बात तल्ख ज़रूर है मगर हक़ीक़त…
तीन फितरी क़वानीन जो कड़वे हैं लेकिन हक़ हैं…
पहला क़ानून फितरत:
“अगर खेत में दाना न डाला जाए तो क़ुदरत उसे घास फूस से भर देती है- इसी तरह अगर दिमाग़ को अच्छी फिक्रों से ना भरा जाए तो कज फिक्री इसे अपना मसकन बना लेती है-
दूसरा क़ानूने फितरत:
“जिसके पास जो कुछ होता है वही बांटता है- खुश इंसान खुशी बांटता है-
ग़मज़दा इंसान ग़म बांटता-
आलिम इल्म बांटता है-
मज़हबी और दीनदार इंसान दीन बांटता है-
खौफज़दा इंसान खौफ बांटता है-
हसद में मुब्तिला इंसान नफरत की आग में जलता है और दूसरों में भी नफरतें ही बांटता है-“
तीसरा क़ानूने फितरत:
“आपको ज़िंदगी से जो कुछ भी हासिल हो उसे हज़म करना सीखें!”
इसलिए कि खाना हज़म ना होने पर बीमारियां पैदा होती हैं और बढ़ती हैं
इसी तरह मालो सरवत ना हज़म होने की सूरत में रियाकारी बढ़ती है-
बात ना हज़म होने पर चुग़ली बढ़ती है-
तारीफ ना हज़म होने की सूरत में गुरूर में इज़ाफा होता है-
मज़म्मत के हज़म ना होने की वजह से दुश्मनी बढ़ती है-
ग़म हज़म ना होने की सूरत में मायूसी बढ़ती है-
इक़्तिदार और ताक़त ना हज़म होने की सूरत में खतरात में इज़ाफा होता है-
आराम ना हज़म होने की सूरत में गुनाहों में इज़ाफा होता है..!!
Source : unknown internet media user