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हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़िअल्लाहु तआला अन्हु पार्ट-3 बचपन के वाक़्यात

हुज़ूर गौस पाक जब छोटे थे तो उन्हे उस वक्त भी दूसरो बच्चो की तरह से खेलने कूदने का शौक नहीं था, मगर जब दूसरे बच्चे खेलने की ज्यादा ज़िद करते तो आप उनसे फरमाते की

जैसा मै कहूँगा वैसे खेलोगे तो मै खेलूँगा ।

जब बच्चे तैयार हो जाते तो आप सबको एक दायरे में रहकर घूमते और आवाज़ लगाते

” हक़ ला इलाहा”

तो सारे बच्चे चिल्ला उठते

“इल्लल्लाह”

और फ़िर जल्द ही ये आवाज़े काफी बुलंद हो जाती और काफ़ी दूर तक सुनाई देती, जिसे सुनकर लोग कहा करते

आज “अब्दुल कादिर” खेल रहे है.. I सुभान अल्लाह ..

हुज़ूर ग़ौसे आज़म की निगाहों का उस वक्त भी ये आलम था की जिस पर भी देर तक निगाह पड़ जाती उसके दिल की कैफ़ियत ही बदल जाती और वो वली हो जाता था, लिहाज़ा उन बच्चो की किस्मत का क्या कहना जिसने आपके साथ खेला और हुज़ूर ग़ौसे आज़म की बाकमाल नज़रो की बरकत से वो सभी वली हो गए ..सुभानअल्लाह

एक मर्तबा आपकी वालेदा आपको गोद मे लेकर खूब खूब दुलार कर रही थी आपकी बलाए ले रही है, और आप भी अपनी नन्ही नन्ही उंगलियों को वालिदा के रूखे अनवर पर तो कभी बालो पर प्यार और शफक्कत से फेर रहे थे । उस वक़्त माँ का दुलार और ममता अपने इस बच्चे पर इस तरह से हो रहा था की तमाम मलायक भी देखकर रश्क कर रहे थे, फिर कुछ देर बाद आप अपने वालेदा से फरमाते है, की

“अये मेरी प्यारी अम्मी जान. क्या आप जानती है की मैंने आपकी भी कभी मदद की थी ?

वालेदा हैरान है, की इतना छोटा बच्चा आखिर उनकी कब और किस तरह से मदद कर सकता है, लिहाज़ा प्यार से दुलारते हुवे दरियाफ्त किया

“अये बेटे आप ही बता दीजिये मुझे तो नहीं मालुम है I

तब आपने वालिदा से फरमाया

“अये अम्मी जान याद करिए जब एक डाकू हमारे घर पर दरवेश बनकर आया था, और आप उस वक्त घर पर अकेली थी, आपके हाथो में सोने के कड़े देखकर वो दरवेश घर पर आ गया, और फिर उसने घर का सारा सामान भी लूट लिया था, आप घबरा गयी, रोने लगी थी और आपने मदद के लिए जब आवाज़ लगाईं तो घर में एक शेर ने आकर आपकी मदद की थी, और उसने उस डाकू को चीर-फाड़ डाला था I

आपकी वालेदा ने जवाब दिया

“हाँ बेटा उस वाकये को मै भला कैसे भूल सकती हूँ और आज भी ये सोच कर हैरान परेशान हो जाती हूँ की वो शेर घर में किस तरह अचानक से आया और फिर देखते ही देखते ग़ायब भी हो गया ” I

सुनकर हुजुर गौसे आज़म फ़रमाते है

“अये अम्मीजान वो शेर की शक्ल में मै ही था“ । सुभानअल्लाह I

इसी तरह से एक और वाक़या सुनाते हुए आपने अम्मीजान से पूछा”

“अए अम्मीजान क्या आपको याद है एक बार आप फलो के बागीचे में गयी हुवी थी, और एक पके अंगूर के गुच्छे को देखकर आपका मन ललचाया और आपने उसे तोड़कर खाना चाहा मगर आप उसे नहीं खा सकी।
जबकि आप उसे आसानी से तोड़ सकती थी I

वालेदा ने सोचते हुए जवाब दिया

‘हाँ बेटा मुझे याद है,उस वक्त तुम पेट में थे, मैंने बहोत कोशिश की उस अंगूर को तोड़ने की, मगर जैसे ही मै उस तक अपने हाथो को ले जाने की कोशिश करती, तो मुझे पेट में तेज़ तकलीफ और घबराहट होने लगती थी I मगर जैसे ही मै हाथ नीचे कर देती थी, तो सारी तकलीफे इस तरह से दूर हो जाती थी, जैसे मुझे कुछ हुवा ही न हो, बार बार यही हुवा, आज भी मुझे समझ नहीं आता है, की आखिर ऐसा क्यों कर हुवा ?

और फिर मैंने आखिरकार अंगूर तोड़ने का इरादा छोड़ दिया था, और घर वापस आ गयी थी, मगर यह देख कर हैरान हो गई थी जब मैंने घर पर वैसा ही दूसरा अंगूर का गुच्छा देखा जिसे मैंने खाया भी था I

आपने अपनी वालेदा से फ़रमाया

‘अये अम्मीजान आपको उस वक्त पता नहीं था की जिस अंगूर के गुच्छे को आप तोड़ना चाहती थी, उस पर एक बहोत ही ज़हरीला काला बिच्छु छिपा था, अगर आप उसे तोड़ती तो वो बिच्छु आपको काट सकता था, इस वजह से मैंने ही आपके नफ्स में घबराहट तारी की ताकि आप वो अंगूर न तोड़ सके “और फ़िर अल्लाह ने आपके लिए वैसा ही दूसरा अंगूर भिजवाया। सुभानअल्लाह I

ये है हुजुर गौसे आज़म जो अभी माँ के पेट मे ही थे की अंगूर के गुच्छे में बैठे बिच्छु को भी देख लिया था, न सिर्फ देख लिया बल्कि वालिदा के नफ्स को भी अंगूर खाने से उस वक्त रोक दिया था I और जब आपने दुवा की तो अल्लाह ने वैसा ही अंगूर आपके घर पर भी भिजवा दिया। सुभान अल्लाह ।

क्रमशः….

🖊️तालिबे इल्म एड.शाहिद
इक़बाल खान,चिश्ती-अशरफी

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