AllReligion

गौस पाक: 12 साल बाद दरिया से डूबी कश्ती और बारातियों को निकाला पार्ट-8

हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु पार्ट-8

हुज़ूर गौस पाक की बेशुमार करामातें हैं। यह करामातें सिर्फ सुनी-सुनाई बातें नहीं हैं। इनमें से बहुतों का ज़िक्र किताबों में हुआ है। उलमा अक्सर अपनी तक़रीरों में इन्हें बयान करते हैं। ऐसी ही एक अद्भुत करामात को ध्यान से सुनिए। यह सुनकर इंशा अल्लाह आपका ईमान ताज़ा हो जाएगा।

बूढ़ी माँ की पुकार और 12 साल का इंतज़ार

एक बार हुज़ूर गौस पाक एक दरिया के क़रीब पहुँचे। उन्होंने देखा कि किनारे पर एक बूढ़ी ख़ातून हैं। वह पानी लेने आई हुई थीं। वह दरिया की तरफ़ देखकर रो रही थीं। वह बार-बार दरिया को इस तरह देख रही थीं। जैसे उन्हें किसी का इंतज़ार हो। उन्हें गुमान भी नहीं था कि आज उनकी किस्मत संवर जाएगी।

हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म उस ख़ातून के पास पहुँचे। आपने देखा कि वह ज़ार-ज़ार रोए जा रही थीं। उनके आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म ने उनसे रोने का कारण पूछा। जब उस ख़ातून ने आपका नूरानी चेहरा देखा। उन्होंने फ़ौरन आँसू पोंछे और अदब से सलाम किया।

उन्होंने कहा, “हुज़ूर, मैं यहाँ 12 बरस से रोज़ाना आती हूँ।” “मुझे उम्मीद है कि अल्लाह कोई करिश्मा कर देगा।” “और मेरा बेटा वापस आ जाएगा।”

बेटे की बारात डूबने का दुख

हुज़ूर ग़ौसे आज़म ने पूछा, “अम्मा, तेरे बेटे को क्या हुआ?” वह कहने लगीं, “मेरा सिर्फ़ एक ही बेटा था।” “उसकी शादी की तमन्ना मेरे दिल में थी।” “अल्लाह के करम से वह दिन भी आया।” “उसकी शादी दरिया पार एक कस्बे में हो गई।”

“हमारे गाँव के सभी लोग बारात में गए थे।” “शादी के बाद बेटा दुल्हन को लेकर आ रहा था।” “बड़ी-सी कश्ती में सभी बाराती सवार थे।” “मैं ख़ुशी से फूली नहीं समाई थी।” “सुबह से ही दरिया के किनारे खड़ी हो गई थी।” “जब बेटे की कश्ती को आते देखा।” “तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।”

यह कहकर वह ख़ातून फिर से रोने लगीं। उन्होंने रोते-रोते आगे की दास्तान सुनाई। “अचानक ही नदी में तेज़ भँवर (भंवर) पैदा हो गया।” “वह कश्ती भी इस भँवर की ज़द में आ गई।” “देखते ही देखते मेरा बेटा और पूरी बारात।” “उस भँवर में समा गए।”

“वह मंज़र मैंने अपनी आँखों से देखा।” “फिर भी मुझे इंतज़ार था कि कश्ती ऊपर आएगी।” “और मेरा बेटा नज़र आएगा।” “मगर वह कश्ती आज तक नज़र नहीं आई।” “मेरा बेटा और बाराती भी वापस नहीं आए।”

बुज़ुर्ग की भविष्यवाणी पर अटल यकीन (गौस पाक)

हुज़ूर ग़ौसे आज़म ने उन्हें समझाने की कोशिश की। “यह सब अल्लाह की मर्ज़ी थी।” “अब तेरा बेटा वापस किस तरह आएगा?” मगर उस बूढ़ी माँ ने कहा कि उन्हें करार नहीं आया। वह रोज़ाना यहाँ आती रहीं।

“एक रोज़ एक बुज़ुर्ग ने मुझसे कहा।” “बग़दाद से हुज़ूर ग़ौसे आज़म यहाँ तशरीफ़ लाएंगे।” “अगर वह दुआ फ़रमाएंगे।” “अल्लाह ने चाहा तो तेरा बेटा ज़िंदा होकर वापस आ जाएगा।” “तब से मैं रोज़ाना यहाँ उनका इंतज़ार करती हूँ।” “मुझे यकीन है कि वह ज़रूर यहाँ आएंगे।” “उनकी दुआओं से अल्लाह मेरे बेटे को ज़रूर वापस करेगा।”




ग़ौस-ए-आज़म की ज़िद और कुदरत का करिश्मा

उस बुढ़िया की बातें सुनकर आपका दिल पसीज गया। आपने रब की बारगाह में हाथ उठाकर दुआ की। “या अल्लाह, इस बूढ़ी माँ को बड़ी उम्मीद है।” “तेरा यह बंदा अब्दुल क़ादिर तुझसे दुआ करता है।” “तू अपनी कुदरत से उस डूबी हुई कश्ती को बाहर निकाल दे।” “इस बुढ़िया को इसका बेटा वापस कर दे।” “इसे वह खुशियाँ लौटा दे।” “सभी बारातियों को भी ज़िंदा कर दे।”

ग़ैब से आवाज़ आई, “ऐ अब्दुल क़ादिर, यह मुमकिन नहीं है।”

आपने कहा, “या अल्लाह, तेरे लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं है।”

रब ने फिर कहा, “ऐ अब्दुल क़ादिर, कुछ और माँग ले।”

मगर आपने फ़रमाया, “ऐ अल्लाह, यह अब्दुल क़ादिर तब तक नहीं हिलेगा।”

“जब तक तू इस बुढ़िया का बेटा और बारातियों को ज़िंदा नहीं कर देता।”

“और डूबी कश्ती को किनारे नहीं ला देता।”

तकदीर को पलटने वाले महबूब

क़ुर्बान जाइए हुज़ूर ग़ौसे आज़म की अज़मत पर। वे अल्लाह के महबूब हैं।

उनका रब उन्हें क़समें दे-देकर मनाता है। उस मुक़द्दस ज़ात का नाम है ग़ौस-ए-आज़म।

जिनकी ख़ातिर अल्लाह तक़दीर के लिखे को भी पलट सकता है।

उस ख़ातून का यकीन कितना पुख़्ता था। उसने ग़ौस-ए-आज़म को कभी देखा भी नहीं था।

फिर भी वह जानती थी कि वह ज़रूर आएंगे। अल्लाह ने भी अपने महबूब की अज़मत दिखाई।

उस रब ने उस ख़ातून की दुआ भी सुन ली।

12 साल बाद वापस आई बारात

उसकी क़ुदरत से दरिया के किनारे मौजूद लोगों ने देखा। 12 साल पहले दरिया में डूबी हुई कश्ती।

दरिया की गहराइयों से अचानक ही ऊपर आ गई। फिर वह कश्ती किनारे की तरफ़ बढ़ने लगी। सुब्हान अल्लाह!

इस कश्ती में जितने भी लोग सवार थे। सभी वैसे ही थे और वही कपड़े पहने हुए थे।

दूल्हे-दुल्हन के सिरों पर सेहरा भी बंधा था। ठीक वैसा ही जैसा 12 साल पहले बंधा था।

फूल भी उसी तरह ताज़ा थे। सभी बाराती ऐसे ख़ुश थे मानो कुछ हुआ ही न हो।

किनारे पर खड़ी बुढ़िया की ख़ुशी का ठिकाना न रहा।

कभी वह हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म को देखती। तो कभी अपने बेटे की कश्ती को देखती। य

ह सब उसके लिए किसी ख़्वाब जैसा था।

इस तरह 12 बरस के बाद बेटे की बारात वापस आई।

हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म उस बुढ़िया के चेहरे की ख़ुशी देखकर ख़ुश हो रहे थे।

उनका रब अपने इस महबूब गौस-ए-आज़म को देखकर ख़ुश हो रहा था। सुब्हान अल्लाह!

निकाला है, पहले तो डूबे हुवों को। और अब डूबतों को बचा “ग़ौसे आज़म”।

क़सम है कि मुश्किल को मुश्किल न पाया। कहा हमने जिस वक़्त “या ग़ौसे आज़म”।

या ग़ौस अल मदद!

क्रमशः …

🖊️ तालिब-ए-इल्म: एड. शाहिद इक़बाल ख़ान, चिश्ती-अशरफी




Ghous pak: गौस पाक के करामात: 40 साल इबादत, मेराज का वाक़्या पार्ट-7

इस लिंक के जरिए आप Simplilife के whatsapp group से जुड़ सकते हैं https://chat.whatsapp.com/KVhwNlmW6ZG0PtsTxJIAVw

Follow the Simplilife Info channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029Va8mk3L6LwHkXbTU9q1d

ghous pak, karamat-e-ghous-e-azam, sunken boat miracle, qadri silsila, peerane peer

Show More

Related Articles

Back to top button