हुज़ूर ग़ौसे आज़म “रज़ियल्लाहु तआला अन्हु” बचपन के वाक्यात पार्ट-2
मा-हम्ह मोहताज तू हाजत रवा
अल मदद या गौसे आज़म सय्यिदा
तर्जुमा : जो जैसा भी मोहताज हो आप उसके हाजत रवा हो, तो ऐ हुज़ूर गौसे आ’ज़म رضي الله تعالي عنه हमारी मदद फरमाइये । आमीन …
🌠 अल्लाह जब चाहे तब अपने महबूब बंदों की करामातें भी दुनियां वालो पर ज़ाहिर कर देता है । और फिर ये तो रब के महबूब हुज़ूर गौस पाक है, जिनकी शान और मर्तबे को पैदा होते ही रब ने बतला कर ऐलान कर दिया की ए दुनिया वालो मेरे इस महबूब को तुम अपनी तरह मत समझो।
दूसरे बच्चे रोते हुए पैदा होते है मगर आप रोते हुए नही बल्कि मुस्कुराते हुए दुनिया मे तशरीफ़ लाए।यहां तक की आपकी वालिदा को भी आपकी पैदाइश के वक़्त कोई तकलीफ़ नही हुई ।
आपकी शक्ल ए मुबारक इतनी बा रौब थी के कोई शख्स आप को गौर से देर तक देखने की हिमाकत नहीं कर सकता था । बेशक आप को अल्लाह तआला ने मजहर ए जमाल ए मुस्ताफाई बना कर भेजा था ।
आपको दूध पिलाने वाली दाई माँ फरमाती है की कई बार उसने देखी की आप आसमान में कभी चाँद सितारों को तो कभी सूरज को देखकर ख़ुश होते और कभी वो दाई माँ की गोद से उछल जाते, लेकिन वो ज़मीन पर नही गिरते बल्कि आसमान में परवाज़ करने लगते, कभी वो चाँद सितारों के क़रीब होते तो कभी सूरज के करीब उनका अक्स नज़र आता, जिसे देखकर दाई माँ घबरा उठती मगर अगले ही पल वो दाई माँ की गोद मे मुस्कुराते नज़र आते । यह माजरा देखकर दाई माँ कुछ समझ नही पाती की जो कुछ उसने देखा वो हक़ीक़त था या फ़िर नज़रो का धोखा ।
जब यह बात उसने आपकी वालिदा को बतलाई तो आपकी वालिदा ने फरमाया बेशक़ मेरा बेटा अल्लाह का महबूब और ख़ास बंदा है । आपकी वालिदा ने दाई माँ को इस बात को बाहर किसी को बतलाने से मना किया।
🌠जब आपने चलना शुरू किया तो वालिदा ने देखा की आप दूसरे बच्चों की तरह कभी लड़खड़ाए नही कभी गिरे नही बल्कि इस शान से चलते की लोग आपकों देखते ही रह जाते।
🌋जब आप 4 साल 4 महीने के हुवे तो आपको मदरसे में दाखिल कराने की गरज़ से ले जाया गया । उस्ताद ने आपको देखा तो बेहद ख़ुश हुए, क्योंकि हुज़ूर गौसे आज़म की रमज़ान के रोजे रखने वाली करामात इतनी मशहूर हो गई थी की सभी आपको जानने लगे थे, लिहाज़ा उस्ताद ने खुश होकर आपसे पूछा
बेटे क्या तुमने घर मे कुछ सीखा है ?
आपने जवाब में गर्दन हिलाकर हां कहा
उस्ताद ने उनसे कहा तो ठीक है बेटे जो कुछ भी आता हो पहले उसे सुनाओ।
और फिर आपके उस्ताद ने सुनने के लिए अपनी आंखे बंद कर ली ।
आपने कुरान शरीफ बिस्मिल्लाह हिर्ररहमान निर्रहीम से शुरु किया और पूरा पहला पारा ख़त्म कर दिया तो उस्ताद इस बच्चे को देखते रहे । आप पहला पारा पढ़कर रुके नहीं बल्कि आपने एक एक कर पूरे 18 पारे सुना दिये।
उस्ताद ताज्जुब से इस बच्चे को देखते ही रहे, उनके होशो *हवास गुम हो चुके थे, उन्हे समझ नहीं आया की वो इस बच्चे को क्या कहें । और फिर उस्ताद के मुंह से बेसख्ता सुभान अल्लाह, सुभान अल्लाह निकलता रहा ।
आपके उस्ताद ने आपसे पूछा “
अये बेटे अब्दुल क़ादिर ये तो बतलाओ ये सब तुमने कब सीखा, तुम्हे आखिर किसने सिखाया” ?
तब आपने जवाब दिया
अये उस्तादे मोहतरम जब मै अपनी माँ के शिकम मुबारक में था तो मेरी वालिदा कलाम पाक की रोज़ाना तिलावत किया करती थी मेरी माँ को 18 पारे हिफ़्ज़ थे जिसे मैं भी हमेशा सुनता था और इस तरह सुनकर 18 पारे मैंने हिफ्ज़ कर लिया“।
🌋सुभान अल्लाह। माँ के पेट मे ना सिर्फ़ आपने 18 पारे हिफ़्ज़ कर लिए बल्कि इसे रोज़ाना पढ़ा भी करते थे।
बच्चे की इस करामात को देखकर,आपके उस्ताद भी चकित रह गए, और समझ गए के ये कोई मामूली बच्चा नहीं है वैसे भी पैदाइश के बाद से सिर्फ जीलान में ही नही बल्कि दूर दूर तक आप प्रसिद्ध हो चुके थे, लिहाज़ा उस्ताद ने पहली नज़र में ही ये समझ लिया की आप अल्लाह के वली है ।
बचपन से ही फ़रिश्ते आपके साथ हमेशा रहा करते थे अपने बारे में खुद गौसे आज़म ने फ़रमाया है की
🌋“जब मैं अपने नगर के मदरसे में पढने के लिए अपने घर से तनहा निकलता था तो मैं अपने चारों ओर फरिश्तों को चलते हुए देखा करता था। जब मदरसा पहुंचता तो मैं इन्हें यह कहते हुए सुनता के
अल्लाह के वली के लिए रास्ता दीजिए ।
यहाँ तक के वे जब तक तशरीफ न रखते वो फरिश्ता अदब से खड़ा ही रहता। सुभान अल्लाह
आपने ये भी बतलाया की
रोजाना एक फरिश्ता इन्सान की शक्ल में मेरे पास आता और साथ में मदरसा ले जाता, वो फरिश्ता लड़कों को आदेश देता के मेरे लिए मजलिस और फैलाएं ।
फ़िर वो फरिश्ता भी मेरे पास ही रहता यहाँ तक कि मैं अपने घर वापस आ जाता, उस वक्त मुझे यह नहीं पता था के यह फरिश्ता है। एक दिन मैंने इससे पूछा
आप कौन हैं ? मेरे साथ क्यों रहते है ?
तो इस फ़रिश्ते ने उत्तर दिया।
मैं एक फरिश्ता हूँ, अल्लाह तआ़ला ने मुझे आपके साथ रहने के लिए भेजा है और कहा है की मैं उस वक़्त तक मदरसे में आप के साथ रहा करुँ जब तक के आप वहाँ तशरीफ फरमा हैं। सुभान अल्लाह
🌋हज़रत ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ये भी फरमाते हैं के बचपन में जब कभी मैं साथियों के साथ खेलने का इरादा करता तो ग़ैब से किसी कहने वाले की आवाज सुना करता
“ऐ बरकत वाले, तुम मेरे पास आ जाओ, तो मैं तुरंत अपनी वाल्दा की गोद में चला जाता।”
🌠हज़रत शेख मुहम्मद बिन खाइ़द अलवानी रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते है की एक बार हज़रत शेख अबदुल क़ादिर जिलानी ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ने हम से फरमाया
“बचपन में मुझे एक बार हज्ज के दिनों में जंगल की ओर जाने का इत्तेफाक हुआ और मुझे एक गाय नज़र आई फ़िर मैं उस गाय के पीछे-पीछे चलने लगा , यहाँ तक की चलते चलते जंगल की तरफ काफ़ी दूर तक निकल गया की अचानक उस गाय ने मेरी ओर मुड़कर देखा और फिर मुझसे इन्सानी ज़ुबान में बाते करने लगी और कहाः
ऐ अबदुल क़ादिर ! अल्लाह ने तुम्हें इस प्रकार के कामो के लिए तो पैदा नहीं किया है । आप वापस जाए।
उस गाय को यूँ कहते हुए सुनकर मुझे बड़ा ताजुब हुवा मैं परेशान होकर घर लौट आया ।
🌋इसी तरह आपने फ़रमाया की
मैं अपने घर की छत पर चढ़ गया तो वहां मुझे दूर दूर तक नूर ही नूर नज़र आया और फ़िर नज़रे दूर तक चली गईं हर चीज़ साफ़ साफ़ नज़र आने लगी यहां तक की मुझे अपने सामने ही मैदान ए अ़रफात साफ़ साफ़ नज़र आया । सुभान अल्लाह
ये होता है कमाल अल्लाह वालो की नज़रों का । अल्लाह उनकी नज़रों में वो तासीर अता कर देता है की हजारों लाखो मील दूर की चीजे भी उन्हें यूं नज़र आती है, मानो वो उनकी नज़रों के ठीक सामने हो ।
आज साइंस और टेक्नोलॉजी के ज़रिए हम घर बैठे ही अपने टेलीविजन पर दूर के मंज़र भी आसानी से देख सकते है । तो वे लोग ज़रा गौर करे जो वली अल्लाहो की करामतो पर यकीन नहीं करते है और शक ओ शुबहा करते है। सच तो ये है की अल्लाह अपने वली अल्लाहो के ज़रिए करामाते दिखलाता ही इसलिए है ताकि इन्सानी दिमाग इससे इबरत हासिल करे और सीखने की कोशिश करते हुऐ नई नई खोज भी कर सके।
क्रमशः …
🖊️ तालिबे इल्म:एड.शाहिद इकबाल खान, चिश्ती-अशरफी