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सरकारे गौसे आज़म के 11 नाम पढ़ने की फजीलत-पार्ट 5

गौसे आज़म के 11 मुबारक नाम पढ़ने की फजीलत: हर मुसीबत से हिफाज़त

सरकारे गौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु के 11 नाम पढ़ने की बहुत फजीलत है। पाकी की हालत मे अव्वल आखिर 11 -11 बार दुरुद शरीफ पढ़ कर सीने मे दम करे, चाहे तो पानी मे, खजूर मे या किसी भी पाकीज़ा चीज़ मे पढ़ कर उस चीज़ को खाने-पीने से हर एक मुसीबतो से हिफाज़त होती है, हर मर्ज दूर होते है। रोज़ी में बरकत होती है।

उलमा फरमाते है इसकी बरकत से दीन की तरफ दिल माईल होता है, अल्लाह वालों का कुर्ब हासिल होता है। यानि आपके 11 नामो के विर्द से बेशुमार नेमते हासिल होगी और हुज़ूर गौस पाक का फजलों करम और मदद भी हासिल होती रहेगी । इन्शा अल्लाह।

gaus pak
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गौसे आ’ज़म के वो नाम ये हैं

  • या सैय्यद मोहय्युद्दीनि अमीरुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या शैख़ मोहय्युद्दीनि फज़लुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या औलियाओ मोहय्युद्दीनि अमानुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या मौलाना मोहय्युद्दीनि नूररुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या ग़ौस मोहय्युद्दीनि कुतूबुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या सुल्तान मोहय्युद्दीनि सैफुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या ख़्वाजा मोहय्युद्दीनि फ़रमानुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या मखदूम मोहय्युद्दीनि बुरहानुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या दरवेश मोहय्युद्दीनि अमानुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या मिसकीन मोहय्युद्दीनि कुद्सुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
  • या फ़कीर मोहय्युद्दीनि शाहिदुल्लाहि रज़ियल्लाहु तआला अन्हु

गौसिय्यत: फ़रियाद को पहुंचने वाले का मक़ाम

गौसिय्यत बुज़ुर्गी का एक खास दर्जा है!

लफ़्ज़े “गौस” के लुगवि माना है “फरियाद-रस यानी फ़रियाद को पहुचने वाला”!

बेशक़ हुज़ूर गौसे आज़म पीराने पीर दस्तगीर, शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु हम गरीबो, बे कसो और हाजत मन्दो के मददगार है, हमारी फ़रियाद सुनने वाले है इसलिए आप को ‘ग़ौसे आ’ज़म’ के खिताब से सरफ़राज़ किया गया।

हुज़ूर गौसे आज़म की पैदाइश उस दौर में हुवी थी जब इस्लाम की तब्लीक कमज़ोर पड़ चुकी थी ऐसे में गुमराहियत का ज़ोर था, जहालियत अपनी चरम सीमा पर था।

ऐसे वक्त में दीन को जिसने ना सिर्फ मज़बूत किया, बल्कि दीन को नई ज़िन्दगी भी दी, वो हुज़ूर गौसे आज़म की ज़ाते मुक़द्दस है इसीलिए आपको “मोहियुउद्दीन” कहा जाता है।


बगदाद शरीफ़ का सफर और इल्म की प्यास

आपने पढ़ा की किस तरह आप बग़दाद शरीफ़ के लिए रवाना हुए, और डाकुओं को राहे हक़ में लाया। अब आगे समाद फरमाएं।

बगदाद पहुचने के बाद आपके पास जो 40 अशरफ़ी थी उसमे से कुछ तो आपने अपने लिये खर्च की और बाकी दिगर ज़रूरतमंदों में तक़सीम कर दी। लिहाज़ा जल्द ही उन्हें खाने पीने की तकलीफों का सामना करना पड़ा। अक्सर वो भूखे रहते। ऐसे ही एक मौके पर वे खाने की तलाश में निकले तो उन्हें 40 फ़क़ीर मिले वे सभी फ़क़ीर भी बेहद भूखे थे। उनके पास खानेपीने का कोई सामान नही था।

आपका दिल पसीज उठा, मगर ख़ुद आपने भी कई दिनों से कुछ भी नही खाया पिया था। और ना ही आपके पास अब अशरफी ही बाकी थी। करीब में ही एक मस्जिद थी अज़ान होने पर आप मस्जिद में आ गए। और आपने उन फकीरो के लिए रब से दुवा की।

नमाज़ के बाद आप जब मस्जिद से निकलने लगे तो आपने देखा की एक शख़्स मस्जिद के सहन में बैठा है। उसके सामने खाने पीने का सामान रखा था, और वो खाना शुरू करने ही वाला था। जब आपकी नज़र उस पर पड़ी तो उस शख़्स ने आपको आवाज़ देकर अपने करीब बुलाया।

आप उसके पास पहुचे तो उसने आपसे साथ मे खाना खाने की गुज़ारिश की, मगर आपको उन फकीरों का ख़याल आ गया जो बहोत भूखे थे लिहाज़ा आपने उस शख़्स से उन 40 फकीरो को खाना खिलाने मिन्नत की। जिसे सुनकर उस शख़्स ने कहा की उसके पास इतना खाना नही है की वो सब को खाना खिला सके। उसने आगे बतलाया की मेरे पास कुछ अशरफ़ी है तो ज़रूर मगर वो किसी और की अमानत है। मैं ख़ुद आज बेहद भूखा था तो आज इसी अशरफ़ी में से ही मैंने ये खाने का सामान ख़रीदा है।

फिर उस शक्स ने आपसे दरियाफ़्त किया की बगदाद में किसी अब्दुल कादिर जिलानी नाम के नव जवान को आप जानते हैं। आपने उसे बतलाया कि मेरा भी नाम अब्दुल कादिर जिलानी है तो सुनकर उसने आपसे कुछ और सवाल किया और पुख़्ता यकीन हो जाने पर वह शख़्स बहुत खुश हुआ और बतलाया की आपकी वाल्दा ने आपके लिए कुछ अशरफिया भिजवाई है और उन्हीं अशरफियो में से यह खाना मैंने खरीदा है। आप मुझे माफ कर दे। और ये अशरफी ले ले।

आपने वो अशरफिया ले ली और उसमे से कुछ उस शख़्स को भी दी। और कुछ ख़ुद अपने लिए रखकर बाकी अशरफिया उन 40 फकीरो को ले जाकर दे दी। जिस से वे फ़कीर बेहद खुश हो गए। सुभान अल्लाह ये थी सखावत अली के इस लाल की, जिसे देखने अल्लाह ने फरिश्तों को अर्श से भेजा था, और अपनें महबूब की सखावत को देख खुश हो रहा था।


इल्म का खज़ाना और कठोर रियाज़त

बेशक अल्लाह ने आपको हर एक ज़ाहिरी और बातिनी इल्म से नवाज़ा था, जिसके बारे मे पीराने पीर खुद फरमाते हैं के:

नवजवानी की मंजिल में अभी मैंने ठीक से कदम भी ना रखा था की एक बार मुझ पर नीन्द ग़ालिब हो गई और मै अपने रब की इबादत करते करते सो गया तो मेरे कानों में गैब से यह आवाज़ आई:

“ऐ अबदुल कादिर जिलानी! हम ने तुझको सोने के लिए पैदा नहीं किया है।”

आप फरमाते हैं कि इसके बाद मैं अरसे तक शहर के वीरान जगहों पर जाकर इबादात में मशगुल रहा करता। तक़रीबन 23 बरस तक ई़राक़ के बयाबान जंगलों में तन्हा फिरता रहा। अपने नफ्स की ख्वाहिशो को पूरा करने से बचाता रहा यहाँ तक की एक बरस तक मैं जंगल के कंद मूल और घांस फूस आदि से गुज़ारा करता रहा एवं पानी नहीं पीता था। फिर एक साल तक पानी भी पीता रहा। फिर 3 साल मैंने केवल पानी पर ही गुज़ारा किया, कुछ भी नहीं खाता। फिर एक साल तक ना ही कुछ खाया, ना पिया। और ना ही सोया।

हज़रत अबु अबदुल्लाह नज्जार रहमतुल्लाहि अलैह से मरवी है के हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने फरमायाः

“मैंने बडी-बडी मुश्किलों का सामना किया बहोत सी तकलीफों को सहा। कठिन परिश्रम भी किया। यदि यह सब आफ़ते किसी पहाड़ पर गुज़रती तो वह पहाड़ भी फटकर रेज़ा रेज़ा हो जाता। मगर हर हाल में मैंने अल्लाह का शुक्र अदा किया।” (खलाइ़क़ उल जवाहिर, पः 10/11)

हुजुर गौसे आज़म गर चाहते तो हर चीज़ उन्हें सिर्फ हल्के से इशारो से ही हासिल हो सकती थी। मगर उन्होंने जो कठिन इबादात और रियाज़त किये है उसका शब्दों में ज़िक्र ही नहीं किया जा सकता है बस यूँ समझ ले की इल्म का जितना खज़ाना था, वो सब कुछ अल्लाह ने आपको बिना मांगे ही अता कर दिया था और हुजुर गौसे आज़म को तमाम वलियों मे अफ़जल वो आला मरतबा अता किया।

जो इल्म का खज़ाना आपको रब ने अता किया है उसे आपने अल्लाह के हुक्म से तमाम वली अल्लाहो, क़ुतुब ओ अब्दाल तक भी पहुचाया है। सुभान अल्लाह।

हज़रत अबुल फतह हरवी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं के:

“मैं हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की खिदमत में तक़रीबन 40 वर्ष तक रहा तथा इस मुद्दत के दौरान मैंने आप को हमेशां ई़शा के वुज़ू से फज्र की नमाज़ पढ़ते हुए देखा।”

आप फ़रमाते है हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु 15 सालो तक रात भर में रोजाना एक क़ुरान पाक पढ़ा करते और पूरा कलाम पाक पढ़कर ही उठते। सुभान अल्लाह। (अख़बारुल अख़यार, पः 40 जामअ़ करामात ऑलिया)

क्रमशः …

🖊️ तालिबे इल्म एड.शाहिद
इकबाल खान,चिश्ती-अशरफी
रायपुर (C.G.)

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