उस दिन पासपोर्ट के वेरिफिकेशन के लिए थाने पहुँचा। लेकिन जिस सिपाही को यह काम करना था वो जरूरी काम से थाना प्रभारी के साथ मीटिंग का हिस्सा बने बैठे थे। मतलब मौके पर मौजूद नहीं थे।
इस बीच मैं इंतेज़ार रहा था कि एक दूसरा सिपाही बड़े ही श्रद्धा से थाने की चौखट को छूकर माथे से लगाने के बाद चूमता हुआ अंदर गया।
रोजमर्रा की तरह वह अपने रूटीन काम को अंजाम देने में लग गया।
इस दौरान एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त महोदय जय और वीरू की जोड़ी की तरह बाइक पर बैठकर पुलिस थाने पहुँचे।
मेरे बेटे को किसने मारा ? पहली दफा थाने में कदम रखा हूँ, इससे पहले कभी आने की जरूरत नहीं पड़ी…” ये कहते हड़बड़ी में अंदर दाखिल हुए ही थे कि दूसरा सिपाही परिस्तिथियों को संभालने जुट गया। अंदर वार्तालाप का दौर शुरू हुआ। मंत्री ने दो टूक कहा दिया आप समुदाय विशेष को टारगेट बना रहे हो।
सिपाहीे अपनी बात रखते हुए कहने लगा कि फालतू बात न करें जनाब। आपके समुदाय के आपसे ज्यादा मुझे बचपन से जानते हैं। आपका लड़का गलत कर रहा था इसलिए जड़ दिए एक थप्पड़, क्या गलत किया। इसमें गलती बस इतनी है कि हमें मालूम न था ये आपके साहबज़ादे हैं।
ऐसे मामलों में समुदाय कहाँ से आया ये विषय मुझे समझ नहीं आया। पास ही बैठे सब इंस्पेक्टर साहब उनके पास पहुँचे और किसी तरह मामले को रफा दफा किया।। मंत्री जी परिसर के अंदर चौखट के बाहर निकलकर थोड़ी दूर खड़े होकर रोते दिखे।
यह नजारा देख मैं अचंभित था।। अगला वार्तालाप का दौर वहां से पीछे खोपचे में खत्म हुआ। फिर सब आपने रास्ते हो लिए।
मैंने उठकर सब इंस्पेक्टर महोदय से कहा- बड़े भैया इस मंत्री ने पहले थाने की महिमा खण्डित की फिर रोने लगा। ये माज़रा क्या था?
उन्होंने हंस कर बस इतना कहा- जाने दो मियाँ ये सब रोज़ की बातें हैं।
ख़ैर, मंत्री जी की पहचान मुझ तक ही रहे तो बेहतर है।