Religion

ज़िक्र ए शोहदाए कर्बला✒️ पार्ट-2

दीं पनाह अस्त हुसैन
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जिनके सदके में बख्शे जाएंगे
वो घराना मेरे हुसैन का है*

ताजदारे अम्बिया हुज़ूर मोहम्मद ﷺ‎ तमाम नबियो और रसूलो से आला वो अफज़ल है। आप आख़री नबी वो रसूल है जिनके आने का जिक्र आपसे पहले आने वाले तमाम नबियो रसूलो ने अपनी अपनी उम्मत से कर दिया था । मुक़द्दस कुरआन की आयत सूरए अनआम, सूरए फुरकान, सूरए अहज़ाब, और सूरए सबा में भी अल्लाह ने पैगंबर मोहम्मद ﷺ‎ को तमाम नबियो और रसूलो से अफज़ल बतलाया है I मुकद्दस कुरआन में कई जगह आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तमाम उम्म्त का नबी होने का जिक्र किया गया है । आपका अदब और एहतराम करना ईमान की शर्त है। उन्हें अपने जैसा समझने वाला कभी मोमिन हों ही नही सकता।

खुल्फा ए राशिदीन” का दौर

हजरत अबूबक्र सिद्दीक रज़िअल्लाहु अन्हु

आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद 30 सालों तक “खुल्फा ए राशिदीन” का दौर रहा, जिसे खिलाफते राशिदह भी कहा जाता है । हजरत अबूबक्र सिद्दीक रज़िअल्लाहु अन्हु इस्लाम के पहले खलीफा हुए, जो तक़रीबन 2 सालो तक खलीफा रहे I आपकी बेटी हजरत आयशा रज़िअल्लहु तआला अन्हुमा से नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने निकाह किया जो की माँ साहिबा हजरते खदिजतुल कुबरा रज़िअल्लहुअन्हुमा के इन्तेकाल के बाद हुवा था। और इस तरह हजरत अबूबक्र सिद्दीक रज़िअल्लहु तआला अन्ह आपके ससुर भी है और बेहद करीबी दोस्त भी। आप हर क़दम पर नबी ए करीम के साथ रहे. आपके समय तक इस्लाम मज़हब की बुनियादे इराक, ईरान, सीरिया, फिलिस्तीन तक मजबूत हो चुकी थी ।
फारुखे आज़म, हजरत उमररज़िअल्लाहु अन्हु__

हजरत अबूबक्र सिद्दीक के बाद हजरत उमर फारुख इस्लाम के दूसरे खलीफा बने,जो मक्का के बहोत बहादुर और जांबाज़ हस्ती थे, जिनका दबदबा सारे मक्का में था। जब आपने इस्लाम कुबूल नहीं किया था यानि इस्लाम की मुखालिफत मे थे और जब उन्होंने सुना की उनकी बहन ने इस्लाम मज़हब अपना लिया है तो वे बेहद खफा हुवे, यहां तक की गुस्से में अपनी बहन को क़त्ल तक करने का इरादा कर लिया मगर जब आप बहन के घर पहुंचे तो देखा की उनकी बहन कुरान की तिलावत कर रही है,जिसे सुनकर उनका गुस्सा काफुर हो गया और ना सिर्फ उनका इरादा बदल गया बल्कि उनका दिल भी बदल गया।उन्होंने अपनी बहन से दोबारा कुरान सुना और इतने अधिक प्रभावित हुवे की उनके मुख से बरबस ही निकल पड़ा सुभान अल्लाह। ये किसी इंसान का कलाम हो ही नही सकता बेशक ये रब का कलाम है। और इस तरह आप नबी ए करीम से मिलने बेताब हो उठे और जब मिले तो दिल की कैफियत पूरी तरह बदल चुकी थी इस तरह हज़रत उमर भी दाखिले इस्लाम हो गए । उनका इस्लाम लाना मक्के में बहोत बड़ी बात थी, जिसकी वजह से मक्के में खलबली मच गई मगर उमर की तलवार का खौफ इतना था की उनसे लड़ने की हिम्मत किसी में नहीं थी I

इधर एक तरफ़ हजरत अली करम अल्लाहु तआला वजहुल करीम जैसे जाबांज शेर थे, तो दूसरी तरफ अब हजरत उमर रज़िअल्लहु तआला अन्ह जैसे बहादुर और निडर सूरमा भी थे जिनकी वजह से इस्लाम को ताक़त मिली । जिसे देखकर दुश्मनाने इस्लाम तिलमिला गए और वे हर कदम पर षड्यंत्र रचते रहे और इस्लाम का वर्चस्व ख़त्म करने के इरादे से बहुत सी जंग भी लड़ी गई । मगर अल्लाह की मदद से मुसलमानों को हर क़दम पर कामयाबी मिलती चली गई । उस दौर में भी मुखालिफीन बहुत थे, बहुत से ऐसे भी थे जिन्होंने इस्लाम अपना भी लिया था मगर उनके दिलों में हसद, बुग्ज़ भी मौजूद होने की वजह से साजिशें रची जाकर षण्यंत्र किए जाने लगे और इन्ही साजिशो के तहत दुश्मनों ने मौका पाकर फारुखे आज़म, हजरत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया ।
(इन्नालिल्लाहे व इन्नाइलैहे राजेउन)

हजरत उस्मान ग़नी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु

फारुखे आज़म, हजरत उमर रज़िअल्लाहु अन्हु के बाद हजरत उस्मान ग़नी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु इस्लाम के तीसरे खलीफा बने जो अपनी सखावत के लिए मशहूर थे, आप का लकब ‘जुन्नुरैन’ है, जिसका मायने है दो नूर वाले, आपके साथ नबी ए करिमैन सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम की दो दो बेटियों ‘हज़रते रुकैय्या रदिअल्लाहुताला अन्हुमा, और ‘हज़रते सैय्यदा उम्मे कुलसुम रदिअल्लाहुताला अन्हुमा’ का निकाह हुवा था । इस तरह आप पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद रसूलल्लाह सल्सल्लाहो अलैहे वसल्लम के दामाद भी है । आपका एक और लकब ‘गनी’ भी है । आपने ‘जंगे तबुक’ के मौके पर एक हज़ार ऊंट साजो सामान के साथ और हजारो दीनार का नजराना इस्लाम के लिए बतौर सदका पेश किया और एक मौके पर आपने “कुआं बेरे रुमा” जिसका मालिक यहूदी था से खरीद कर मुसलमानों के लिए मीठा पानी वक्फ किया । जो आज भी मौजूद है। सन 644 से 656 तक आप खलीफा रहे।

एक बार जब नबी ए करीम अपने साथियों यानि हजरत अबुबक्र, उमर फारुख और उस्मान गनी रज़ीअल्लाह तआला अन्हू के साथ ‘उहद पहाड़’ में मौजूद थे तभी पहाड़ हिलने लगा तब नबी ए करीम ने पहाड़ से कहा ए पहाड़ रुक जा हिलना बंद कर दे क्योकि इस वक्त इस “गार” में एक नबी एक सिद्दीक और दो शहीद आराम कर रहे है और उस पहाड़ ने फ़ौरन हुक्म माना और हिलना बंद कर दिया। इस तरह ‘हजरत उस्मान गनी’ और ‘हज़रत उमर फारुख’ रज़ीअल्लाह तआला अन्हू को पहले ही से पता था के वे शहीद होंगे I जिस पर बजाय रंजीदा होने के वे काफी खुश थे, ये वो लोग है, जिनके जन्नती होने का एलान न सिर्फ आका नबी ए करीम ने किया है, बल्कि खुद रब्बुल आलामीन ने भी उन्हें जन्नती कहा है, और इस तरह अहले इस्लाम के खुल्फ़ाए राशदीन” हजरते उस्मान ग़नी रज़ी अल्लाह तआला अन्हु को भी उनके दुश्मनों ने शहीद कर दिया ।
(इन्नालिल्लाहे व इन्नाइलैहे राजेउन)

‘हज़रत इमामे अली मुर्तजा करमअल्लाहु तआला वजहुल करीम’ है

इस्लाम के चौथे खलीफा ‘हज़रत इमामे अली मुर्तजा करमअल्लाहु तआला वजहुल करीम’ है I
‘हजरत अली हैदर’ बिन ‘अबू तालिब’ नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के चचाजात भाई है । आपकी अज़मत का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं की आपकी पैदाइश ‘खाना ए काबा’ के अन्दर हुई, सुभान अल्लाह ..। वो काबा जिसे खुदा का घर कहा जाता है जहाँ लाखो लोग तवाफ़ करते है उस मुकद्दस काबे में अली के सिवाय ना कोई पैदा हुआ और ना कभी हो सकेगा ।

हज़रत अली करमअल्लाहु तआला वजहुल करीम की पैदाइश का वाकया किसी मोजज़े से कम नहीं है । दुनिया वालों ने देखा की जब आप पैदा हुए तो आपने अपनी आंखे नहीं खोली। यहां तक की आप काबे शरीफ से घर पर आ गए । सभी आपको देखने आते मगर अली ने फ़िर भी आंखे नहीं खोली। सभी को फिक्र होने लगी कि बच्चा आंखे क्यों नहीं खोल रहा है। यह खबर हर तरफ तेजी से फैल गई । लोग यहां तक बातें करने लगे की कहीं बच्चा नाबीना तो नहीं है । आपकी पैदाइश की खबर नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम के पास भी पहुंची तो आपका दिल अली से मिलने को बेताब हो उठा । चेहरा खुशी से खिल उठा और वह अपने भतीजे को देखने चचा अबू तालिब के घर तशरीफ़ लाएं तो देखा चचा अबू तालिब के चेहरे पर खुशी तो है मगर पेशानी पर शिकन भी नजर आ रही है । मालूम हुआ की बच्चा तो बेहद खूबसूरत है चेहरा इतना ज़्यादा नूरानी है की जो कोई देखता तो बस देखता ही रह जाता । अली के नूरानी चेहरे से किसी की नजर ही नहीं हटती । मगर देखने वाले यह भी देखते की बच्चे की आंखे बंद है । फिर जब नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम अली को देखने तशरीफ़ लाते हैं तो उस बच्चे को यानी हजरत ए अली को आका नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम की गोद में डाला जाता है तो सभी यह देखकर हैरान रह जाते है की नबी ए करीम की गोद में आते ही इस बच्चे ने आंखें खोल दी और और इस तरह अली ने जब आंखे खोली तो नबी ए करीम का सबसे पहले दीदार किया ।
आका ए करीम को देखकर बच्चा खुशी से मुस्कुराते हुए मचल उठता है । लोगों ने देखा की नबी ए करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने अपने प्यारे भतीजे को मोहब्बत और शफक्कत का ऐसा मीठा जाम पिलाया की उस बच्चे के होठों से बेसाख्ता कलमा ए तैय्यबा का विर्द होता सा नज़र आने लगा। सुभान अल्लाह I
हजरत अली करम अल्लाहु तआला वजहुल करीम की ज़िंदगी का ज़्यादातर लम्हा रसूले अकरम के साथ ही गुज़रा । बच्चो मे सबसे पहले ईमान लाने वालो मे हज़रत अली का नाम सबसे पहले आता है ।
जब आप बड़े हुवे तो नबी ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने अपनी प्यारी शहज़ादी खातूने जन्नत ‘हज़रते सैय्यदा फातिमाज्ज़हरा रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा’ का निकाह हज़रत अली से किया । और इस तरह आप रसूल अल्लाह ﷺ‎ के दामाद भी है ।
हज़रत अली जो ‘इमाम ए हसन और इमाम ए हुसैन’ के वालिद है।
हजरत अली करमअल्लाहु तआला वजहुल करीम की शुजाअत, बहादुरी, हिम्मत और ताकत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की ‘जंगे खैबर’ में आपने खैबर के बेहद मजबूत दरवाज़े को न सिर्फ उखाड़ दिया बल्कि उसे ढाल बनाकर दुश्मनों से जंग भी की जिसके बारे में प्रसिद्ध इतिहासकार “रिप्ले” लिखते हैं कि आखिर किसी इंसान में इतनी ताकत भला कैसे हो सकती है कि वह उस दरवाजे को जिसे दर्जनों आदमी मिलकर भी ना तोड़ सके उसे अली ने अकेले ही उखाड़ दिया था वह आगे लिखते हैं निसंदेह उनसे ज्यादा ताकतवर कोई हो ही नहीं सकता है। जब अली से पूछा गया की ‘ अए अली आप तो रूखा सूखा खाते हो कई कई दिन फाके करते हो फिर तुममे इतनी ताकत भला कैसे है, तो आपने जवाब दिया ये ताकत तो मेरे रब की अता की हुई और मेरे नबी की ताकत है ।
जब नबी ए करीम ﷺ‎ को मक्का ए हिजरत कर मदीने शरीफ जाने का हुक्म अल्लाह ने दिया तो आक़ा ए करीम ﷺ‎ ने हजरत अली से कहा की वे मक्के में हीं रहे और जिन लोगो की अमानते उनके पास थी उन्हें वापस करने के बाद वे भी पीछे पीछे मदीने शरीफ आ जाएं। उस रात हमलावर के आने की खबर सुनने के बावजूद आप नबी ए करीम के बिस्तर पर इत्मीनान से चादर ओढ़ कर सोए जिसके बारे में हजरत अली फरमाते हैं कि उस रात मैं इत्मीनान से चैन की नींद सोया क्योंकि मेरे नबी ने मुझसे कहा था कि मुझे मदीने शरीफ पहुंचना है तो मुझे पता था की कुफ़्फ़ारे मक्का मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते है ।

आप हर जंग में नबी ए करीम ﷺ‎ के साथ साए की तरह साथ रहकर न सिर्फ उनकी हिफाज़त की बल्कि दुश्मनों पर जब उनकी तलवार चलती तो हर तरफ सिर्फ लाशे ही लाशे नज़र आती थी । अली के नाम का ऐसा खौफ था की दुश्मन के हौसले तो सिर्फ़ उनका नाम सुनकर ही पस्त हो जाते थे । हजरत अली उस शेर का नाम है जिसे आक़ा ए करीम ﷺ‎ ने भी ‘शेरे खुदा’ कहा है I
दुश्मन हर वक्त मंसूबे बनाया करते थे की किस तरह इन्हें क़त्ल किया जाये I हजरत अली को भी मालूम था की उन्हें भी शहीद किया जाएगा क्योकि ये बात पहले ही नबी ए करीम ﷺ‎ से उन्हें मालूम हो चुकी थी । एक मर्तबा हज़रत ए अली काफी गुमसुम थे, आपसे नबी ए करीम ﷺ‎ ने पूछा ‘ ए अली किस फिक्र मे हो । हज़रत अली ने जवाब दिया ‘या रसूल अल्लाह मैंने हमेशा चाहा की मुझे भी शहीद का दर्जा मिले । क्या मेरी ये ख़्वाहिश पूरी हो सकती है । नबी ए करीम ﷺ‎ ने जब ये फ़रमाया की ‘ए अली फिक्र न करो अल्लाह तुम्हें भी शहीद का मर्तबा अता करेगा, जिसे सुनकर हज़रते अली की खुशी की कोई इंतेहा नहीं रही । हज़रत अली ए मुर्तुजा ने अपने दोनों बेटो ‘इमाम ए हसन’ और ‘इमाम ए हुसैन’ को भी यही तालीम दी थी की बेटा इस्लाम का परचम बुलंद करने के लिए दुश्मनों का सामना करते हुए अगर तुम्हे शहीद भी होना पड़े तो कभी पीछे मत हटना I

और फिर आखिरकार हजरत अली को जिसका इंतज़ार था वो दिन भी आ गया । 19 रमजान को सुबह नमाज़ के वक्त मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ते वक़्त आपको शहीद कर दिया गया I (इन्नालिल्लाहे व इन्ना इलैहि राजेउन)

क्रमशः ……

🖊️तालिबे इल्म : एड. शाहिद इक़बाल ख़ान,चिश्ती- अशरफी

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