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एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में कृत्रिम वाल्व प्रत्यारोपण एवं वाल्व रिपेयर सर्जरी
रायपुर प्रदेश में एकमात्र दिल के शासकीय अस्पताल एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में अब हृदय के ऑपरेशन प्रारंभ हो गये हैं। अभी हाल ही में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू एवं उनकी टीम के नेतृत्व में एक 47 वर्षीय महिला के हृदय में कृत्रिम वाल्व (artificial valve) का सफल प्रत्यारोपण किया एवं हृदय के दूसरे वाल्व (tricuspid valve) का रिपेयर किया गया। सर्जरी में मरीज के हृदय के माइट्रल वाल्व को एक आर्टिफिशियल वाल्व जिसे मैकेनिकल वाल्व कहते हैं, से प्रत्यारोपित किया गया एवं अन्य वाल्व जिसको ट्राइकसपिड वाल्व कहते हैं, को ट्राइकसपिड एन्यूलोप्लास्टी रिंग लगाकर वाल्व रिपेयर किया गया। अभी मरीज स्वस्थ है। किसी भी प्रकार की सांस फूलने की शिकायत नहीं है एवं अस्पताल से डिस्चार्ज लेकर घर जाने को तैयार है।
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सांस फूलने, कमजोरी तथा तेज धड़कन की शिकायत के साथ पहुंची मरीज
एसीआई के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू कृत्रिम वाल्व प्रत्यारोपण (artificial valve transplantation) एवं वाल्व रिपेयर (valve repair) के संबंध में जानकारी देते हुए कहते हैं कि राजिम निवासी 47 वर्षीय महिला को करीब 4 साल से सांस फूलने, कमजोरी तथा सीने में तेज धड़कन (Heart palpitations) की शिकायत थी जिसके कारण कभी-कभी चक्कर भी आता था।
महिला को सामान्य काम करना भी मुश्किल हो गया था। स्थानीय डॉक्टरों को दिखाने पर पता कि महिला के हृदय के एक वाल्व जिसे माइट्रल वाल्व या बाईकस्पिड वाल्व कहते हैं, में सिकुड़न (¼ Mitral valve stenosis) आ गई है एवं दूसरे वाल्व (tricuspid valve) में लीकेज आ गई है जिसके कारण इनका हृदय रक्त को सुचारू रूप से पम्प नहीं कर पा रहा था एवं धड़कन में अनियमितता होने के कारण मरीज को बार-बार तेज धड़कन (Heart palpitations) की शिकायत होती थी।
इस बीमारी को डॉक्टरी भाषा में रुमैटिक हार्ट डिजीज (Rheumatic heart disease / RHD) कहते हैं। यह बीमारी मध्य भारत और उत्तर भारत में बहुत अधिक मिलता है। मरीज हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में आयी फिर यहां इको कार्डियोग्राफी करवा कर बीमारी की पुष्टि की गई और यह देखा गया कि कौन सा वाल्व कितना खराब है ? फिर मरीज की सर्जरी की योजना बनाई गई।
ऐसे हुई हार्ट के कृत्रिम वाल्व प्रत्यारोपण एवं वाल्व रिपेयर सर्जरी
हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि मरीज को ऑपरेशन के हाई रिस्क के बारे में समझाया गया एवं ऑपरेशन थियेटर में लिया गया। मरीज की छाती (स्टर्नम) को खोलकर मरीज के हृदय के धड़कन को कुछ समय के लिए बंद करके हार्ट लंग मशीन में रखा गया। जब हृदय और फेफड़ा के कार्य को रोका जाता है तो हार्ट लंग मशीन कृत्रिम रूप से रक्त को पम्प करने का कार्य करता है एवं अशुद्ध रक्त को शुद्ध करता है जिससे कि शरीर के अन्य अंग जैसे कि मस्तिष्क, लीवर, किडनी, आंत एवं अन्य सभी महत्वपूर्ण अंग सुचारू रूप से काम करते रहें।
हृदय की धड़कन रोकने के बाद हृदय के लेफ्ट एट्रियम को खोल के हृदय के खराब वाल्व को काटकर निकाला गया एवं उसके स्थान पर 29 नं. का आर्टिफिशियल बाई लीफलेट मैकेनिकल मैटेलिक वाल्व ( artificial bileaflet mechanical metallic valve )डाला गया। उसके बाद राइट एट्रियम को ओपन करके 31 नं. का ट्राइकसपिड एन्युलोप्लास्टी रिंग की सहायता से ट्राइकसपिड वाल्व को रिपेयर किया गया। इसके बाद हार्ट के दोनों चेंबर को बंद कर दिया गया एवं जब हृदय सामान्य रूप से कार्य प्रारंभ किया तब हार्ट लंग मशीन को निकाल दिया गया।
वाल्व प्रत्यारोपण के बाद रखने वाली सावधानियां
चूंकि आर्टिफिशियल वाल्व मैटेलिक होता है और हार्ट के अंदर बहने वाले रक्त के सीधे संपर्क में आता है जिससे इसके थक्का बनने की संभावना होती है तो उसको रोकने के लिये ब्लड को पतला करना पड़ता है। ब्लड को एक विशेष मानक तक ही पतला करना होता है क्योंकि ज्यादा पतला होने से रक्तस्त्राव की समस्या आ सकती है और कम होने से वाल्व में थक्का बन जाता है इसलिए ऐसे मरीज को समय-समय पर अपनी जांच कराते रहना चाहिए।
मरीजों का स्वास्थ्य सहायता योजना अंतर्गत इलाज
हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू बताते हैं कि माननीय स्वास्थ्य मंत्री के अथक प्रयासों से एडवांस कार्डियक इंस्टीट्यूट में ओपन हार्ट सर्जरी प्रारंभ हुआ है। अब तक 9 मरीजों का ऑपरेशन हो चुका है जिसमें से 5 हृदय के जन्मजात रोग ( congenital heart disease ) एवं 4 मरीजों का वाल्व प्रत्यारोपण हो चुका है जिसमें 7 महिलाएं एवं 2 पुरुष हैं।
हमारे यहां सरकारी संस्थान में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाले मरीजों का आयुष्मान योजना एवं डॉ. खूबचंद बघेल स्वास्थ्य सहायता योजना अंतर्गत निशुल्क इलाज होता है। ऐसे मरीज जिनके पास इन दोनों स्वास्थ्य योजना की पात्रता नहीं होती उनको सरकारी दर में ऑपरेशन की सुविधा दी जाती है। भले ही यहां पर शासकीय दर पर ऑपरेशन होता है लेकिन इसमें प्रयुक्त होने वाले आर्टिफिशियल वाल्व एवं एन्युप्लास्टी रिंग बहुत ही उच्च कोटि एवं विश्व स्तरीय होते है। इनकी क्वालिटी को लेकर कभी समझौता नहीं किया जाता है।
वर्तमान में सीमित मानव संसाधन की उपलब्धता के कारण हार्ट सर्जरी के केस सीमित हैं परंतु जैसे ही मानव संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो जाएंगे वैसे ही मरीजों के हार्ट सर्जरी के केस में वृद्धि दर्ज होगी। आने वाले समय में मरीजों के हृदय से संबंधित सभी प्रकार की सर्जरी यहां हो सकेगी जैसे- जन्मजात हृदय रोग, हृदय की वाल्व की सर्जरी एवं कोरोनरी बाईपास सर्जरी इत्यादि।
क्यूं होता है रुमैटिक हार्ट डिजीज
बचपन में सर्दी-खांसी, बुखार होने पर सही ढंग से इलाज नहीं कराने से आगे चलकर रूमेटिक हार्ट डिजीज का खतरा बढ़ जाता है। सामान्यतः सर्दी-खांसी, बुखार स्ट्रेप्टोकोकस संक्रमण से होता है। स्ट्रेप्टोकोकस बैक्टीरिया के कारण से धीरे-धीरे शरीर में एंटीबॉडी बननी चालू होती है। वह एंटीबॉडी मुख्यतः हृदय के वाल्व पर ही अटैक करती है जिसके कारण हृदय का वाल्व धीरे-धीरे खराब होना चालू होते हैं।
यह बीमारी सामान्यतः 20 से 22 साल बाद दिखाई देता है। प्रारंभ में सामान्यतः वाल्व कम खराब होता है तो मरीज को यह पता नहीं चलता लेकिन धीरे-धीरे इसके लक्षण दिखाई देते हैं तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
सर्जरी टीम में हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डॉ. कृष्णकांत साहू के साथ हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जन डॉ. निशांत सिंह चंदेल, डॉ. तन्मय, कार्डियक एनेस्थेटिस्ट डॉ. वरुण सिंह, कार्डियक परफ्यूशनिस्ट संदीप, कार्डियक टेक्नीशियन भूपेन्द्र चंद्रा के साथ नर्सिंग स्टाफ राजेन्द्र साहू, नरेन्द्र एवं चोवा राम शामिल थे