उसके चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी
कुछ दिन पहले हम मदर टेरेसा आश्रम रायपुर में थे। सिस्टर से मुलाकात कर हम वहाँ रहने वाले मरीजों और मानसिक रूप से विक्षिप्त लोगों के लिए कुछ बिस्किट और मिठाइयां बाँटने अंदर चले गए। हम पहले उस यूनिट में गए जहाँ सिर्फ महिलायें ही थीं। संकोचवश मैं बाहर था, पर सब कुछ सामान्य होने की वजह से फिर मैं अंदर तक चला गया।
वो जगह पूर्णतः मानसिक रूप से विक्षिप्त और बीमार से ग्रसित महिलाओं से भरी पड़ी है। सब अपने में मगन थे। मेरी सहयोगी स्मिता जी उनके बीच जा कर बिस्किट मिठाइयां दे रही थीं और मैं एक किनारे में चुप खड़ा हो कर सबको देख रहा। तभी अचानक उनमें से एक महिला आती है और मेरा हाथ पकड़ एक दिवार की तरफ खींच ले जाती है। मैं भी उससे बात करने की कोशिश करते हुए वहां चला जाता हूँ। फिर वो महिला कहीं और चल देती है।
तभी सामने देखता हूँ कि बरामदे में इस संस्था की कुछ सेविकाएं फटे कपड़ो को सील रहीं होती हैं। पर मेरी नजर एक कोने में गुमसुम सी बैठी लड़की पर जा कर ठहर जाती है। इस दरमियान स्मिता जी भी सबको मिठाइयां बाँट कर उस बरामदे में दाखिल होती है। कहती हैं भईया आप इनसे मिलो ये यहाँ की प्यारी लड़की है मैं अक्सर आती हूँ और यह मुझे पहचान लेती है। ये तो अच्छा गाना भी जानती है..
उस लड़की की तरफ मैंने देख कर पूछा..गुड़िया आपका नाम क्या है?
पर उसके चेहरे पर एक अजीब सी खामोशी थी.. मैंने फिर से दुहराया आपका नाम क्या है गुड़िया?? धीरे से दबी हुई उदासी भरी आवाज से उसने कहा ..कल्पना । उसकी आवाज को जैसे मैंने सुना तुरंत समझ गया की यह बहुत कुछ समेटे हुए है अपने अंदर। आज इससे थोड़ी बकबक की जाए..स्मिता जी ने बताया था कि यह गाना अच्छा गाती है। मैंने गुजारिश कि उससे गाना सुनाने की वह तैयार हो गयी। पर जैसे मैंने मोबाइल निकाल कर उसका गाना रिकॉर्ड करना चाहा। उससे अजीब से गुस्से भरी आवाज में ऐसा करने से साफ़ मन कर दिया..भैया प्लीज ये सब मत कीजिये ..हमें कुछ नहीं करना है ये हमें पसंद नहीं है। थोड़ी देर के लिए मैं चौंक गया की यकायक उसे इतना गुस्सा क्यों आ गया मेरे ऊपर। पर साथ ही मैं ये जरूर समझ चूका था की कुछ तो बात है जिसे कल्पना के अंदर से आज मैं बाहर निकाले बिना यहाँ से नहीं जाऊँगा। उसकी आवाज का भारीपन, वो नफरत , वो उदासी मेरे सवालों का दायरा बढ़ाते जा रही थी। पर मैंने उससे कुछ सवाल करने की बजाय सिर्फ इधर उधर की बात करना ही जरुरी समझा।
अच्छा गुड़िया मुझसे गलती हो गयी, अब नहीं करूँगा ऐसा। चलो अब गाना सुना दो। यह कहते हुए मैंने अपना फ़ोन बंद कर साइड पर रख दिया। पर अब तो कल्पना गुस्सा हो चली थी सो वो शांत पड़ गयी। मन ही मन ने मैंने कुछ तय करके अंततः मैंने अपने अंदर के बातूनी कछुए को जगाया.. चाहे जो हो जाए हम भी हार नहीं मानेंगे … आखिर अंदर ऐसी कौन सी बात है .. ये अब जानना मेरे लिए बहुत जरुरी हो गया था।
तो कल्पना बात ऐसी है कि, मेरे दोस्तों में कुछ दोस्त हैं जो संगीत में काफी आगे हैं| सोचा की आपका गाना रिकॉर्ड करके उन्हें दिखा दूंगा और अगर आगे आप सीखना चाहो तो इसके लिए भी मैं कोशिश करूँगा| बस इतनी सी बात थी और मैंने रिकॉर्ड करना चाहा| अभी तक कल्पना का गुस्सा कम नही हुआ था उसने फिर कहा, नहीं भैया हमें कुछ नहीं करना है..हमको कहीं नहीं जाना है| मुझे अच्छा लगता है इसलिए गा लेती हूँबस. पर हमको कुछ भी नहीं करना है .. शायद आपको कल्पना की इन बातो में जिद नजर आये| पर मैं अपनी कोशिश के मुताबिक कल्पना के जीवन के सच के करीब खुद को पहुँचते देख रहा था। मुझे समझ में आ गया कि अपनी बकबक नॉन स्टॉप जारी रखनी पड़ेगी।
कल्पना ये आप गोद में कपड़ें सिल रहे हो , ये कहाँ से सीखा. उसने बताया आश्रम से सीखा है, अच्छा और क्या क्या करते हो, उसने फिर कहाँ की गाना गाती हूँ अपने से , अच्छा कल्पना गाना कहाँ से सीखा है आपने ..उसने कहा उसे रेडियो सुनना बहुत पसंद है। सारे गाने इस पर ही सुनकर वो गाना गाती है। पर अब वो भी नहीं सुन पाती हूँ मैं तो , मेरे रेडियो का तार निकल गया है बंद पड़ा है वो। मैंने कहा कोई बात नहीं हम नया ले आयेंगे आपके लिए। एक बार फिर से उसका बोलना चालू, नहीं नहीं हमें नहीं चाहिए कुछ। मैंने भी सोचा मन ही मन आज ये लड़की मेरी जान ले कर ही छोड़ेगी क्या , कसम से इतनी जिद किस बात की है भाई।
बस हमें रेडियो नहीं चाहिए। क्यों नहीं चाहिए कल्पना ये रेडियो ..उसका जवाब था कि हम सब यहाँ परिवार की तरह रहते हैं। आप मेरे लिए लायेंगे तो और लोग भी जिद करने लगेंगे इसलिए मुझे नहीं चाहिए। मैं खुद के लिए कोई मनपसंद चीज नहीं चाहती। उसका पहला सकारात्मक जवाब सुन कर मैंने खुश हुआ चलो इसने कुछ तो अपने मन की बात कही। और ऐसा अपनापन इन मानसिक रोगियों के लिए ..यह भी काबिले तारीफ था।
मैंने कहा कि कल्पना हम एक के लिए नहीं सभी के लिए जरुरत की चीजे लायेंगे। पर जिसे जो जरुरत होती उसके लिए वैसा सामान, जैसे कपड़े, दवाइयां, खाने का सामान आदि। पर रेडियो सिर्फ आपके लिए ले कर आयेंगे। क्योंकि इसमें आपकी रूचि भी है और इससे सुनकर आप खुद के अकेलेपन को दूर करते हो..गाना सीखते हो वो अलग। बाकी के लिए यह रेडियो किसी खिलौनेसे कम नहीं होगा, वो लेंगे और इसे पटक देंगे। इसलिए इस रेडिओ पर एकाधिकार सिर्फ आपका ही होगा। वो मेरी बात मान गयी..
बातों का सिलसिला जारी था। कल्पना धीरे धीरे मेरी बाते समझने लगी थी। पर वो कही नहीं जाना चाहती थी। मैंने उससे पूछा की बेटा ऐसी कौन सी बात है जो आपकी बातें गलत लग रही है और आप बाहर जा कर संगीत नहीं सीखना चाह रहे हो..मैंने यह बात उसकी आँखों में आँखे डाल कर पुरे हक़ के साथ कही। उसके बाद कल्पना की जुबानी सुनिए उसने क्या कहा..
भैया हम भी सीखना चाहते हैं.. बाहर जाना चाहते हैं। हमेशा यहाँ कोई ना कोई आता जन्मदिन मनाने या सामान बाँटने आते हैं। कहते हैं ये कर देंगे वो देंगे..आपको यहाँ ले जायेंगे वहां ले जायेंगे। पर सिर्फ एक दिन आ कर वो सब चले जाते हैं कोई दुबारा लौट कर नहीं आता। सब झूठ बोलते हैं ..झूठ| मेरे साथ अब कोई नहीं है.. हमारे दोस्त छुट गए परिवार छुट गया ..अब जो है सिर्फ यही लोग हैं ..और इनके बीच ही रहना मेरी जिंदगी है। ऐसा कहते हुए वह जोर जोर से रोने लगी। दरअसल कल्पना का यह गुस्सा एक कड़वा सच है, वो तमाचा है हमारे अपने लोगों के दिखावे पर.जो कल्पना जैसों को बेचारा घोषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। अपने बच्चे, परिजनों को ले जाते हैं दान दिलवाने..यह कहकर की बेटा यह गरीब-भिखारी- दिव्यांग है, इसे दान देना चाहिए। सारी पीढ़ी यही सीखती है। बस किसी को अपना समझना भूल जाती है। वह रोये जा रही थी। उसके साथ स्मिता जी की आँखें भी नम हो गयी.. वो उसे चुप करने के लिए बढ़ने ही वाली थी। मैंने उन्हें रोक दिया..
कहा की रोने लेने दीजिये आज उसे जी भर के ..क्योंकि आज के बाद वह कभी नहीं रोएगी ..जितना है वो सिर्फ आज ही..
( कल्पना बचपने से पोलियो ग्रस्त हैं, चल नहीं सकती, और रायपुर से ही है। जब सातवीं क्लास में पढ़ रही थी, तो उसके माता-पिता का एक दुर्घटना में निधन हो गया था, उसके बाद उसके रिश्तेदारों ने उसे पाला। एक वक़्त के बाद कल्पना को स्किन की बीमारी हुई तो रिश्तेदारो ने उसे किसी अनजान जगह पर चुपचाप ला कर छोड़ दिया फिर वो कभी लौट कर नहीं आये। किसी ने कल्पना को इस आश्रम में ला कर पनाह दिलवा दी। आज कल्पना रायपुर के इस मदर टेरेसा आश्रम में पिछले 15 साल से है, इन्ही लोगों के बीच , चाहे इन्हें मानसिक विक्षिप्त कह लीजिये या इन्हें परिवार कह लीजिये, ये आपकी सोच पर निर्भर करता है, पर कल्पना के लिए ये उसके अपने हैं, जहाँ दुनिया ने साथ छोड़ दिया था वहां इन लोगों ने उसे अकेला महसूस नहीं होने दिया, मानसिक रोगी हैं तो क्या हुआ, ये भी अपनेपन को हमसे जादा बखूबी समझते हैं।)
कल्पना सुनो तो मेरी बात ..कुछ वक़्त के लिए मेरी बात ध्यान से सुनो, फिर मैं चला जाऊँगा। आपको और उदास नहीं करना चाहता मैं। मेरी कुछ बातों का जवाब दो।
पिछले 15 वर्षों से क्या किसी ने आपके पास आकर पहली मुलाकात में 3 घंटो तक बैठ कर बात की है?
उसका जवाब था-नहीं।
किसी ने आपको यह बताने की कोशिश की है कि आप गाना बहुत अच्छा गा लेती हैं..आपको इसे आगे सीखना चाहिए ..
उसका जवाब था-नहीं।
किसी ने आपको संगीत सिखाने के लिए कोई प्रयास किया है, ताकि आपका रियाज बेहतर हो जाये?
उसका जवाब था-नहीं।
पर मैं और मेरे दोस्त अगर आपके लिए कुछ बेहतर सोचते हैं तो इसमें कोई गलत बात है क्या !! क्या आपको नहीं लगता है की आपको हमें एक मौका देना चाहिए आपके लिए??कल्पना दुनिया इस आश्रम के बाहर भी है..बहुत से अच्छे लोग भी हैं दुनिया में जो आपके लिए कोशिश करना चाहते हैं। इन आश्रम के लोगों ने आपको इतना प्यार दिया.. क्या आपको नहीं लगता की आपको इस लायक बनना चाहिए की अपने जैसे पीड़ित लोगों की आप मदद कर सकें। इस अकेलेपन से उन्हें बाहर निकाल सकें??
अब उसका जवाब था- हां।
आपने सही कहा कल्पना की लोग आते हैं और झूठा दिलासा देकर चलें जातें हैं। क्योंकि उन्हें समय काटना होता है.. पर मैं समय काटने नहीं, तुम्हारे साथ समय बांटने आया हूँ मैं जानता हूँ तुम एक दिन बहुत अच्छा गाना गाओगी। लोग तुम्हारी तलाश में भागेंगे। क्या तुम्हें खुद नहीं लगता की कल्पना को एक मौका दे कर देखना चाहिए.. आखिर तुम खुद से खुद को कैसे छीन सकती हो गुड़िया.. यकीन मानो सब बेहतर होगा.. कदम आगे बढ़ाओ..
ठीक है मैं सीखूंगी भैया .. पर मेरे साथ …..।
कल्पना आपके साथ हम सब हैं.. और हमेशा रहेंगे।
चलो आज तो आप गुस्सा हो ..अब आज गाना तो सुनाने से रहे आप मैं अगली बार आऊंगा तब गाना सुनूंगा आपसे। तभी कल्पना ने हंसते हुए कहा ..नहीं मैं आज ही आपको गाना सुनाउंगी..अभी।
उसके बाद कल्पना ने बहुत ही प्यारा गाना सुनाया था फिर जो आप सबने लाइव सुना था। उसके बाद कल्पना के चेहरे पर उदासी नहीं दिखी मुझे। वो खुश हो कर वहाँ से उठी और अपनी व्हीलचेयर पर मुझे दरवाजे तक छोड़ते हुए मुझसे बातें करती रही। जाते जाते उसकी आवाज में एक गूंज नजर आ रही थी मुझे। एक अलग आत्म्सिश्वास सा कुछ, जब कोई अपना मिल जाए तो। एक दिन दुनिया जरुर कहेगी की वो जा रही है “कल्पना गिडवानी” ..जिसके पीछे उसका अपना कारवां होगा।
रायपुर वाले दोस्तों ये आपके शहर की बच्ची है, लाखों की भीड़ में 15 वर्षों के बाद यह कहानी निकल कर बाहर आई है। अफ़सोस है इसके पहले किसी ने कोशिश नहीं करनी चाही उसके लिए.. कभी जा कर मिलिए उससे ..बहुत ही प्यारी है वो.. मुझे यकीं है एक दिन वो अपना आशियाना फिर से बना लेगी। फिलहाल अपनी इस कल्पना के लिए के अच्छा सा रेडियो लेने जाना है। साथ ही एक ऐसे संगीत के शिक्षक की तलाश करनी है तो उसे बेहतर संगीत सिखा सके।
और अगली बार हो सके तो किसी को प्यार दीजिये उसे अपना अमूल्य समय दीजिये..लोग प्यार और अपनेपन के भूखें हैं ..रुपयों के नहीं।
रविन्द्र सिंह क्षत्री , सुमित फाउंडेशन “जीवनदीप”, 14/11/2018
मो. 7415191234
(तस्वीरों में मैं रविन्द्र, बीच में कल्पना और आखिरी में सहयोगी स्मिता जी )