Other

हज़रत आदम अलैहिस्लाम का वाक्या (पार्ट-1)

🏔️ कसस उल अम्बिया

✒️
🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴
🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲🌲

जब अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्लाम को पैदा करना चाहा तो फ़रिश्तों को ख़बर दी कि मैं ज़मीन पर अपना ख़लीफ़ा बनाना चाहता हूं ।

फ़रिश्तो ने जब यह सुना तो हैरत में रह गए और अल्लाह के दरबार में अर्ज किया ए हमारे रब इंसान तो आगे चलकर तेरी ज़मीन में फितना , फसाद और ख़ूरेजी भी पैदा करेगा।

अगर इस हस्ती की पैदाइश की हिक्मत यह है कि वह दिन-रात तेरी तस्बीह व तहलील में लगा रहे तो इसके लिए हम हाज़िर हैं, जो हर लम्हा तेरी हम्द व सना करते है,और तेरा हुक्म ‘बजा लाते हैं।

ऐ अल्लाह! तेरा यह फ़ैसला आख़िर किस हिक्मत पर मब्नी है?

रब्बुल आलमीन जो कायनात का पैदा करने वाला है उसने फरिश्तों से फरमाया

सारी हक़ीक़तों के बारे में जो मै जानता हूं उन्हे तुम नहीं जानते और उसके इल्म में व्रह सब कुछ है, जो तुम नही जानते।

और फिर अल्लाह ताला ने फरिश्तों से कुछ चीजों को दिखाकर उनके नाम पूछा तो फरिश्तों ने जवाब दिया ए हमारे रब तूने जितना इल्म हमें सिखाया है उसके ज़्यादा हम नहीं जानते तब अल्लाह ताला ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम से उन चीज़ों के नाम पूछे तो आपने उन सभी चीजों के बारे में बतला दिया।

जिससे मालूम हुआ की अल्लाह जिसे चाहे उसे उतना इल्म अता करता है और यकीनन अल्लाह ने इंसान को इल्म सिखलाया ।

फिर इसके बाद हज़रत आदम अलैहिस्ससलाम एक मुद्दत तक अकेले ज़िंदगी बसर करते रहे मगर अपनी ज़िंदगी और राहत व सुकून में एक वहशत और ख़ला महसूस करते रहे लिहाज़ा अल्लाह तआला ने हज़रत हव्वा को पैदा किया और इस तरह हजरते आदम उन्हे“अपना हमदम और साथी” पा कर बहुत ख़ुश हुए और दिल में इत्मीनान महसूस किया।

हज़रत आदम व हव्वा को इजाजत थी कि वे जन्नत में रहें-सहें और उसकी हर चीज़ से फ़ायदा उठाएं, मगर एक पेड को निशान-ज़द करके बता दिया गया कि उसके फल न खाएं, बल्कि यह भी फरमाया की वे कभी भी उस पेड़ के पास तक न जाएं।

आदम अलैहि सलाम का जन्नत से निकलना

अब इब्लीस को एक मौक़ा हाथ आया और उसने हज़रत आदम व हव्वा के दिल में यह वस्वसा डाला कि यह पेड़ जन्नत्त का पेड़ है। इसका फल खाना जन्नत में हमेशा आराम व सुकून और अल्लाह का क़ुर्ब पाने की ज़मानत देता है और क़स्में खाकर उनको बताया कि मैं तुम्हारा ख़ैरख़्वाह हूं, दुश्मन नहीं हूं यह सुनकर हज़रत आदम के इंसानी और बशरी ख़्वास में सबसे पहले निस्या: (भूल-चूक) ने जुहूर किया और यह भुला बैठे कि अल्लाह का यह हुक्म ज़रूरी था। जन्नत में हमेशा कियाम और अल्लाह के कुर्ब के अज़्म ने उनके दिलों में लग्जिश पैदा कर दी और उन्होंने उस पेड़ का फल खा लिया। उसका खाना था कि बशरी लवाज़िम (इंसानी ज़रूरते) उभरने लगीं। देखा की उनके जिस्म पर जन्नती लिबास नही है ।।जल्द-जल्द आदम हव्वा दोनों पत्तों से सतर ढांकने लगे-गोया इंसानी तमद्दुन की यह शुरूआत थी कि उसने ढांकने के लिए सबसे पहले पत्तों का इस्तेमाल किया।

इधर यह हो रहा था कि अल्लाह तआला का ग़ज़ब उतरा और आदम से पूछा कि मना करने के बावजूद हुक्म क्यों नहीं माना ?

आदम आख़िर आदम थे, अल्लाह के दरबार के मक़्बूल थे, इसलिए शैतान की तरह मुनाज़रा नहीं किया और नदामत व शर्मसारी के साथ इक़रार किया कि या अल्लाह तेरा हुक्म नही मानकर बहुत बड़ी ग़लती हुई इसलिए गिड़गिड़ा कर तौबा व इस्तिगफार करते हुए माफ़ कर दिए जाने की दरख्वास्त किया।

यहां हज़रत आदम और इबलिस की फितरत में फर्क देखिए।
इब्लिस ने खता करने के बाद भी माफ़ी नहीं मांगी । अल्लाह ने उससे पूछा ए इब्लिस मरदूद

किस बात ने झुकने से रोका, जबकि मैंने हुक्म दिया था ? [आराफ़ 7:12]

शैतान ने जवाब दिया: ‘इस बात ने कि मैं आदम ते बेहतर हुं, तूने मुझे आग से पैदा किया इसे मिटटी से’ [आराफ़ 7:12]

शैतान का मकसद यह था कि मैं आदम से अफ़ज़ल हूं, इसलिए कि अल्लाह ने मुझको आग से बनाया है और आग बुलन्दी और बरतरी चाहती है, और आदम ‘खाखी मख्लूक़’ भला ख़ाक को आग से क्‍या निस्बत? मैं तमाम हालतों में आदम से बेहतर हूं इसलिए वह मुझे सज्दा करे, न कि मैं उके सामने सज्दा करूं?

मगर बदबख़्त शैतान अपने घमंड में चूर होने की वजह से भूल गयां कि जब तुम और आदम दोनों अल्लाह की मख़्लूक़ हो तो मख्लूख की हकीकत ख़ालिक़ से बेहतर, ख़ुद वह मखलूक़ भी नहीं जान सकती, व अपने घमंड और ग़ुरूर में यह न समझ सका कि मर्तबा की बुलन्दी और पस्ती उस माद्दे की बुनियाद पर नहीं है, जिससे किसी मख़्लूक़ का ख़मीर तैयार किया गया है, बल्कि उसकी उन सिफ़तों पर है जो कायनात के पैदा करने वाले ने उसके अन्दर रख दिए हैं।

बहरहाल शैतान का जवाब, चूंकि घमंड और गुरुर की जहालत पर कायम था, इसलिए अल्लाह तआला ने उस पर वाज़ेह कर दिया कि जहालत से पैदा होने वाले घमंड व ग़ुरूर ने तुझको इतना अंधा कर दिया है कि तू अपने पैदा करने वाले के हक़ के एहतराम से भी मुन्किर हो गया इसलिए मुझको जालिम क़रार दिया, पस तू अब इस सरकशी की वजह से अबदी हलाकत का हक़दार है और यही तेरे अमल का क़ुदरती बदला हैं।

इब्लीस ने मोहलत तलब की
इब्लीस ने जब देखा कि कायनात के पैदा करने वाले के हुक्म के ख़िलाफ़ करने, तकब्बुर और अल्लाह पर जुल्म के इलज़ाम ने हमेशा के लिए मुझको अल्लाह रब्बुलआलमीन की आग़ोशे रहमत से मरदूद और जन्नत से महरूम कर दिया, तो तौबा और नदामत की जगह अल्लाह से यह दरख्वास्त की कि कियामत आने तक मुझको मोहलत दे और इस लम्बी मुद्दत के लिए ज़िंदगी की रस्सी लम्बी कर दे।

अल्लाह की हिक्मत का तक़ाज़ा भी यही था, इसलिए उसकी दरख़्वास्त मंजूर कर ली गयी। यह सुनकर अब उसने फिर एक बार अपनी शैतानी का मुज़ाहरा किया, कहने लगा:

जब तूने मुझको मरदूद करार कर ही दिया, तो जिस आदम की बदौलत मुझे यह रूस्वाई नसीब हुई, मैं भी आदम की औलाद की राह मारूगा और उनके सामनें-पीछे, आस-पास और चारों ओर से होकर उनको गुमराह करूंगा और उनकी अक्सरीयत को तेरा नाशुक्र बना छोड़ंगा अलबत्ता तेरे ‘मुख्लिस बन्दे’ मेरे फरेब के तीर से घायल न हो सकेंगे और हर तरह महफूज़ रहेंगे।

अल्लाह ने फ़रमाया, हम को इसकी क्या परवाह हमारी फ़ित्तरत का क़ानून, मुकाफ़ाते अमल और पादाशे अमल अटल क़ानून है। पस जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा और जो बनी आदम मुझसे रूगरदानी करके तेरी पैरवी करेगा, वह तेरे ही साथ मेरे अज़ाब का हक़दार होगा। जा, अपनी ज़िल्लत और रुस्वाई और ख़राब किस्मत के साथ यहां से दूर हो और अपनी और अपने पैरोकारों की अबदी लानत (जहन्नम) का इंतज़ार कर।

मगर हज़रत आदम ने माफ़ी मांग कर अपनी आजीजियत का परिचय दिया जिसे अल्लाह तआला ने कुबूल फ़रमाया मगर वक़्त आ गया था कि हज़रत आदम अलैहि सलाम अल्लाह की ज़मीन पर ‘ख़िलाफ़त का हक़” अदा करें, इसलिए हिक्मत के तक़ाज़े के तौर पर साथ ही यह फ़ैसला सुनाया कि तुमको और तुम्हारी औलाद को एक तय वक्त तक ज़मीन पर क़ियाम करना होगा और तुम्हारा दुश्मन इब्लीस अदावत के अपने तमाम सामान के साथ वहां मौजूद रहेगा और तुमको इस तरह मलकूती और तागुती दो टकराने वाली ताक़त़ों के दर्मियान ज़िंदगी बसर करनी होगी। इसके बावजूद अगर तुम और तुम्हारी औलाद मुख्लिस और सच्चे बन्दे और सच्चे नायब साबित हुए तो तुम्हारा असल वतन “जन्नत” हमेशा की तरह तूम्हारी मिल्कियत में दे दिया जाएगा, इसलिए तुम और हव्वा यहां से जाओ और मेरी ज़मीन पर बसों और अपनी मुक़र्रर की हुई ज़िंदगी तक उबूदियत का हक़ अदा करते रहो और इस तरह इंसानों के बाप और अल्लाह तआला के ख़लीफ़ा आदम अलैहिसलाम ने और फिर उनकी जीवन-साथी हज़रत हव्वा ने भी अल्लाह की ज़मीन पर क़दम रखा।

क्रमशः

🖊️ तालिबे इल्म: एड. शाहिद इकबाल खान चिश्ती अशरफी रायपुर छत्तीसगढ़

🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲

Related Articles

Back to top button