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भारत में भाषा चिंतन की परंपराएं’ विषय पर तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय वेबिनार उदघाटित

हिंदी विश्‍वविद्यालय वर्धा और विद्याश्री न्‍यास, वाराणसी का संयुक्‍त आयोजन
वर्धा,
महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय, वर्धा और विद्याश्री न्‍यास, वाराणसी के संयुक्‍त तत्‍वावधान में ‘भारत में भाषा चिंतन की परंपराएं’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय राष्‍ट्रीय वेबिनार का उदघाटन आज मंगलवार को हिंदुस्‍तानी एकेडमी, इलाहाबाद के प्रो. उदय प्रताप सिंह की अध्‍यक्षता में किया गया।

उदघाटन समारोह में मुख्‍य अतिथि हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल थे। इस अवसर पर विद्याश्री न्‍यास, वाराणसी के सचिव डॉ. दयानिधि मिश्र आयोजन सचिव के रूप में उपस्थित थे।
उदघाटन समारोह में बीज वक्‍तव्‍य में इंदिरा गांधी जनजातीय विश्‍वविद्यालय, अमरकंटक के लुप्‍तप्राय भाषा केंद्र के प्रो. दिलीप सिंह ने कहा कि पंडित विद्यानिवास मिश्र ने भाषा चिंतन को लोक-व्‍यवहार में लाकर आधुनिक भाषा विज्ञान के नियमों का सामान्‍यीकरण करने में महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है।

उनकी मेधा और ज्ञान राशि से शब्‍दानुशासन, वाक्‍य और रीति विज्ञान को नया आयाम प्राप्‍त हुआ है। उन्‍होंने पंडित विद्यानिवास मिश्र जी की अनेक महत्वपूर्ण पुस्‍तकों का संदर्भ देते हुए कहा कि भाषा चिंतन के लिए भारतीय और पश्चिम के विचारों के तुलनात्‍मक अध्‍ययन से संबल मिलेगा। प्रो. सिंह ने श्री अरविंद की पुस्‍तक ‘भारतीय संस्‍कृति के आधार’ का उल्‍लेख करते हुए कहा कि इस पुस्‍तक में श्री अरविंद ने वैचारिक युद्ध की चर्चा करते हुए भारतीय धर्म को वैश्विक मान्‍यता प्रदान की है।

अध्‍यक्षीय उदबोधन में हिंदुस्‍तानी एकेडमी, इलाहाबाद के प्रो. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि भाषा अनमोल रत्‍न की भांति है। वह भगवान शंकर जी के डमरु से प्रकट हुई है। भाषा को लेकर हमारे ऋषियों और मनीषियों ने जो गंभीर चिंतन किया है, उसे उच्‍च शिखर पर ले जाने की आवश्‍यकता है।

पंडित विद्यानिवास मिश्र के चिंतन का संदर्भ देते हुए उन्‍होंने कहा कि प्रो. मिश्र जी ने शास्‍त्र को लोक में लाकर समाहित किया और कठिनता से सरलता की ओर आगे बढ़ाया है। प्रो. उदय प्रताप सिंह ने भाषा चिंतन को पाठ्यक्रमों में शामिल कर नई पीढी को उससे सिंचित करने की आवश्‍यकता पर बल दिया।
संगोष्‍ठी के उदघाटन समारोह में मुख्‍य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए महात्‍मा गांधी अंतरराष्‍ट्रीय हिंदी विश्‍वविद्यालय के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल ने कहा कि भारत में भाषा चिंतन की परंपराओं पर तीन दिवसीय विमर्श का आयोजन एक प्रकार से पुनरावलोकन एवं आत्‍मावलोकन का अवसर है।

इस विमर्श के माध्‍यम से भाषा चिंतन में बहुतर विस्‍तार के द्वार को खोलने में मदद मिलेगी। कुलपति प्रो. शुक्‍ल ने विज्ञान के आधार पर भाषा को समझने की आवश्‍यकता पर बल देते हुए भाषा के विकास की चर्चा की। उन्‍होंने ‘संवाद परंपरा’ पर बल दिया। प्रो. शुक्‍ल ने महाभाष्‍य की विस्‍तार से चर्चा की तथा व्‍याकरण सम्‍मत भाषा पर बल दिया।

उन्‍होंने कहा कि भाषा को ज्ञान के सर्वश्रेष्‍ठ निकष के रूप में माना गया है।

संगोष्‍ठी की विषय प्रस्‍तावना में विश्‍वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. हनुमान प्रसाद शुक्‍ल ने कहा कि आधुनिक भारत में भाषा विज्ञान का जो विकास हुआ है उसने अपनी प्रेरणा पश्चिम से प्राप्‍त की है।
संगोष्‍ठी का स्‍वागत वक्‍तव्‍य बुद्ध स्‍नातकोत्‍तर महाविद्यालय कुशीनगर के पूर्व प्राचार्य डॉ. अरुणेश नीरन ने दिया।
संगोष्‍ठी का प्रारंभ प्रयागराज से कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्‍ल द्वारा मॉं सरस्‍वती और पंडित विद्यानिवास मिश्र के चित्र पर माल्‍यार्पण कर किया गया तथा वाराणसी से डॉ. दयानिधि मिश्र द्वारा पंडित विद्यानिवास मिश्र के चित्र पर माल्‍यार्पण किया गया।

कार्यक्रम में डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने मंगलाचरण प्रस्‍तुत किया। कार्यक्रम का संचालन राष्‍ट्रीय वेबिनार के संयोजक तथा हिंदी विवि के साहित्‍य विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो.अवधेश कुमार ने किया। विद्याश्री न्‍यास, वाराणसी के सचिव डॉ. दयानिधि मिश्र ने धन्‍यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर राष्‍ट्रीय वेबिनार के सह संयोजक डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी भी उपस्थित थे।

आभासी पटल पर आयोजित इस संगोष्‍ठी में देश भर के विभिन्‍न विश्‍वविद्यालय एवं महाविद्यालयों के अध्‍यापक, शोधार्थी तथा विद्यार्थियों ने बड़ी संख्‍या में सहभागिता की ।

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