गौस पाक को क्यों मिला ‘महबूबे सुब्हानी’ का लकब? जानें गुस्ल के पानी का राज़

हुज़ूर ग़ौसे आज़म रज़ियल्लाहु तआला अन्हु ✏️ पार्ट-6 महबूबे सुब्हानी का लकब

Ghous Pak: सरकार ग़ौसे आज़म नज़रे करम खुदारा। मेरा खाली कांसा भर दो मैं फ़कीर हूँ तुम्हारा।

झोली को मेरी भर दो वरना कहेगी दुनिया। ऐसे सखी का मंगता फिरता है मारा मारा।

ये अदाएं दस्तगीरी कोई मेरे दिल से पूछे। वहीं आ गए मदद को मैंने जब जहाँ पुकारा।




हुज़ूर गौस पाक का मकाम: महबूबे सुब्हानी का रुतबा

सरकार गौस-ए-आज़म अल्लाह के बहुत महबूब थे। इसका अंदाज़ा उनकी शान से लगाया जा सकता है। अल्लाह ने आपको सभी दर्जों से नवाज़ा है। ये दर्जे नबी और सहाबा के बाद सबसे ऊँचे हैं। इन तक पहुँचना दूसरे वली अल्लाह के लिए बहुत मुश्किल है। आप तमाम औलिया अल्लाह के पेशवा और इमाम हैं।

आपकी बुज़ुर्गी को सभी औलिया अल्लाह ने माना है। अल्लाह ने आपको इल्म-ओ-मारफ़त की दौलत दी है। यह दौलत किसी और वली अल्लाह को नहीं मिली है। अल्लाह ने आपको “महबूबे सुब्हानी” के रुतबे से नवाज़ा है। सुब्हान अल्लाह!

क़यामत तक आने वाला हर वली आपकी इमामत को मानेगा। क़ुतुब और अबदाल भी इसे तस्लीम करते रहेंगे। आप मारफ़त के आफ़ताब और रूहानियत के समन्दर हैं। आपसे बुज़ुर्गी का जो सिलसिला शुरू हुआ। उसे “क़ादरी सिलसिला” कहते हैं। सभी सिलसिले हुज़ूर गौस-ए-आज़म से ज़रूर मिलते हैं। इससे मालूम हुआ कि उनके करम के बिना। किसी की रसाई (पहुँच) मुमकिन नहीं है।

Ghous Pak: महब्बत-ए-इलाही: अल्लाह की रहमत की तरफ़ निगाह

🌹 हुज़ूर गौसुल आ’ज़म शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं:

महब्बत-ए-इलाही का तक़ाज़ा यह है कि। तू अपनी निगाहों को अल्लाह की रहमत की तरफ़ लगा दे। फ़िर किसी और की तरफ़ निगाह न हो। जब तक तू ग़ैर की तरफ़ देखता रहेगा। अल्लाह का फ़ज़्ल (दया) नहीं देख पाएगा। तू अपने नफ़्स को मिटा कर अल्लाह ही की तरफ़ मुतवज्जेह हो जा।

इस तरह तेरे दिल की आँख खुल जाएगी। यह आँख फ़ज़्ल-ए-अज़ीम की जानिब खुलेगी। तू इसकी रौशनी अपनी आँखों से महसूस करेगा। फ़िर तेरे अंदर का नूर बाहर को भी मुनव्वर कर देगा। अता-ए-इलाही से तू राहत और सुकून पाएगा।

अगर तूने नफ़्स पर ज़ुल्म किया। अगर तू सिर्फ़ दुनियादारी में ही लगा रहा। तो अल्लाह की तरफ़ से तेरी निगाह बंद हो जाएगी। तुझसे फ़ज़्ल-ए-खुदावंदी भी रुक जाएगी।

जिस हाल में अल्लाह तआला ने तुझे रखा है। उस पर हमेशा हिफ़ाज़त की दुआ कर। तू नहीं जानता कि तेरी भलाई किस चीज़ में है। चाहे वह ग़रीबी और फ़क़र-ओ-फ़ाक़ा में हो। या दौलतमंदी और तवंगरी में हो। आज़माइश में हो या आफिय्यत (शांति) में हो। अल्लाह ने तुझसे चीज़ों का इल्म छुपा कर रखा है। उन चीज़ों की भलाइयों और बुराइयों को। जानने में वह यकता (अकेला) है।

🖊 हवाला: गौसे पाक के हालात, सफा 85

इबादत और तक़वा से मिला ये मर्तबा

हुजूर गौस-ए-आज़म फ़रमाते हैं कि मुझे जो मर्तबा मिला है। वह तक़वा, तहारत, ज़ुहद और परहेज़गारी से मिला है। यह मकाम अल्लाह और रसूल अल्लाह की इताअत (आज्ञापालन) की वजह से मिला है।

गौस पाक की कठिन साधना

“अख़बरुल अख़यार” में आपने फ़रमाया:

मैं 25 साल तक इराक़ के सहरा और जंगलों में घूमता रहा। 40 साल तक फ़ज्र की नमाज़ ईशा के वज़ू से पढ़ी। फ़र्ज़ नमाज़ के वक़्त तक रोज़ाना एक क़ुरआन ख़त्म किया। मैंने 3 दिन से लेकर 40 दिन तक लगातार रोज़े रखे। न जाने कितनी ही कठिन साधना और तपस्या की। इसके बावजूद भी मैंने हुक्म-ए-इलाही के बिना। कोई भी काम नहीं किया।

Ghous Pak: वाज़-ओ-तब्लीग का हुक्म

हुजूर गौस-ए-आज़म Ghous Pak रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं:

मैंने ख़्वाब में रसूले-खुदा हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा को देखा। हज़रत अली रज़ी अल्लाहो तआला अन्हो भी साथ थे। उन्होंने मुझे ‘वअज़ और तबलीग’ का हुक्म दिया। उस वक़्त मेरे दिल में ख़याल आया कि क्या मैं यह कर पाऊँगा। क्या लोग मेरी बातों पर तवज्जो करेंगे?

तब नबी-ए-करीम और अली-ए-मुर्तुज़ा ने। मेरे दिल की हालत को पढ़ लिया। नबी-ए-करीम ने 7 मर्तबा लुआब-ए-दहन मेरे मुंह में डाला। शेर-ए-ख़ुदा हज़रत अली-ए-मुर्तजा ने 6 मर्तबा डाला। इसके बाद मुझ पर कलाम के दरवाज़े खुल गए।

सुब्हान अल्लाह

Huzoor Ghous Pak: Why He Was Called ‘Mahboob-e-Subhani’ and the Secret of Ghusl Water.

हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम के ग़ुस्ल के पानी का राज़

इस वाक़्ये से हुज़ूर ग़ौसे आज़म के मक़ाम को समझें। यह अद्भुत वाक़्या ध्यान से सुनिए।

मुफ़्ती-ए-मक्का का इम्तिहान

एक बार हुजूर गौसे आज़म दस्तगीर के पास। मुफ्ती-ए-मक्का तशरीफ़ लाए। उनका मक़सद आपसे कुछ सवालात पूछना था। उन्होंने एक के बाद एक बहुत से सवाल पूछे। हुजूर गौस पाक ने सभी सवालों का सही जवाब दिया।

जब मुफ्ती साहब सवाल पूछते-पूछते थक गए। तब हुजूर गौसे आज़म ने मुस्कुराते हुए कहा। “ऐ मोअज़्ज़िज़ मुफ़्ती साहब, क्या मैं भी आपसे एक सवाल पूछ सकता हूँ?” “और क्या आप मुझे उसका जवाब देंगे?”

मुफ़्ती साहब आपके इल्म का लोहा मान चुके थे। उन्होंने कुछ सहमते हुए हामी भर दी। आपने जो सवाल पूछा वह यह था: “ऐ मुफ्ती-ए-मक्का, आप बतलाएँ कि जिस वक़्त।” “हुजूर सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम को गुस्ल दिया जा रहा था।” “तो वह गुस्ल का पानी कहाँ गया?”

ख़्वाब में मिला जवाब

यह सुनकर मुफ्ती-ए-मक्का ख़ामोश रह गए। उन्हें इसका जवाब मालूम नहीं था। उन्होंने हुजूर गौस पाक Ghous Pak से कुछ मोहलत माँगी। फिर मुफ्ती साहब वहाँ से चले गए। उन्होंने लाइब्रेरी की सभी किताबें पढ़ लीं। मगर कहीं जवाब नहीं मिला। तमाम उल्मा-ए-किराम से भी पूछा। किसी ने भी उन्हें जवाब नहीं दिया।

फिर उन्होंने हुजूर सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम से दुआ माँगी। उन्होंने गिड़गिड़ा कर फ़रियाद की। आख़िरकार आक़ा-ए-करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी फ़रियाद सुन ली। एक रात जब मुफ्ती-ए-मक्का सो गए। उन्होंने ख़्वाब में देखा कि वह हुजूर की मजलिस में हैं। वहाँ हर तरफ़ नूर ही नूर फैला हुआ था।

मुफ़्ती साहब की क़िस्मत जगमगा उठी। आक़ा नबी-ए-करीम ने इशारों से उन्हें अपने पास बुलाया। मुफ़्ती साहब ने देखा कि हुज़ूर के बाजू में। एक नक़ाबपोश बुज़ुर्ग भी मौजूद थे। उनका सिर्फ़ आधा चेहरा ही नज़र आ रहा था।

मुफ्ती साहब ने हुजूर से वही सवाल पूछा। “या रसूल अल्लाह, जब आपको गुस्ल दिया गया।” “तो गुस्ल का पानी कहाँ गया?” हुजूर ने बाजू खड़े बुज़ुर्ग की तरफ़ इशारा किया। उन्होंने कहा कि तुम्हें इसका जवाब यह देंगे।

मुफ्ती साहब ने दो बार और हुजूर से सवाल किया। जवाब हर बार वही मिला। तब मुफ्ती साहब उस बुज़ुर्ग के पास गए। उन्होंने उनसे भी वही सवाल पूछा।

बुज़ुर्ग ने जवाब दिया: “ऐ मुफ्ती-ए-मक्का, सुनो!” “जब हुजूर को गुस्ल दिया गया।” “तो बचा हुआ पानी फ़रिश्तों ने ले लिया।” “फ़िर वे फ़रिश्ते इसे आसमान में लेकर चले गए।” “फ़रिश्तों ने अल्लाह के हुक्म से उस पानी को।” “दुनिया के अलग-अलग ख़ित्तों में गिराया।” “जहाँ जहाँ पानी के क़तरे गिरे।” “वहाँ वहाँ पर आज मस्जिदें मौजूद हैं।” “क़यामत तक भी जो मस्जिदें बनेंगी।” “वो उन्हीं जगहों पर बनाई जाएँगी।” “जहाँ पर हुज़ूर के गुस्ल के पानी के क़तरे गिरे होंगे।” सुब्हान अल्लाह!




राज़ का ख़ुलासा: जवाब देने वाले कौन थे?

जवाब मिल जाने पर मुफ्ती-ए-मक्का बहुत खुश हुए। उनकी नींद खुल गई। वह जानते थे कि हुज़ूर को ख़्वाब में देखना।

और उनसे मालूमात हासिल होना ग़लत नहीं होता। दूसरे दिन ही वह हुजूर गौसे आज़म के दरबार में आए।

गौस पाक Ghous Pak को जलाल (जलालियत) आ गया।

उन्होंने मुफ्ती-ए-मक्का से कहा: “क्या तुम्हें यह जवाब हुजूर ने दिया?”

“या फिर उनके बाजू खड़े एक बुज़ुर्ग ने दिया था? सच बतलाओ।”

उनकी बातें सुनकर मुफ्ती-ए-मक्का हैरान रह गए। वह पसीने-पसीने हो गए।

मुफ्ती साहब ने पूछा: “हुजूर, आपको यह सब कैसे पता चला?”

तब हुजूर गौस पाक ने मुफ्ती साहब से कहा।

“क्या तू जानना चाहता है कि जिसने जवाब दिया, वह कौन है?” मुफ़्ती साहब ने इशारे से गर्दन हिलाई।

मुफ़्ती साहब ने गौसे पाक Ghous Pak को ग़ौर से देखा। उन्हें अब समझ आया कि ख़्वाब वाले बुज़ुर्ग।

हूबहू हुजूर ग़ौसे आज़म की तरह ही थे।

यह देख कर हुजूर गौस पाक मुस्कुराए और कहा: “ऐ मुफ्ती-ए-मक्का, हुजूर के हुक्म से वह जवाब।”

“मैंने ही तुझे दिया था।”

सुब्हान अल्लाह!

यह बयान ख़ुद बग़दाद शरीफ़ के ख़ादिम। हुज़ूर क़िबला गिलानी साहब ने बतलाया है।

वह हुजूर गौसे आज़म के खानदान से वाबस्ता हैं।

तो ज़रा सोचिए, क्या ख़ूब मक़ाम है। पीराने पीर हुज़ूर ग़ौसे आज़म का।

उनकी रसाई अल्लाह और अल्लाह के महबूब तक है। सुब्हान अल्लाह!

गौस पाक के नाम वो नाम ये हैं (ghous pak ke 11 naam)

पाकी की हालत मे अव्वल आखिर 11 -11 बार दुरुद शरीफ पढ़ कर सीने मे दम करे, चाहे तो पानी मे, खजूर मे या किसी भी पाकीज़ा चीज़ मे पढ़ कर उस चीज़ को खाने-पीने से हर एक मुसीबतो से हिफाज़त होती है, हर मर्ज दूर होते है।

रोज़ी में बरकत होती है । सुभान अल्लाह।

Ghous Pak: वो नाम ए मुबारक ये है

  1. या सैय्यद मोहय्युद्दीनि अमीरुल्लाहि
  2. या शैख़ मोहय्युद्दीनि फज़लुल्लाहि
  3. या औलियाओ मोहय्युद्दीनि अमानुल्लाहि
  4. या मौलाना मोहय्युद्दीनि नूररुल्लाहि
  5. या ग़ौस मोहय्युद्दीनि कुतूबुल्लाहि
  6. या सुल्तान मोहय्युद्दीनि सैफुल्लाहि
  7. या ख़्वाजा मोहय्युद्दीनि फ़रमानुल्लाहि
  8. या मखदूम मोहय्युद्दीनि बुरहानुल्लाहि
  9. या दरवेश मोहय्युद्दीनि अमानुल्लाहि
  10. या मिसकीन मोहय्युद्दीनि कुद्सुल्लाहि
  11. या फ़कीर मोहय्युद्दीनि शाहिदुल्लाहि

🖊 तालिबे इल्म: एड. शाहिद इक़बाल ख़ान, चिश्ती-अशरफी




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हुज़ूर ग़ौसे आज़म “रज़ियल्लाहु तआला अन्हु” बचपन के वाक्यात पार्ट-2

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