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संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट -6 

 

  हुज़ूर ख्वाजा ग़रोब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु एक रोज अपने बाग में पौधों को पानी दे रहे थे कि आपको एक अजीब सी खुश्बू महसूस हुई, लगा जैसे कोई उन्हें पुकार रहा हो, आप बेचैन हो उठे, यहाँ तक की आप बाग़ से बाहर आ गए और बाहर आपने एक बुजुर्ग मज्जूब कलंदर को अपने बाग़ के बाहर  बैठा देखा।  ख्वाजा साहब की नजर जब उन पर पड़ी तो वो तेज़ी से आपके उस मज्जूब के करीब आये, अदब से उनके हाथो को चूमा और ख़ामोशी से उनके करीब बैठ गए । और फिर उनसे अपने बाग़ में अन्दर चलकर आराम करने  की इल्तेजा की जिसे सुनकर वो मज्जुब मुस्कुराए, और फिर बिना कुछ बोले उठ खड़े हुवे ।

 

khwaza gareeb nawaz ajmer dargah sharif 2

 

हुजुर ग़रीब नवाज़, ने अदब से उनका हाथ पकड़ा और उन्हें अपने साथ अपने बाग़ के अन्दर एक सायादार पेड़ की छांव में लाकर बिठाया फिर उन्हें मीठा पानी पिलाया। फिर आपने अपने बाग़ के अंगूरो का एक पका हुआ गुच्छा तोड़कर उनको पेश किया । अल्लाह वाले बुजुर्ग को आपकी यह अदा बहुत पसन्द आई और उन्होने खुशी से उस अंगूर के गुच्छे को नोश फरमाया । वो अंगूर का एक एक दाना मुंह में डालते जाते और कहते जाते “ इस में ‘हसन’ के जुहद का ज़ाइका है, इस में ‘उम्मुल वरअ’ की खुशबू है, इस में ‘मुइनुद्दीन’ के इखलास की मिठास है, इस में ‘चिश्त’ की शादाबी है’

 

 

 

हुज़ूर ख्वाजा ग़रोब नवाज़ गौर से उस मज्जूबे कामिल की एक एक बाते सुनते और फिर आपने बेहद अदब के साथ उनसे अर्ज़ किया “ अये बुजुर्गवार यक़ीनन आप मेरे बारे में सारी बाते जानते है, आप से इल्तेजा है की आप अपने बारे में भी कुछ बतलाये। जिसे सुनकर वो बुज़ुर्ग ज़ोर से हँसने लगे, और फ़रमाया लोग मुझे दीवाना कहते है, मुझसे डर कर दूर भागते है, मगर तू मेरे यूँ करीब होकर मेरी खिदमत कर रहा  है। तो सुन ये दीवाना कलंदर ‘ शेख इब्राहिम कन्दौजी’ है, जो अपने मुर्शिद  ‘हाजी शरीफ़’ का दीवाना है । मेरे मुर्शिद ने मेरी नस नस में आग भर दी है।

 

 

मेरे मुर्शिद ने मुझसे कहा है, ये आग तब तक कम न होगी  जब तक तुझे मेरा ‘मोईन’ नहीं मिल जाता । उन्होंने मुझे एक खुशबूदार खली का टुकड़ा देकर  कहा ‘इस पर निस्फ़ तेरा और निस्फ़ मेरे ‘मोईन’ का हिस्सा है, मगर ये भी कहा की खबरदार जब तक वो नहीं मिल जाता इसे खाना नहीं । तब से मै दीवानावार सिर्फ तुझे ही ढूढता फिर रहा हूँ ।  मेरी  नजरों ने  तो संजर की इस मिटटी की खुश्बू और इस बाग़ की ताज़गी  से ही पहचान लिया था, की यही वो मंजिल है, जहाँ इल्म का तालिब ‘मुईनुद्दीन हसन’ रहता है, जो राहे हक का तालिब है, और जिसकी तलाश में मै काफी दूर का सफ़र करके यहाँ तक आया हूँ । और आज मेरी ये तलाश मुकम्मल हुई, कहकर उन्होंने जोर का नारा लगाया और फिर अपनी भरपूर नज़रे इस कम उम्र बच्चे ‘मोईन’ पर जिस वक्त डाली तो इस बच्चे यानी हुजुर ग़रीब नवाज़ की कैफियत बदलती चली गयी । हुज़ूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़  इस मज्ज़ुबे कामिल की खिदमत में लगे है,  और वो मज्ज़ूबे कामिल दरवेश  बेहद खुश हो कर उन्हें मस्त नजरो  का जाम पिला रहे है।

 

सुभानअल्लाह। क्या ही खूब मंज़र था ।  और फिर उन्होंने  अपनी जेब से एक खली का खुशबूदार  टुकडा निकाला और उसको अपने दांतो से चबाकर ख्वाजा साहब के दहने मुबारक (मुख) में डाल दिया जिसे हुज़ूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ खाने लगे और वो मज्जूब ए कामिल बुज़ुर्ग खुश होकर आपको निहारते रहे और फरमाया ‘ ए बेटे मोईन खुदा ने तुझे हर चीज़ जानने के लिए ही पैदा किया है, जल्द ही हिजाब के पर्दे तेरी नजरो से उठते चले जाएंगे और तुझे हर चीज़ नज़र आने लगेगी। जैसे जैसे आप उस टुकड़े को चबाते वैसे वैसे ही आपका दिल नूर से मामूर होता चला जाता था उन्हें अपने दिल में ‘इश्के इलाही’ का जलवा नज़र आने लगा और राजो नियाज़ के परदे धीरे धीरे उठते चले गए ।

 

आप रूहानियत की दुनिया में पहुच गये, दिल में एक जोशे हैरत पैदा होकर, दिल की आँखे खुल चुकी थी और सारे मंज़र नज़र आने लगे । काफी देर तक आपकी यही हालत रही और फिर जब आप उस  पुरकैफ हालत से बाहर आये तो अपने आप को तन्हा पाया। वो मज्ज़ूबे कलन्दर, शेख इब्राहीम कन्दोजी र0अ0  जिस ख़ामोशी से आये थे उसी ख़ामोशी से वापस भी  चले गये थे, मगर उनकी मस्त नजरो ने तो अपना असर कर दिया था, उन्होंने हुज़ूर ग़रीब नवाज़ के दिलो में  इश्के इलाही का जो जलवा दिखा दिया  था वह आपकी नजरों के सामने बार बार फिर रहा था I आपने पहले तो सब्र से काम लिया मगर फिर जब दिल काबू में न रहा, इश्क की आग तेज़ और तेज़ होती चली गयी, और जब दीवानगी हद से ज़्यादा बढ़ने लगी तो आपकी नजरों में दुनिया और इसकी दोलत हकीर (तुच्छ) नजर आने लगी ।

 

चुनाचे आपने एक रोज़ अपनी वालेदा से अपने दिल की हालत बयान की और कहा “ अये अम्मीजान अब तो एक पल भी और नहीं रहा जाता है I किसी  की आवाज़ बार बार मुझे अपने करीब बुला रही है I  मुझे इल्म हासिल करने ‘निशापुर’ जाने की इजाज़त दे । जिसे सुनकर पहले तो आपकी वालदा ने कहा  ‘बेटा तुम अभी छोटे हो, किस तरह जाओगे I मगर आपकी वालदा भी तो हसन के घराने वाली थी, उन्होंने अपने बच्चे की हालत और कैफियत को देख कर समझ लिया की ‘ये अल्लाह की रजा है लिहाज़ा उन्होंने अपने दिल के टुकड़े को बाहर जाकर इल्मे दीन हासिल करने की इजाज़त दे दी I माँ से इजाज़त मिल जाने के बाद हुज़ूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ ने विरसे में मिला अपना बाग और पनचक्की को बेच दिया और जो कुछ नगद व सामान पास में मौजूद था, उसे भी राहे खुदा में फकीरों, बेसहारों और मजलूमों में तक्सीम कर दिया और थोड़ा सा जरूरी सामान साथ रखा I आपने  एक आखरी नज़र अपने घर पर डाली, माँ को देखा और फिर घर से निकल कर जब आगे बढे तो आपने ‘संजर’ की एक एक गलियों को बागो का दीदार किया और फिर सभी को अलविदा और आखरी सलाम करके  वे ‘तलाशे हक ‘ के सफ़र में निकल पड़े ।

 

क्रमशः ..
बकलम:- एड.शाहिद इक़बाल खान

12/2/2019

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