HealthNationalOtherSpecial All timeState

संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट 1 

wpid-ajmer_sharif_dargah_1893-4380985..jpeg

 

‘इलाही जाऊ कहाँ होके मै तेरा मंगता, मेरे मोईन मदद कर,
मदद कर मेरे दाता, मुईने दी, शहन्शाहे औलिया के वास्ते’

शुक्रअलहम्दुलिल्लाह // हम गरीबोँ, लाचारो, बेसहारो, मजबूरो  के मददगार, हमारे हाजतरवा, मुश्किलकुशा, सुल्ताने जूदो सखा,  ख़ुलुसो मोहब्बत के पैकर, मुर्शिदे कामिल, हसन ओ हुसैन की आँखों के तारे, अली के दुलारे, मुख्तारे नबी, अताए रसूल, महबूबे खुदा, सुल्तानुल हिन्द ख्वाजा-ए-ख्वाजग़ान, हज़रत ख़्वाजा मुईनुद्दीन हसन संजरी चिश्ती रदिअल्लाहू तआला अन्हु के बारे में नए सिरे से मुकम्मल सवाने हयात “दास्ताने हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु” ‘संजर से अजमेर का सफ़र’  तमाम आशिकाने ग़रीब नवाज़ को नज्र करते हुवे बेहद ख़ुशी हो रही है।

 

इस दास्तान में आप समाद फ़रमाएंगे, हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु की मुबारक पैदाइश से लेकर इल्म हासिल करने वो पीरो मुर्शिद की तलाश में संजर से रवाना होने और फिर मुल्के हिन्दुस्तान, अजमेर शरीफ में पहुचने तक के सारे वाक्यात और फिर इसकी दूसरी कड़ी में आप पढेंगे मुल्के हिन्द अजमेर शरीफ में आपकी मुबारक आमद होने के बाद से लेकर उर्से मुबारक तक की मुकम्मल दास्तान।

 

ये दास्तान मुल्क के तमाम बाशिंदों को तमाम आशिकाने ग़रीब नवाज़ को नज्र है फिर वो चाहे किसी भी मसलक, मज़हब, या खित्ते से ही क्यों न हो। सभी से गुजारिश है की वे इसे ज़रूर पढ़े और जाने की हुजुर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ ने “सूफीवाद” के ज़रिये हमें क्या पैगाम (सन्देश) दिया है और ये हम सभी की नैतिक ज़िम्मेदारी है की हम उनके इस मोहब्बत भरे पैगाम को आम करे। हमारे मुल्क में शायद ही कोई ऐसा हो, जो आपके बारे में नहीं जानता हो, हर ख़ास ओ आम आपके दर पर हाज़िर होकर फैज्याब हो रहा है, उनके करम का, उनकी रहमतो का  जो दरिया बह रहा है,वो हम जैसे तमाम आशिको की न सिर्फ प्यास बुझा रहा है, बल्कि हमारे दिलो को पाक़ और साफ़ भी कर रहा है।

 

जब मैंने हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ के बारे में मुकम्मल दास्ताँ ‘संजर से अजमेर का सफ़र ‘ लिखना शुरू किया तो मुझे कई बार तो यूँ लगा मानो मै खुद हुज़ूर ग़रीब नवाज़ के साथ सफ़र में साथ रहा हूँ और सारे मंज़र अपनी आँखों से देख रहा हूँ। उनकी सना बयाँ करने से मुझे जो मिला उसे लफ्जों में बता ही नहीं सकता, मेरी दिली ख्वाहिश है की ग़रीब नवाज़ हमेशा मुझे बुलाते रहे और मै ताउम्र उनके दरबार में हाज़िर होता रहूँ, और हमेशा उनकी सना बयान करता रहूँ।

wpid-dargah-khwaja-ajmer-sharif-khwaja-garib-nawaz-dargah1526118144..jpeg

अपने एक ख्वाब को भी आपसे शेयर करना चाहूँगा, क्योकि मुझे लगता है की ये ख्वाब भी मेरे लेख का ही एक हिस्सा है, और बेशक ये हुज़ूर ग़रीब नवाज़ की  दास्तान ‘संजर से अजमेर का सफ़र ‘ लिखने के सदके में हुज़ूर ग़रीब नवाज़ की तरफ से मिला नायाब तोहफा भी  है। जब मै हुज़ूर ग़रीब नवाज़ के बारे में कुछ मजमून किताबो से इकठ्ठा  कर अपने एक मित्र एडवोकेट श्री दिलीप अग्रवाल से टाइप करवा रहा था, तो रात में ख़्वाब में एक बुज़ुर्ग की ज़ियारत नसीब हुई, पहले तो उनकी सिर्फ आवाज़ ही सुनाई दी, ठीक से याद नहीं है की उन्होंने क्या कहा था, शायद मुझे पढने या लिखने जैसा कोई शब्द कहा था, ख्वाब में मैंने देखा कि अँधेरा इतना ज्यादा था, कि न ही मुझे बोलने वाले की शक्ल नज़र आ रही है, और न ही जो लिखा हुवा है, वो ही नज़र आ रहा है।

 

फिर किसी ने अपने मुबारक हाथो को  मेरे दोनों हाथो में रखा और उनका दस्ते मुबारक मेरे हाथो में टच होना था की अचानक ही  हर तरफ नूर ही नूर (रौशनी)  नज़र आने लगा, जो इतना तेज़ था की आँखे चकाचौंध हो जाये, और फिर हर चीज़ रौशन हो उठी थी, मैंने देखा की मेरे सामने ही दो जानू निहायत ही नूरानी बुज़ुर्ग बैठे है, जो मेरे बेहद करीब है, मैंने उनके रूखे अनवर की जियारत की, उनके दोनों  हाथ अब भी मेरे हाथो में थे, वे सुफेद कपड़ो में थे, उनके चेहरों से नूर बरस रहा था, फिर मेरी नज़र उन पन्नो पर पड़ी, जो मैंने लिखा था और ख़ास बात ये थी की मेरे लिखे हुवे एक एक हर्फ़ मुझे  साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे।

 


इस मुबारक ख्वाब के बाद मुझे बेहद ख़ुशी महसूस हुई, और इस ख्वाब से एक बात अच्छी तरह से मालुम हो गयी की अगर हम वलीयो के दर से उनके दामन से बावस्ता होकर उनके करीब जाते है, तो बेशक उनकी निगाहें करम भी होती है, और नूर के छीटे भी हम पर पड़ते है, जिस किसी ने भी इसे समझ लिया तो समझो उसने सारी दौलत पा ली।  बेशक जिसने भी कहा ये हकीकत है की निगाहे वली में वो तासीर होती है, जो एक पल में बन्दे को कहाँ से कहाँ ले जाती है, इसका खुद बन्दे को भी पता नहीं होता है I अल्लाह का लाख लाख शुक्र और एहसान है, जो उसने हमें और आपको वलिअल्लाहो से निस्बत रखने वाला बनाया, उनका आशिक बनाया और जिन्हें ख्वाजा से इश्क हुवा उनका कुर्ब हासिल हुवा, उसकी किस्मत का तो कहना ही क्या है, बेशक ये दर कोई ऐसा वैसा दर नहीं, ये  दरे ग़रीब नवाज़ है जिसकी गुलामी पर मुझ जैसे लाखो करोड़ो आशिको को नाज़ है,और हमेशा रहेगा।

 

हमें उनकी बारगाह में जितना ज्यादा हो सके उतने अदब के साथ पेश होना चाहिए। चाहे करीब से या फिर दूर से ही सही उन्हें याद करे वो ज़रूर सुनते है, आइये उसी ख्वाजा ए ख्वाज्गा की  बारगाह में दस्तबस्ता होकर हम सारे गुलाम दुवा करे, की हुजुर, हमें कुछ भी नहीं आता, हमारे पास कोई ऐसा अमल नहीं जिस पर हमें नाज़ हो, हममे कोई सलाहियत नहीं, हम बदकार, सिहाकार, गुनाहगार, तो बस आपके मानने वाले आपके चाहने वाले अदना गुलाम, गुलामाने गुलाम है, हुजुर आपकी गुलामी का पट्टा हमेशा हमारी  गर्दनो पर कायम रहे।

अये हिन्द के राजा, हिन्द के रहबर, आपका आस्ताना हम गरीबोँ, बेकसों, बेसहारो की उम्मीदों का मस्कन वो मरकज़ है। आपके रौज़े मुबारक और  नूरानी धौले गुम्बद की ज़ियारत से हमारी आँखों को नूर और दिल को करार मिलता है। या ख्वाजा अपने सभी गुलामो पर, सभी आशिको पर गर एक बार भी आपकी नज़रे करम हो जाये तो हमारी किस्मत संवर जाएगी, हुजुर अपने गुलामो पर नज़रे करम फ़रमाए। अपने सभी आशिको को अपने मुबारक दर पर हमेशा बुलाते रहे, आप दीन के रहबर है, हुजुर हमारे  दीन और  दुनिया को सवारते रहे। बेशक आप हिन्द के बादशाह है।  नायबे रसूल, महबूबे खुदा है, हुजुर दुवा करे आपका ये प्यारा मुल्क हुन्दुस्तान, हम सबका प्यारा मुल्क हिन्दुस्तान हमेशा शादमां रहे, आबाद रहे, खूब फले फूले  और हमेशा सलामत रहे। इसके साये तले मुल्क के सभी बाशिंदे हमेशा अमन चैन और सुकून से रहे।

 

हम  सभी हिन्दुस्तानियों के दिलो में एक दूसरे के लिए आपस में  भाईचारा और मोहब्बत हमेशा कायम रहे // आमीन //

क्रमशः …

 

बकलम: एड.शाहिद इक़बाल खान

30/1/2019

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button