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हज़रत सैय्यद मख्दूम अशरफ़ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लह अलैह पार्ट -3

– स वा ने ह – उ म री-
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अशरफ निहंग दरिया दरिया बसिना दारद
दुश्मन हमेशा पुरगम बाजिक्र दोस्त नदारद

आपने अब तक पढ़ा कि किस तरह से महबूबे यजदानी, गौसुल आलम हजरत मीर ओहउद्दीन सुल्तान सैय्यद मख्दूम अशरफ जहांगीर समनानी रहमतुल्लाह सिमनान से होते हुए मुल्के हिंद पहुंचे और फिर आखिरकार जिस पीर कि उन्हें तलाश थी उन्हें यानि हज़रत अलाउल हक़ पाण्डवी रहमतुल्ला अलैह से आपकी मुलाकात हुई। अब आगे पढ़े।

🌲 सुल्तान फ़िरोज़शाह के शासनकाल में हज़रत मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्ला अलेह मुल्क ए हिन्द पहुंचे थे ।

ये वो दौर था जब लोग दुःख दर्द तकलीफ परेशानियों में मुब्तला थे, दूर दूर तक कोई रहबर नज़र नहीं आता था I जादू टोने का चलन आम था I

हुक्मे इलाही से हज़रत खिज्र अलैहिस्सलाम ने आपको आखिरकार पीरो मुर्शिद से मिलवा दिया था। आपके पीरो मुर्शिद का भी आपके ऊपर कुछ ऐसा करम हुवा की जल्द ही आप उनके खास और चहेते मुरीदो में शुमार हो गए। आप अपने मुरीद से इतनी मोहब्बत करते थे, की जब कभी कोई हज़रत अलाउल हक़ पांड्वी रहमतुल्ला अलेह के लिए शरबत, पान या फिर कोई भी चीज़ पेश करता तो, आप उसे सुल्तान मखदूम ए सिमना को दे दिया करते ।

पीर ओ मुरशिद की खिदमत में रहते हुए काफी कम अर्से में ही आपके मुरशिद ने मख़दूम पाक की रूहानी तरबियत और तालीम को इतने उरूज़ तक पंहुचा दिया था की आपका कोई भी मुरीद उस मक़ाम तक नहीं पहुंच सका।

हजरत मखदूमें सिमना को “जहाँगीर”का लकब कैसे अता हुवा ?

शायद आपको यह मालूम नहीं होगा की हुज़ूर मखदुमे सिमना के मुल्क ए हिन्द मे आने तक जहांगीर नहीं जुड़ा था

जहांगीर यह लकब आपको रब तआला की तरफ से एक गैबी निदा के जरिए अता किया गया था I सुभान अल्लाह

🌹हज़रत सैय्यदना मख्दूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह अपने पीरो मुर्शिद हज़रत सैय्यदना मखदूम अलाउल हक़ वद्दीन रहमतुल्लाह अलैह की ख़िदमत में करीब 6 सालो तक और कुछ रिवायतो के मुताबिक इससे भी ज़ियादा सालो तक यानि तक़रीबन 12 सालो तक रहे I आपके मुर्शिद की ये बड़ी आरज़ू थी की वे अपने इस मुरीद को कोई ख़ास लकब तजवीज़ करे, मगर आपको इसका इंतज़ार था की के ये ख़िताब खुदावन्दी तआला गैब से अता करे I चुनांचे तक़रीबन 4 सालो तक पीरो मुर्शिद की खिदमत में रहने के बाद एक रात जो की मुक़द्दस“ शब् ए बारात “ थी। उस रात हुज़ूर मख़दूम ए सिमना ज़िक्र ए इलाही में मशगूल थे । सहर के वक्त दरो दीवार से होकर एक गैबी आवाज़ आपके मुर्शिद के कानो में पड़ी जो बार बार आती रही यहाँ तक की ये आवाज़ काफी बलंद हो उठी जिसे सभी ने सुना और इस गैबी आवाज़ को सुनकर उनके मुर्शिद ने खुश होकर कहा

“ अल्हम्दुलिल्लाह, फरजंद अशरफ को रब तआला की तरफ़ से “ख़िताब ए जहाँगीर” अता हुवा है I मरहबा .. सुभान अल्लाह।

और उस दिन नमाज़े फज्र में हर एक को ये बात पता चल चुकी थी, सभी ने इस आवाज़ को सुना भी था,लिहाज़ा नमाज़ के बाद जो कोई भी आपसे मुसाफा करता वो आपको मुबारकबाद देते हुवा कहता

“ हुज़ूर को खिताबे जहाँगीरी मुबारक हो ।सुभानअल्लाह ..

इस तरह मुर्शिद के साथ रहते हुए जब काफी अरसा गुज़र गया की रब के फरमान को हज़रत अलाउल हक़ पंडवा ने महसूस कर लिया आप के पीरो मुरशिद का दिल तो नहीं चाहता था कि वह अपने इस मुरीद से अलग हो लेकिन वह खुदाबंदे करीम के हुकुम को भी अच्छी तरह से जान चुके थे लिहाजा एक दिन उन्होंने अपने मुरीद मख़दूम ए सिमना से कहा

“मेरे पास जो कुछ भी ज़ाहिरी और बातिनी इल्म था, वो सभी आपने हासिल कर लिया है। हिन्द में इस्लाम का जो पौधा हुज़ूर ग़रीब नवाज़ सरकार ने लगाया था, उसे शाद और हरा भरा करने की ज़िम्मेदारिया अब आपके कंधो पर है । मुझे यकीन है कि इस्लाम को बुलंदी के मकाम तक ले जाने में आप कभी पीछे नहीं हटेंगे आपके ज़रिए इस्लाम ख़ूब फलेगा फूलेगा और बेशक मुझे आपका मुर्शीद होने पर नाज़ है। मै जानता हूं की आपकी मंजिल कही और है लिहाज़ा अब आपको अपनी मंज़िल की जानिब क़दम बढ़ाना होगा।

मखदूमे सिमना रहमतुल्ला अलेह अपने मुर्शीद से अलग होना नहीं चाहते थे मगर मुरशिद का हुक्म सर आंखों पर था लिहाज़ा ना चाहते हुए भी आपको रुखसत होना पड़ा। वे जब रूखसत होने लगें तो आपके मुरशिद ने वो सभी तबर्रुकात जो पीढ़ी दर पीढ़ी बुजुर्गो से होते हुवे आप तक पहुचे थे, उन्हें मखदूम ए अशरफ को अता कर दिया ।

आप सफ़र करते हुए उत्तर प्रदेश,यू.पी. के वर्तमान अंबेडकर नगर जिले में स्थित टांडा तहसील क्षेत्र के किछौछा शरीफ में पहुचे, जो पहले रूहाबाद के नाम से जाना जाता था I ये वही मंजिल थी, जिसके बारे में आपको कई बार बशारत दी जा चुकी थी, जिसकी मिट्टी की खुश्बू आपने महसूस कर ली थी I

ये वही जगह थी, जहाँ रह कर आप ज़िक्रे इलाही और इबादत कर सकते थे साथ ही खल्क की खिदमत भी कर सकते थे, लिहाज़ा रूहाबाद पहुंच कर मखदूम साहब ने जिस जगह पर कयाम किया, जल्द ही लोग वहां पर आने लगे । आप लोगों की बीमारियों और परेशानियों के लिए अल्लाह से दुवा करते, तिब्बे नबवी और जड़ी बूटियों का भी आपको इल्म था, लिहाज़ा जो कोई भी आपके पास आता वो शिफ़ायाब होता और खुश होकर वापस जाता था । और इस तरह से जल्द ही आपकी शोहरत दूर-दूर तक फैलने लगी I

मखदूम साहब सिलसिला ए चिश्त के चराग थे, सूफियाना सिलसिले से थे, हर एक के लिए उनका नजरिया समान था, लिहाज़ा आपके पास आने वालो में सिर्फ मुसलमान ही नहीं होते बल्कि गैर मुस्लिम लोग भी काफी तादाद में आते थे और आपका करम भी सभी पर यकसा होता था, और यही “सूफीवाद” के तमाम वलियो की खासियत भी रही है, की उनके पास दूसरे मज़हब वाले जब आते और इन बुजुर्गो के एखलाक को देखते तो वे इनसे इतना ज्यादा प्रभावित होते थे की उन्हें इस्लाम की अच्छाईया आइने की तरह साफ़ नज़र आने लगती थी I

क्रमशः …

✒️एड.शाहिद इकबाल खान,
चिश्ती-अशरफी
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