106 वा उर्स मुबारक: आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह
📚📚📚📚📚📚📚📚
या इलाही हर जगह तेरी अता का साथ हो..
जब पड़े मुश्किल शहे मुश्किल कुशा का साथ हो ..
डाल दी क़ल्ब में अज़मत ए मुस्तफ़ा ﷺ
सैय्यदी आला हज़रत पे लाखों सलाम!
29 से 31 अगस्त तक आला
दरगाह के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां, सैयद आसिफ मियां ने परचम कुशाई की रस्म अदा की। जिसके बाद से ही आला हजरत का उर्स मुबारक निहायत शानो शौकत के साथ सिर्फ़ बरेली शरीफ मे ही नहीं बल्कि सारी दुनियां मनाया जा रहा है।
यूँ तो आला हज़रत की शान में कुछ भी कहना या लिखना ऐसा होगा जैसे किसी सूरज के सामने दिया जलाना I जो कुछ भी मुझे आला हजरत के बारे में मालूम हो सका उसे ही यहां लिखने की एक छोटी सी कोशिश की है।
आप की विलादत 10 शव्वाल 1272 हिजरी ( 14 जून 1856 ई०) को बरेली शरीफ (उत्तर प्रदेश) में हुई, आप का तारीखी नाम “मुख़्तार” था जबकि आप के दादा ईमामुल उल्मा मौलाना रज़ा अली खान रह० अलैह ने आपको “अहमद रज़ा” कहकर पुकारा और आप इसी नाम से मशहूर हुए!
ईमाम ए अहले सुन्नत ईमाम अहमद रज़ा रह०अलैह के दादा मुफ़्ती रज़ा अली खान बिन मौलाना काज़िम अली खान रह० जो शहर ए बदायूँ के तहसीलदार थे, आपकी जागीर में 8 गाँव और 200 सवारों की फ़ौज हमेशा रहती थी!
[गुलिस्तान ए मोहद्देसीन:135]
मुफ़्ती रज़ा अली खान ने जँग ए आज़ादी (1857 ई०) के मुजाहिदीन की सरपरस्ती फ़रमाई, ईमाम ए अहले सुन्नत के वालिद ए मोहतरम का नाम मौलाना नक़ी अली खान था आप भी जंग ए आज़ादी में शरीक हुए!
वालिद ए माजिद मौलाना नक़ी अली खान व दीगर उल्मा से ईमाम ए अहले सुन्नत ने उलूम ए अकलिया व नकलिया की तहसील की और 1286 हि० (1869 ई०) में दर्स ए निज़ामिया से बरेली शरीफ में फ़ारिग़ होकर दस्तार ए फ़ज़ीलत से सरफ़राज़ हुए!
ईमाम ए अहले सुन्नत का निकाह जनाब अफ़ज़ल हुसैन साहब रह० की बड़ी साहबज़ादी से हुआ, जिनसे 7 औलादें हुईं, जिनके नाम यह हैं!
बेटे:
(१) हुज्जतुल इस्लाम मौलाना हामिद रज़ा खान रह०
(२) मुफ़्ती आज़म ए हिन्द अल्लामा मुस्तफ़ा रज़ा खान रह०
बेटियाँ:
(१) मोहतरमा मुस्तफ़ाई बेगम रह०
(२) कनीज़ ए हसन रह०
(३) कनीज़ ए हुसैन रह०
(४) कनीज़ ए हसनैन रह०
(५) मुर्तज़ाई बेग़म रह०
ईमाम ए अहले सुन्नत आलिम व फ़ाज़िल, हाफिज़ व क़ारी, मुफ़्ती व फ़क़ीह, मोहद्दीस व मोफस्सिर, फलसफी व साइंसदान, मुनाज़िर व मोहक़्क़ीक़ और कानून दाँ थे, आलम ए इस्लाम में आप आला हज़रत, हस्सानुल हिन्द और ईमाम ए अहले सुन्नत के लक़ब से मशहूर हुए, आपको सबसे पहले “आला हज़रत” सिलसिला ए वारिसिया के बानी हज़रत वारिस पाक अलैहे रहमा ने कहा!
ये आपकी करामत नहीं तो क्या है की
👉आपने सिर्फ़ 3.5 साल की उम्र में एक अरबी से उसकी ज़बान में गुफ़्तुगू कर ली।
👉6 साल की उम्र में एक बड़े मजमे में खड़े होकर 2 घंटे मुसलसल मीलादे मुबारक पढ़ा ।
👉8 साल की उम्र में ‘हिदायतुन नहु’ की अरबी शरह लिख डाली।
👉 13 साल 10 महीने और 5 दिन में ही तमाम उलूम से फराग़त हासिल करके पहला फतवा दिया।
👉22 साल की उम्र में बैयत की तो खुद मुर्शिदे बरहक़ ने फखरिया इरशाद फरमाया कि आज तक मुझे इस बात की फिक़्र थी कि कल जब बरोज़े क़यामत मौला मुझसे पूछ्ता कि ऐ आले रसूल तू दुनिया से क्या लाया तो मैं अपना कौन सा अमल पेश करता पर जबसे मैंने अहमद रज़ा को बैयत किया तबसे मेरी ये फिक़्र दूर हो गयी अब अगर क़यामत में मौला मुझसे पूछेगा कि ऐ आले रसूल तू दुनिया से क्या लाया तो मैं अहमद रज़ा को पेश कर दूंगा।
👉तमाम उल्माए इस्लाम ने जिसे मुजद्दिद तस्लीम किया और इमामुल अइम्मा का लक़ब दिया ।
👉जिसको अरब के शेखुद दलायल हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद सईद मग़रिबी अलैहिर्रहमा खुद या सय्यदी कहकर बुलाते थे।
👉जिसको हरमैन शरीफैन के उल्माए किराम ने सुन्नियत की पहचान बताया और फरमाया कि हम हिंदुस्तान से आने वाले हाजिओ के सामने इमाम अहमद रज़ा का ज़िक़्र करके देखते हैं कि अगर उसके चेहरे पर खुशी के आसार आये तो सुन्नी समझते हैं और अगर चेहरे पर कदूरत झलकी तो समझ लेते हैं कि ये बिदअती गुमराह है ।
👉जिसको तमाम उल्मा व औलियाए वक़्त ने ज़माने का हाकिम समझा और आलाहज़रत का लक़ब दिया और खुद वारिस पाक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने आलाहज़रत को अपनी मसनद पर बिठाया और आपको आलाहज़रत कहा ।
👉जिसने दूसरे हज के दौरान अपनी माथे की आंखों से बेदारी के आलम में हुज़ूर सल्लललाहो तआला अलैहि वसल्लम का दीदार किया ।
👉जिसने 105 उलूम पर 1300 से ज़्यादा किताबें लिख डाली।
👉जिनके दानिशमंद होने का सुबूत इस बात से मिलता है की आपके इल्म का लोहा सिर्फ हिंदुस्तान वालों ने ही नहीं माना बल्कि सारी दुनिया ने माना है हर तरफ़ आपका चर्चा है। आप इस बात से बखूबी अंदाज़ लगा सकते हैं की आपको अरब वालो ने मुजद्दिद की उपाधि से नवाज़ा जिसका मायने है मजहबे इस्लाम को नया जीवन देने वाले I
और ये उपाधि उन्हें इसलिए मिली क्योकि क्योकि वो अपने दौर के सबसे बड़े मुफ्ती, आलिम, हाफिज़, लेखक, शायर, धर्मगुरु, भाषाविद, युगपरिवर्तक, तथा समाज सुधारक थे I
👉जिन्होंने 72 से ज्यादा विषयों पर 1000 से अधिक किताबे लिखी इतनी शायद ही किसी और ने लिखी होगी और आपको ये जानकार ताज्जुब होगा की इनमे से एक किताब जो की बहोत प्रसिद्ध हुवी जिसका नाम नाम “अद्दौलतुल मक्किया” है जिस को उन्होंने केवल 8 घंटों में बिना किसी संदर्भ ग्रंथों के मदद से हरम-ए- मक्का में लिख दिया था सुभान अल्लाह।
👉इसी तरह आपने तफसीर ए हदीस लिखी और ये वो किताब है जिसने लाखो मुस्लिमो को सुन्नियत की राह पर चलना सिखाया I कन्जुल ईमान को आज कौन नहीं जानता जिसमे मुक़द्दस कुराने करीम का हिंदी में तर्जुमा किया गया ताकि लोग कुरान को सिर्फ पढ़े नहीं बल्कि इसे तफसीर से समझ भी सके I
👉इस्लाम और इस्लामी कानून को समझने के लिए आपने एक और प्रमुख किताब लिखी जो “फतावा रजविया “कहलाया जो 13 भागो में है I जिसके जरिए आपने सारी दुनिया की इस्लाह की है। एक एक कर अगर उनकी सारी किताबो का नाम गिनाता चला जाऊ तो शायद इस पर ही एक किताब लिखी जा सकती है I
आला हज़रत ने मज़हबे इस्लाम के बारे में बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया और बहुत सी किताबे लिखी I आपने मुसलमानों को इल्म हासिल करने के लिए ताकीद किया I
आपके दौर में ये आलम था की जब किसी भी विषयो के माहिर से माहिर उस्ताद को भी अगर कोई बात समझनी और जाननी होती थी तो वो भी सीधा बरेली शरीफ़ आते या फ़िर ख़त लिखकर आपसे दरयाफ्त करते और आपके जवाब से पूरी तरह मुतमईन हो जाते थे I यही वजह है की न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि मुल्क ए हिन्द सहित बहरूने मुल्क में भी आपके रास्तो पर चलने वाले बहोत बड़ी तादाद में होते चले गए ।
अल्लाह के प्यारे महबूब पैगम्बरे इस्लाम जनाबे मोहम्मद रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मोहब्बत का पाठ सही मानो में अगर किसी ने पढ़ाया है तो वो शख्सियत आला हज़रत है। इश्क़ ए नबी में डूबकर आपने जो कुछ भी कहा और लिखा वो आला ओ औला हो गया । बेशक इस मोहब्बत को आपने सिर्फ लफ्जों के ज़रिये ही बयाँ नहीं किया बल्कि वो आपकी रूहानियत में इस तरह रच बस गया की जो कोई सुनता वो भी नबी ए करीम के इश्क़ में डूब जाता ।
आका सल्ललाहु अलैहि वसल्लम का नूर सबके दिलो में कुछ इस तरह से उतर जाता की सुनने वाला भी आशिके रसूल हो जाता I आज भी रोज़ाना लाखो करोड़ों लोग अपने नबी और रसूल पर रोज़ाना दरुदो सलाम का जो तोहफा भेज रहे है वह हजरत आला हजरत के सदके व तुफैल ही है।
दिलो मे नफ़रत फैलाओ और राज करो, का नुस्खा अंग्रेजो ने ईजाद किया था, जो आज भी देखा जा सकता है। लेकिन जो ख़्वाजा वाले है उन्होनें नफरत का नहीं बल्कि मोहब्बत का सबक सीखा और वो किसी के बहकाने से गुमराह नहीं हुए।
आला हज़रत के दौर मे एक फिरका ऐसा भी हुवा जो
नबी ए करीम को भी माज़ल्लाह अपने जैसा समझने की गुस्ताखी कर रहा था और उनकी ये मुहीम यक़ीनन एक साजिश के तहत ही तैयार की गई थी जो काफ़ी फल फूल रही थी ।
यक़ीनन ये जमात सुन्नियों के विरोधी थे । जिनकी साजिशो को नाकाम करने अल्लाह ने अपने महबूब यानि आक़ा नबी ए करीम के महबूब आला हज़रतअहमद रज़ा ख़ा बरेलवी को मुल्के हिन्द मे सदी का मौजद्दिद आलिमे दीन बनाकर सुन्नीय्यत का परचम बुलंद करने का काम सौपा जिन्होने सुन्नियत के दुश्मनों से जमकर लोहा लिया जिनके इल्म की वजह से बद अक़ीदा जमात के नुमाइंदे भी खौफज़दा हो उठे और वे आपके सामना करने से घबराते थे
आला हजरत के इश्क़ में डूबे हुए कलाम को सुनकर उनकी बोलती ही बंद हो जाती थी, इसलिए आवाम आला हजरत को सुन्नियो का “ शेर ए बबर “भी कहती है I
अगर आज हम खुद को सुन्नी मुसलमान कहते है तो बेशक सही मायनों में ये हज़रत अली की आल, अहले बैत, हिन्द के बादशाह हुज़ूर ख्वाजा गरीब नवाज रहमतुल्लाह अलैह और उनके घराने और सिलसिले के तमाम वली अल्लाहो, हुज़ूर अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह, का फैजो करम है । जो हमने इनसे “मोहब्बत और इंसानियत का सबक सीखा ।
आला हज़रत ने भी वली अल्लाहो के इसी मिशन को आगे बढ़ाते हुए लोगो को इस्लाम की दावत के साथ साथ दीन की तालीम भी दी ।
यक़ीनन मज़हब ए इस्लाम अमन, और आपसी भाईचारे का सबक सिखाने वाला मज़हब है I यही वजह है की जब आला हज़रत की बाते कोई गैर मज़हब वाला कोई दानिशमंद, सुनता तो वो आपकी तारीफ़ किये बिना नहीं रह सकता था I
आपकी बहुत सी करामातो का ज़िक्र भी किताबो मे हुवा है जिनमे से चंद का ज़िक्र यहां किया जा रहा है।
सरदार अहमद साहब कहते हैं कि मेरी बीवी को 7 माह का हमल था पेट में 2 जुड़वा बच्चे थे मगर वो पेट में ही मर गए,डॉक्टर ने कह दिया कि बगैर आप्रेशन के अब औरत की जान नहीं बचाई जा सकती लिहाज़ा मैं पालकी लेने के लिए बाहर निकला,रास्ते में मुझे आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह मिले आपने मुझसे पूछा कि परेशानी की हालत में कहां चले जा रहे हैं तो मैंने उनको सारा मुआमला बता दिया तो आप फरमाते हैं कि मुझे घर ले चलो,आप बाहर ही रुके रहे और सय्यद साहब को अंदर एक डोरा लेकर भेजा और फरमाया कि इसका सिरा औरत की नाफ पर रखो और दूसरे सिरे पर आप पढ़कर दम करते रहे,कुछ देर बाद उनको भी बाहर बुलाया और दाई को अंदर भेजने को कहा थोड़ी ही देर में 2 मुर्दा बच्चे पैदा हो गए और औरत को भी कुछ नहीं हुआ।
📚हयाते आलाहज़रत,सफह 959)
सय्यद अय्यूब अली साहब का बयान है कि आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह जिस मकान में रहते थे कुछ दिनों बाद वही आपके मंझले भाई हज़रत मौलाना हसन रज़ा खान रहमतुल्लाही तआला अलैह का क़याम गाह बना,एक दिन बरसात के मौसम में उसकी एक तरफ की दीवार गिर गयी उस ज़माने में क़ुरबानी की वजह से लोग आला हज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह से बदज़न थे,रात के एक पहर एक दुश्मन ने घर में घुसना चाहा मगर जैसे ही दरवाज़े के करीब पहुंचा तो देखा कि एक शेर दरवाज़े पर बैठा हुआ है मारे डर के ये वहां से भाग निकला,सुबह होते ही सबसे पहले ये आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में हाज़िर हुआ और रात की सारी बात बताई और माफी चाही सरकार आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह ने उसे माफ फरमा दिया
📚हयात ए आलाहज़रत,सफह 932)
सरकारे आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह अपने दूसरे हज का ज़िक्रे खैर करते हुए फरमाते हैं कि मक्कतुल मुकर्रमा में जिस मकान में हमारी रिहाइश थी और जहां मेरी नशिश्त थी उससे कुछ दूरी पर ऊपर के ताक़ में कबूतरों का जोड़ा रहता था,कबूतर अक्सर ऊपर से तिनका वगैरह गिराया करते जो उसके नीचे बैठने वालों पर गिरता कुछ दिनों के बाद मेरी नशिश्त उसी ताक़ के नीचे लगायी गई ताकि मुलाकात करने वालों के लिए जगह वसीअ रहे पर मेरी नशिश्त लगते ही कबूतरों ने अपना ताक़ बदल दिया अब वो दूसरे ताक़ पर जा बैठे और वहां से तिनका गिराते जो कि आने वालों पर अक्सर गिरा करता,ये देखकर हज़रत मौलाना सैय्यद इस्माइल ने फरमाया कि वहशी जानवर भी आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह का अदब करते हैं तो मैंने कहा कि हमने उनसे सुलह करली तो उन्होंने भी हमसे सुलह करली
📗फैज़ाने आलाहज़रत,सफह 394)
नबीरा ए मुहद्दिस ए सूरती क़ारी अहमद साहब फरमाते हैं कि पीलीभीत शरीफ की एक सैय्यदानी साहिबा ने आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह की बारगाह में अर्ज़ किया कि हुज़ूर मैंने कुछ अशर्फियां और रूपये एक घड़े में रखकर ज़मीन में दफनाए थे पर अब वो वहां नहीं है,मेरी बेटी की शादी का वक़्त क़रीब है और मैं बहुत परेशान हूं तो आप फरमाते हैं कि वो घड़ा अब वहां नहीं बल्कि दूसरे कमरे में फलां जगह मौजूद है,
जब वहां खोदा गया तो घड़ा बरआमद हुआ सरकार आलाहज़रत रज़िअल्लाहु तआला अन्ह फरमाते हैं कि अगर बग़ैर बिस्मिल्लाह शरीफ पढ़े कोई रुपया या ज़ेवरात दफन किया जाये तो वो अपनी जगह क़ायम नहीं रहता
📚 हयाते आलाहज़रत, सफह 981)
हज़रत अय्यूब अली शाह साहिब रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि मेरे आक़ा आला हज़रत अलैहिर्रहमा एक बार पीलीभीत से बरेली शरीफ़ ब ज़रिआए रेल जा रहे थे। रास्ते में नवाब गन्ज के स्टेशन पर जहां गाड़ी सिर्फ़ 2 मिनट के लिये ठहरती है।मगरिब का वक़्त हो चूका था,आप ने गाड़ी ठहरते ही तकबीर इक़ामत फ़रमा कर गाड़ी के अंदर ही निय्यत बांध ली,ग़ालिबन 5 शख़्सों ने इक़्तिदा की, कि उनमें मैं भी था लेकिन अभी शरीके जमाअ़त नही होने पाया था कि मेरी नज़र गै़र मुस्लिम गार्ड पर पड़ी जो प्लेट फॉर्म पर खड़ा सब्ज़ झण्डी हिला रहा था, मैंने खिड़की से झांक कर देखा कि लाइन क्लियर थी और गाड़ी छूट रही थी, मगर गाड़ी न चली और हुज़ूर आला हज़रत अलैहिर्रहमा ने ब’इत्मिनान तीनों फ़र्ज़ रकाअ़त अदा की और जिस वक़्त दाईं जानिब सलाम फेरा था गाड़ी चल दी। मुक़्तदियों की ज़बान से बे’साख़्ता सुब्हान अल्लाह निकल गया।
👉🏻इस करामत में क़ाबिले ग़ौर यह बात थी कि अगर जमाअ़त प्लेट फॉर्म पर खड़ी होती तो यह कहा जा सकता था कि गार्ड ने एक बुजुर्ग हस्ती को देख कर गाड़ी रोक ली होगी। ऐसा न था बल्कि नमाज़ गाड़ी के अंदर पढ़ी थी। इस थोड़े वक़्त में गार्ड को क्या खबर हो सकती थी कि एक अल्लाह का महबूब बन्दा नमाज़ गाड़ी में अदा करता है।..
📓हयाते आला हज़रत, 3/18
हज़रत शाह माना मियां साहब का बयान है
के मेरे मुर्शिद आला हज़रत सरकार अपनी मस्जिद से नमाज़ पढ़ कर तशरीफ़ ला रहे थे
के मुहल्ला सौदागरान की गली में लोगों का हुजूम देखा
आला हज़रत ने दरयाफ़्त किया ये कैसा मजमा लगा है तो बताया गया के एक गैर मुस्लिम जादूगर अपना जादू दिखा रहा है
तीन , चार किलो पानी से भरा हुआ बर्तन कच्चे तागे से उठा रहा है
आला हज़रत सरकार भी इस मजमे की तरफ बढे
और उस जादूगर से फरमाने लगे : हम ने सुना है तीन , चार किलो पानी से भरा हुआ बर्तन कच्चे तागे से उठा लेते हो -?
उस ने कहा — जी हाँ !
इरशाद फ़रमाया _ कोई और चीज़ भी उठा सकते हो -? उसने कहा – लाइये ! जो चीज़ आप दें उठा सकता हूँ आला हज़रत ने अपने जूते को पैर से निकालते हुए 【 आप नागरा जूता पहनते थे , जो मुश्किल से 50 ग्राम का होगा 】 फ़रमाया _
लो इस जूते को उठाना तो बढ़ी बात है , अपनी जगह से हटा कर ही दिखा दो -?
जादूगर ने बहुत कोशिश की लेकिन वह उस नाअले मुक़द्दस को अपनी जगह से हिला नहीं सका
आला हज़रत ने फिर इरशाद फ़रमाया — अच्छा इस बर्तन ही को अब उठा कर दिखा दो -?
अब जो उसने बर्तन को उठाना चाहा , तो बर्तन भी नहीं उठ सका
वह जादूगर इस करामत को देख कर आला हज़रत के क़दमों पर गिर पढ़ा और कलमा पढ़ कर मुसलमान हो गाय हुआ
और आला हज़रत की बारगाह से रूहानियत की दौलत लेकर वापस हुआ ……
ऐसी ना जाने कितनी ही करामाते है जिनका ज़िक्र अक्सर उलमा अपने बयानों मे करते रहते है
आपने कुरान शरीफ का जिस अंदाज़ मे तर्जुमा किया उसकी तारीफ़ के लिए उलमा ए केराम के पास भी शायद लफ्ज़ कम पड़ जाए जिसका नाम कंज़ुल ईमान है मेरा दावा है की जो भी सुन्नी मुस्लमान इसे पढ़ लेगा वो कभी गुमराह नहीं होगा
इल्मो दानिश का ये सूरज लोगो की नजरो से ओझल होकर 25 सफर 1340 हिजरी बा मुताबिक 28 अक्तूबर 1921 को अपने माबूदे हक़ीक़ी से जा मिला ।
इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन ।
मगर आज भी उनके इल्म की रौशनी चारो तरफ नज़र आती है रसूले करीम की इस मोहब्बत ने आपको वो मकाम अता कर दिया है की आज सारे सुन्नी अकायद वाले कह रहे है
“ तू ज़िन्दा है वल्लाह तू ज़िन्दा है वल्लाह..
मेरी चश्मे पुरनम से छुप जाने वाले …
चमक तुझसे पाते है सब पाने वाले ..
.मेरा दिल भी चमका दे चमकाने वाले।
यह कहना होगा की आला हज़रत ने के आक़ा नबी ए करीम की शान मे जो कुछ लिखा वो उनके दिल से निकले हुए कलाम है अपने आक़ा पर दुरुद और सलाम का नज़राना आज भी सभी सुन्नियो कि ज़बा से ज़ारी वो तारी है जो इन शा अल्लाह क़यामत तक जारी रहेगा
एक मेरा ही रहमत पे दावा नहीं …
शाह की सारी उम्मत पे लाखो सलाम ..
मुस्तफा जाने रहमत पे लाखो सलाम …
✒️:- एड.शाहिद इक़बाल खान,
चिश्ती – अशरफी
🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲