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थोड़ा टाइम शेयर कर लो भाई…

 

social work for better life by ravindra chhtri in raipur chhattisgarh

 

सरकारी हॉस्पिटल के बगल से अपना काफिला जा रहा हो और हम हॉस्पिटल के अन्दर जा कर एक चक्कर भी ना मारें| कभी ऐसा हो सकता है क्या … जवाब है बिलकुल भी नहीं|| मैं अगर डॉक्टर होता तो वार्ड के अन्दर मरीजो को देखने राउंड ले रहा होता| पर अपन कॉलेज ड्रापआउट ठहरे तो बाहर कैम्पस का ही राउंड मार कर काम चला लेते हैं.. बाकी फीलिंग डॉक्टर वाली ही रहती है|

 

कल मेकाहारा सरकारी हॉस्पिटल,रायपुर कैंपस में राउंड मारने  के दौरान दीपक वर्मा जी नजर आये थे, हम दोनों एक दुसरे के सामने से गुजरे| वो अपने वाकर पर लंगडा के चल रहे थे और हम अपनी एक्टिवा पर थे| बस एक सेकंड भर की  नजर उन पर मारी.. एक नजर की स्कैनिंग में यह पता लगा गया की  पैर में गंभीर चोट है, वाकर नीचे से सड़ चूका है, चक्के टूट चुके हैं| हालत खुले आसमान के निचे सोने वाली दिख रही है|

 

आज दुबारा इन्हें खोजते हुए उसी जगह पर गया तो वर्मा जी वहा सो रहे| नींद से उठा कर इन्हें पूछा..अंकल जी यहाँ कैसे.. क्या हो गया है आपको.. आपकी वर्तमान में क्या मदद कर सकता हु||

 

उन्होंने बताया , दुर्ग के रहने वाले हैं ,पहले वेटर की जॉब में थे| ट्रेन एक्सीडेंट में पैर बुरी तरह कई जगह से टूट गया था| इस सरकारी हॉस्पिटल में ओपरेशन हुआ है| रॉड लगी हुई थी ..अभी अभी निकली है| घर पर पत्नी और एक बच्चा है जो सातवी में पढता है| मैं यहाँ अकेला रहता हु हॉस्पिटल कैंपस में . अभी लगातार इलाज चल रहा है| मुझे कुछ नहीं चाहिए ..आप सिर्फ प्रार्थना कीजिये की मैं जल्दी ठीक हो जाऊं और अपने घर को संभाल सकू|

 

मैंने कहा वो सब तो ठीक है .. जल्दी से बताइए क्या कर सकता हु आपके लिए ..कम से कम 5 बार और पूछने पर उन्होंने संकोच वश कहा की वाकर टूट गया है| कुछ संस्था वालो से कहा था पर वो लोग अभी तक नहीं दिलवाए हैं ..तो इसी से काम चला रहा हु| इतना सुनते ही मैंने कहा की मैं आ रहा हु ले कर ..उन्होंने कहा मत जाइए .परेशान हो जायेंगे|| मैंने हस्ते हुए कहा की सही पहचाना आपने ..परेशानी का दूसरा नाम रविन्द्र ही है|

 

 
ठीक 10 मिनट का ब्रेक ले कर एक प्यारा सा नया वाकर ले कर उनके सामने उपस्थित हुआ| वाकर देखते हुए मुह छुपा कर रोने लगे वो| सिसकते हुए बोलते हैं की आपको कौन भेजा है| मैंने निचे बैठ कर काफी देर बात की उनसे.. कहने लगे की पैर टूटने के बाद लगा की सब ख़तम हो गया है.. अब हमेशा ऐसे ही दुसरो से माँगना पड़ेगा..जहाँ जाता हु काम मागने लोग कहते है तेरे को जो खाना है, पहनना है ले ले .पर काम मत कर..सर मैं काम करना चाहता हु ..मैं मुफ्त में टुकडो पर नहीं पलना चाहता| पर कोई मुझे काम नही देता|

 

मैं हार गया हु, इससे बेहतर होता की मैं मर जाता ..ऐसे तडपना नहीं पड़ता!! अपने बच्चे को क्या आगे बढ़ाऊंगा| यह बोलते बोलते वो बहुत रोये वो..गलत भी क्या बोले वो , यहाँ रिवाज ही है लोगो को भिखारी बना देने का ..उसे आत्मनिर्भर कैसे बनाया जाये .इस पर कोई काम नही करना चाहता||

 
मैंने कहा अरे अंकल आप भी ये क्या बच्चो की तरह रो रहे हैं| हमारे पास एक बच्चा है आदित्य ..उसके दोनों पैर कट गए हैं|| आज वो हमारे जीवनदीप परिवार का हिस्सा है..वो पढ़ कर डॉक्टर बनना चाहता था.. हम सब उससे मिले और आज उसका एक कोचिंग में एडमिशन कराया है| एक ऑटो वाला उसे बाकायदा लाने-छोड़ने क्लास तक जाता है| कोचिंग वाले फीस नहीं ले रहे हैं उसकी…आपके हिसाब से उसे मर जाना चाहिए या फिर कुछ बन कर देश की सेवा करनी चाहिए| अंकल शांत  हो गए .शायद उन्हें उनके सवाल का जवाब मिल चूका था|

 

social work for better life by ravindra chhtri in raipur chhattisgarh 1

 

मैने आपको वाकर देकर ना कोई मदद की है, ना ही कोई एहसान किया है आपके ऊपर..वही किया है जो एक आम इन्सान को दुसरे के लिए सहयोगी भाव से करना चाहिए| अब अंकल को उनके मायूसी भरे  सवाल का जवाब मिल चूका था…फिर रोते हुए बोले की सर मेरे पास कुछ नहीं है देने को.. मैंने कहा आप जल्दी ठीक हो जाइए ..फिर कोशिस करेंगे की आपको कही जॉब में सैटल करें| जिस दिन आपकी खुशियाँ लौटने लगेंगी ..उस दिन उन खुशियों भरी दुआ का एक हिस्सा  इस जीवनदीप को दे दीजियेगा…

 
बात कर रहा था ..तभी वहा दो गाडी में युवा वर्ग के लड़के लड़कियां आये| पता नहीं कोई मिठाई का डिब्बा गरीबो को दे रहे थे| एक डिब्बा इन्हें भी पकड़ा दिया..जब ये रोते हुए बात कर रहे थे मुझसे तब| उन बच्चो से मैंने कहा यार इनके साथ थोडा टाइम शेयर कर लो ..थोडा मोटीवेट करो इन्हें ..पर उन्होंने देखा और सिर्फ डब्बा पकड़कर चलते बने| इस पोस्ट को पढने वालो से निवेदन है ..बच्चो को डब्बा बाटना नही ..प्यार बाटना और किसी के साथ समय बिताना सिखाये..वर्ना एक दिन आपके ही बच्चे आपको डब्बा पकड़ा कर चल देंगे| उस दिन भूल का  एहसास होगा तो रोने को कन्धा भी नसीब नहीं होग|

 
खाना जूठा पड़ा हुआ भी मिल जाएगा..और मजबूर इंसान उसे खा भी लेगा| पर प्यार कही पड़ा हुआ नहीं मिलता उसे साथ बैठ कर बाटना पड़ता है| ऐसे ही प्यार का एह्सास दिलाकर लौटा हुआ इन्हें| जाने से पहले उनके चेहरे पर खुसी के भाव थे| मुझे लगा चलो आज का दिन भी सफल हुआ| खुले आसमान के निचे सोते हैं ये ..बगल के मंगल भवन में रुकने की व्यवस्था कर आया हु| उनसे आग्रह किया है की वहा जा कर जब तक मर्जी हो रुक जाए और परेशानी हो तो मुझे कॉल कर लें|

 

आज कुछ और बेहतर करना चाह रहा था पर कुछ दिक्कतों के चलते वो नहीं हो पाया| पर आज उस मुहीम की नीव रख आया हु ..सारी जानकारी जल्दी आप सबके सामने होगी… तो प्यार बाटिये.समय बिताइए …डब्बा नहीं ||
-रविन्द्र सिंह क्षत्री , सुमित फाउंडेशन “जीवनदीप”  02/10/2018

 

 

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