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जानिए कैसे? रसायन विज्ञान सुलझाएगा प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या….

वर्ष 1907 में संश्लेषित प्लास्टिक के रूप में सबसे पहले बैकेलाइट का उपयोग किया गया था। वज़न में हल्का, मज़बूत और आसानी से किसी भी आकार में ढलने योग्य बैकेलाइट को विद्युत कुचालक के रूप में उपयोग किया जाता था।
प्लास्टिक आधुनिक दुनिया में काफी उपयोगी चीज़ है। देखा जाए तो प्लास्टिक उत्पादों की डिज़ाइन और निर्माण का एक प्रमुख घटक है।

प्लास्टिक विशेष रूप से एकल उपयोग की चीज़ें बनाने में काम आता है – जैसे पानी की बोतलें और खाद्य उत्पादों के पैकेजिंग। फिलहाल प्रति वर्ष 38 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन होता है जो वर्ष 2050 तक 90 करोड़ टन होने की समभवना होती है।

जीवाश्म ईंधन से प्लास्टिक का निर्माण होता है

उन्हीं की तरह प्लास्टिक के भी नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव हो सकते हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2050 तक 12 अरब टन प्लास्टिक लैंडफिल में पड़ा होगा और पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा होगा। 2015 में इसकी मात्रा 4.9 अरब टन थी।
कचरे से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए जो इंसिनरेटर उपयोग किए जाते हैं उनमें भी प्रमुख रूप से प्लास्टिक ही जलाया जाता है। इनमें भी काफी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है। कुछ वृत्त चित्रों में प्लास्टिक कचरे के कारण होने वाले पर्यावरणीय प्रदूषण पर ध्यान आकर्षित किया गया है।

वैसे आजकल प्लास्टिक पुनर्चक्रण किया जाता है लेकिन एक तो यह प्रक्रिया काफी खर्चीली है और पुनर्चक्रित प्लास्टिक कम गुणवत्ता वाले होते हैं और कमज़ोर भी होते हैं।

आजकल बाज़ार में जैव-विघटनशील प्लास्टिक का भी उपयोग किया जा रहा है।

इनका उत्पादन वनस्पति पदार्थों से किया जाता है या इनमें ऑक्सीजन या अन्य रसायन जोड़े जाते हैं ताकि ये समय के साथ सड़ जाएं। लेकिन ये प्लास्टिक सामान्य प्लास्टिक के पुनर्चक्रण में बाधा डालते हैं क्योंकि तब मिले-जुले पुनर्चक्रित प्लास्टिक की गुणवत्ता और भी खराब होती है। इन्हें अलग करना भी संभव नहीं होता।

ऐसे में अधिक निर्वहनीय प्लास्टिक का निर्माण रसायन विज्ञान का एक महत्वपूर्ण सवाल बन गया है। वर्तमान में शोधकर्ता प्लास्टिक कचरे को कम करने के प्रयास कर रहे हैं और साथ ही ऐसे प्लास्टिक बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिनका बेहतर पुनर्चक्रण किया जा सके।

ऐसा एक प्रयास नेचर में प्रकाशित हुआ है। जर्मनी स्थित युनिवर्सिटी ऑफ कॉन्सटेंज़ के स्टीफन मेकिंग और उनके सहयोगियों ने एक नए प्रकार के पॉलिएथीलीन का वर्णन किया है। पॉलीएथीलीन (या पोलीथीन) सर्वाधिक इस्तेमाल होने वाला एकल-उपयोग प्लास्टिक है।

मेकिंग द्वारा निर्मित पोलीथीन ऐसा पदार्थ है जिसकी अधिकांश शुरुआती सामग्री को पुर्नप्राप्त करके फिर से काम में लाया जा सकता है। वर्तमान पदार्थों और तकनीकों के साथ ऐसा कर पाना काफी मुश्किल है।

वैसे इस नए प्लास्टिक पर अभी और परीक्षण की आवश्यकता है। मौजूदा पुनर्चक्रण की अधोरचना पर इसके प्रभावों का आकलन भी करना होगा। इसके लिए मौजूदा पुनर्चक्रण केंद्रों में अलग प्रकार की तकनीक की आवश्यकता होगी।

यदि इसके उपयोग को लेकर आम सहमति बनती है और इसे बड़े पैमाने पर किया जा सके तो पुनर्चक्रित प्लास्टिक के इस्तेमाल में वृद्धि होगी और शायद प्लास्टिक को पर्यावरण के लिए कम हानिकारक बनाया जा सकेगा।
वास्तव में प्लास्टिक आणविक इकाइयों की शृंखला से बने होते हैं। जाता है। पुन:उपयोग के लिए इस प्रक्रिया को उल्टा चलाकर शुरुआती पदार्थ प्राप्त करना कठिन कार्य है।

प्लास्टिक पुनर्चक्रण में मुख्य बाधा यह है कि इकाइयों को जोड़ने वाले रासायनिक बंधनों को कम ऊर्जा खर्च करके इस तरह तोड़ा जाए कि मूल पदार्थों को पुनप्र्राप्त किया जा सके और एक बार फिर अच्छी गुणवत्ता का प्लास्टिक बनाने में इस्तेमाल किया जा सके।
वैसे तो इस तरीके की खोज में कई वैज्ञानिक समूह काम कर रहे थे लेकिन मेकिंग की टीम ने मज़बूत पॉलीएथीलीन-नुमा एक ऐसा पदार्थ विकसित किया जिसके रासायनिक बंधनों को आसानी से तोड़ा जा सकता है।

इस प्रक्रिया में वैज्ञानिक लगभग सभी शुरुआती पदार्थ पुर्नप्राप्त करने में सफल रहे।

गौरतलब है कि इसी तरह की खोज एक अन्य टीम द्वारा भी की गई है। युनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की सुज़ाना स्कॉट और उनके सहयोगियों ने एक उत्प्रेरक की मदद से पॉलीएथीलीन के अणुओं को तोड़कर अन्य किस्म की इकाइयां प्राप्त कीं जिनसे शुरू करके एक अलग प्रकार का प्लास्टिक बनाया जा सकता है। यह एक महत्वपूर्ण शोध है। इसे विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक और बड़े पैमाने पर उपयोग में लाना चाहिए।

अलबत्ता, रसायन शास्त्र हमें यहीं तक ला सकता है। जब तक प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि जारी है, केवल पुनर्चक्रण से प्लास्टिक प्रदूषण को कम नहीं किया जा सकता है। प्लास्टिक को जलाने और इसे महासागरों या लैंडफिल में भरने से रोकने के लिए प्लास्टिक निर्माण की दर को कम करना होगा। कंपनियों को अपने प्लास्टिक उत्पादों के पूरी तरह से पुनर्चक्रण की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। और इसके लिए सरकारों को अधिक नियम-कायदे बनाने होंगे और संयुक्त राष्ट्र की प्लास्टिक संधि को भी सफल बनाना होगा।

इसके लिए प्लास्टिक पैकेजिंग में शामिल 20 प्रतिशत कंपनियों ने न्यू प्लास्टिक्स इकॉनॉमी ग्लोबल कमिटमेंट के तरह यह वादा किया है कि प्लास्टिक पुनर्चक्रण में वृद्धि करेंगे। लेकिन हालिया रिपोर्ट दर्शाती है कि एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करने और पूर्ण रूप से पुन:उपयोगी पैकेजिंग को अपनाने में प्रगति उबड़-खाबड़ है।

ज़ाहिर है कि इस संदर्भ में कंपनियों को ठेलने की आवश्यकता है। यदि उन पर दबाव बनाया जाए कि उन्हें प्लास्टिक के पूरे जीवन चक्र की ज़िम्मेदारी लेनी होगी तो वे ऐसे पदार्थों का उपयोग करने को आगे आएंगी जिनका बार-बार उपयोग हो सके।

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