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हज़रत सैय्यद मख़्दूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह पार्ट-7

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सैय्यद अशरफ़ जहांगीर अशरफ़ सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह की करामते

मौलवी साहब के गुरूर को तोड़ा


एक मौलवी साहब थे जो एक आलिम भी थे जिसकी वजह से उनके बहुत से मुरीद भी थे । अपने इल्म पर मौलवी साहब को गुरूर हो गया वो हज़रत मखदूमे सिमना की शोहरत से जलते थे लिहाजा एक बार उन्होने हज़रत मखदूमे सिमना को सवालो का जवाब देने यानि उनसे मुराकबा करने तक कह डाला ।

मौलवी साहब की बात सुनकर लोग हैरान रह गए और कुछ दानिशमंद लोगो ने मौलवी साहब को समझाने की कोशिश भी की मगर मौलवी साहब नहीं माने और तय वक़्त पर लोग मस्जिद मे जमा हो गए । मौलवी साहब अपने सैकड़ो मुरीद के साथ मस्जिद मे तशरीफ़ लाए । अब लोग हज़रत मखदूमे सिमना का इंतज़ार करने लगे ।

कुछ देर पर लोगो ने देखा की हज़रत मखदूमे सिमना मस्जिद मे आए और लोगो ने हैरानी से देखा की आपके पीछे पीछे एक एक कर हज़रत मखदूमे सिमना की ही शक्ल मे और लोग चले आ रहे है । यहाँ तक की आपकी शक्ल के 100 लोग वहाँ आकर बैठ गए ।

खुद मौलवी साहब भी इस मंज़र को देखकर हैरान रह गए । किसी की कुछ समझ मे नहीं आ रहा था की आखिर ये किस तरह मुमकिन है । इससे पहले की कोई कुछ कहता हज़रत मखदूमे सिमना ने मौलवी साहब से फरमाया – आप इनमे से जिससे चाहे सवाल कर ले आपको जवाब मिल जाएगा ।

मौलवी साहब आपकी इस करामात को देखकर हैरान थे । उनमे यह ताब बाकी नहीं रही की वो कुछ भी सवाल कर सके । आप बेहद शर्मिंदा हुए । उनका गुरूर टूट गया और उन्होने आपसे माफी मांगते हुए कहा । बेशक आप अल्लाह के सच्चे वली है आपके मक़ाम को समझने मे मुझसे भूल हुई हुज़ूर मुझे माफ कर दीजिए । आपने मौलवी साहब को माफ कर दिया और फरमाया अल्लाह ने हमे जो बेशकीमती इल्म अता किया है हमे उसकी कद्र करते हुए अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए और इसका इस्तेमाल मख़लूक़ की भलाई के लिए करना चाहिए ।

जानवर भी आपके हुक्म के ताबे

एक मर्तबा हज़रत मखदूमे सिमना सफर मे थे की रात हो गई । वहाँ की एक मस्जिद मे आप अपने चंद मुरीदों के साथ तशरीफ़ लाए । वक्ती तौर पर मस्जिद के करीब ही सहन मे आपके मुरीदों ने अपने घोड़ो को बांध दिया ।

आपकी आमद की खबर सुनकर जल्द ही लोग जमा गए । मस्जिद के इमाम साहब और मस्जिद के ख़िदमतगार लोग भी तशरीफ़ लाए । जब उन्होने घोड़ो को सहन मे देखा तो उन्हे ये सब बेहद नागवार लगा ।

हज़रत मखदूमे सिमना ने उनके दिलो की इस कैफियत को भाप लिया । तभी एक घोड़ा हिनहिनाया आपने अपने एक मुरीद को हुक्म दिया की जाओ उस घोड़े को पेशाब की हाजत है उसे दूर लेजाकर पेशाब करवा दो ।

कुछ देर बाद दूसरा घोड़ा भी इसी तरह सर हिलाकर हिनहिनाया । आपने अपने मुरीद से फ़रमाया । जाओ उसे भी दूर ले जाओ उसे भी हाजत करनी है । मुरीदों ने एसा ही किया ।

इस मंज़र को देखकर इमाम साहब और मस्जिद के ख़िदमतगार लोग हैरान रह गए और अपनी गलती पर शर्मिंदा भी हुए वे समझ गए की इंसान तो इंसान आपके साथ रहने वाले जानवर भी आपके हुक्म के ताबे है ।

क्रमशः

🖊️ एड. शाहिद इक़बाल ख़ान,
चिश्ती – अशरफी

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