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संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट 2

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दास्ताने हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु को इस बार एक नये अंदाज़ में किसी किस्से की मानिंन्द  लिखने की कोशिश की है, इसमें अगर कुछ बेअदबी खता हो जाये, तो  माफ़ी का तलबगार हूँ। यूँ तो हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब का ज़िक्र उनके दौर के हर खास ओ आम की जुबां पर ही रहा करता था, उस वक्त के बादशाह और शासक आपके दर पर आया करते थे, ग़रीब नवाज़ के बारे में ज़िक्र सबसे पहले एक कदीमतरीन किताब “ सैरुल औलिया, में किया गया और फिर सैरुल आरफीन में भी किया गया, मगर ये फ़ारसी भाषा में लिखी होने से इसे हर कोई नहीं समझ सका। फिर इसके बाद “सुरुरुस्सुदुर”, जो की हुजुर ग़रीब नवाज़ के खलीफा “शेख हमीदुद्दीन नागौरी अलैहिर्रहमह” के बारे में उनके के फरजंद “शेख अजीजुद्दीन” ने लिखी और शेख फरीदुद्दीन ने भी अपने मुशाह्दातो मालूमात इसमें दर्ज किये।

 

खुद हुजुर ग़रीब नवाज़ ने भी फ़ारसी भाषा में किताबे लिखी है, मगर अफ़सोस की बात है की ये आसानी से उपलब्ध नहीं हो सकी I हिंदी सभी लोगो को आसानी से समझ आ सकती थी, इसलिए सही मानो में जनाब अब्दुर्रहीम साहब कादरी साहब ने अपनी बेहतरीन खिदमात से हिंदी भाषा में हुजुर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ के बारे में मुकम्मल बयान “सीरते ख्वाजा गरीब नवाज़” में लिखा है, इस किताब की जितनी तारीफ़ की जाये कम है I मै हुज़ूर ग़रीब नवाज़ के बारे में जो कुछ भी लिख रहा हूँ वो इन्ही किताबो के हवालो  से लिखी गई है, इसके अलावा बहोत से बेहतरीन उलमा ने भी वक्त वक्त पर जो तकरीरे की है, उन सब को जमा करके इसे  मैंने अपने तरीके से आसान लफ्जों में लिखने की कोशिश की है I उम्मीद करता हूँ की आपको ये ज़रूर पसंद आयेगी I अगर मेरी पोस्ट को आप किसी और को भी शेयर करते है, तो बेशक कर सकते है और ज़रूर शेयर करे ताकि सभी हिंदल वली की तालीम से निस्बत हासिल कर उनके फैज़ान से मालामाल हो।

 संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट 1

खुरासान प्रांत के सन्जर नामक गांव में जिसे लोग  “सजिस्तान” भी कहते है । इस छोटे से गाँव में हज़रत सैय्यद ग़यासुद्दीन हसन वो उनकी अहलिया बीबी उम्मुलवरा उर्फ बीबी माहेनूर रहा करते थे, जिनका हर वक्त इबादतों में गुज़रता वे अपने रब की नेमतो का शुक्र अदा करते I हज़रत सैय्यद ग़यासुद्दीन हसन  का एक बहोत ही खुबसूरत सा फलो का बाग़ हुवा करता थे, जिसकी आमदनी से वे अपना गुज़ारा करते थे। अचानक ही उनके फलो के बागीचे में खूब बहार आ गयी, हर एक दरख्त से खुशियों के तरानो की आवाज़ आने लगी, हवाए खुशनुमा हो उठी, उन्हें लगा चिडियों की चहचहाहट मानो उन्हें कोई सन्देश देना चाहती थी, इससे पहले अपने बागीचे में ऐसी रौनाई उन्होंने कभी नहीं महसूस की थी, सिर्फ माहौल में ही नहीं बल्कि उनके दिल का भी यही हाल था, जब ये सब बाते उन्होंने घर पर अपनी अहलिया को बतलाई तो आपकी अहलिया बीबी उम्मुलवरा ने आपको घर में आने वाले एक नए मेहमान की खुशखबरी दी और बतलाया की जिस वक्त से वे हामिला हुई है, उनकी खुशियों का भी यही हाल है, उन्हें भी अपने हर तरफ खुशियों के नगमात सुनाई देते है, लगता है, हूरो मलाइका खुद उनकी खिदमत में आकर उनके हर काम को आसान कर देते है।

 

घर के  हर एक कोनो में नूर जगमगा उठा है, ख्वाबो में भी और जागते वक्त भी कानो में बार बार आवाज़ आ रही है जैसा कोई कह रहा हो खुश हो मुबारका “ अये बीबी उम्मुलवरा तेरी गोद में नूर उतरने वाला है। हजरत बीबी उम्मुलवरा फरमाती है कि मुझे खूबसूरत ख्वाब नजर आते थे। और जिस वक्त अल्लाह तआला ने उस नूर में जान डाली तो उस वक्त से यह मामूल हो गया था कि आधी रात से लेकर सुबह तक मेरे शिकम से तस्बीह व तहलील की आवाज आती है । मैं उस मुबारक आवाज में सरशार हो जाती थी। ये सब बाते सुनकर आपके शौहर हज़रत सैय्यद ग़यासुद्दीन हसन  बेहद खुश हुवे और अपने रब का शुक्र अदा कर दुवा की या अल्लाह हमें नेक और स्वालेह औलाद अता कर  और आखिरकार वो मुबारक घड़ी भी आ गयी जब आपकी विलादत हुई I संजिस्तान के सभी लोगो ने देखा की फिजा में हर तरफ नूर ही नूर फ़ैल गया है, आज से पहले इतनी रौशनी उन्होंने कभी नहीं देखि थी, लोग अपने घरो से बाहर निकल कर हैरत से देख रहे थे, तो उन्होंने देखा की हज़रत सैय्यद ग़यासुद्दीन हसन  का घर नूर से जगमगा रहा है।

चिश्तिया रंग में डूब गए सारे दीवाने ख्वाजा की महफ़िल में

इस तरह हमारे ख्वाजा-ए-ख्वाजगां हजरत हुजुर ख्वाजा मुईनुद्दीन हसन अली संजरी, चिश्ती, अजमेरी रहमतुल्लाह अलैहि 536-537 हिजरी यानि सन 1141-1142 में “पर्शिया’ के “संजर” (संजिस्तान – सिस्तान) में पैदा हुवे। कुछ किताबो में आपकी पैदाइश ईरान के इस्फहान नगर में होने का  भी पता चलता है। मगर ज़्यादातर लोगो की यही राय है की आप की पैदाइश संजर में हुई इसी वजह से आपके नाम के साथ  “संजरी” शब्द लिखा जाता है। हुज़ूर ख्वाजा ग़रोब नवाज़ के वालिद ए मोहतरम सैय्यद ग़यासुद्दीन हसन आठवीं पुश्त में हजरत मूसा काजिम र.अ. “ के पोते होते है । “हज़रत मूसा काज़िम र.अ.”  के वालिद “सैय्यदना इमाम ज़ाफर सादिक र.अ.” और उनके वालिद “सैय्यदना इमाम मुहम्मद बाकिर, र.अ.” और उनके वालिद “सैय्यदना इमाम जैनुल आबदीन र.अ.” और उनके वालिद सैय्यदुशशोह्दाये शोहदाए कर्बला “सैय्यदना इमामें आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम. जिनके वालिद “सैय्यदना इमाम अलीये मुर्तुजा करमल्लाहू तआला वजहुल करीम” जिनकी वालिदा खातुने जन्नत “सैय्यदा फतिमाज्ज़हरा रादिअल्लाहू तआला अन्हा” जिनके नाना मोहतरम हुजुर खातमुन्नबिय्यींन सैय्यदना मुहम्मदुर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अन्हु” है।

/सुभानअल्लाह/

इस तरह हमारे हुजुर ख्वाजा ग़रीब र.अ. अपने वालिद की तरफ से आपका नसबनामा इमामे हुसैन से जाकर मिलता है, और कुर्बान जाइये आपकी अजमत पर आपकी  वालिदा माजिदा बीबी उम्मुलवरा उर्फ बीबी माहेनूर है का नसबनामा  हजरत इमाम हसन से जाकर मिलता  है। इसलिए आप माँ की तरफ से हसनी है। इस तरह हसनी -हुसैनी दोनों सिफ़त जिनमे शामिल है, उस जाते मुक़द्दस की अज़मत का नाम है हुजुर ख्वाजा गरीब नवाज़ र.अ./ सुभानअल्लाह

क्रमशः …

एड.शाहिद इक़बाल खान
01/2/2019

 

 

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