हज़रत सैय्यद मख़्दूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह पार्ट-6
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सैय्यद अशरफ़ जहांगीर अशरफ़ सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह की करामते
पत्थर के मुजस्समे को जिंदा कर दिया
🌲आपके बारे में एक मशहूर वाकया है की एक बार “हज़रत मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह” अपने मुरीदो के साथ सफ़र कर रहे थे, तभी रास्ते में एक बेहद हसीन ओ जमाल संगेमरमर से तराशी हुई औरत की मूर्ति नज़र आई I जिस पर आपके एक अफगानी मुरीद जिनका नाम “गुलकनी”था, उसकी नज़र इस मूरत पर पड़ी । वो मूरत इतनी खूबसूरत और हसीनथी की हर कोई उसे देखता ही रह जाता। आपका वो मुरीद भी देर तक उस मुकस्समे को देखता रहा, यहाँ तक की वो उस मूर्ति का शैदाई हो गया और उसे ये भी होश न रहा की वो सिर्फ एक पत्थर की मूरत है और वो अपने मुर्शिद के साथ है I उसके दिल में उस “ हसीन मुजस्समें” के लिए ऐसी मोहब्बत पैदा हो गयी की वो उस मूरत का दीवाना बन गया I
यहां तक की आपके मुर्शिद का काफ़िला आगे चला गया, लेकिन वह उस पत्थर के मुजस्समें के सामने ही बैठा रहा आगे जाने पर हजरत अशरफे सिमना रहमतुल्लाह अलैह को अपने इस मुरीद का खयाल आया । उन्हें अपने इस मुरीद का सारा हाल पता चल गया और अपने उस मुरीद की उस पत्थर की मूरत के प्रति दीवानगी को भी आपने अपने कश्फ से जान लिया था, मगर दूसरे मुरीदो पर इसे ज़ाहिर नहीं किया और उनसे अपने उस मुरीद के बारे में सवाल किया की
वो आखिर है कहा ?
तब उनके मुरीदो ने जवाब दिया की वो मुरीद एक बला की खुबसूरत संगेमरमर की मूरत का दीवाना हो गया है, हमने उसे बहोत समझाया मगर वो माना नहीं और वही रह गया है I
तब आप मुरीदो के साथ वापस उसी जगह पर आये, जहाँ की उनका वो मुरीद एक हसीन औरत के मुजस्समे के पास खड़ा था, वो उस औरत के खयालो में इस कद्र गुम था की उसे अपने मुर्शिद के करीब आ जाने का भी कुछ इल्म न रहा I
आपने जब उस मुरीद को आवाज़ देकर पुकारा, पहले तो वो सुन ही नहीं सका और फिर जब अपने मुर्शिद की आवाज़ को सुना तो उसने शर्म से अपनी नज़रे नीची कर ली I आपने अपने इस मुरीद से कहा
“ये तो सिर्फ एक मूरत है तुझे इस मूरत से इश्क किस तरह हो गया।
उससे कोई जवाब देते नहीं बना लेकिन आपने अपने इस मुरीद की हालत को देखकर जान लिया की इसके दिल में इस औरत का चेहरा बस चूका है। ये मेरे कहने से मेरे साथ चल भी पड़ा तो भी इसके दिल में इस औरत का चेहरा ही रहेगा, तब आपने उस मुरीद से कहा
अगर ये सच की औरत हो जाए तो तू क्या इससे निकाह कर लेगा।
उसने मासूमियत से जवाब दिया “ जी हुजुर “
तब आपने हँसते हुवे अपने इस मुरीद से कहा
ठीक है अल्लाह ने चाहा तो तेरी इसी औरत से शादी होगी ।
आपने अपने इस मुरीद से कहा तू इस मुजस्समें से बोल चल मेरे साथ।
उस मुरीद ने तीन मर्तबा यही कहा
और फिर हुजूर अशरफे सिमना ने उस औरत को जिंदा होने का हुक्म दिया ।
आपके कहने की देर थी की उस मुरीद ने देखा अल्लाह की कुदरत से पत्थर की वो मूरत देखते ही देखते हाड़ मांस की जीती जागती औरत बन चुकी थी यानि वो औरत जिसमें अब तक जान ही नहीं थी जो सिर्फ पत्थर का बुत थी उसमे जान आ गई अब वह औरत संगे मरमर की बेजान बुत न रही बल्कि अब वो जिंदा हो कर सचमुच की औरत बन चुकी थी I
और फिर उस औरत से आपके उस मुरीद गुलकनी का निकाह भी हुवा कहा जाता है की आज भी उनकी औलादे “केरल” में रहती है जिनके पैरो को देखकर आज भी लोग पहचान लेते है क्योकि उनके पैर आज भी मुजस्समे की तरह ही नज़र आते है यह वाक्या अपनी तकरीर में हुजूर कायदे मिल्लत हजरत महमूद अशरफ अशरफी, साहब किबला ने बतलाया है जिसे मैंने अपने लफ्ज़ो मे लिखा है I
🌹ये था इल्म “सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहतुल्लाह अलैह का जो कह दे तो पत्थर की मूरत भी ज़िंदा हो जाती है । भले ही कुछ लोग इस वाक़्ये पर भरोसा ना करे मगर हम जैसे आशिको को उन लोगो से क्या मतलब क्योंकि हमें मालूम है की हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने ना जाने कितने ही मिट्टी के परिंदो को ज़िंदा किया है और कामिल वली भी अल्लाह के हुक्म से यह कर सकते है ताकि लोग समझ सके की मुकद्दस कुरआन मे जो कुछ बतलाया गया है उसमे कोई शक़ ओ शुबहा हो ही नहीं सकता और जिसने शक़ किया समझो वो ईमान वाला ही नहीं
आइये ऐसे ही एक और हैरतअंगेज वाक़्या समाद फरमाए
सिर्फ़ ज़मीन ही नहीं बल्कि समन्दर में भी आपकी हुकूमत चलती है
अल्लाह वालो की शान ही निराली है और आप तो अपने दौर के गौस है लिहाज़ा क्या ज़मीन, क्या समंदर हर जगह आपकी हुकूमत है किस तरह आइये ज़रा ग़ौर से सुने आपका ये मशहूर वाक्या
सफ़र के दरम्यान हाजी निज़ामुद्दीन यमनी मोअल्लिफ लताईफे अशरफी जो हज़रत गौसुल आलम के साथ थे और दौराने सफ़र ही वो इस सिलसिले में दाखिल होकर मुरीद भी हुवे और ऐसे मुरीद हुवे की आप“सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहतुल्लाह अलैह के साथ हर सफ़र में और हज में भी यहाँ तक की आखरी दम तक वे सुल्ताने मख्दूम अशरफ जहाँगीर सिमनानि रहतुल्लाह अलैह के साथ ही रहे I
हज़रत निज़ामुद्दीन यमनी लिखते है की
एक बार वे हज़रत के साथ समुन्दर में सफ़र कर रहे थे, तो आपके दिल में ख़याल आया की
क्या समंदर में भी कोई सुल्ताने सिमना का शैदाई अशरफी होगा ?
आपने कहा नहीं सिर्फ दिल में सोचा भर था की आपने देखा की बीच समंदर में एक इंसान जिसके कमर तक का हिस्सा इंसानों की तरह का था और कमर के नीचे का हिस्सा मछली की तरह का था, समुन्दर को चीरता हुवा निकला और हुजुर अशरफे सिमना के सामने आकर आपको सलाम अर्ज़ किया और फरमाया
“हुजुर मै आपका गुलामाने गुलाम हूँ I
आपने उससे कहा
“क्या तू “तुर्रुल बहर” का मुरीद है?
उसने जवाब दिया
“जी हुजुर मै उन्ही का मुरीद हूँ उन्होंने ही मुझे हुक्म दिया है की मेरे पीर इस समंदर से होकर जा रहे है, जाकर उनसे मेरा सलाम अर्ज़ करना और उन्हें इज्ज़त ओ एहतेराम के साथ यहाँ लेकर आना।
और फिर हुजुर अशरफे सिमना ने अपने मुरीद की इल्तेजा को मान लिया और फिर वो कुछ पलो के लिए अपने मुरीद से मिलकर वापस भी आ गए I
इस वाकये का ज़िक्र ताजुल उलमा हज़रत सैय्यद नूरानी मिया साहब क़िबला ने अपनी तकरीर में किया है जिसे सुनकर मैंने ये वाक्यात अपने लफ्ज़ो मे लिखा है ।
क्रमशः
🖊️ एड. शाहिद इक़बाल ख़ान,
चिश्ती – अशरफी
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