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‘ अंकल आंटी अब हमारे ही परिवार का हिस्सा हैं…’

 

रायपुर (स्मार्ट सिटी)। अजमत अंकल (73 वर्ष ) रतनपुर के एक फार्महाउस में बने छोटे से घर में रहते हैं। यह फार्महाउस एक भाईजान का है जहाँ इन्होंने अंकल आंटी जी के तंग हालत को देखते हुए इन्हें रहने की परमिशन दी है। इस परिवार की जानकारी मुझे मेरे दोस्त फिरोज भाई के द्वारा पता चली। आंटी को हार्ट में कोई गंभीर समस्या थी और कमर के पास की टूटी हुई हड्डी की परेशानी थी वो अलग। ऐसा ही कुछ अंकल जी के साथ था, उन्हें यूरिन वाली नाली के पास समस्या थी। इन सबसे बड़ी समस्या थी की इन दोनों की कोई संतान नहीं है। अकेले किसी तरह अपना गुजर बसर कर लेते हैं दोनों बीमारी दोनों की इतनी गंभीर, फिर इन्हें साथ ले जा कर जिम्मेदारी पूर्वक इलाज करवाए कौन???

 

sumeet foundation jeevan deep samiti in chhattisgarh social work for needly person (3)

 

सबसे पहले हमारे जीवनदीप से वैभव पाण्डेय भैया इनके घर गए, सारी वस्तुस्थिति की जानकारी ली , मेडिकल रिपोर्ट्स देखी। पता चला हालत ठीक नहीं है..आंटी की साँस बार बार फुल जाती है| चल नहीं पा रही हैं वो अलग। तत्काल तय हुआ कि 2 दिन के अंदर  इनका इलाज किसी भी हाल में शुरू करवाया जायेगा| मुंगेली से सहयोगी अखिलेश भैया की गाड़ी में इन्हें रायपुर के आम्बेडकर मेकाहारा सरकारी हॉस्पिटल लाया गया|

हॉस्पिटल में सारे टेस्ट स्टार्ट हुए। आंटी की एंजियोग्राफी हो चुकी थी ..पर हार्ट की बढती समस्या को देखते हुए एंजियोप्लास्टी की जरुरत थी। सारे टेस्ट रिपोर्ट आ जाने के बाद आंटी जी को भर्ती कर एंजियोप्लास्टी कर दी गयी। इस सर्जरी में कुछ पैसे समूह से लगे तो एक लाख पांच हजार रुपये की सरकारी मदद भी मिली| साथ ही साथ अंकल का इलाज भी चलता रहा। 12 दिन तक चले इलाज के बाद ससम्मान इन्हें कार से वापस इनके घर छोड़ दिया गया, जिसकी व्यवस्था हमारे केशव बंसल भैया ने कर दी थी। केशव भैया हमारे ट्रंप कार्ड हैं| 24 घंटे सेवा में उपलब्ध रहने वाले ऐसे प्राणी हैं जिनके मुंह से कभी ना शब्द ही नहीं निकलता है|

 

sumeet foundation jeevan deep samiti in chhattisgarh social work for needly person

 

ये अंकल आंटी कौन हैं? कल तक हमें पता नहीं था, पर अब से ये भी हमारे ही परिवार का हिस्सा हैं..बीते हुए पिछले 12 दिनों में सुबह से शाम तक इलाज के दौरान मैं इनके साथ रहता था। इस दौरान यह भी देखा कि ये दोनों एक-दूसरे से कितना अधिक प्यार करते हैं। यह भी महसूस हो गया कि इस बुढ़ापे में एक सहारा होना कितना जरुरी है।

अंकल पढ़े लिखे हैं पर हालत ने आर्थिक रूप से इतना मजबूर कर दिया था कि एक साल से आंटी का ऑपरेशन नहीं करवा पा रहे थे। कुछ और देर होती तो बात बिगड़ सकती थी। एक दिन मेडिकल स्टोर से दवाइयां लेते वक़्त अंकल वहीं रोने लग गए।बोले बेटा हमारी औलाद भी होती तो इतना नहीं करती जितना आप सब कर रहे हैं। ऊपर वाले ने हमें पुरे 73 साल बाद औलाद दी है, मैंने उन्हें चुप कराते हुए कहा, अंकल ऊपर वाला कुछ ज्यादा ही मेहरबान हो गया है आप पर .. एक नहीं पूरी की पूरी जीवनदीप की टीम आपको तोहफे में दे दी है।

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जहाँ एक तरफ देखता हूँ दुनिया में लोग जातियों के नाम पर लड़ रहे हैं, खून खराबा कर रहे हैं। जिससे मिलना जाना कुछ भी नहीं है ,सिवाय विनाश के। बस इस बात की ख़ुशी है कि अंकल आंटी का बेहतर इलाज हो गया, एक इन्सान से दूसरे जरूरतमंद इंसान का इलाज करवाया है। हिन्दू ने मुसलमान का नहीं। आप आपस में लड़ते रहिये, मैं तो त्यौहार मना रहा हूँ ..जी हाँ इंसानियत का त्यौहार। जिस दिन ये दोनों विदा हुए बहुत भावुक हो गए थे, वापस ले जाने वाले ड्राइवर साहब भी भाईजान निकले.. फिर क्या था कार में ही सूफी संगीत और शायरी वाला माहौल बन गया था। रायपुर से बिलासपुर कैसे पहुँच गए पता ही नहीं चला।

जब बिलासपुर पहूँचे तो ग्रुप से श्रद्धा और माधव भैया फूलों का गुलदस्ता लेकर इनके स्वागत के लिए खड़े थे। ड्राईवर हसन ने जिम्मेदारी पूर्वक इन्हें रतनपुर घर तक छोड़ा.. वहां जा कर देखा तो इनके घर की लाइट बिगड़ी पड़ी थी। वो हमारे ड्राईवर भाई ने ठीक कर दी। शायद वो भी दुवाओ में हिस्सा चाहता था।

 

अंकल अपने आशीर्वाद के साथ मुझे कह गए..
ना हिन्दू बड़ा है ना मुसलमान बड़ा है
इन्सनियत का जो दर्द समझे वो इंसान बड़ा है।

 

और आंटी के की तो बात ही निराली है. मेरे लम्बे बालों को देख कर कहती हैं..ज्ये रविन्द्र तुम्हारे बाल कितने लम्बे हो रहे,, तुम थोड़ा तेल लगाया करो .. बुढापे से पहले सफ़ेद हो जायेंगे। हम खान साहब के साथ तुम्हारे पापा के पास जायेंगे ..बोलेंगे इतना बड़ा हो गया है ..शादी कर दो इसकी।

 

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यह पोस्ट जितनी आसानी से लिखी मैंने, सरकारी हॉस्पिटल की प्रक्रियाओ को पूरा करते हुए करवाना यह उतना आसान नहीं था| बस ये कहना चाह रहा हूँ ..दुआएं आपके चारों तरफ बंट रही हैं ..समेटते चलिए।

 

दोस्तों बन्धनों से बाहर निकलिए..अगर किसी की ख़ुशी की वजह आप हैं तो यह आपके इन्सान होने का सबसे बड़ा सबूत है| ऊपर वाले ने इसलिए तो भेजा है आपको …तो इस तरह टीम एफर्ट से एक और मुहीम पूरी हुई। इन दोनों के चेहरे पर जो खुशियाँ झलक रही हैं उसे इन तस्वीरों में देख सकते हैं।

रविन्द्र सिंह क्षत्री, सुमित फाउंडेशन “जीवनदीप”

 

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