प्रशिक्षण सामग्री जितनी सरल होगी उतनी ही आकर्षक होगी, सामग्री निर्माण में रोचक गतिविधि पर ध्यान दिया जाए। यह प्रशिक्षण सामग्री पीपीटी और वीडियो आधारित होनी चाहिए। जिसमें वीडियो की संख्या और समय का निर्धारण प्रवेशिका एवं असाक्षरों को ध्यान में रखकर किया जाए।
उन्होंने कहा कि पूर्व में साक्षरता कार्यक्रमों के लिए निर्मित शिक्षण सामग्रियों का भी समावेश करते हुए उत्तम प्रशिक्षण सामग्री का निर्माण किया जाए। कार्यशाला का आयोजन राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण द्वारा किया गया है।
राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण के नोडल अधिकारी श्री प्रशांत कुमार पाण्डेय ने पढ़ना-लिखना अभियान के क्रियान्वयन पर चर्चा करने हुए बताया कि अभियान में 15 वर्ष से अधिक उम्र के असाक्षरों को साक्षर कर शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल किया जाएगा। असाक्षरों को स्वयंसेवी शिक्षक 120 घंटे की पढ़ाई ’आखर झांपी’ प्रवेशिका से कराएंगे।
इस वर्ष 2020-21 में छत्तीसगढ़ को ढ़ाई लाख असाक्षरों को साक्षर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। कार्यशाला में पढ़ना-लिखना अभियान के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन और लक्ष्य प्राप्ति के लिए मास्टर ट्रेनर, रिसोर्स पर्सन एवं स्वयंसेवी शिक्षक को ऑनलाइन प्रशिक्षित करने तथा साक्षरता के पठन-पाठन हेतु सामग्रियों का निर्माण किया जाएगा।
पाण्डेय ने कार्यशाला में उपस्थित रिसोर्स पर्सन से कहा कि प्रशिक्षण सामग्री सरल भाषा में होनी चाहिए। मूलभूत प्रशिक्षण सामग्री मास्टर ट्रेनर, रिसोर्स पर्सन प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वयं सेवी शिक्षक स्वयंसेवी शिक्षक को प्रशिक्षित करेंगे। स्वयंसेवी शिक्षक ही कक्षा में असाक्षरों को पढ़ाएंगे, इसे ध्यान में रखते हुए सामग्री का निर्माण किया जाए।
उन्होंने कहा कि कार्यशाला द्वारा पढ़ना-लिखना अभियान के सफल क्रियान्वयन हेतु प्रवेशिका ’आखर झांपी’ को आधार मानते हुए प्रशिक्षण मॉडयूल शेड्यूल पॉवर पाइन्ट वीडियो को तैयार किया जाना है। पढ़ना-लिखना अभियान में मार्गदर्शन नियोजन नियंत्रण और मॉनिटरिंग की महत्वपूर्ण भूमिका है।
राज्य साक्षरता मिशन प्राधिकरण के सहायक संचालक श्री दिनेश कुमार टांक ने कहा कि इस वर्ष का लक्ष्य अधिक और हमारे पास समय कम है। सभी के सहयोग से साक्षरता का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने में सफल होंगे।
कोविड-19 को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन प्रशिक्षण को ग्राम पंचायत स्तर तक ले जाना होगा। हमें मास्टर ट्रेनर, रिसोर्स पर्सन का प्रशिक्षण मजबूत बनाना होगा जिससे वे आगे स्वयंसेवी शिक्षक को प्रशिक्षित कर पाये।
प्रशिक्षण को आमने-सामने करना तथा वीडियो कान्फ्रेसिंग के जरिये प्रशिक्षण देने में बहुत अंतर है। वर्तमान में स्वयंसेवी शिक्षक टेªनिंग हमारे लिए चुनौती भरा महत्वपूर्ण कार्य है। इसे ध्यान में रखते हुए ही ऑनलाइन प्रशिक्षण सामग्रियों का निर्माण किया जाए।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए यूनिसेफ के श्री मधुसुदन शेशागिरी ने साक्षरता कक्षा में गीत एवं खेलकूद को शामिल करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि हमे प्रौढ़ो के व्यवहार में ऐसा परिवर्तन करना है जिससे कि वे अपने बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा और उनका लालन-पालन बेहतरी से कर सके। हम साक्षरता में ऐसा सामग्री निर्माण करें जिससे वे बच्चों के विकास में काम आए।
राज्य में स्वयंसेवी शिक्षक के रूप में लगभग 25 हजार छात्र-छात्रओं का डाटा उपलब्ध है, जिन्हें अभियान से जोड़ा जा सकता है। यूनिसेफ द्वारा ‘सीख‘ कार्यक्रम अन्तर्गत कक्षा पहली से पांचवीं तक की शिक्षा के लिए 120 वीडियो का निर्माण किया गया है। ऐसा ही साक्षरता वीडियो का निर्माण प्रौढ़ को ध्यान में रखते हुए पढ़ना-लिखना अभियान में कर सकते है।
कार्यशाला में यूनिसेफ से डॉ. मनीशा वत्स, लेखिका श्रीमती सुधा वर्मा, जिला परियोजना अधिकारी डॉ कामिनी बावनकर, शिक्षाविद् श्रीमती निधि अग्रवाल, श्रीमती रीता मण्डल, श्रीमती मधु दानी, श्री लोकेश कुमार वर्मा, डॉ मीनाक्षी बाजपेयी, श्रीमती धारा यादव, श्री विकास सिंह राठौर, श्री सुनील राय नेहा शुक्ला, सुश्री पूनम उपस्थित थी।