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सैय्यद अशरफ़ जहांगीर अशरफ़ सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह की करामते
ज़िंदा इन्सान मुर्दा हो गया
अल्लाह के वलियों से नाफरमानी करना कोई नहीं बात नहीं है पहले चंद मुसलमान थे मगर आज हम देख ही रहे है की मुसलमानो मे कितने फिरके हो गए है इनमे ही एक फिरका ऐसा है जो वलीअल्लाहो को नहीं मानते है और माजल्लाह उनके बारे अक्सर गलत बाते कहते है लोग वलियों की करामातों को मन गढ़ंत किस्से मानते है ।
मगर वे नहीं जानते की अल्लाह ने वली अल्लाह को ना सिर्फ़ अपना दोस्त कहा है बल्कि उनसे दुश्मनी रखने वालों के बारे मे यहाँ तक फरमाया है की मै अपने ऐसे नेक बन्दों से दुश्मनी रखने वालो से ऐलाने जंग करता हूँ ।
बहरहाल हम सुन्नियों का अक़ीदा और ईमान यही है की हम अल्लाह के वलियों को मानते भी है और उनकी करामातों पर हम यक़ीन भी करते है ।
हज़रत मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह की चंद करामतो के बारे मे आप पढ़ ही चुके है आपकी एक और हैरत अंगेज़ करामात समाद फरमाए जिससे पता चल जाएगा की अल्लाह के वलियों का मज़ाक उड़ाने वालो का क्या अंजाम होता है :
कुछ लोग हज़रत मखदूमे सिमना से बुग्ज़ और हसद रखा करते थे और उनकी शोहरत से जला करते थे लिहाजा एक बार इनमे से कुछ लोगो ने मिलकर एक प्लान बनाया की हम हमारे एक दोस्त को मुर्दा बनाकर उसको डोले मे लिटा देंगे और उसका जनाज़ा लेकर हज़रत मखदूमे सिमना के पास जाकर उनसे कहेंगे की हमारे इस दोस्त की जनाज़े की नमाज़ आप पढ़ा दे, और जैसे ही हज़रत नमाज़ पढ़ाना शुरू करेंगे हमारा ये दोस्त उठकर बैठ जाएगा और इस तरह हम सभी तालियाँ बजाकर हज़रत मखदूमे सिमना का मज़ाक उड़ाएंगे
इस तरह हम उन्हें रुसवा करेंगे ताकि वो यह इलाका छोड़कर यहाँ से चले जाएं । और फिर इस तरह सभी लोग अपने दोस्त को कफन पहनाकर डोले मे लिटा देते है और झूठ मूठ का रोना शुरू कर देते है और उसका जनाज़ा लेकर चल पड़ते है रास्ते मे जो भी पूछता तो कहते हमारे इस अमुक दोस्त का इंतेकाल हो गयाऔर इसे लेकर हम मखदुमे सिमना के पास जा रहे है ।
इस तरह काफी लोग जब जमा हो जाते है तो वो लोग अपने दोस्त का जनाज़ा लेकर हज़रत मखदूमे सिमना के पास आते है और सभी मिलकर उनसे नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने की इल्तिज़ा करते है ।
आप उन लोगो को काफी समझाने कीकोशिश करते है की वो किसी और से नमाज़े जनाज़ा पढ़ा ले मगर वे सभी बार बार इसरार करते है की हुज़ूर हम सब यही चाहते है की आप ही नमाज़े जनाज़ा पढ़ाए ।
आप उनसे कहते है एक बार फिर सोच लो ।
आपकी बात सुनकर वे जवाब देते है की हुज़ूर हमारे इस दोस्त की भी अंतिम ख़्वाहिश यही थी की उसकी नमाज़े जनाज़ा आप ही पढ़ाए । इस तरह जब वे किसी भी तरह से नहीं मानते है तो आप मय्यत को सामने रखते है और मुसल्ला बिछा देते है । यह सब देखकर दोस्त खुश हो जाते है और कहते है अब मज़ा आएगा जब हमारा दोस्त अचानक ही उठकर खड़ा हो जाएगा ।
बहरहाल नमाज़ की सफ़े बन जाती है और हज़रत मखदूमे सिमना मुसल्ले मे खड़े होकर जनाज़े की नमाज़ पढ़ाना शुरू कर देते है । उस मुर्दे के दोस्त तमाशा देखने ठीक पीछे खड़े हो जाते है ताकि हज़रत का मज़ाक उड़ा सके ।
इधर हज़रत मखदूमे सिमना नमाज़ पढ़ाना शुरू करते है । दोस्त बेचैन हो उठते है की आखिर हमारा दोस्त उठ क्यो नहीं रहा है ?
यहाँ तक की नमाज़ मुकम्मल हो जाती है मगर उनका दोस्त नहीं उठता है । और जब आखरी दीदार के लिए चेहरा दिखलाया जाता है तो दोस्त यह देखकर हैरान रह जाते है की उनका दोस्त ज़िंदा नहीं है बल्कि वो तो सच मे मर चुका है ।
यह देखकर वे रोने लगते है उन्हे यकीन ही नहीं होता है की आखिर उनका ज़िंदा दोस्त मुर्दा कैसे हो गया ।
अब वे समझ जाते है की बेशक़ उन लोगो ने एक सच्चे वली की अज़मत को पहचानने मे न सिर्फ भूल की बल्कि उनका मज़ाक भी उड़ाना चाहा जिसकी सजा उन्हे मिल चुकी है ।
सच ही कहा गया है अल्लाह के वलियो का मज़ाक़ उड़ाने वालों का अंजाम भी बुरा होता है
12 साल का बच्चा ज़िंदा हो गया
एक मर्तबा हज़रत मखदूमे सिमना ‘दमिश्क’ पहुचे वहाँ पर लोगो ने आपकी ख़ूब आवाभगत की । वैसे भी आपकी यह करामत थी की आप जहाँ भी जाते तो आपके नाम के चर्चे हर तरफ़ होने लगते ।
उस वक़्त दमिश्क मे ही एक औरत रहा करती थी उसका एक 12 साल का बच्चा था जो अचानक ख़त्म हो गया था और वो औरत अपने इस बच्चे को गोद मे लेकर बेतहाशा रो रही थी
वो बार बार अल्लाह से दुवा करती जाती की मेरे बेटे को लौटा दे वरना मै भी अपनी जान दे दूँगी । सभी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की मगर वो थी की मानती ही नहीं थी ।
तभी किसी ने उस औरत को बतलाया की अल्लाह के वली बादशाह ए सिमना दमिश्क आए हुए है जिनके नाम के चर्चे हर तरफ़ हो रहे है तू उनसे जाकर फरियाद कर क्या पता शायद अल्लाह उनकी दुवा सुन ले और तेरी आरज़ू पूरी हो जाए ।
सुनकर वो औरत दौड़ती हुई बच्चे को लेकर हज़रत मखदूमे सिमना के पास पहुची और उनसे रो रो कर फरियाद करने लगी ।
आपने उस बच्चे को देखा और उस औरत को समझाया की तेरा बच्चा मर चुका है ।
मगर वो औरत थी की मानने को राज़ी ही नहीं थी की उसका बच्चा मर चुका है । वो हज़रत मखदूमे सिमना के कदमो मे उस बच्चे को रख देती है और रोते रोते यही कहती जाती की मेरा बच्चे को कुछ नहीं हो सकता अगर अल्लाह ने इसे छीन लिया तो मै भी ज़िंदा नहीं रहूँगी ।
उस औरत की दर्द भरी फरियाद सुनकर हज़रत मखदूमे सिमना ने अल्लाह से दुवा की और बच्चे के सिर पर हाथ रखा और उसे उठ जाने को कहा ।
देखने वालों ने आश्चर्य से देखा की वो बच्चा जो मर चुका था आपकी बात सुनकर इस तरह से उठ बैठा मानो वो नींद से जागा हो ।
बच्चे की माँ ने जब बच्चे को ज़िंदा देखा तो खुशी से चीख़ कर बेटे को सीने से लगा लिया और हज़रत मखदूमे सिमना को दुवाए देती हुई बच्चे को लेकर अपने घर चली गई ।
क्रमशः
🖊️ एड. शाहिद इक़बाल ख़ान,
चिश्ती – अशरफी
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