क्या आप जानते हैं कि दुनिया भर के लगभग 4.4 अरब लोग असुरक्षित पानी पीते हैं।
यह आंकड़े पहले के अनुमानों से लगभग दुगनी है। अनुमानों में अंतर का कारण संभवत: परिभाषाओं में है और सवाल यह है कि किस अनुमान को यथार्थ का आईना माना जाए हालांकि कोई भी आंकड़ा सही हो, देखा जाए तो स्थिति बेहद चिंताजनक है।
दरअसल, राष्ट्र संघ 2015 से इस बात का आकलन करता आया है कि कितने लोगों को सुरक्षित ढंग से प्रबंधित पेयजल उपलब्ध है। इससे पहले राष्ट्र संघ सिर्फ इस बात की रिपोर्ट देता था कि क्या वैश्विक जल स्रोत उन्नत हुए हैं। इसका मतलब शायद इतना ही था कि क्या पेयजल के स्रोतों को कुओं, पाइपों और वर्षाजल संग्रह जैसे तरीकों से बाहरी अपमिश्रण से बचाने की व्यवस्था की गई है।
इस मानक के आधार पर लगता था कि दुनिया की 90 प्रतिशत आबादी के लिए ठीक-ठाक पेयजल की व्यवस्था है। लेकिन इसमें इस बात को लेकर जानकारी ना के बराबर होती थी कि क्या जो पानी मिल रहा है वह सचमुच स्वच्छ है।
2015 में ऱाष्ट्र संघ ने टिकाऊ विकास के लक्ष्य (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स) निर्धारित किए थे। इनमें से एक लक्ष्य था वर्ष 2030 तक “सबके लिए स्वच्छ व किफायती पेयजल की सार्वभौमिक तथा समतामूलक पहुंच सुनिश्चित करना।
राष्ट्र संघ ने इसी के साथ सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल स्रोतों के मापदंडों को भी फिर से निर्धारित किया: जल स्रोत बेहतर होने चाहिए, लगातार उपलब्ध होने चाहिए, व्यक्ति के निवास स्थान पर पहुंच में होने चाहिए और संदूषण-मुक्त होने चाहिए।
जॉइन्ट मॉनीटरिंग प्रोग्राम फॉर वॉटर सप्लाई, सेनिटेशन एंड हायजीन (जेएमपी) के अनुसार
इस नई परिभाषा को लेकर जॉइन्ट मॉनीटरिंग प्रोग्राम फॉर वॉटर सप्लाई, सेनिटेशन एंड हायजीन (जेएमपी) ने 2020 में अनुमान लगाया था कि दुनिया भर में ऐसे 2.2 अरब लोग हैं जिन्हें स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है।
जेएमपी विश्व स्वास्थ्य संगठन और युनिसेफ का संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रम है। इस अनुमान तक पहुंचने के लिए कार्यक्रम ने देशों की जनगणना, नियामक संस्थाओं व सेवा प्रदाताओं की रिपोर्ट्स और पारिवारिक सर्वेक्षणों से प्राप्त आंकड़ों को आधार बनाया था।
लेकिन जेएमपी का तरीका स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वेटिक साइंस एंड टेक्नॉलॉजी की शोधकर्ता एस्थर ग्रीनवुड के तरीके से अलग था। जेएमपी ने किसी भी स्थान की स्थिति के आकलन के लिए चार में से कम से कम तीन मापदंडों को देखा था और फिर सबसे कम मूल्य को उस स्थान के पेयजल की समग्र गुणवत्ता का द्योतक माना था।
वैश्विक आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वच्छ पेयजल की बुनियादी सुविधा उपलब्ध नहीं
उदाहरण के लिए, यदि किसी शहर के लिए इस बाबत कोई डैटा नहीं है कि क्या जल स्रोत लगातार उपलब्ध हैं लेकिन यह पता है कि वहां की 40 प्रतिशत आबादी को साफ पानी उपलब्ध है, 50 प्रतिशत के पास उन्नत जल स्रोत हैं और 20 प्रतिशत को घर पर ही पानी पहुंच में है तो जेएमपी का आकलन होगा कि उस शहर में 20 प्रतिशत लोगों को सुरक्षित ढंग से प्रबंधित पेयजल मिलता है। इसके बाद इस आंकड़े से सरल गणितीय तरीके का उपयोग करके पूरे देश के बारे में आकलन कर लिया जाता था।
दूसरी ओर, साइंस में प्रकाशित अध्ययन में 27 निम्न व मध्यम आमदनी वाले देशों में 2016 से 2020 के बीच किए गए सर्वेक्षणों को आधार बनाया गया है। इन सर्वेक्षणों में उन्हीं चार मापदंडों का इस्तेमाल करते हुए 64,723 परिवारों से जानकारी जुटाई गई थी। यदि किस परिवार के संदर्भ में 4 में से एक भी मापदंड पूरा नहीं होता था तो माना गया कि उसे स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है।
इसके बाद टीम ने एक मशीन लर्निंग एल्गोरिद्म को प्रशिक्षित किया व कई अन्य क्षेत्रीय कारक (औसत तापमान, जलवैज्ञानिक हालात, भूसंरचना और आबादी के घनत्व) भी जोड़े। इस आधार पर उनका अनुमान है कि दुनिया में 4.4 अरब लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। और इनमें से भी आधे लोग जो पानी पीते हैं उसमें रोगजनक बैक्टीरिया ई. कोली पाया जाता है।
वैसे यह तय करना मुश्किल है कि इनमें से कौन-सा यथार्थ के ज़्यादा करीब है लेकिन इतना स्पष्ट है कि वैश्विक आबादी के एक बड़े हिस्से को स्वच्छ पेयजल जैसी बुनियादी सुविधा भी उपलब्ध नहीं है।