हुज़ूर ख्वाजा ग़रोब नवाज़ की उम्र अभी चौदह साल भी नहीं होने पायी थी कि एक दिन आपके वालिद ने आपको अपने करीब बुलाया और फ़रमाया “बेटे हसन आज मै तुम्हारे साथ हूँ, हो सकता है कल न रहू, मगर बेटे अल्लाह के रसूल और बाबा हुसैन के दीन को फैलाने की ज़िम्मेदारी अब तुम्हारे हवाले है, इसके लिए तुम्हे आला से आला इल्म हासिल करना होगा I जल्द ही तुम्हे अपने पीर की तलाश भी करनी होगी, और मुश्किल भरे रास्तो का सफ़र भी करना होगा, बेटे कोई तुम्हारे साथ रहे या न रहे मगर अल्लाह हमेशा ही तुम्हारा नेगेहबान और मददगार होगा I उसकी रज़ा तुम्हारे साथ होगी, और वही तुम्हे रास्ता दिखाएगा लिहाज़ा हमेशा अल्लाह वालो की सोहबत इख़्तियार करना और गरीबो, मजलूमों की मदद करना I अल्लाह की तमाम मख्लूख से मोहब्बत करना, इस तरह की बहोत सी नसीहते आपने अपने बेटे हसन को दी, और फिर आखिरकार करीब 552 हि. में आपके वालिदे मोहतरम ने आपको खुदा के हवाले कर हमेशा हमेशा के लिए इस दुनिया ए फ़ानी से रुखसत हो गए I इन्नालिल्लाहि व इन्नाइलैही राजेऊन I
इस तरह वालिद ए मोहतरम का साया अब आपके सर से उठ चूका था, और आप यतीम हो गये । किताबो से पता चलता है, की आपके वालिद की मज़ार बगदाद शरीफ में है I इससे ये भी लगता है की हो सकता है, वे संजर से बग़दाद शरीफ में आकर भी रहे होंगे I वही कुछ का ये मानना है की आखरी वक्त में आपके वालिद ‘संजर’ में ही रहा करते थे, और यही पर आप आराम फरमा है, बहरहाल इन सब बातो को अल्लाह ही बेहतर जानने वाला है I
हुज़ूर ग़रीब नवाज़ के हिस्से में वालिद ए मोहतरम की ज़ायदाद में से तरके में एक बाग और पवन चक्की आई थी, जो आपके लिए ज़रिया ए माश भी था और जिसकी देखभाल वो खुद किया करते थे I आप अपनी वालिदा से बेहद मोहब्बत करते थे, और उनका हर तरह से ध्यान रखा करते I आप हमेशा दुरवेशों, सूफियों और फकीरों की संगत में बैठते, उनका अदब करते और उनसे सच्ची अकीदत और मुहब्बत किया करते । आपको विरसे में जो बाग़ मिला था, उसमें भी आप ज्यादा से ज्यादा वक्त यादे इलाही और अपने रब के ज़िक्र ओ असकार में गुजारा करते थे I बाग़ में आप ने गौर किया की अक्सर कोई ‘ग़ैबी ताकत’ आपके साथ होती और आपकी मदद किया करती थी I आप जब कभी घर से बाग़ में तशरीफ लाते, या फिर बाग़ में अपनी इबादतों में मशगूल रहते हुवे और कुरआन की तिलावत करते हुवे उन्हें महसूस होता की आपके गिर्द और भी लोग मौजूद है I आपने ये भी देखा की रोजाना ही कोई आकर आपके बाग़ का सारा काम भी कर देता है I
हालाकी आपको ये इल्म था और आप जानते भी थे, की ये सब काम कौन कर देता है I फिर एक रात जब आप अपने बाग़ में रुक गए तो आपने देखा की रात के तीसरे पहर में बाग़ में सफाई हो रही है, मगर सफाई करने वाला नज़र नहीं आता, फल शाखों से टूट रहे है, और एक जगह जमा हो रहे है, मगर फल तोड़ने वाला, उन्हें जमा करने वाला नज़र नहीं आता था I और कोई होता तो ये सब मंज़र देखकर डर जाता, मगर ये तो अल्लाह के वली ख्वाजा ए ख्वाजगा हज़रत ख्वाजा सैय्यद शेख मुईनुद्दीन संजरी थे I और अपने इन वलियो के लिए ही तो रब ने कुरआन में ये इरशाद फ़रमाया है की बेशक अल्लाह के वलियो को न कोई खौफ होगा और न कोई डर I लिहाज़ा आपने उन ग़ैबी ताकतों को सामने लाने के मकसद से बलन्द आवाज़ में बहोत ही नर्म लहजे में मोहब्बत से ये अल्फाज़ कहे.. ’दोस्तों को दोस्त से पर्दा नहीं करना चाहिए, सामने आकर मुझे शुक्रिया देने का मौका देना ही चाहिए I’ इस जुमले का पूरा होना था की आपने देखा की छह लोग आपके करीब आये और अदब से हाथ बांधे सर झुकाकर किसी खिदमतगार की तरह खड़े हो गए I सभी ने आपको सलाम अर्ज़ किया I आपने सलाम का जवाब देकर उनसे पूछा की वे कौन है जो इस तरह बिना इजाज़त के आपके बाग़ में आकर सारे कामो को अंजाम दे रहे है I उनमे से एक ने फ़रमाया ‘ हुजुर बिना इजाज़त आपके बाग़ में रहने और काम करने के लिए हम माफ़ी के तलबगार है, आप हमें माफ़ कर दे .
हम अल्लाह की ही एक मखलूक ‘जिन्न’ है, और अल्हम्दुल्लिल्लाह हम साहिबे ईमान भी है I जब आप कुरआन की तिलावत किया करते है तो आपकी तिलावत हमें बहोत अच्छी मालुम होती है, जिसे सुनकर हम आपके आशिक हो गए, और फिर यही रहने लगे I हम यहाँ रहकर आपसे दर्से कुरआन और तिलावत सुना करते है और सीखा भी करते है I जो लज्ज़त हमें आपकी आवाज़ में महसूस होती है वैसी हमने कही और महसूस नहीं की I हुजुर हम सभी ने आपको अपना उस्ताद मान लिया है, आपसे इल्तेजा है की आप हमें अपने शागिर्द के रूप में कुबूल करे, और शागिर्द होने के नाते हम अपने उस्ताद की जो थोड़ी बहोत खिदमत करते है, हुजुर इसे भी कुबूल फरमा ले I हुजुर आपसे ये भी इल्तेजा है की हमें यहाँ पर रहने की इजाज़त भी दे I ‘जिन्नों’ की सारी बाते सुनकर आप मुस्कुराये, और फिर जब आपने उनकी बाते मान ली, तो वे सभी जिन्न बहोत खुश हो गए I आपने उन्हें दुवाए देते हुवे कहा की ‘इंशाअल्लाह अल्लाह तुम्हे इस खिदमत का बेहतर अज्र अता फरमाएगा I और फिर वे जिन्न पोशीदा न रहे बल्कि शागिर्द की तरह आपके करीब रहकर तिलावते कुरआन सीखा करते और आपकी ख़िदमत किया करते I हुजुर गरीब नवाज़ ने उन्हें फरमाया की वे खिदमतगुज़ार की तरह नहीं बल्कि दोस्त की तरह ही साथ रहे .
और फिर वो दिन भी आया जिसने आपकी ज़िन्दगी में एक तूफ़ान बरपा कर दिया I