संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट – 8

दास्ताने हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु
लुटेरो को दिया सबक, अल्लाह ही सबका ख़ालिक और मालिक है
हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने निशापुर की जानिब अपना सफ़र जारी रखा और जब वे एक वीराने में पहुचे तो देखा की दो आदमी रास्ते में बैठे हुवे है। आप उनके क़रीब गए और पूछा ‘क्या बात है, आप लोग यूँ क्यों बैठे है?’ उन्होंने अपनी आँखे खोली और जवाब दिया ‘हम मुसाफिर है, भूख और प्यास से निढाल होकर यहाँ बैठे है और हममे इतनी ताकत नहीं की आगे बढ़ सके’। उन मुसाफिरों की बाते सुनकर हुजुर ग़रीब नवाज़ को रहम आ गया, और उन्होंने अपना खाना और मश्किज़े का पानी उनके सामने रख दिया और कहा ‘आप इसे बिस्मिल्लाह कहकर नोश फरमा ले’। दोनों ने खुश होकर सारा खाना खा लिया यहाँ तक की पूरा पानी भी ख़त्म कर दिया और खुश होकर शुक्रिया अदा किया।
आपने उनसे इस तरह यहाँ पर बैठे होने का सबब जानना चाहा तो उन्होंने कहा, ‘हम एक काफिले के साथ जा रहे थे, की हमारी नींद लग गयी और काफिला निकल गया, जब हम उठे तो तेज़ी से आगे बढे, मगर काफिला नहीं मिला’। फिर उन्होंने कहा ‘हमारे पास कुछ रकम भी नहीं है, अगर आपके पास कुछ पैसा हो तो हमें दीजिये बड़ी मेहरबानी होगी’। आपने रकम की थैली निकाली, तो उन्होंने झट से वो थैली ही उनसे ले ली। हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने उनसे कुछ नहीं कहा और मुस्कुराने लगे। फिर आपने उनसे कहा ‘क्या आप साथ नहीं चलोगे?’ उन्होंने कहा “नहीं जिधर से आप आ रहे है, हमें तो उसी तरफ जाना है’। फिर आपने उन दोनों से ‘खुदा हाफिज’ कहा और आगे बढ़ गए।
अभी वे कुछ ही दूर बढे होंगे की वो दोनों भागते हुवे आपके पास आये और कहा ‘आप की उम्र तो बहोत कम है, यूँ अकेले आप कहाँ जा रहे है?’ हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने कहा ‘मै इल्म हासिल करने ‘निशापुर’ जा रहा हूँ’। तो उन्होंने कहा ‘वहा पहुचने में तो आपको एक माह लग जायेगा, और आपके पास तो खाना और पानी तक नहीं है’। तब हुजुर ग़रीब नवाज़ ने जवाब दिया ‘जिस अल्लाह ने इस बियाबान में तुम्हे खिलाया पिलाया तो क्या वो मुझे नहीं खिला पिला सकता?’ उन्होंने फिर आपसे पूछा ‘क्या आपके पास और रकम पास में है?’ आपने जवाब दिया, ‘नहीं, जो थी वो तो आपने ले ली’।
सारी बाते सुनकर वे दोनों रोने लगे और फिर आपसे कहा “अये नवजवान, हमने तुमसे झूट बोला था, हमारे साथ कुछ नहीं हुवा था, हम तो लुटेरे है जो राहगीरों को धोका देकर लूट लेते है। मगर तुम्हारी बातो ने हमारी आँखे खोल दी है। आप हमें माफ़ कर दे”। हम आपका खाना तो नहीं लौटा सकते मगर आप अपनी ये रकम वापस ले ले। आपने कहा ‘किसी को देकर कोई चीज़ वापस लेना खिलाफे नबवी है लिहाज़ा इसे आप ख़ुशी से अपने पास ही रखिये। और जो काम आप कर रहे है, उसके लिए अल्लाह से तौबा करे, और फिर दोबारा ये काम ना करे’। वे दोनों बेसाख्ता रोने लगे, और कहा “हम आप से वादा करते है, दोबारा ये काम फिर कभी नहीं करेंगे”। सुनकर आप मुस्कुराये, और फिर आप ‘बिस्मिल्लाह’ कहकर आगे बढ़ गए।
भूखे प्यासे रहने के बावजूद आपने अपना सफ़र जारी रखा। दूर दूर तक तपती रेत की सिवा और कुछ नहीं था। अल्लाह अल्लाह ये कौनसा जज्बा था, जो इल्म के इस तालिब के बढ़ते कदमो को इतना मज़बूत कर दिया था, की हजारो तकलीफ के बावजूद उनके कदम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे। आगे जाने पर एक बहोत छोटा सा मकान नज़र आया, जहाँ एक ज़इफा रहती थी। जब उसकी नज़र इस कम उम्र नवजवान पर पड़ी तो दौड़कर आपके करीब आई और पूछा “बेटा तुम कौन हो, और कहा जा रहे हो?” और जब उसे पता चला की आप नीशापुर जा रहे तो उसने हुज़ूर ग़रीब नवाज़ से इसरार किया “बेटा मुझे तुम्हारे चेहरे में अपना बेटे की शक्ल नज़र आता है, आज तुम मेरे मेहमान बनकर मेरे घर पर ही रहो मुझे बहोत ख़ुशी होगी’। आप भूख और प्यास से बेहाल थे, लिहाज़ा आपने इसे अपने रब की मर्ज़ी मानते हुवे उस ज़इफा की बात मान ली’ और अल्लाह का शुक्र अदा किया। उस ज़इफा ने आपकी खूब खातिरदारी की। आपने भी ‘माँ’ की तरह ही उस ज़इफा की खिदमत की उसके घर के सारे काम किये। फिर दूसरे दिन वहा से रुखसती की दरखास्त की तब उस ज़इफा ने आपको कुछ दिन और वही रहने की इल्तेजा की। आपने फ़रमाया ‘अये अम्मा जल्द ही तेरा बेटा घर आ जाएगा’। मेरा जाना बहोत ज़रूरी है। सुनकर उस ज़इफा ने आपको रुखसत किया और जाते वक्त खाने का कुछ सामान और पानी भी साथ रख दिया। आपने अपने रब का शुक्र अदा किया, और फिर आपने उस ज़इफा से इजाज़त लेकर आगे बढे। क्रमशः .. बकलम:- एड.शाहिद इक़बाल खान 16/2/2019
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