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Ghous pak: गौस पाक की करामात: 40 साल इबादत, मेराज का वाक़्या पार्ट-7

हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की इबादत और मजलिस की शान

Ghous pak की 40 साल तक एक वुज़ू से नमाज़: हज़रत अबुल फ़तह हरवी रहमतुल्लाहि अलैह फ़रमाते हैं। मैं हज़रत ग़ौसे आज़म की ख़िदमत में 40 साल तक रहा। इस पूरी मुद्दत के दौरान मैंने एक चीज़ देखी। आप हमेशा ईशा के वुज़ू से फ़ज्र की नमाज़ पढ़ते थे। आप यह भी फ़रमाते हैं। ग़ौसे आज़म 15 सालों तक रात भर में। रोज़ाना एक क़ुरआन पाक पढ़ते थे। पूरा कलाम पाक पढ़कर ही आराम करते थे। सुब्हान अल्लाह!

(अख़बारुल अख़यार, पृष्ठ 40, जाम-ए-करामात औलिया)




Ghous Pak: लाखों का मजमा और आवाज़ की तासीर

पहले आप (Ghous Pak) मस्जिद में वाज़ (उपदेश) किया करते थे। फिर आप जामा मस्जिद में वाज़ करने लगे। लोगों की तादाद इतनी ज़्यादा होती थी। जामा मस्जिद में भी जगह कम पड़ जाती थी। इसके बाद आपने खुले मैदानों में तक़रीर की। आपकी महफ़िल में दूर-दूर से लोग आते थे। महफ़िल में हज़ारों लाखों का मजमा होता था।

आपकी आवाज़ का कमाल अद्भुत था। सबसे पीछे मौजूद शख्स को भी उतनी ही साफ़ आवाज़ मिलती थी। जितनी सामने की सफ़ में बैठे शख्स को। कुछ उलमा यह भी फ़रमाते हैं। अल्लाह ने आपकी आवाज़ में ख़ास तासीर दी थी। उसे क़रीब के दूसरे कस्बे के लोग भी सुन सकते थे। सुब्हान अल्लाह!

आपकी मजलिस में 400 आदमी मौजूद रहते थे। वे हमेशा कलम और दवात लिए हाज़िर रहते थे। आप जो कुछ भी फ़रमाते, वे तुरंत लिख लेते थे। आपकी मुबारक मजलिस में यहूदी और नसारा भी आते थे। उनमें से बहुत लोग आपकी बातें सुनते थे। वे आपके मुबारक हाथ पर बैत करके ईमान लाते थे।

करामात का इनकार: कुरआन से जवाब

कुछ लोग ऐसे भी हैं जो करामतों पर यकीन नहीं करते। ग़ौस पाक की करामातें किताबों में दर्ज हैं। फिर भी वे इन पर एतमाद नहीं करते हैं। वे शायद यह नहीं जानते होंगे। जिन जगहों पर करामतें ज़ाहिर हुईं। वहाँ बड़े-बड़े उलमा-ए-दीन मौजूद थे। उन्होंने जो देखा और सुना, उसे ही बयान किया।

अल्लाह के वलियों की करामतों का इंकार करने वाले। एक बार क़ुरआन-ए-करीम के अज़ीम वाक़्ये को सुनें।

हज़रत आसिफ़ का वाक़्या (तख़्त-ए-बिलक़ीस)

हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने। बहुत सी ख़ूबियों से नवाज़ा था। उनकी बादशाहत सिर्फ़ इंसानों पर ही नहीं थी। बल्कि चरिंग-ओ-परिंग और जिन्नातों पर भी थी।

एक बार आपने हुदहुद से देरी की वजह पूछी। हुदहुद ने मलिका-ए-बिलक़ीस और उसके तख़्त के बारे में बताया।

हज़रत सुलेमान ने मलिका को दरबार में बुलाया। वह चाहते थे कि मलिका का तख़्त भी आ जाए। ताकि वह अपने तख़्त को देख हैरान हो जाए। आपने दरबार में पूछा: “है कोई जो जल्द तख़्त ला सकता है?”

एक ताक़तवर जिन्न ने फ़रमाया। “मैं मजलिस ख़त्म होने से पहले ही तख़्त हाज़िर कर दूँगा।” हज़रत सुलेमान अलैहिस्सलाम ने फ़िर पूछा। “कोई है जो इससे भी पहले तख़्त ला सकता है?”

हज़रत सुलेमान के दरबार में अल्लाह के एक वली थे। उनका नाम हज़रत आसिफ़ बिन बरख़िया था। वह जानते थे कि बिलक़ीस का तख़्त लाखों मील दूर है। इसके बावजूद उन्होंने फ़रमाया। “ऐ अल्लाह के नबी, अगर आप इजाज़त दें।” “तो इंशा अल्लाह, पलक झपकने से पहले।” “वह तख़्त आपके सामने आ जाएगा।”

उस मकबूल वली ने यह बात सिर्फ़ कही नहीं। पलक झपकने से पहले ही तख़्त को हाज़िर कर दिया। अल्लाह के इस वली की इस करामात का ज़िक्र। मुक़द्दस क़ुरआन में किया गया है। यकीनन अल्लाह ने अपने वलियों की अज़मत बताने के लिए। यह वाक़्या अपने महबूब तक पहुँचाया होगा।

हज़रत आसिफ़ की जब यह करामत हो सकती है। तो सभी नबियों से औला वो आला नबी-ए-करीम के। वलियों की शान और मर्तबा क्या होगा। और यह तो हुज़ूर ग़ौसे आज़म (Ghous Pak) हैं। जो तमाम वलियों के सरदार हैं। जिन्हें अल्लाह ने ख़ुद अपना महबूब कहा है। उस ग़ौसे आज़म का मक़ाम कितना ऊँचा होगा।

Ghous Pak: सबसे बड़ी करामात: मेराज का वाक़्या और यहूदी का ईमान

हुज़ूर गौस पाक की बेशुमार करामतें हैं। उनमें से सिर्फ़ चंद ही यहाँ बयान की जा रही हैं। बग़ौर (ध्यान से) समाद फ़रमाएँ।

दरिया में पल भर में गुज़री पूरी ज़िंदगी

एक बार हुज़ूर ग़ौसे आज़म तक़रीर फ़रमा रहे थे। लाखों लोग महफ़िल में जमा थे। एक यहूदी भी आपका नाम सुनकर आया। वह पीछे खड़ा होकर आपका बयान सुनने लगा। आप उस वक़्त नबी-ए-करीम के मेराज का वाक़्या बता रहे थे। मेराज का वाक़्या सुनकर उस यहूदी ने यकीन नहीं किया। उसने इसे एक मनगढ़ंत क़िस्सा समझा। वह बिना पूरा वाक़्या सुने ही घर चला आया।

ग़ौसे आज़म की नज़र दूर बैठे लोगों पर भी होती है। वह यहूदी तो आपकी महफ़िल में आया था।

उस पर आपकी नज़र क्यों नहीं पड़ती? अब देखिए उस यहूदी के साथ क्या हुआ।

यह सुनकर आपका ईमान ताज़ा हो जाएगा।

वह यहूदी जब अपने घर पहुँचा। उसने देखा कि उसकी बीवी मछली साफ़ कर रही थी। उसे भूख लगी थी।

खाना अभी तैयार नहीं हुआ था। बीवी से कहा कि वह नहाकर आता है। तब तक मछली भी पक जाएगी।

यह कहकर वह पास की दरिया में चला गया।

उसने कपड़े किनारे पर रखे और दरिया में नहाने लगा। जब उसने दरिया से सर बाहर निकाला।

वह ख़ुद को देखकर हैरान और परेशान हो गया। उसने देखा कि वह एक ख़ूबसूरत लड़की बन चुका है।

यहूदी ने मांगी माफ़ी और अपनाया इस्लाम

अभी वह कुछ समझ भी नहीं पाया था। तभी एक बादशाह दरिया के क़रीब आया।

वह इस लड़की की ख़ूबसूरती पर फ़िदा हो गया। वह उसे अपने साथ महल में लेकर चला गया।

फ़िर उस बादशाह ने उससे शादी कर ली। शादी के बाद उनकी एक-एक कर सात औलादें हुईं।

इस तरह न जाने कितना ही वक़्त गुज़र गया। अब उसे यह भी याद नहीं रहा

कि वह कैसे दरिया में नहाने आया था। और मर्द से लड़की बनकर महल में आया।

फिर एक दिन वह घूमते-घूमते। उसी दरिया के किनारे पर पहुँच गया।

उसके मन में दरिया में नहाने का ख़याल आया।

वह शहज़ादी दरिया में उतरकर नहाने लगी। इस बार जब उसने सर बाहर निकाला।

उसने ख़ुद को उसी जगह पर पाया। जहाँ वह अरसे पहले लड़की बन चुका था।

उसने देखा कि किनारे पर उसके कपड़े भी थे।

सिर्फ़ इतना ही नहीं, वह पहले की तरह मर्द बन चुका था।

उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना न रहा। वह दरिया से बाहर आकर कपड़े पहने।

भागता हुआ अपने घर पर आया। तो देखा कि उसकी बीवी अब भी। उसी मछली को पका रही थी।

मुझे उस रब से और हुज़ूर ग़ौसे आज़म से माफ़ी माँगनी है

उसने हैरान होकर यह सब देखा। फिर उसने अपनी बीवी से वह सब बताया जो हुआ।

उसने कहा, “पकाना छोड़ो और जल्दी चलो।” “हमें अल्लाह के वली हुज़ूर गौसे आज़म के पास जाना है।”

“उनकी बातों को मैंने झूठ समझा था।” “बेशक अल्लाह क़ादिर (शक्तिमान) है।”

“उसकी क़ुदरत को कोई आसानी से समझ नहीं सकता।”

“मुझे उस रब से और हुज़ूर ग़ौसे आज़म से माफ़ी माँगनी है।”

वह यहूदी तेज़ी से अपनी बीवी के साथ दौड़ा। वह दोबारा उसी जगह पर आया।

जहाँ हुज़ूर ग़ौसे आज़म तक़रीर फ़रमा रहे थे। उसने देखा कि गौसे आज़म अभी भी।

‘मेराज के वाक़्ये’ को ही बता रहे थे। उस यहूदी ने वाज़ को मुकम्मल सुना।

वाज़ ख़त्म होने पर वह अपनी बीवी के साथ पहुँचा। उन्होंने आजिज़ी से आपसे दरख़ास्त की।

फिर उन्होंने आपके दस्ते मुबारक पर हाथ रखा। ईमान लाकर दोनों मुसलमान हो गए।

क्रमशः …

🖊️ तालिब-ए-इल्म: एड. शाहिद इक़बाल ख़ान, चिश्ती-अशरफी




हुज़ूर ग़ौसे आज़म “रज़ियल्लाहु तआला अन्हु” बचपन के वाक्यात पार्ट-2

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