‘कदमी हाज़िही…’ हुज़ूर गौस पाक का वह एलान जिसने वलियों को झुका दिया! कदम-ए-ग़ौस का मर्तबा
Ghous Pak: वाह क्या मर्तबा ऐ “ग़ौस” है बाला तेरा। ऊँचे-ऊँचों के सरों से क़दम आला तेरा। सर भला क्या कोई जाने कि है कैसा तेरा। औलिया मलते हैं आँखें, वो है तलवा तेरा।
Ghous Pak: ग़ौसे आज़म का इल्मी सफ़र
अब वह अहम वाक़्या ध्यान से सुनिए। इसे सभी लोग जानते हैं। इस वाक़्ये की वजह से सारी मख़लूक़ ने। अल्लाह के तमाम वलियों ने अपना सिर झुकाया। सबने एक साथ या ग़ौस का नारा बुलंद किया। इससे हमें पता चला कि “क़दम-ए-ग़ौस” का यह मर्तबा है। तो आपके सर-ए-मुबारक का आलम क्या होगा?
हज़रत शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी जीलान से बग़दाद आए। उन्होंने यहाँ इल्म हासिल किया और रहने लगे। आपके नाम का चर्चा सिर्फ़ बग़दाद में ही नहीं था। बल्कि दूर-दूर तक हो चुका था। लोग आपकी तक़रीर सुनने के लिए बेताब रहते थे। वे आपकी एक झलक पाने को उत्सुक रहते थे। इल्म का जो दरिया जीलान से शुरू हुआ था। वह आज बग़दाद शरीफ़ को सराबोर कर रहा था। यह दरिया तब से लेकर आज भी दुनिया में बह रहा है। जिसने भी इस दरिया में डुबकी लगाई, वह तर गया।
मुर्शिद ने की शागिर्द की अज़्मत बयान
एक बार आप अपने पीरो-मुर्शिद। हज़रत ख़्वाजा अबु सईद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की मजलिस में थे। आप किसी काम से उठे। उसी दौरान आपके मुर्शिद ने मुरीदों से फ़रमाया।
“अब्दुल क़ादिर” मेरा शागिर्द और मेरा चहेता मुरीद है। मगर मर्तबे में वह मुझसे बहुत आगे है। यह सुनकर महफ़िल में सन्नाटा छा गया। एक मुर्शिद अपने मुरीद का मर्तबा ख़ुद से आला कह रहा था।
फ़िर आपके मुर्शिद ने फ़ख़्र से फ़रमाया। “तमाम औलिया अल्लाह की गर्दन पर।” “मेरे इस मुरीद का क़दम होगा।” “जो सिर्फ़ ग़ौस ही नहीं, बल्कि ग़ौस-ए-आज़म (Ghous Pak) है।” “जो मोहयुद्दीन भी है।”
“कदमी हाज़िही अला रकब्ती कुल्ली वलीअल्लाह” का एलान
आपके मुर्शिद का यह फ़रमाना था कि। उसी वक़्त ग़ैब से आवाज़ आई। “अब्दुल क़ादिर, अपना पैर ऊँचा करो।” आवाज़ सुनकर सभी ग़ैबी निदा को ग़ौर से सुनने लगे। आवाज़ धीरे-धीरे और बुलंद होती चली गई। “अब्दुल क़ादिर, तमाम औलिया अल्लाह की गर्दन पर अपना क़दम रखो।” सुब्हान अल्लाह!
इस हुक्म-ए-इलाही को सुनकर। हुज़ूर ग़ौसे आज़म ने बग़दाद की जामा मस्जिद के मिम्बर पर। खड़े होकर बुलंद आवाज़ में यह ऐलान किया। यह अपने रब का फ़रमान था।
“कदमी हाज़िही अला रकब्ती कुल्ली वलीअल्लाह।” यानी, “मेरा क़दम तमाम औलिया की गर्दनो पर है।”
आपने जब यह एलान किया। तमाम औलिया अल्लाह ने अपनी-अपनी गर्दन ख़म कर दी। यह आवाज़ हर वली अल्लाह के कानों तक पहुँची। हुज़ूर ग़ौसे आज़म (Ghous Pak) ने बार-बार यही फ़रमाया। “मेरा क़दम अल्लाह के हर वली की गरदन पर है।”
तमाम औलिया ने क्यों झुकाए सर?
हुज़ूर ग़ौसे आज़म के दीवानों, उनकी अज़्मत पर क़ुर्बान जाइए। इस एलान पर अमल करने वाले वलियों का तसव्वुर करें। यह एलान सिर्फ़ बग़दाद वालों के लिए नहीं था। न ही यह सिर्फ़ हुज़ूर ग़ौसे आज़म के दौर के वलियों के लिए था। यह क़यामत तक आने वाले सभी औलिया अल्लाह के लिए था।
सिर्फ़ इतना ही नहीं। जो औलिया अल्लाह हुज़ूर ग़ौस पाक से पहले पर्दा कर चुके थे। उन्हें भी इस एलान का इल्म हुआ। उन्होंने भी अपने दौर में इस एलान का ज़िक्र करते हुए। अपनी गर्दन ख़म कर दी थी। सुब्हान अल्लाह!
इस वाक़्ये को पढ़कर आप झूमते रहें। उनका ज़िक्र करते रहें और दिल से सुब्हान अल्लाह कहें। हम जैसे आशिक़ों के दिलों में एक अजीब कैफ़ियत तारी हो जाती है। अक़ीदत और मोहब्बत के चिराग़ ख़ुद ब ख़ुद रौशन हो जाते हैं। हर आशिक़ के सर ख़ुद ब ख़ुद ख़म हो जाते हैं।
आला हज़रत की दुआ
हम जैसे आशिक़ों की क्या बिसात है। बरेली के सरताज आला हज़रत भी सर ख़म करके दुआ करते हैं। “या अल्लाह, तमाम आशिक़ों को उस क़दम मुबारक का सदक़ा दे।” “ऐ अल्लाह, हुज़ूर ग़ौसे आज़म (Ghous Pak) का सग (कुत्ता/गुलाम) बना दे।” “हमारी गर्दन में उनके नाम का पट्टा सारी ज़िंदगी बँधा रहे।” “जब इस दुनिया से जाएँ, तब भी यह पट्टा रहे।” “यह पट्टा यकीनन हमारी बख़्शीश का सबब बनेगा।” “जिसकी गर्दन पर यह पट्टा होगा, वह सग मारे नहीं जाते।”
हज़रत ग़रीब नवाज़ और हज़रत नक़्शबंदी का अमल (Ghous Pak)
अल्लाह के जो भी वली कायनात में मौजूद थे। उन सभी की गर्दनों पर क़दम-ए-ग़ौस की सनद आ गई। जो वलीअल्लाह क़यामत तक आएँगे। अल्लाह ने उनकी गर्दनों पर भी क़दम-ए-ग़ौस की सनद लगा दी।
जो वलीअल्लाह आपसे पहले तशरीफ़ ला चुके थे। उन्होंने भी अपने मुरीदों को इस सनद के बारे में बताया। उन्होंने उसी वक़्त अपनी गर्दने ख़म की। दुआ की, “या ग़ौसे आज़म दस्तगीर, हमारी भी गर्दनों पर।” “रख दे अपने क़दम मुबारक।” उनकी गर्दनों पर भी क़दम-ए-ग़ौस की सनद आ गई। सुब्हान अल्लाह!
सरकार ग़ौस-ए-आज़म ने हलब की एक खानकाह में फ़रमाया। “मेरा क़दम तमाम औलिया की गर्दनों पर है।” उस महफ़िल में सबसे पहले हज़रत अली बिन हैती ने। अपनी गर्दन ख़म की। फ़िर तमाम गर्दनें ख़ुद ब ख़ुद खिंचकर। आपके क़दम के नीचे आती चली गईं।
पूरी ज़मीन पर मौजूद सभी वलियों ने यह कौल सुना। एक-एक कर सभी ने अपने सरों को झुकाया।
सरकार हुज़ूर ग़रीब नवाज़ उस वक़्त खुरासान की पहाड़ियों में थे। वे मुजाहिदात (कठिन इबादत) में मसरूफ़ थे। उन्होंने भी सर को ख़म करने में अफ़ज़लियत दिखाई। ग़ौसे पाक का फ़रमान सुनते ही। आपने अपना सर-ए-मुबारक अदब से ज़मीन पर रख दिया। ज़बान-ए-हाल से अर्ज़ किया:
“ये दिल है, ये जिगर है, ये आँखें, ये सर है…” “जहाँ चाहो रखो क़दम, ग़ौसे आज़म।”
इसे सुनकर हुज़ूर ग़ौसे आज़म ने फ़रमाया। “सैय्यद ग़्यास उद्दीन के साहबज़ादे मोईनूद्दीन (ग़रीब नवाज़) ने।” “गर्दन ख़म करने में सबक़त हासिल की है।” “हमने उनको हिन्दुस्तान की सल्तनत अता की।” 📕 नफ़हातुल इंस, सफ़ह 764
कुर्बान जाइए हम ग़रीबों की क़िस्मत पर। रहमतुल-लिल-आलमीन ने भी हुज़ूर ग़ौस-ए-आज़म ने भी। आपको सरज़मीने हिन्द की सल्तनत अता की। यह सबसे बड़ा करम और बुलंद क़िस्मत है हमारी। हम ग़ौस वाले भी हैं और ख़्वाजा वाले भी हैं। सुब्हान अल्लाह!
हज़रत ख़्वाजा बहाउद्दीन नक़्शबंदी ने भी पैग़ाम सुनकर। हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ की तरह फ़रमाया। “सिर्फ़ गर्दन ही नहीं, आपका क़दम मुबारक।” “मेरी आँखों पर, मेरे दिल पर रखे, पीराने पीर दस्तगीर।” सुब्हान अल्लाह!
नबी करीम के क़दमों के निशान और मेराज का वाक़्या
ऊँचे-ऊँचों के सरों से हुज़ूर ग़ौसे आज़म का क़दम आला क्यों है? इसकी वजह किताबों से और आला हज़रत ने बयान की है।
पैदाइश के वक़्त का निशान
जब हुज़ूर सरकारे ग़ौसे आज़म पैदा हुए। आपके दोनों काँधों के बीच मुहर-ए-नुबुव्वत की तरह। हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के क़दमों के निशान मौजूद थे। सुब्हान अल्लाह!
शब-ए-मेराज का वाक़्या
अब यह भी ध्यान से सुनिए। हुज़ूर ग़ौसे आज़म ने यह क्यों कहा।
“मेरा क़दम तमाम औलिया की गर्दनों पर है।”
शब-ए-मेराज के दौरान। जिब्रील-ए-अमीं सवारी “बुराक़” को लेकर हाज़िर हुए।
उन्होंने फ़रमाया, “ऐ अल्लाह के महबूब, चलिए। आपको रब ने बुलाया है।”
आपने जब बुराक़ को देखा। वह बिजली से भी ज़्यादा तेज़ था।
बुराक़ ने नबी-ए-करीम के नूरानी चेहरे पर नज़र डाली। उसे देखकर बेकरारी तारी हो गई।
आक़ा-ए-करीम ने बेकरारी का सबब पूछा। बुराक़ ने सर ख़म करके जवाब दिया।
“मेरी जान आप पर क़ुर्बान, मेरी आरज़ू है।” “हुज़ूर रोज़े क़यामत मुझी पर सवार होकर जन्नत जाएँ।”
हुज़ूर ने फ़रमाया, “अल्लाह ने चाहा तो ऐसा ही होगा।” बुराक़ ने फिर इल्तेजा की।
“हुज़ूर, मेरी गर्दन पर अपना दस्ते मुबारक लगा दें।” “कि क़यामत के दिन मेरे लिए अलामत हो।” हु
ज़ूर ने इल्तेजा क़ुबूल की। मुबारक दस्ते-अक़दस (पवित्र हाथ) के लगते ही।
बुराक़ ख़ुशी से फूलकर 40 हाथ ऊँचा हो गया।
सवारी में एक लम्हा की देर हुई। अल्लाह के हुक्म से फ़ौरन आलम-ए-अरवाह (रूहों की दुनिया) से।
हुज़ूर सैय्यदना ग़ौसे आज़म की रूह-ए-मुतहर हाज़िर हुई।
उन्होंने अर्ज़ किया, “ऐ मेरे आक़ा, अपना क़दम मुबारक। मेरी गर्दन पर रखकर सवार हों।”
हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने। हुज़ूर ग़ौसे पाक की गर्दन पर क़दम रखकर बुराक़ पर सवारी की।
उसी वक़्त आक़ा-ए-करीम ने यह इरशाद फ़रमाया।
“मेरा क़दम तेरी गर्दन पर मौजूद होगा। और तेरा क़दम भी तमाम औलिया की गर्दनों पर होगा।” सुब्हान अल्लाह!
वलियों की पहचान और वसीले की अहमियत (Ghous Pak)
अल्लाह के महबूब का यह कौल है। अल्लाह इसे भला कैसे रद्द कर सकता है?
इसलिए अल्लाह ने ग़ौस-ए-आज़म की रूह-ए-मुबारक पर। और उनके जिस्म-ए-मुबारक पर भी।
अपने महबूब के क़दमों के निशान को सलामत रखा।
मेरा मानना है कि इसका कारण यह भी हो सकता है। जो सही मायनों में अल्लाह के वली होंगे।
जो इल्म वाले होंगे, वह हुज़ूर ग़ौसे आज़म के इस क़दम मुबारक को।
वलियों की गर्दन पर महसूस कर उन्हें पहचान सकते हैं।
शरह हिदायके बख़्शीश, सफ़ह 254 सुल्तानुल अज़कार फ़ी मनाक़िबिल अबरार, सफ़ह 55
इस वाक़्ये में कोई हैरत की बात नहीं है।
अल्लाह ने क़यामत तक पैदा होने वाले हर इंसान की रूह को।
उनके पैदा होने से पहले ही बना दिया है। इसका प्रमाण हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम का वाक़्या है।
जब उन्होंने काबा शरीफ़ की तामीर के बाद पुकारा।
अल्लाह ने उनकी आवाज़ क़यामत तक आने वाले सभी लोगों तक पहुँचाई।
यही वजह है कि हाजी “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” कहते हैं।
इससे मालूम हुआ कि वलियों की गर्दन पर। हुज़ूर ग़ौसे आज़म (Ghous Pak) के क़दम मुबारक का होना।
इस बात की दलील है कि नबी-ए-करीम तक पहुँचने से पहले।
तमाम वलियों को हुज़ूर ग़ौसे आज़म तक पहुँचना ज़रूरी है। तभी विलायत की सनद मिल सकेगी। सुब्हान अल्लाह!
इससे यह भी पता चला कि वसीले के बिना ख़ुदा तक पहुँचना।
यह दावा करने वालों के लिए सोचने की बात है।
ख़ुद अल्लाह ने ईमान वालों से फ़रमाया है: “ऐ ईमान वालों, वसीला तलाश करो।”
जो सही मायनों में ईमान वाला होगा। वह वसीला ज़रूर तलाश करेगा।
हम ख़ुशक़िस्मत हैं कि हम वसीले वाले हैं। हम हुज़ूर ग़ौसे आज़म के वसीले से दुआ माँगते हैं।
या हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के वसीले से। हमारा अक़ीदा है कि अल्लाह इनके वसीले से।
हमारी दुआएँ यकीनन क़बूल करता है। सुब्हान अल्लाह!
दुरूद-ए-ग़ौसिया: सवाब और बरकत के लिए
सवाब और बरकत की नीयत से दुरूद-ए-ग़ौसिया पढ़ें। इंशा अल्लाह, सारी मुश्किल परेशानियाँ दूर होंगी।
🌋 दुरूद-ए-ग़ौसिया: अल्लाहुम्मा सल्ले अला सैय्यदना व मौलाना मोहम्मददिम मअदिनल जूदी वल करमि व आलिहि व बारिक वसल्लिम।
🌋 या कुतुबे रब्बानी: या गौसिस समदानी या महबुबे सुब्हानी या सुल्तानों मीरे-मीरा मोहय्युद्दीन अबू मोहम्मदनि-शशाहो अब्दुल क़ादिर जीलानि क़द्दसल्लाहो सिर्रहुल अज़ीज़ व सल्लल्लाहो अला ख़ैरे ख़ल्क़ेहि मोहमदिव व-आलेही व-असहाबेहि अजमइन बे रहमते क या अरहमर्राहेमिन।
क्रमशः …
🖊️ तालिब-ए-इल्म: एड. शाहिद इकबाल खान, चिश्ती-अशरफी
हुज़ूर ग़ौसे आज़म “रज़ियल्लाहु तआला अन्हु” बचपन के वाक्यात पार्ट-2
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