Religion

हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह पार्ट-4

🪻 स वा ने ह – उ म री🪻
🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹

आपने पढ़ा की जब हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह का दिल अपने पीरो ओ मुर्शिद से मिलने को बेचैन हो उठा तो आप अपने मुर्शीद से मिलने मुल्के सिमनान से मुल्के हिन्द की जानिब तवील सफ़र पर निकल पड़े और मुल्के हिन्द मे जब आपकी मुलाकात अपने मुरशिद से हुई तो आप बेहद खुश हुए। आपके पीरो मुर्शीद भी आपसे मिलकर बेहद खुश हुए। इस तरह आप कुछ दिन मुर्शीद के साथ ही रहे। अब इससे आगे के वाक़्यात समाद फरमाए

एक रोज़ जब हज़रत सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह अपने कमरे में थे तो आपके मुर्शीद आपके पास तशरीफ़ लाए। उस वक्त आप अपनी कमरबंद बांध रहे थे। आपके पीरो मु र्शिद ने फ़रमाया

बेटे कमरबंद हमेशा मजबूती से बांधे रखना।

आप अपने मुरशिद का इशारा समझ गए और आपने ता उम्र शादी नही करने का फैसला कर लिया ।

आपका दिल आका नबी ए करीम से मिलने बेचैन हो उठा। और जब हज का महीना क़रीब आया तो आप हज्जे बैतुल्लाह के सफ़र पर रवाना हो गए I

इस बार आप मक्का, मदीना, के सफ़र के बाद इराक़, नजफ़, तुर्की, दमिश्क, बगदाद, और सिमनान से होते हुवे दिल्ली के रास्ते रूहाबाद (किछौछाशरीफ) पहुंचे ।

हजरत नूरुल ऐन को साथ लाकर बेटे की तरह तरबियत की

सफ़र मे आप अपनी खालाजात बहन से मिलने उनके घर भी गए। और जब आपने अपने भांजे ” हजरत नूरुल ऐन “को देखा तो मस्त नज़रों के जाम ने नूरुल एन पर एसी कैफियत और असर पैदा कर दिया की आपके भांजे का दिल फ़िर और कही न लग सका ।

आप भी अपने इस भांजे से बेहद मोहब्बत करते थे, लिहाज़ा आपने अपनी बहन से इजाज़त लेकर अपने चहेते भांजे को अपने साथ लेकर किछौछा शरीफ वापस आ गए I

आपने खुद अपने इस चहेते भांजे की तरबियत वो तालीम अपने बेटे की तरह ही की उस वक़्त एक शेर भी आपकी ज़ुबाने मुबारक से निकला जिसका तर्जुमा ये है

“मैंने अपनी आँखों के नूर से क्या नूर देखा है, जो मेरी आँखों का नूर बन गया है “

और उसी दिन से आपका ख़िताब “नूरुल ऐन” हो गया। सुभानअल्लाह I

🌹“हुजुर मख्दूमे अशरफ सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह को“जहाँगीर” का लकब किस तरह मिला आपने पढा ही है । अब अब ज़रा ये भी जान ले की
आपको “महबूबे यज़दानी” का लकब भी किस तरह से मिला?

इसका जवाब आपको हयाते गौसुल आलम सफा न.-85 में मिल जाएगा ।

आपको महबूब ए यज़दानी क्यों कहा जाता है और आपको यह खिताब किस तरह से किसने अता किया था? आइए जरा इसे समाद फरमाये ।

माहे रमज़ानुल मुबारक की 27 वी मुकद्दस शब, जो आक़ा ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान के मुताबिक मुमकिन शब ए कद्र हो सकती है जिसकी रहमतों और बरकतों के बारे में अल्लाह ने फरमाया है कि

तुम क्या जानो कि शबे कद्र क्या है । इस शब् में की गई इबादत का सवाब हजार महीनों की इबादत से अफ़ज़ल होता है ।

🌹इसी मुकद्द्स शब को एक ग़ैबी आवाज़ के ज़रिये रब तआला ने अपने इस महबूब बन्दे को “महबूब ए यजदानी” का खिताब अता किया था।

इस ग़ैबी आवाज़ की सदाए ज़मीनों – आसमान में गूंज रही थी, अगरचे की ये आवाज़ अगर कछौछा वालो ने सुनी तो यही आवाज़ मक्के वालो ने भी सुनी। सुभानअल्लाह I

🌹आपकी बेशुमार करामातो में से एक खास करामत ये भी थी की आप रहते तो किछौछा शरीफ में थे मगर फज़र की नमाज़ रोज़ाना मक्काए मोअज्ज़मा में पढ़ा करते थे, और उस शब् भी यानि ” शबे कद्र” में भी आप मक्के शरीफ़ में नमाज़ पढ़े थे, उस रोज़ नमाज़े फज्र के वक्त मक्के में हज़रत शेख नजमुद्दीन अस्फ़हानी रहमतुल्लाह अलैह भी मौजूद थे, उन्होंने भी ये गैबी आवाज़ सुनी और आपको देखते ही उन्होंने फ़रमाया

🌲 “ महबूबे यजदानी “ आपको ये खुदावन्दी ख़िताब मुबारक हो I

उस वक्त 500 मशाएख ए कराम भी हरम शरीफ में मौजूद थे, सब ने हज़रत मखदूम पाक को इस गैबी ख़िताब पर मुबारकबाद दी थी I सुभानअल्लाह

उसके बाद हज़रत मखदूम पाक जहाँ तशरीफ़ ले जाते मशाएख ए कराम आपको “महबूबे यजदानी” कहकर पुकारते सिर्फ़ ज़मीन में ही नहीं बल्कि आसमान से भी यही आवाज़े सुनाई देने लगी I तमाम मलायक, फरिश्तो ने भी आपको मुबारकबाद दी I

यूँ लगा जैसे रब तआला आज खुद फरमा रहा है “ अए मख्दूमे अशरफ “महबूबे यजदानी” आप सारी दुनिया वालो के ही नहीं बल्कि मेरे भी महबूब हो, लिहाज़ा मैंने ये लकब “महबूबे यजदानी” अता कर सारे जहां वालो को ये बतला दिया है की अशरफे सिमना मेरा महबूब है I

और इस तरह आपके मुबारक नाम का परचम फर्श से लेकर अर्श तक लहराने लगा.. सुभानअल्लाह I

🌲अल्लाह ने जिसे अपना दोस्त बनाया वह वली अल्लाह कहलाया । इनमें से कुछ वली अल्लाहो को अल्लाह ने अपना मेहबूब ज़ाहिरी तौर पर एलान भी किया है ताकि दुनिया उनकी अज़मतो को अच्छी तरह से जान ले, और कभी भूले से भी उनकी शान में किसी किस्म की कोई गुस्ताखी न करे, क्योकि अपने इन महबूब बन्दों की तौहीन खुद रब्बुल आलामीन को भी कभी मंज़ूर नही है तो जो लोग वली अल्लाहो की तोहीन करते हैं उन्हें अल्लाह के ग़ज़ब का इल्म ही नहीं है अगर होता तो शायद वे अल्लाह वालों की तोहीन कभी ना करते । वे लोग जरा इस वाक्ये पर गौर ओ फिक्र करें।

“अली कलंदर का मशहूर वाक्या”

🌹एक मर्तबा “हुजुर मख्दूमे सिमना” की बारगाह में एक कलंदर आया जिसका नाम “अली कलंदर” था, उसके साथ 500 कफ़न पोश कलंदर भी साथ थे I उस कलंदर ने “हुजुर अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह” की शान में बहोत गुस्ताखिया की और आपसे सवाल किया

आपने जहाँगीरी कहा से पायी ?

हज़रत सैय्यद मखदूमें सिमना ने फरमाया

“अपने पीर से“

इस पर उस कलंदर ने फिर सवाल किया

“इसका सुबूत क्या है ? क्या कोई गवाह है ?

इस तरह के ना जाने कितने ही ऊल जलूल सवाल पूछ कर उसने आपको रुसवा करना चाहा । आपको जलाल आ गया और आपने फ़रमाया

“सुबूत मांगता है।

सबूत यही है की

मै जहाँगीर भी हूँ और जाँ(न)गीर भी हूँ I

इतना सुनते ही वो कलंदर ज़मीन पर गिरा और वही दम तोड़ दिया I उसके साथी कलंदर तौबा कर के आपके कदमों में गिर पड़े और फ़िर वो आपके मुरीदो में शामिल हो गए

(सैयरुल अखियार)

जिन्हें अल्लाह ने अपना महबूब बनाया हो उनकी तौहीन कभी भी किसी को नहीं करनी चाहिए I

“हुजुर गौसे आज़म” सैय्यद शेख अब्दुल कादिर जीलानी रजि अल्लाह तआला अन्हु को भी अल्लाह ने “महबूबे सुबहानी” कहा, जिनकी तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पड़ जाए

👉 वो गौसे आज़म

जिनकी तारीफ खुद अल्लाह करता हो I

👉 वो गौसे आज़म

जो भूखे-प्यासे रहे तो खुद बारी तआला उन्हें कसमे दे देकर खिलाता और पिलाता हो।

👉 वो गौसे आज़म

जिनके तलवों को औलिया भी चूमते हो।

👉 वो गौसे आज़म

जिनकी नज़र यदि किसी चोर पर भी पड़ जाये तो वो अपने वक्त का गौस ओ क़ुतुब बन जाता हो ।

उस गौसे आज़म की “शान ए विलायत” और अजमतो का क्या कहना ..सुभानअल्लाह I

इसी तरह से “हज़रत निजामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलेह” को भी अल्लाह ने “महबूबे इलाही” के लकब से नवाज़ा I

और जिसने महबूबे इलाही से निस्बत रखी और उनसे मोहब्बत की उसे भी महबूबे इलाही ने कहाँ से कहाँ पंहुचा दिया यह कोई हजरत अमीर खुसरो से पूछे I

🌲एक बार “महबूबे इलाही” के रूखे अनवर पर चादर थी, तभी आपके चहेते मुरीद अमीर ख़ुसरो आपके करीब आये और जब उनके मुर्शिद ने जब चादर हटाई तो अमीर खुसरो उनके रूखे अनवर को निहायत अदब और मोहब्बत से तकते रहे I और दिल में ख्याल आया की जब मेरे यार की सूरत ऐसी है तो फिर भला उनके यार की सूरत कैसी होगी ? महबूबे इलाही ने खुसरो के दिल की बात सुन ली और कहा ” अये ख़ुसरो तू मेर यार के जलवो का मुन्तजिर है ? आपने गर्दन हाँ में हिलाई I तब महबूबे इलाही ने उनसे कहा “ अये खुसरो आ इस चादर में आ जा, तुझे मै अपने यार के जलवो की झलक दिखाता हूँ “I जब आमिर ख़ुसरो चादर में गए तो उन्हें यूँ लगा जैसे उनका जिस्म हल्का होकर हवा में ऊपर उठता चला जा रहा हो, यहाँ तक की एक आसमान से दूसरे आसमान से होता हुवा काफी बलंदी पर पहुच गया जहाँ हर तरफ नूर ही नूर था I और इन नूरी जलवो का दीदार कर लेने के बाद पल में ही वो वापस उसी चादर में आ गए ..सुभानअल्लाह I

💡 ये होती है अल्लाह वालो से निस्बत और मोहब्बत का असर जो चाहे तो पल भर में अपने यार के जलवो का दीदार तक अपने चाहने वालो को करा सकते है I

और अब मै ज़िक्र करना चाहूँगा अल्लाह के उस महबूब का जिन्होंने हिंदुस्तान में आकर हम गुनाहगारो को ईमान का जलवा दिखला कर हमे मुसलमान बनाया। जिन्होंने हम गरीबों को इतना नवाजा की हमारी क़िस्मत ही बदल डाली । कुर्बान जाइए मेरे हुजुर ख्वाजा ग़रीब नवाज रहमतुल्लाह अलेह की अज़मत पर जिन्हें अल्लाह के सबसे ज़्यादा महबूब अंबिया, यानी हम सब के आका ओ मौला जनाबे मोहम्मदुर रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम ने अपना महबूब कहा और उस रब्बुल आलामीन ने भी जिनके माथे पर तहरीर लिख कर एलान कर दिया की

“ ये मेरा महबूब है “

वो गरीब नवाज़ जो सारे हिन्द वालो के रहबर है।वो शहेंशाह हिंदल वली जिनकी हुकूमत हिन्द के सभी लोगो के दिलो पर हो । उन्हें अपना महबूब बना लेने से, उनके हो जाने से बढ़कर हमारे लिए कोई और नेमत नहीं है ।

अगर इसके बावजूद भी हमारे मुल्क का कोई मुसलमान इन वलीअल्लाहो की “शान ए विलायत” और मर्तबे को नहीं समझ सका, और उनकी ताजिम नहीं करता है, बल्कि बे अदबी करता है तो फिर उससे बड़ा जाहिल और बेअदब शख्स कोई और हो ही नहीं सकता है ।

नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने भी जब कुरान पढ़ने और इस पर अमल करने कहा तो यह भी फरमा दिया था कि अहलेबैत का दामन भी मजबूती से थामें रखना ताकि तुम गुमराह ना हो ।

बेशक वली अल्लाह सारे ज़ाहिरी और बातिनी इल्म हासिल करके वो मिसाल कायम की है जिनकी वजह से खुद अल्लाह इन्हें अपना महबूब कहता है I

हज़रत ताजुद्दीन औलिया ने भी एक मक़ाम पर फरमाया था

तुम सिर्फ़ किताब पढ़कर इबादत करते हो और हम क़िताब वाले को देख कर इबादत करते है। तो बेशक अल्लाह वालो की शान निराली है, जिसे आसानी से हर कोई समझ नही सकता है

हज़रत अबू हुरैरा रज़िअल्लहु अन्हु से मरवी है के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया –

“इल्म एक छुपे हुवे खजाने की मानिंद है इससे उलमा ए रब्बानी (औलिया अल्लाह) के सिवा और कोई वाकिफ नहीं होता I

जब ये गुफ्तगू करते है तो उससे मगरूर इंसान के सिवा कोई और इन्कार नहीं करता।

📚(अवारिफ उलमा आरिफ़,
सफा न.693)

“सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहतुल्लाह अलैह वसल्लम”ने फ़रमाया –

“मैं मन्सबे गौसियत और कुतुबियत तक सिर्फ इबादत और रियाज़त, तकवा से ही नहीं पंहुचा हूँ बल्कि अल्लाह की मखलूक की हाजत रवाई और मख्लुके खुदा की खिदमत के ज़रिये भी अल्लाह ने ये मक़ाम अता किया है I सुभानअल्लाह..।

742-743 हिजरी में जब की “सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह की आमद पहली बार जौनपुर उत्तर प्रदेश में हुवी थी, उस वक्त जौनपुर में तुगलाकिया वंश का शासन था, और “फ़िरोज़ शाह तुगलक” वहां का बादशाह था, जो पीर, फ़क़ीर, संतो का बहोत आदर करता था I जब बादशाह को ये खबर मिली की सुल्तान शाहे सिमना उसके रियासत में तशरीफ़ लाये है, तो वो उनसे मिलने ये सोच कर पंहुचा की इतने बड़ी सल्तनत को ठोकर मारकर सुल्ताने सिमना उसके शहर में तशरीफ ला रहे है, और जब आपकी आमद हुवी तो उसने आपको सूफी -फकीराना रंग में रंगा देखा तो उसे बहोत ताज्जुब हुवा, उसने आपकी खूब आवाभगत की और फिर आपसे इल्तेजा की

हुज़ूर आप यहीं जौनपुर में रहे I मै हर तरह की आराम की चीज़े आपके लिए मुहैय्या करवा दूंगा, आपकी जहाँ तक नज़रे जाएगी वहां तक की ज़मीन आपके नाम कर दूंगा I

आपने बादशाह से फरमाया की उन्हें अब ज़र ओ ज़मीन की कोई ज़रूरत नहीं है, इस फ़कीर के लिए तो ये खुला आसमान का शामियाना और सोने के लिए ज़मीन का बिछौना ही काफ़ी है I

एक बादशाह के ये अल्फाज़ सुनकर फिरोज़ शाह बादशाह बहुत हैरान हुवा और फिर वो बादशाह आपसे बार बार इल्तेजा करने लगा,

हज़रत मखदूमे सिमना उस बादशाह के गुरुर को भी अच्छी तरह से समझ लिया और उसके गुरुरको तोड़ने की गरज से आपने बादशाह से कहा की

ए बादशाह जहाँ तक मेरी नज़र जाएगी वहां तक की ज़मीन तू मुझे नहीं दे पाएगा ।

उस बादशाह ने सुल्तान अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह को पहचानने में भूल कर दी थी । वो आपको महेज़ एक मामूली पीर, फ़कीर की हैसियत से देख रहा था I

लिहाज़ा बादशाह ने सुल्ताने से कहा

“हुजुर आप उस ऊँचे टीले पर चढ़ जाये वहां से जहाँ तक आपकी नज़र जाएगी उस ज़मीन को मैं आपके नाम कर दूंगा I

आपने कहा ठीक है तू नहीं मानता है तो चल, तू भी मेरे साथ उस टीले तक चल ।

और इस तरह से वे ऊँचे टीले पर आ गए I आपने उस बादशाह से कहा

देख सामने तुझे क्या नज़र आ रहा है I

जौनपुर के बादशाह ने जब सामने देखा तो उसकी आँखे हैरत से खुली की खुली रह गयी, क्योकि सामने उसे सरकारे दो आलम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का रौज़ ए मुबारक नज़र आ रहा था I

आपने उस बादशाह को हैरान देखकर पूछा

बता वहां तक की ज़मीन क्या तू मुझे दे सकेगा I

उस बादशाह को लगा शायद ये उसकी नज़रों का धोका है, लिहाज़ा बार बार उसने अपनी आँखों को मलकर देखा, हर बार उसे सामने हुजुर का रौज़े मुबारक साफ़ नज़र आ रहा था I

जौनपुर के बादशाह फ़िरोज़ शाह तुगलक ने अब जान लिया था, की मख्दुमे सिमना का मकाम और मरतबा क्या है, उसने उनकी अजमत को पहचान लिया, और फिर उसने अपने गुरूर के लिए आपसे माफ़ी मांगी और कहा हुज़ूर मै भला आपको क्या दे सकता हूं आप चाहे तो मुझे सब कुछ अता कर सकते है I

आपने उससे कहा

“ अये बादशाह मैंने सल्तनत को तर्क करने के बाद राहे खुदा की मंजिल को चुना है, लिहाज़ा ज़र-ज़मीन और दुनियावी एशो इशरत के सामान की अब इस फ़क़ीर को कोई ख्वाहिश नहीं है हमने तेरी मेहमानी क़ुबूल की ।जब तक रब की मर्ज़ी हो हम यहां रहेंगे। सुभानअल्लाह

🌹 इतिहास में दो बादशाहों का ज़िक्र मिलता है,जिन्होंने तर्के-सल्तनत कर राहे खुदा की मंजिल को पाया है, और अये चिश्तियो कुर्बान जाइए इस सिलसिला ए चिश्त पर ये दोनों ही बादशाह इसी सिलसिला ए चिश्त के ही है, सुभान अल्लाह।

🌹 बल्ख के बादशाह सुलतान इब्राहिम बिन अदहम रहमतुल्लाह अलैह

ये भी अपने वक्त के बहुत बड़े बादशाह थे, और अपने रब से मुलाकात के मुंतजिर थे।जिनके साथ एक ऐसा वाकया पेश आया कि उन्होंने महलों के ऐशो आराम को तर्क करके जंगल और वीराने में जाकर इबादत ए इलाहि में मसरूफ़ हो गए ।

हुवा यू कि एक बार आप अपने महल में सो रहे थे की आपने छत पर कुछ खटर पटर की आवाज़ सुनी, लगा जैसे कोई तेज़ कदमों से छत पर चल रहा है। आपने आवाज़ दी कौन है छत पर तो आवाज़ आई

मेरा ऊंट गुम हो गया है मैं उसे ढूंढ रहा हूं।

बादशाह ने फरमाया अजीब अहमक आदमी हो, भला ऊंट भी कभी छत पर मिल सकता है

उस शख़्स ने जवाब दिया

अए बादशाह तू रब को पाना चाहता है ना ।

बादशाह इब्राहिम बिन अदहम ने जवाब दिया

हां ये सच है मैं अपने रब से मुलाकात का मुंतजिर हूं।

तब उस शख़्स ने आपसे फरमाया

जब ऊंट महेल की छत पर नहीं सकता तो फ़िर तुझे महल में यूं आराम और ऐशो आराम से रहकर अल्लाह को कैसे हासिल हो सकता है ?

यह बात आपके दिल पर कुछ इस तरह से चुभ गई की दूसरे ही दिन सुलतान इब्राहिम बिन अदहम ने बिना किसी को कुछ भी बताएं महल को छोड़ कर राहे ख़ुदा की मंज़िल की तलाश में निकल पड़े ।

अब आपके लिबास फकीराना थे, ज़मीन आपका बिछौना और आसमान शामियाना था। आप रात दिन इबादत में मशगूल रहा करते।

एक मरतबा आप एक दरिया के किनारे बैठ कर कपड़ो को सूई से सिल रहे थे की आपकी ही सल्तनत का एक अमीर शख्स वहां से गुज़रा उसने बड़े गौर से बादशाह की तरफ देखा और पहचान लिया, तो आपसे सवाल किया।
अए बादशाह सलामत महलो का सुख चैन छोड़कर यूं वीराने में आप रह रहे है, अपनें फटे कपड़ो को सिल रहे है, मज़ाक उड़ाते हुए उसने आपसे सवाल किया, इस बदहाली के सिवा आख़िर आपको मिला क्या ?

क्या आप जवाब देना चाहेंगे।

सुनकर आप मुस्कुराए और कहा मुझे क्या मिला जानना चाहता है तो ख़ुद अपनी आंखों से देख ले।

कहकर आपने अपने हाथो में पकड़ी सुई को दरिया में फेक दिया। और फिर दरिया की मछलियों को आवाज़ देकर कहा

ए मछलियों सुई ढूंढकर लाओ।

कुछ ही पल में हजारों लाखों मछलियां हाज़िर हो गई, उन मछलियों के मुंह पर सोने की सुई थी।

आपने फ़रमाया

ये सुई नहीं बल्कि वो सुई जिससे मैं कपड़े सिल रहा था उसे लेकर आओ।

और फिर एक मछली आपकी फेकी हुई सुई लेकर हाज़िर हुई।

जिसे देखकर वो अमीर शख्स हैरान रह गया।

🌲 उनके बाद दूसरे बादशाह जिन्होंने सल्तनत तर्क की उनका नाम “सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलेह“ है।

आपको हजरत खिज्र अलैहिस्सलाम और हजरत ओवैस करनी रहमतुल्ला अलेह ने ना सिर्फ़ महल में रहते हुए ज़िक्र ए इलाही की तालीम दी । और फिर जब अल्लाह का हुक्म हुआ तो आपने सल्तनत भी तर्क कर दी और फ़िर अपने पीर ओ मुरशिद को पाया ।

🌹 जौनपुर में कयाम करने के बाद “सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहतुल्लाह अलैह मुल्के अरब की जानिब सफ़र को निकल पड़े, आपने अरब के मक्के –मदीने pशरीफ की जियारत की और फिर मिश्र, रूम, शाम, ईराक तुर्किस्तान इत्यादि बहोत से मुल्क भी आप गए I वहां पर अल्लाह वालो की संगत में रहकर उनसे इल्म हासिल किया I

“सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहतुल्लाह अलैह अपनी जाहिरा ज़िन्दगी में सिर्फ एक बार नहीं बल्कि तीन तीन मर्तबा पूरी दुनिया का सफ़र किया I आपके इल्म का आलम ये था, की आप रुए ज़मीन में जहाँ तशरीफ़ ले गए, वही की ज़बान में तकरीर करते, लोगो को बड़ा ताज्जुब होता की हज़रत ने उनके मुल्क की ज़बान कब और कैसे सीखी I आपका कमाल तो ये था की आप न सिर्फ उनकी ज़बान में तकरीर करते, बल्कि उन्ही की ज़बान में किताब लिखकर वहां के लोगो के लिए छोड़ आते थे I सुभानअल्लाह.. ।

क्रमशः …

✒️एड.शाहिद इकबाल खान,
चिश्ती -अशरफी
🌲🌹🌲🌹🌲🌹🌲🌹

Related Articles

Back to top button