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ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला✒️ पार्ट-6

मुकम्मल ज़िक्र ‘हज़रत सैय्यदना इमाम हुसैन
‘ रदियल्लाहू त आला अन्हु’ वो ‘शोहदा ए कर्बला’_
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✒️ – पार्ट- 6*
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// 786-92-110 //

जिनको धोखे से कूफे बुलाया गया
जिनको बैठे-बिठाए सताया गया
जहर भाई को जिसके पिलाया गया
उस हुसैन इब्ने हैदर पे लाखों सलाम….
अस्सलाम या हुसैन….
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इमाम हुसैन का का काफ़िला मदीने शरीफ़ से मक्का शरीफ़ रवाना हुवा
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मदीने का गवर्नर वलीद अहले बैत से मोहब्बत करता था मगर वो यह भी जानता था की ज़ालिम यज़ीद का मक़सद क्या है लिहाज़ा उसने इमाम हुसैन से नर्म लहज़ो मे इलतेजा कर मिन्नत करते हुए अर्ज़ किया :

ए इमाम ए हुसैन इब्ने अली आप इस मसले पर ग़ौर करे क्योंकि आप जानते है की मै भी हुकूमत का हुक्म मानने मजबूर हूँ

इमाम हुसैन घर तशरीफ़ लाए और अहले बैत को जमा किया और फ़रमाया :

हालात बेहद ख़राब हो चुके है अमीर मुआविया का बेटा यज़ीद ज़बर व तशददुद पर तुल चुका है वह हर कीमत पर अपनी गैर इस्लामी हुकूमत की जड़े मज़बूत करना चाहता है चाहे इसके लिए खून की नदिया ही क्यों न बहे और वो चाहता है की मै उस फासिक की बैत कुबूल करू जो मुझे कभी मंज़ूर न होगी

मेरे लिए यह इन्तहाई मुश्किल है की मेरे होते हुए मदीना मुनव्वरा की गलियों मे ख़ून की नहरे रवा हो और मस्जिदे नबवी की बहुर्मती हो इस हालात मे मेरे सामने अब सिर्फ़ एक ही रास्ता बचा है की मदीना मुनव्वरा की जुदाई बर्दाश्त कर लू और इस मुकद्दस शहर को बहुर्मती से बचा लू

सभी अहले बैत आपकी बाते सांस रोक कर सुन रहे थे

इमाम हुसैन ने आगे फ़रमाया क्या आपको लगता है की किसी भी अहले बैत को उस फासिक फ़ाज़िर की इताअत मंज़ूर कर लेना चाहिए ?

सभी अहले बैत ने एक स्वर मे जवाब दिया

हरगिज़ नहीं उस फासिक फ़ाज़िर के हाथो बैत करना नाना के दीन पर छुरी फैलाने जैसा है

ए मौला हुसैन आप हक़ पर है आप उस फासिक यज़ीद की बैत कभी मंज़ूर न करे

हुसैन की बहन ज़ैनब भी वहां मौजूद थी उसने कहा:

ए भाई हुसैन आप नाना के दीन की हिफाज़त करे, हमारी रगो मे बाबा अली का ख़ून दौड़ रहा है हममे से कोई उस फासिक के आगे नहीं झुकेगा भाई हुसैन हर कदम पर हम आपके साथ है आप हमें कभी कमज़ोर नहीं पाएंगे

जनाबे ज़ैनब सलामुल्लाह ने अपने शौहर जनाब अब्दुल्लाह बिन ज़ाफ़र बिन तय्यार से भाई के साथ जाने की इजाज़त तलब की तो उन्होंने बखुशी आपको इजाज़त दे दी

और फिर इमाम हुसैन की मदीने से रुख़सत होने की ख़बर जब लोगो को हुई तो तमाम आशिकाने अहले बैत जमा हो गए जिनमे से कुछ सहाबा भी थे सभी फ़रियाद करने लगे की

ए हुसैन आप मदीना छोड़कर ना जाए आपके बगैर हम कैसे रह पाएंगे सहाबा अर्ज़ करने लगे :

बेटे हुसैन तुम और अली अकबर तो रसूल अल्लाह के हम शबीह हो आपको देख लेते तो हमें रसूल अल्लाह की ज़ियारत हो जाती है भला तुम्हारी जुदाई हम किस तरह बर्दाश्त कर सकेंगे हुसैन हमें छोड़ कर मत जाओ

जब हुसैन ने उनसे कहा की मुझे नाना से किया वादा निभाना है हुसैन नाना के दीन को बचाने की खातिर मदीना छोड़कर जा रहे है

अब बात जब दीन की थी तो मदीने वालो ने हुसैन को दिल पर पत्थर रख कर जाने की इजाज़त दे दी बहुत से मुहिब्बे अहले बैत भी हुसैन के लाख मना करने के बावजूद हुसैन का साथ नहीं छोड़ा और उनके साथ जाने की तैयारी कर ली

इधर मक्के वाले भी इमाम आली मक़ाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दीदार के न जाने कब से मुन्तजिर थे और हज का महीना भी अनकरीब था लिहाज़ा हुसैन इब्ने अली ने जब तय किया कि वे मक्के मौअज्जमा आएँगे तो वे सब भी बेहद ख़ुश हो गए

मक्का शरीफ़ जाने से पहले हुसैन अपने नाना जान और फ़िर अम्मीजान और भाई हसन की कब्रे अनवर पर भी गए ।

उस रात जब हुसैन के कदम मुबारक़ जन्नतुल बक़ी पर पड़े तो वहां दिल हिला देने वाला सन्नाटा छाया हुवा था हुसैन दौड़ कर आते है और माँ फातिमा की क़ब्र मुबारक़ पर आपके कदमो पर गिर जाते है और एक छोटे बच्चे की तरह फूट फूट कर रोने लगते है यहाँ तक की रोते रोते आपकी सिसकी तक बंध जाती है

और फ़िर हुसैन माँ से फ़रियाद करने लगते है :

ए अम्मी जान आज हुसैन सवाली बन कर तेरे पास आया है तेरे नाज़ो से पाले हुसैन पर आज मदीने की ज़मीन तंग कर दी गई है
ए मेरी प्यारी अम्मी तू जानती है की हुसैन बुज़दिल नहीं है हुसैन ने तेरा दूध पिया है हुसैन की रगो मे शेरे कर्रार बाबा अली का ख़ून दौड़ रहा है मुझे मौत का खौफ़ नहीं, ए मेरी प्यारी माँ वो फासिक यज़ीद मेरी जान का दुश्मन बना है, मुझे इसका कोई डर नहीं मगर वो नाना हुसैन के दीन को पामाल करने पर तुला है

नाना के दीन को बचाने की खातिर आपका ये बेटा हुसैन आज मदीने से रुख़सत हो रहा है ए अम्मी जान हुसैन को इतनी हिम्मत और ताकत देना की नाना के दीन की हिफाज़त करते वक़्त अगर उसे एक एक कर सारे अहले बैत की भी कुर्बानी देनी पड़े तो हुसैन के कदम डगमगाने ना पाए

ए अम्मीजान अपने बेटे को हौसला दो उसके लिए अल्लाह से दुवा करो की अल्लाह अहले बैत की कुर्बानी को कुबूल फरमाए

और फ़िर इस तरह दिल खोलकर अम्मी फातिमा से बाते करने के बाद हुसैन ने कहा

ए मेरी प्यारी अम्मी अपने बेटे का आख़री सलाम कुबूल करो

शहज़ादी ए मुस्तफा के मज़ारे अकदस से दर्द मे डूबी आवाज़ आती है :

मेरे लाल चुप हो जाओ अब न रोना हुसैन, वरना माँ का कलेजा फट जाएगा

बेटा दिल तो चाहता है की मै ख़ुद क़ब्र से बाहर आकर तुझे शहादत का दूल्हा बनाऊ तेरी पेशानी को चूम लू मगर मजबूर हूँ बेटा जो मै बाहर आ गई तो क़यामत आ जाएगी

बेटा तुझे माँ के दूध की लाज रखनी है अल्लाह तुझे तुझे शहीदे ए आज़म का दर्जा देना चाहता है

मेरे बेटे हुसैन तुझे ज़ुल्फ़ेकार हैदरी की इस्मत का तहफ्फुज़ करना है बेटा तु नाना के दीन को बचाने जा रहा है, जा बेटा तेरी माँ फातिमा तुझसे वादा करती है वो मकतल मे ख़ुद आकर सारा पसे मंज़र देखेगी शहादतगाह पर अपने बच्चों को कुर्बान होते देखूंगी और अपनी चादर पर सभी शहीदों के जिस्मे अतहर के टुकड़ो को समेटूंगी

उस वक़्त तेरे नाना भी मेरे साथ होंगे जा बेटा हुसैन बहुत जल्द हौज़ ए कौसर पर नाना जान के साथ मुलाक़ात होगी जाओ बेटा हुसैन इन शा अल्लाह यक़ीनन तुम कामयाब होंगे

इस तरह हुसैन अपनी अम्मी के बाद अपने नाना की मज़ार ए अकदस पर गए और सारी रात वहां रहे वहां भी आप खूब रोए और फिर जब आपको नानाजान की तरफ से इशारा मिल गया की जाओ हुसैन अब वक्त आ गया जब दीन को बचाने तुम्हे मदीना छोड़ना होगा तो इमाम ए आली मकाम हुसैन ने अपने नाना जान से किस तरह रूखसती ली होगी इसे तो सिर्फ़ हुसैन ही जानते होगें।

रूखसती के वक्त हुसैन की आँखों से आंसुवो का सैलाब बह रहा था, होता भी क्यों ना नानाजान भाई हसन और अम्मी फातिमा से बिछड्ने का गम जो था । हुसैन जानते थे की वे अब दोबारा मदीने वापस नहीं आएंगे ।

हुसैन के कानों में नाना जान के अल्फाज़ रह रह कर गूंजने लगे जो उनसे कह रहे थे

“अए बेटे हुसैन तुम्हारे इम्तिहान का वक्त अब अनकरीब है तुम्हें सब्र करना होगा । दीन की हिफाज़त के लिए अल्लाह ने तुम्हे ही चुना है हुसैन को नाना से किया गया बचपन का वो वादा भी याद आ रहा था जिसे याद कर इमामे हुसैन के क़ल्ब को करार आ गया I

फ़िर फज़र की नमाज़ मस्जिदे नबवी मे पढ़ाने के बाद आप घर आते है और सभी को सफ़र की तैयारी करने कहते है

उस वक्त उनकी लाड़ली बेटी सुगरा बीमार थी उसे तेज़ बुखार था वो भला सफर किस तरह कर सकेगी सोचकर सभी परेशान थे।

सुगरा भी नीम बेहोशी की हालत मे घर वालो को सफ़र की तैयारी करते देख रही थी

इमाम हुसैन भी इस बात को अच्छी तरह से जानते थे लिहाज़ा आप अपनी जौज़ा शहरबानो के साथ अपनी बेटी सुगरा के पास आकर बेटी के सर पर शफक्कत से हाथ फेरा और आयते शिफा पढ़कर दम करने के बाद उसकी सेहतयाबी के लिए अल्लाह से दुवा की।

बेटी सुगरा ने फ़ौरन आँखे खोल दी और बाबा को देख उठने की कोशिश की
हुसैन ने बेटी का सर गोद मे रखा और प्यार से सर मे हाथ फेरने लगे
बेटी सुगरा ने कहा: बाबा अम्मीजन कहा जाने की तैयारी कर रहे है?

हुसैन ने बेटी सुगरा से कहा :

“अये मेरी प्यारी बेटी, हम मक्के मोअज़्ज़मा जा रहे है बहोत ही मुश्किल राहों का सफर है, मगर तुम्हारे बाबा का जाना भी ज़रूरी है इसलिये हम तुम्हें यही छोड़ कर जा रहे है । तुम्हारी तबियत ठीक होते ही हम तुम्हे अपने पास बुलवा लेंगे I

सुनकर सुगरा रोने लगी और मिन्नतें करनी लगी

“अए मेरे बाबा सबके बिना ये सुगरा किस तरह रह पाएगी, मुझे भी साथ ले चलो बाबा, और देखो अब तो मै ठीक भी हो गई हूँ मेरा तो बुखार भी चला गया है ।

कहकर सुगरा मासूमियत से ज़िद करते हुए कहने लगी,

बाबा मुझे भी साथ ले चलो न इ
मै भाई असगर को खिलाऊंगी उसे तैयार करुँगी मुझे ले चलो ना बाबा

बेटी को यू ज़िद करते देख बाबा हुसैन का गला रुंन्ध गया मगर फिर समझाया

बेटी नानाजान ने ख़्वाब में बतलाया है की दीन की खातिर हमे जाना ज़रूरी है। जल्द ही तुम भी आ जाओगी बेटी

देखो नानी भी तुम्हारे साथ है तुम्हे कुछ नही होगा बेटी तुम जल्दी अच्छी हो जाओगी

इस तरह बड़ी मुश्किल से हुसैन ने बेटी को चुप कराया और फिर कहा बेटी अल्लाह तुम्हारा निगेहबान है, बेटी का सर गोद से अलग करते हुए हुसैन की आंखों से आंसू छलक उठे ।

जब सुगरा ने सुना की उसके बाबा दीन की खातिर जा रहे है तो सुगरा ने अपने आंसुओं को जल्दी जल्दी पोछने लगी और फिर अपने बाबा हुसैन के आंसू भी अपने नन्हे हाथों से पोछते हुए कहा

‘बाबा आप दीन की खातिर जा रहे है तो फ़िर ज़रूर जाइए , बस आप मुझे जल्द ही अपने पास बुलवा लेना। भाई अली अकबर भी आ गए थे सुगरा भाई से भी खूब लड़ी और जल्दी आने कहा और फ़िर भाई असगर को जब सुगरा ने देखना चाहा तो शहरबानो उसे लेकर सुगरा के पास आई सुगरा ने जल्दी सेकहा
ए अम्मी अली असगर को दूर से ही दिखाओ कही मेरा बुखार उसे ना लग जाए

शहर बानो ने जब दूर से बेटे अली असगर को दिखाया तो बहन को देखकर मासूम अली असगर भी मचल उठा बहन की गोद मे जाने के लिए बीमार सुगरा भाई असगर को देख मिस्कुरा उठी और दूर से ही उसे खिलाने लगी

इधर जब मक्के वालो को ये बात पता चली की इमामे आली मक़ाम हुसैन अलैहिस्सलाम मक्के शरीफ तशरीफ रहे है तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा I

4 मई, सन 680 ई. में इमाम हुसैन मदीने से मक्के पहुंचे । ये मुबारक हज का महीना था सभी ने सोचा भी यही की हुसैन हज करने ही मक्का आए है।

इधर कूफे वाले भी इमाम आली मकाम हुसैन रजिअल्लाह तआला अन्हु की आमद के मुन्तजिर थे ।

आपके मक्के पहुचने से पहले ही उन्हें खबर लग चुकी थी की इमाम हुसैन मदीने से मक्के जा रहे हैं । जब आप मदीने में थे तब से लेकर जब आप मक्के शरीफ़ तशरीफ़ लाए कूफियो के लगातार ख़त आते रहें।

रिवायतों के मुताबिक तकरीबन कम से कम डेढ़ सौ खतूत से लेकर हजारों खतो का जिक्र मिलता है । सभी खतों में एक ही बात बार बार लिखी जाकर मिन्नतें की जा रही थी, की

“अए नवासे रसूल इमामे आली मकाम हुसैन, हम आपके शैदाई है, हमारी नज़रे हर पल आपके दीदार को तरस रही है, हम सभी कूफे वासी, आपके हाथो पर बैअत होना चाहते है आप यहाँ आ जाये ।

ज़ालिम यजीद के लोग हमे यजीद के हाथों बैत करने खौफजदा कर रहे है।अगर आप नहीं आये तो फिर वो ज़ालिम यज़ीद हमे अपनी बैत करने मजबूर कर देगा और हम कुछ नहीं कर सकेंगे I

सिर्फ़ इतना ही नही वे इमाम हुसैन को नानाजान और बाबा अली का वास्ता देकर दुहाई कर रहे थे की ए इमाम आली मकाम, हुसैन आप आ जाए, जल्द से जल्द आ जाए “ I

इमाम ए आली मकाम ने जब ये खत पढे की कूफ़े वालों को यज़ीद बैअत करने वाला है और उनके मना करने पर वो ज़ालिम अपने ज़ुल्म से मजलूमों को परेशान करेंगा जो हुसैन को मंज़ूर न था लिहाज़ा आपने कूफ़े जाने का इरादा कर लिया।

जब आपने अपने इस फ़ैसले पर लोगों से मशवरा किया तो सभी लोगो ने हुसैन से एक ही बात कही की

“अए मौला हुसैन आपका हुक्म सर आँखों पर मगर हम ही नही आप भी यह अच्छी तरह से जानते है की कूफ़े वाले ऐतबार के लायक नहीं है, क्या आपने देखा नही की उन्होंने आपके बाबा इमाम अली के साथ कैसा सुलूक किया था कहकर वो हुसैन को रोकने लगे।

सभी ने यही कहा की हुसैन कूफे वाले जभी भी वफादारी नहीं करेंगे बल्कि मौक़ा मिलते ही वो आपसे गद्दारी ही करेंगे I

सबकी बातें सुनकर हुसैन मुस्कुराए क्योकि इमाम ए आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम को भी पहले से ही पता था, की उन्हें नाना से किया वादा निभाने कूफे जाना है और वहां क्या कुछ वहोने वाला है इसे भी हुसैन जानते थे।

**हुसैन को बाबा अली भी याद आ गए उन्होंने भी तो इशारों इशारों में हुसैन को सब कुछ बतला दिया था

एक मर्तबा हजरत अली का करबला से गुज़र हुवा, तो अचानक उनका घोड़ा एक जगह रुक गया ओर आप अपने घोड़े से नीचे उतर गए थे, उनकी आंखो मे आँसू थे और लब पर बरबस ही हुसैन का नाम आ गया।

आपने कर्बला की मिट्टी को अपने सर आंखो से लगा लिया। जब आपके साथियो ने ये माजरा देखा तो पूछा की

‘अये मौला आप पे हमारी जान कुर्बान आप इस मिट्टी को सर आंखो से लगाकर हुसैन को क्यो याद कर रहे है ?

आपने फरमाया

यहां की मिट्टी में मुझे हुसैन की खुशबू आ रही है । और इस मिट्टी को आका नबी ए करीम ने मुझे पहले ही दिखला भी दिया था

आने वाले वक्त में इसी जगह पर मेरा हुसैन और मेरा घराना मौजूद होगा । दरिया ए नील क़रीब होते हुए भी वे सब प्यासे होंगे ।

और इस तरह बेटे हुसैन को याद करके इमाम ए अली रोने लगे ।

इमामे आली मक़ाम हुसैन को नानाजान ने भी आलमे तसव्वुर मे इस जगह को दिखलाया था जिसे हुसैन बखूबी जानते थे ।

हुसैन ये भी जानते थे की ये सिर्फ़ इम्तेहान ही नही बल्कि रब का हुक्म भी है, लिहाज़ा इमाम ए आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने सभी के मना करने के बावजूद कूफे जाने का इरादा कर लिया I

जब आप नहीं माने तो लोगो ने कहा

‘अये मौला हुसैन आप पहले वहां ना जाकर किसी और को वहाँ भेज कर कूफे के हालात का जायज़ा ले ले फिर हालात सही होने पर ही कूफे जाए ।

आपके चचाज़ात भाई हज़रत मुस्लिम ने भी यही कहा की वो जाकर कूफ़े के हालात देखेंगे और सब कुछ सही होने पर इततेला करेंगे । इस तरह से भाई के और लोगो के बार बार इसरार करने पर आपने अपने भाई मुस्लिम को कूफ़े जाने की इजाज़त दे दी I जब हज़रत मुस्लिम चलने लगे तो उनके 2 मासूम बच्चे ‘मोहम्मद और इब्राहिम’ भी अपने बाबा से साथ चलने की ज़िद करने लगे और आखिरकार हज़रत मुस्लिम ने दोनों बेटो को भी साथ रख लिया और इस तरह वे कूफ़े की सिम्त रवाना हुवे ।

इमाम हुसैन से मिलने सैकड़ो लोग रोज़ाना आने लगे हुसैन मक्के मोअज़्ज़मा आए तो इसी मक़सद से थे की वे हज करेगें । मगर उन्हें खबर मिली कि यजीदी दुश्मन हाजियों के भेष में मक्के आने वाले है जो उनके कत्ल करने का इरादा रखते है ।

हुसैन को कोई खौफ नहीं था मगर वे नहीं चाहते थे कि दौराने हज काबा ए मोअज्जमा जो अल्लाह का घर है जैसी मुकद्दस जगह पर किसी का भी खून बहे, लिहाजा इमाम हुसैन ने हज नहीं किया और हज के पहले ही मक्का से कूफे जाने का इरादा कर लिया

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हज़रत मुस्लिम और उनके साहबज़ादो की शहादत
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इधर जब हज़रत मुस्लिम कूफा पहुंचे तो वहाँ के लोगो ने उनकी खूब उनकी आवाभगत की, हजारो लोगो ने पहले ही दिन उनके हाथो पर इमाम हुसैन के नाम पर वफादारी दिखाते हुवे बैअत की जो की करीब 18000 थी जो बढकर तक़रीबन 40,000 हो गई यानि 40000 लोगो ने हुसैन के नाम की बैअत की।

दोनों शहजादों को कूफे वालो ने हाथो हाथ रखा। सूनी मस्जिदे आबाद हो गयी थी I और इधर के खुशनुमा हालात को देखते हुवे और कुफे वालो के बार बार इसरार पर हज़रत मुस्लिम ने हुसैन को कुफे पहुचने का सन्देश भी खत के ज़रिए भिजवा दिया।

इधर जैसे ही हुसैन के लिए ख़त रवाना हुवा वैसे ही यह खबर यज़ीद तक भी पहुचा दी गयी की हुसैन अब जल्द ही कुफे पहुच जाएँगे I

अब यज़ीद हरकत में आया उसने फ़ौरन कूफे का गवर्नर बदल दिया और उबैदुल्लाह इब्ने ज़्याद को, जो बहोत ज़ालिम था,को कूफ़े का का नया गवर्नर बना कर कूफे की तरफ रवाना कर दिया । और यज़ीद के कहने पर ही “अम्र इब्ने सअद “ को भी हुकूमत का लालच देकर एक बड़ा लश्कर देकर रवाना किया।

कूफ़े में पहुंच कर “अम्र इब्ने सअद” ने इब्ने ज़ियाद के इशारो पर कूफ़े के नामी गिरामी लोगो को जो की कूफे के नामी लोग और सरदार भी थे, उन्हें बहाने से बुलाकर बंदी बना लिया। जब ये बात कूफ़े में पहुंची तो कूफे वाले एक बड़ा हुजूम लेकर “अम्र इब्ने सअद” के पास गवर्नर हाउस पहुंचे तब उसने उनके सरदारों को सामने कर कहा की तुम हज़रत मुस्लिम का साथ न दो और उन्हें उसके हवाले कर दो। अगर कूफे वाले उस वक्त चाहते तो उसी वक्त यज़ीदी सेना के सिपहसालारो को सबक सिखा सकते थे मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया।फिर इसके बाद तो कुफे वालो की बुजदिली का आलम ये था की कल तक जो इमाम ए आली हुसैन अलैहिस्सलाम से मुहब्बत का दम भरते थे, उनके नाम से बैत हो रहे थे, उनके साथ जीने मरने की कसमे खा रहे थे आज उन्होंने यज़ीदी खौफ से हज़रत मुस्लिम का साथ छोड़ दिया था I जब हज़रत मुस्लिम मस्जिद में नमाज़ पढ़ा रहे तो सैकड़ो कूफी नमाज़ में थे मगर जब आपने नमाज़ ख़त्म कर सलाम फेरा तो देखा की बुजदिल कुफे वाले वहां थे ही नहीं I आप मस्जिद से बाहर निकले तो सभी ने अपने घरो के दरवाज़े तक बंद कर रखे थे, यहाँ तक की जब मुस्लिम ने उनके दरवाजों को खटखटाया तो किसी ने दरवाज़ा तक न खोला इस तरह से कूफ़े वालो ने हज़रत मुस्लिम का साथ छोड़ दिया और मुस्लिम भूखे प्यासे कूफे में भटकते रहे I काफी देर बाद एक बुढ़िया ने उन्हें आसरा दिया I लेकिन यज़ीद से इनाम की लालच में जल्द ही उनकी मौजूदगी की खबर भी लग गई और यज़ीद के इशारो पर हज़रत मुस्लिम को मारने यज़ीदी सिपाही पहुच गए I मुस्लिम बिना किसी हथियार के घर से बाहर आये और उन्होंने उन ज़ालिमों से कहा देखो मै तुम्हारे नबी ए करीम के घराने से हूँ हुसैन इब्ने अली का भाई हूँ मै यहाँ किसी से लड़ने तो नहीं आया हूँ फिर तुम लोगो की मुझसे क्या दुश्मनी है I यहाँ पर आप यजीद की फितरत को समझिये, आपको सारी बातो का जवाब मिल जाएगा, अगर यज़ीद चाहता तो उन्हें शहीद करने का हुक्म नहीं देता I हज़रत मुस्लिम तनहा थे, उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता था I मगर यजीदी हुक्म और लालच ने सभी की आँखों पर पट्टी बांध दिया था, और उन जालिमो ने उन पर पत्थरो और तीरों की बारिश कर उन्हें लहूलुहान कर दिया I यहाँ तक की उन्हें छत से नीचे फेका गया I तड़पाया गया प्यास से निढाल हज़रत मुस्लिम ने जब पानी पीना चाहा तो खून भी मुंह में आ जाता था तब उन्होंने उस बुढ़िया से कहा की मेरा रब नहीं चाहता की मै पानी पीयू तो फिर मुझे प्यासा रहना मंज़ूर है I

हज़रत मुस्लिम भी ये जानते थे के मेरे हुसैन को भी पानी न दिया जायेगा तो फिर भला वो इस पानी को कैसे पीते और फिर आखिरकार उन ज़ालिम यज़ीदियो ने हज़रत मुस्लिम रदीअल्लाहो तआला अन्हों को शहीद कर दिया। (इन्ना लिल्लाहि व् इन्ना इलैहि राजेऊन )

ये कर्बला की सरज़मीन पर हुसैन के खानदान की सबसे पहली शहादत थी।

हज़रत मुस्लिम के दोनों शहज़ादो की शहादत का वाकया इंशा अल्लाह कल समाद फरमाइएगा।

🖊️तालिबे इल्म: एड शाहिद इकबाल खान,चिश्ती-अशरफी

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