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दुनिया का सर्वाधिक बड़ा पेंडेमिक टी.बी.
टी बी सबसे बड़ा पेंडेमिक :
ज्ञात इतिहास से अब तक मनुष्य को किसी किटाणु ने सर्वाधिक मारा है तो वह है mycobacterium tuberculosis. मतलब टीबी की बीमारी। यह दुनिया का सर्वाधिक बड़ा पेंडेमिक रहा है।
जिनमें से भारत में दुनिया में होने वाले कुल टीबी मरीजों के लगभग 25 प्रतिशत टीबी मरीज़ पाए जाते हैं। बाकी दुनिया की तुलना में गैर आनुपातिक रूप से भारत में टी बी एवं रेसिस्टेंट टीबी के केस बहुत अधिक पाए जाते हैं। हमारा स्थान नए केस एवं पहले से उपस्थित केस दोनों में पहला है। इसके अतिरित एड्स से होने वाली टीबी में हम साउथ अफ्रीका के बाद दूसरे स्थान पर हैं।
भारत सरकार का हालांकि 2017 का संकल्प है टीबी के केस की संख्या को 2025 तक 1 केस प्रति 10 लाख से कम
पर लाना है जो कि अभी बेहद कठिन टार्गेट लगता है। 2016 में 28 लाख केस हुए जिनमें से 4. 5 लाख की मृत्यु हो गई।
किसे हो सकता है : टीबी किटाणु किसी को भी संक्रमित कर सकता है। किंतु रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने पर यह ज़ल्द संक्रमित करता है। इसी वजह से बच्चे, शिशु, वृद्ध, एड्स के मरीज़, कुपोषित बच्चों इत्यादि में अधिक देखने मिलता है। जहां जनसंख्या घनत्त्व , वायु प्रदूषण अधिक होगा वहां अधिक होगा।
ग़रीब परिवारों में अधिक ओवर क्रोउडिंग, कुपोषण इत्यादि की वजह से अधिक पाया जाता है। किंतु कीटाणु के संपर्क में आने पर समृद्ध घरों के सदस्यों को भी हो सकता है ।
कैसे फैलता है : अधिकाँशतः यह किटाणु खांसने के माध्यम से स्वांस के रास्ते फेंफड़ों में जाता है। कभी कभार लंबे समय तक कान के पर्दे में छिद्र होने से कीटाणु मस्तिष्क में पंहुच सकता है और ब्रेन टीबी करवा सकता है।
प्रकार :
टीबी का कीटाणु किस अंग में पंहुच कर संख्या में बढ़ा है इस पर टीबी का प्रकार निर्भर करेगा । जैसे , फेंफड़ों की टीबी,
रीढ़ की हड्डी की टीबी, आंतों की टीबी, पेट की टीबी, दिल की बाहरी झिल्ली की टीबी, ब्रेन टीबी, ब्रेन में गांठ या ग्रेन्युलोमा इत्यादि।
ब्रेन टीबी का खतरा छः माह से 5 वर्ष के बच्चों में अधिक होता है।
सर्वाधिक प्रभावित होने वाला अंग फेंफड़े ही होते हैं। कीटाणु फेंफड़ों से अन्य अंगों में पंहुच सकता है इलाज़ न लेने पर।
लक्षण : हल्का बुख़ार , जो लंबे समय तक हो, खांसी, खांसी में खून आना, छाती में दर्द , भूख न लगना, वज़न कम होना, सांस लेने में तक़लीफ़ होना। आरंभिक लक्षण हो सकते हैं।
इसके अतिरिक्त लक्षण प्रभावित अंग के अनुसार बदल सकते हैं।
टीका : आप अब जन्म के समय लगने वाले बी सी जी के टीके के विषय में जानते हैं। यह टीका किसी भी उम्र में भी लगाया जा सकता है यदि जन्म में न लगा हो। किन्तु एक रोचक तथ्य यह है कि बीसीजी का टीका आम तौर पर होने वाली फेंफड़े की टीबी से सुरक्षा नहीं देता । अपितु यह गंभीर टीबी ज़ैसे ब्रेन टीबी से सुरक्षा देता है।
जांच : टी बी की सभी जांचें सरकारी अस्पतालों में आसान एवं निःशुल्क हैं। छाती का एक्स रे, स्पुटम में कीटाणु की जांच एवं एक नई एवं बेहद कारगर जाँच ‘सी बी नाट ‘ करवाई जाती है। जिससे टीबी की डायग्नोसिस आसान हो गई है। ब्रेन टीबी में सीटी स्कैन , रीढ़ के हड्डी के पानी (CSF) की जांच करवाई जाती है।
इलाज : इलाज कम से कम चार दवाओं के साथ कम से कम छः माह तक दिया जाता है।
अधिकांश मरीज़ समुचित दवा लेने पर पूर्णतः ठीक हो जाते हैं।
महत्वपूर्ण यह है कि एक दिन भी दवा को न छोड़ा जाए वरना कीटाणु के रेसिस्टेन्ट होने का खतरा होता है।
मल्टी ड्रग रेसिस्टेन्ट टीबी में आरम्भ में दी जाने वाली दवाएं बेअसर होती हैं । ऐसे में सेकंड लाइन टीबी ड्रग को दिया जाता है। एवं इलाज एक वर्ष से अधिक चल सकता है।
दवाएँ आम तौर पर सुरक्षित होती हैं। किंतु दुष्प्रभावों पर नज़र रखी जाती है जिसके लिए समय समय पर चिकित्सक से मिलना आवश्यक है।
नई टीबी दवाओं ज़ैसे, Bedaquilin, Petomanid से टी बी के उपचार में काफी सफलता मिलने की उम्मीद बढ़ी है।
खानपान : दवाओं के असर दिखाते हुए एक हफ़्ते में ही मरीज़ को भूख अधिक लगने लगेगी। तब उसे संतुलित आहार , अधिक प्रोटीन युक्त भोजन देना चाहिए।