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संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट 4
हुज़ूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की सवानेह हयात को आप बाज़ौक वो शौक से पढ़ रहे है, बेहद ख़ुशी की बात है, आपकी ज़िन्दगी के हालात सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि सभी कौम के लिए बहोत बड़ी इबरत है, जब इंग्लिश हुकूमत हमारे मुल्क में थी, उस वक्त भी अंग्रेज़ ये कहा करते थे, हमने इस मुल्क में एक अजीबोगरीब मंज़र देखा और अजमेर वाले हजरत ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की कब्र (दरगाह) को इस मुल्क में हुकूमत करते पाया I बेशक उस दौर में भी वे इस मुल्क के बादशाह थे और आज भी वे इस मुल्क के बादशाह है, और इंशाअल्लाह कयामत तक जब तक ये दुनिया रहेगी, वे हिन्द के बादशाह रहेंगे I
हुज़ूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ के बचपन के वाक्यात आप समाद फरमा रहे है, सीरते ख्वाजा ग़रीब नवाज़” किताब के हवाले से पता चलता है की आपके दो भाई भी थे, मगर किताबो में उनके बारे में कोई ज़िक्र नहीं मिलता है I आपकी एक बहेन भी थी, और उन के बेटे हज़रत ख्वाजा अली संजरी अपने वक्त के मशहूर सूफी बुज़ुर्ग हुवा करते थे I
जब ‘हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़’ 4 साल के हुवे तो आपके वालदैन ने आपकी दीनी तालीमात के लिए आपकी “बिस्मिल्लाहख्वानी” घर पर ही की I जिनके वालदैन हसनी हुसैनी घराने से हो और जो ‘हाफ़िज़े कुरआन’ भी हो तो फिर भला उनसे बढ़कर दूसरा कोई संजर में कैसे हो सकता था, लिहाज़ा हुज़ूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ की शुरुवाती तालीम वो तरबियत घर पर हुई, और महेज़ (सिर्फ) 9 साल की उम्र में ही आपने ‘कुराने करीम’ हिफ्ज़ कर लिया I सुभानअल्लाह I जब आप कुरआन की तिलावत करते तो आपकी आवाज़ इतनी दिलकश और शीरी होती की इसे सुनने अल्लाह की हर एक मख्लुकात यहाँ तक की खुद फ़रिश्ते भी आया करते थे I और सुनने वालो पर जो कैफ वो सुरूर तारी होता था, उसे लफ्जों में बयान नहीं किया जा सकता है I घर पर तालीम हासिल करने के बाद आगे की तालीम हासिल करने के लिए आपके वालिद ने आपका दाखिला ‘संजर’ के ही एक मदरसे में करवा दिया, वहां पर आपने तफ्सीर, हदीस और फ़िक़हा की तालीम मुकम्मल की.
मदरसे के उस्ताद इस बच्चे की ज़हनियत से हैरान थे, जो कुछ भी उनके उस्ताद सिखा सकते थे, उसे जल्द ही आपने सीख लिया और फिर मदरसे के उस्ताद ने आपके वालदैन से कहा की ‘ये बच्चा कोई मामूली बच्चा नहीं है, बहोत ज़हीन है, आप इस बच्चे को तालीम के लिए यहाँ से बाहर समरकंद, बुखारा, निशापुर जैसी किन्ही जगहों पर भेजिए, जहाँ पर बड़े बड़े उलमा और दर्सगाह है, और वही इस बच्चे को तालीम दे सकते है, लेकिन हुजुर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ अभी बहोत छोटे थे, और आपकी वालिदा अपने इस बच्चे को अपनी आँखों से दूर किस तरह से कर सकती थी, लिहाज़ा 11 या 13 साल की उम्र होने तक आप अपने वालदैन के साथ ही रहे.
आपके वालिदे माजिद हज़रत सैय्यद गयासुद्दीन हसन भी निहायत मुत्तकी व परहेज़गार थे I गरीबोँ, मिस्कीनो, मुसीबतज़दो की आप हमेशा मदद किया करते थे I लिहाज़ा हुजुर ग़रीब नवाज़ को सखावत, और गरीबो, ज़रूरतमंदों की मदद करने की तालीम भी विरासत में ही मिली थी I कुछ बड़े होने पर आप अक्सर अपने वालिद के साथ फलो के बागीचे भी चले जाया करते थे, उन्हें दरख्त फूल,पौधे,चहचहाती चिडियों की आवाज़े बहोत अच्छी लगती I जब कभी आपके वालिद तिजारत के लिए बाहर जाते तो, आप बागीचे की देखभाल किया करते I आप हमेशा अपने वालदैन के साथ बेहद मोहब्बत के साथ पेश आते उनका बहोत ख़याल रखते, और उनकी खिदमत में लगे रहते I आपके वालिद की सखावत, अजमत वो बुज़ुर्गी का अंदाज़ा लगाने के लिए उनका एक वाकया समाद फरमाये I
ये वो दौर था जबकि ईरान पर ‘सल्जूकियो’ की हुकूमत थी, और हुकूमत के लिए अक्सर लड़ाइया होती रहती थी, और इसमें बहोत से बेगुनाहों को भी बेवजह कत्ल कर दिया जाता था I ऐसे ही एक मौके पर बगावत को कुचलने के लिए सुलतान ने अपने भाई संजर को लश्कर लेकर रवाना किया था I मगर जब ये लश्कर ‘अस्फ्हान’ के करीब पंहुचा तो इस लश्कर में हैजा की वबा फूट पड़ी, और सुलतान के भाई संजर ने अपने लश्कर को वही पर कयाम का हुक्म दिया I उसी दौरान हुजुर गरीब नवाज़ के वालिद हज़रत गयासुद्दीन भी एक काफिले के साथ सफ़र कर अपने बाग़ के फलो को बेचने ‘निशापुर’ जा रहे थे I जब उनका ये काफिला ‘अस्फ्हान’ के करीब पंहुचा तो काफिले वालो ने देखा की एक शख्स दूर से हाथ हिलाकर काफिले वालो को इस तरफ आने से मना कर रहा है, कुछ करीब पहुचने पर उस ‘कातिब’ ने जो की संजर की लश्कर का ही एक सिपाही था, काफिले वालो से दूर से मुखातिब होकर कहा की ‘हमारे सुलतान ने सन्देश भिजवाया है की इस वक्त इस इलाके पर हैजा फैला हुवा है I
हमारा पूरा लश्कर भी इस हैज़े की चपेट में है, खुद सुलतान संजर भी इस वबा में गिरफ्तार होकर सख्त बीमार है, लिहाज़ा वे नहीं चाहते की आप सब की भी जान पर बन आये, लिहाज़ा आप फ़ौरन इस इलाके से दूर निकल जाए I इस खबर को सुनकर काफिले वालो में खलबली मच गयी, और उन्होंने फ़ौरन ही अपना रास्ता बदल दिया, मगर हज़रत गयासुद्दीन तो हुसैन के घराने के थे, वो भला किसी को मुसीबत में छोड़कर कैसे जा सकते थे, लिहाज़ा वे काफिले वालो के साथ नहीं गए, और आपने उस कातिब से कहा की मै सुलतान और उनके भाई संजर को जानता हूँ और उनसे मिलना चाहता हूँ,’ जिसे सुनकर उस सिपाही ने हैरानी से पूछा, ‘मगर क्यों ? सब कुछ जानकार भी आप उनसे क्यों मिलना चाहते हो’ ? ‘क्या तुम्हे अपनी ज़िन्दगी प्यारी नहीं है’ ? सुनकर हज़रत गयासुद्दीन मुस्कुराए और कहा ‘मै एक बार मिलकर उनका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ जिन्हें दूसरो की जानो की इस कद्र फ़िक्र है’ बेशक वे बहोत नेक है I और फिर हज़रत ग़यासुद्दीन र.अ. सुलतान के भाई ‘संजर’ से मिलने आ पहुचे, आपने देखा की ‘सुलतान संजर’ सख्त बीमार है, और लगा जैसे इस वक्त वो अपनी ज़िन्दगी की आखरी सांसे ले रहा है, उसने आपको देखा, और दूर से ही इशारो से उन्हें अपने करीब आने से मना किया I मगर हज़रत गयासुद्दीन ने फरमाया ‘मरीज़ की अयादत को आना तो हमारे प्यारे रसूलुल्लाह की सुन्नत है ‘I जिसे सुनकर संजर ने कहा क्या आपको अपनी ज़िन्दगी का कोई खौफ नहीं है,’ आपने फ़रमाया ‘सुलतान आप मेरी ज़िन्दगी की फ़िक्र न करे, मौत और ज़िन्दगी तो अल्लाह के हाथ में है,’ और वो मालिक हमें हर मर्ज़ से शिफा भी तो दे सकता है ‘I फिर आपने कुछ पानी मंगवाया और पानी पर कलामे इलाही पढ़कर दम किया और फिर इसे सुलतान के भाई संजर को पिलाया, और यही पानी सारी फौज को भी पीने कहा.