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संजर से अजमेर का सफ़र – पार्ट -7
एक बार जमाले यार का जलवा देख लेने के बाद हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ रदिअल्लाहू तआला अन्हु के दिल में इल्म हासिल करने का जज़्बा किसी तेज़ समुन्दर की लहरों की मानिंद अंगड़ाईयाँ ले रहा था, और इश्क की ये मौजे तेज़ी से साहिल (किनारा) यानि मंज़िल की जानिब बढ़ने को मुन्तज़िर थी । राहे हक़ का ये मुसाफिर तनहा ही अपने सफ़र पर निकल पड़ा था । उस वक्त समरकंद, बुखारा, और निशापुर उलूमे इस्लामी के मराकिज़ तस्लीम किये जाते थे । इल्म के तालिब यहाँ आकर इल्म हासिल करते । आपने तय किया की आप भी इन जगहों पर जाकर इल्म हासिल करेंगे और फिर सबसे पहले आपके कदम मुबारक ‘निशापुर’ की जानिब उठ पड़े ।
वो जो अभी बलाग़त की दहलीज़ तक पहुच भी नहीं सके थे, जिन्हें सफ़र के रास्तो की दुश्वारियो का भी कुछ पता न था । या अगर मालुम था भी तो जिनके इरादे इतने मज़बूत थे, की उन्हें दुश्वारियो का कोई खौफ नहीं था । कुछ भी तो नहीं था, पास अगर कुछ पास था, तो चाँद सफ़र का ज़रूरी सामान और एक मश्कीज़ा पानी । अगर साथ थी तो वालदैन की दुवाए । अल्लाह अल्लाह क्या जज़्बा था मेरे ख्वाजा का, कुर्बान जाऊं, बलिहारी जाऊ उन पर और उनकी हिम्मत और अजमत पर । इल्म हासिल करने का ऐसा जज्बा सिर्फ अल्लाह वालो में ही हो सकता है । रेगिस्तानी सफ़र की दुश्वारियो को कौन नहीं जानता है मगर इश्के इलाही की सिर्फ एक झलक ने आपको इतना मज़बूत बना दिया था, की आपको कोई खौफ नहीं था, और वे अपने सफ़र पर तनहा आगे बढ़ते चले गए । जब कभी रात हो जाती तो आप रुक जाते, नमाज़ पढ़ते और फिर इबादत किया करते । कुछ आराम करने के बाद फिर सुबह उठ कर नमाज़े फ़ज़र अदा करते और फिर सफ़र को निकल पड़ते ।
क्या आज हमारे घरो में इल्म हासिल करने का ये जज़्बा देखने को मिलेगा ? हम अपने बच्चो को ऊँची से ऊँची तालीम दिलाने के लिए भले ही अच्छी से अच्छी स्कुल कॉलेज में भेज सकते है, उन्हें बाहर भी भेज सकते है, मगर ‘इल्म ए दीन’ हासिल करने करने भी क्या ऐसा करते है ? दूर क्या पास के किसी अच्छे आलिम के पास भी में नहीं भेजते I घर पर ही किसी को बुलाकर बच्चे को अलीफ, बे पढ़ा दिया तो समझो बहोत हो गया । हमारे बच्चे भी ले दे कर चार – पांच सूरते अगर ने याद कर लेते है, तो समझो उन्होंने बहोत बड़ा तीर मार लिया I हम फक्र करते है की बच्चे को इतना कुछ आता है । मदरसों को हम इल्म हासिल करने से कही अधिक यतीमखाने के नाम से जानते है, यानी अगर कोई गरीब बच्चा यतीम हो जाता है, तो घर वाले उसे मदरसे भिजवा देते है I यही निज़ाम हो गया है, हमारे मआशरे का इसीलिए अगर कोई बच्चा ऊँची दुनियावी तालीम हासिल कर भी लेता है, तो फिर वो दीनी इल्म हासिल करता है, और शिकारी अपना जाल बिछाकर उसे इल्म सिखाते है ।