल का ये आलम है की अभी आप सफ़र के लिए निकले भी न थे के उनके आमद की ख़बर एक मर्तबा नहीं बल्कि 70 मर्तबा दी जा चुकी है।

ख़ुद रब आपके मुरशिद के पास पैग़ाम भेजते कह रहा है की

हमने तुम्हारे पास अशरफ ए सिमना को मुरीद के तौर पर भेजा है। हमारे अशरफ की तरबियत में कोई कमी न करना I

हज़रत ए खिज्र अलैहिस्सलाम हज़रत मख्दूमे अशरफ रहमतुल्लाह अलेह के सिमनान से रवाना होने से पाण्डवा शरीफ पहुचने तक 70 मरतबा आपके पीरो मुर्शिद की बारगाह में हाज़िर हुए और आपके आने की इत्तेला देते रहे । आपने फरमाया कि

हज़रत खिज्र अलैहिस्सलाम ने मुझसे कहा

🌲 “सिमना से एक शहबाज़ परवाज़ कर चूका है, जिसके लिए तमाम मशाएखे वक्त ने अपने अपने जाल बिछा दिए है, लेकिन मै उसे तुम्हारे पास ला रहा हूँ ..

लिहाज़ा आपके मुरशिद अपनी बेताबी का सबब बताकर मुरीदो से फरमाते हुए खुश होकर कह रहे है की मेरा मुरीद इतने करीब आ चूका है की उसकी खुशबू मुझे महसूस हो रही है I सुभान अल्लाह

और इस तरह से जब आप पाण्डवा के करीब पहुच गए तो हज़रत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलेह के मुंह से बेसाख्ता ही ये जुमले निकल पड़े.

..”खुश आमदीद ए बेटे अशरफे सिमना”..

और फिर आप अपने मुरिदैन को हुक्म देकर अपनी पालकी (सवारी) को खुद अपने हाथो से सजाया,संवारा और फिर ख़ुद दूसरी पालकी में बैठकर अपने मुरीद के इस्तेकबाल के लिए निकल पड़े I

आपके सारे मुरीद भी आपके साथ थे, रास्ते में भी जिसने भी ये मंज़र देखा की हजरत अलाउल हक पांडवी रहमतुल्लाह अलैह की सवारी जा रही है, और साथ में एक ख़ाली सजी हुई पालकी भी है तो वो भी साथ हो गए की आख़िर वो कौन है जिनके इस्तकबाल के लिए ख़ुद अलाउल हक़ पांडवी रहमतुल्लाह अलैह जा रहें है I

तक़रीबन दो मील का फासला तय करने के बाद आप उस मकाम पर पहुच गए जहां पर हज़रत मख्दूमे सिमना की आमद होने वाली थी I

🌲इधर मख्दुमे सिमना के ख़ुशी की भी कोई इन्तेहा नहीं थी, क्योंकि आपने भी अपने मुर्शिद की खुशबू को महसूस कर लिया था और इस वक्त आप पर अजीब कैफियत तारी हो चुकी थी । होती भी क्यों न, आखिर आप हजारो मील का सफ़र तय करके अपनी पीर ओ मुरशिद के काफी करीब जो आ चुके थे, और फिर इस तरह पीर ओ मुर्शिद से रूबरू होने का मंज़र सभी के सामने था I
🌲आपने अपने पीर के बारे में जैसा तसव्वुर किया था अपने पीर ओ मुर्शिद को वैसा ही पाया और अपने रब का शुक्र अदा किया । पीर ओ मुरशिद ने भी आपको ख़ुश हो कर गले से लगा लिया I

आपके मुरीदो के हैरत की इन्तहा न रही जब उन्होंने देखा की हजरत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी पालकी पर आने वाले मेहमान को बिठा लिया है I ये पालकी कोई मामूली सिंघासन नहीं था, बल्कि ये वो सिंघासन था जो हजरत अला उल हक पाण्डवी रहमतुल्लाह अलेह को आपके पीरो मुर्शिद शेख अखी सिराज रहमतुल्लाह अलैह ने अपने बाद अता किया था, और जिस सिंघासन पर इससे पहले किसी मुरीद को बैठना नसीब नहीं हुवा था, इस पालकी पर मेहमान को बिठाकर उनके पीर खुद दूसरी पालकी में बैठ जाते है। अल्लाह अल्लाह I क्या खूब मंज़र था।

ये होता है “इश्क” ।

अभी आपने कोई रस्म भी अदा नहीं की है यानि मुरीद बनाया भी नहीं है उससे पहले ही कामिल पीर ने अपने मुरीद को और कामिल मुरीद ने अपने कामिल पीर की अजमत और मरतबे को पहचान लिया है I

🌲मुझे इस वक्त वही मंज़र नज़र आने लगा, जबकि हज़रत ख्वाजा ए उस्मान हारुनी रहमतुल्लाह अलैह और हुजुर ख्वाजा गरीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलेह के मिलने पर आपके पीर ओ मुर्शिद ने आपको मुरीद होने से पहले ही अपने आसन पर बिठला दिया था, और खुद दूसरी जगह बैठ गए थे, फिर बाद में उन्हें मुरीद किया था I

दरअसल ये निस्बत की वो मशाले है जो खुद नहीं जलती है बल्कि जलायी जाती है, और ये मशाले ता कयामत यूँ ही वलिअल्लाहो के ज़रिये सीना ब सीना रौशन होती रहेगी । इंशाअल्लाह I

🌲मदीने शरीफ़ से रौशन होकर ये मशाल हिन्द में हुजुर ख्वाज़ा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलेह के रूप में हिन्द में रौशन हुई। जिसे रौशन किया था हज़रत उस्मान ए हारुनी रहमतुल्लाह अलेह ने।

और फिर सुल्तान उल हिंद मोइनुद्दीन हसन संजरी, चिश्ती, अजमेरी रहमतुल्लाह अलेह से हजरत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलेह, उनसे बाबा फरीदुद्दीन गंजे शकर रहमतुल्लाह अलेह, उनसे महबूब ए इलाही हजरत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह, उनसे ख्वाजा अखी सिराजुल हक वद्दीन आईना ए हिंद रहमतुल्लाह अलेह उनसे, ख्वाजा शेख अला उल हक पांडवी रहमतुल्लाह अलेह, और फ़िर उनसे यह मशाल हज़रत ख्वाजा गौसुल आलम, महबूबे यज़दानी, मखदूम सुल्तान सैय्यद अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह की शक्ल में रौशन हुई । सुभान अल्लाह।

हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलेह ने पहले ही अशरफ ए सिम्ना के बारे मे बतला दिया था

वली अल्लाहो का आला मकाम और मर्तबा उन लोगो को बतलाना चाहूँगा जो वली अल्लाहो को अपनी तरह ही समझते है ।

उनसे दुआ मांगना शिर्क समझते हैं और कहते हैं की ये मुर्दा है। इल्मे गैब सिवाय खुदा के किसी के नहीं ही सकता है ।

ये लोग तो माज़ल्लाह नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलैह वसल्लम के बारे में भी कहते है की उन्हे भी इल्मे गैब नहीं हो सकता है।

🌲 हज़रत सैय्यद अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह जब इस दुनिया में तशरीफ़ भी नहीं लाये थे उससे तकरीबन 200 साल पहले ही हुजुर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ रहमतुल्लाह अलेह तशरीफ़ ला चुके थे

ग़रीब नवाज़ ने एक दिन एलान कर लोगो को बतला दिया की

“मेरे बाद मेरे मुरीदो में एक शख्स पैदा होगा जिसका नाम “सैय्यद मोहम्मद अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी” होगा, और वो अपने वक्त का गौस होगा । वो मेरे सिलसिले को बहोत उरूज़ अता करेगा “ सुभानअल्लाह I

🌲जो लोग यह सोचते हैं की वली अल्लाह अपनी कब्रो में जिंदा नहीं है उन्हें भी बतलाना चाहूंगा कि बेशक वली अल्लाह आज भी जिंदा है और इंशा अल्लाह ता कयामत जिंदा रहेंगे जिसकी दलील किताबों के हवाले से समाद फरमाए।

जैसा कि आपने पढ़ा है कि हज़रत मख़दूमे सिम्ना औछ शरीफ़ में हजरत मखदूम जलालुद्दीन जहानिया जहांगश्त रहमतुल्लाह अलेह से मुलाकात की थी । मखदूम जलालुद्दीन जहानिया जहांगश्त रहमतुल्लाह अलैह जब पहली मर्तबा हुजूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलेह के मुबारक आस्ताने में पहुंचे तो आपने ख्वाजा साहब को सलाम किया

जवाब आया

वालेकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाह अलैह

जवाब सुनकर आप बेहद खुश हुए। फ़िर आपने गरीब नवाज़ से दुआ की

हुजूर आपका इतना नाम सुन लिया है की आपको एक नज़र देखने और आपके हाथों को चूमने की फ़कीर को बड़ी तमन्ना है ।

आपका इतना कहना था की वो क्या देखते हैं की हुजूर गरीब नवाज सरकार की कब्रे अनवर जो उस वक्त कच्ची हुआ करती थी, बीच से शक हो गई और आपने देखा की आपकी कब्रे अनवर, जन्नत के एक बाग़ की तरह बेहद ख़ूबसूरत है, जिसमें नूर ही नूर फ़ैला है । आपने देखा एक ख़ूबसूरत तख्त पर हुज़ूर गरीब नवाज सरकार बैठे हुए हैं । और फिर कुछ देर बाद वह तख्त ऊपर आया। हुजूर गरीब नवाज तख्त से उठकर आपके करीब आए और फिर हजरत मखदूम जलालुद्दीन जहानिया जहागश्त रहमतुल्लाह अलैह ने आपका हाथ चूमते हुए आपकी कदम बोसी के लिए झुके तो हुजूर गरीब नवाज ने आपको उठाकर गले से लगा लिया। और फिर आपसे बाते करने के बाद वापस अपनी कब्र में चले गए। सुभान अल्लाह।

*हवाला

1.सवाने हयात सुल्तान मख्दुम अशरफ और
2.करामाते मखदूम अशरफ* I

मे उपरोक्त वाक्या दर्ज है I

🌲 कुछ लोग कुरआन ए पाक की आधी अधूरी आयत को कोट करके बयान करते है की

इल्मे गैब अल्लाह के सिवाय किसी और को नहीं है” I

जबकि कुरान की इसी आयत में आगे साफ साफ़ लिखा हुवा है

मगर अल्लाह जिसे चाहे इल्मे गैब अता करता है।

जिसे जानबूझकर कुछ लोग नहीं बतलाते है । इस तरह आधे अधूरे इल्म की बिना पर बहुत से लोग गुमराह हुए हैं क्योंकि उन्हें जितना बतलाया जाता है उसे ही वह सच मान लेते हैं I

कुरान गवाह है की बेशक हमारे आका ए करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का ज़िक्र आप की पैदाइश से पहले से था। आपकी पैदाइश से लेकर आज तक है, और इंशा अल्लाह ता कयामत रहेगा।

दुनिया में भी उनका वसीला हमारे काम आएगा और आखिरत में भी आपका वसीला काम आएगा । बेशक वे हमारी शफाअत भी करेंगे।

बेशक नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम के ज़रिये ही तमाम वलिअल्लाहो को उनका मरतबा और मकाम हासिल हुवा है, और आज भी अगर कही आप वलिअल्लाहो की ऐसी किसी करामातो को देखते है, तो ये जान ले की अल्लाह इनके ज़रिए हमे बतलाना चाहता है की हम ये अच्छी तरह जान ले की जब आका ए करीम के इन गुलामाने गुलाम और उनकी आल का ये मकाम और मर्तबा है तो उस आला ओ औला उसके प्यारे मेहबूब नबी ए करिमैन सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम का मकाम और मर्तबा क्या होगा.. I सुभान अल्लाह

क्रमशः ….

✒️एड.शाहिद इकबाल खान,
चिश्ती – अशरफी
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