ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला👑👑👑👑👑👑👑👑✒️ -पार्ट-14
-दीं पनाह अस्त हुसैन –
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शहादत के बाद के वाक्यात
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कर्बला को कर्बला के शहंशाह पर नाज़ है,
उस नवासे पर मोहम्मद को नाज़ है,
यूं तो यूं तो लाखों सर झुके सजदे में लेकिन ,
हुसैन ने वह सजदा किया जिस पर खुदा को नाज है
इमाम ए आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सरे मुबारक की ये करामात थी की रास्ते मे जो कोई भी इस काफिले के बदबख्त सिपाहियो को देखता तो उन पर लानत भेजता और इमामे हुसैन के सरे मुबारक को देखकर अदब से सर झुकाकर ताज़ीम करता।
कुछ लोग सरे मुबारक के बारे में सवाल भी करते तो यज़ीदी सिपाही जवाब देते ये एक बागी का सर है, मगर आपके सरे मुबारक से निकलते नूर को देखकर कोई भी उन सैनिको की बातो पर यकीन नहीं करता और वे निहायत अदब ओ एहतराम से अपने सर खम करते चले जाते ।
जहां कहीं पर भी यह काफिला रुकता, वहां की औरते भी करीब आ जाती और जब हुसैनी घराने की शहजादियों से मिलती तो हज़रते जैनब उन्हे कर्बला के सारे वाक्यात बतलाती,जिसे सुनकर वे सभी यजीदी सेना पर लानत करती ।
कूफे से दमिश्क तक के सफ़र में बीमार हज़रत जैनुल आब्दीन और इमाम आली मकाम हुसैन के घराने की शहजादिया, पर क्या बीती हुई अल्लाह अल्लाह आका ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के घराने वालो के साथ ऐसा सुलूक। अली वो फातिमा के गुलशन के बाग की नन्ही कलियों ने भूखे प्यासे रहकर कैसी कैसी मुसीबते नहीं झेली होगी, इसे लफ्ज़ों में बयान नहीं किया जा सकता । मगर अल्लाह हर वक्त इनके साथ था वे । इस मुश्किल वक्त मे भी उनसे नमाज़े क़ज़ा नहीं हुई। और हर हाल में उन्होंने अपने रब का शुक्र अदा किया।
हजरत जैनुल आबदीन और हजरत ए जेनब इस मुश्किल घड़ी में भी जगह जगह पर जहां मौका मिलता लोगों को इस्लाम का दर्स दे रहे थे । जब वे मुकद्दस कुरान शरीफ की आयतो की तिलावत करते तो सुनकर ना जाने कितनो ने ही रास्ते में ही ईमान ले आया।
अपने नानाजान की हदीसे बयान कर वे लोगो को सब्र और नमाज से मदद हासिल करने की नसीहत कर रहे थे । इन सभी के चेहरे पर तकलीफों के कोई निशान नज़र नही आ रहे थे सभी के चेहरों पर नूर झलक रहा था आख़िर ये सभी की नूर वाले हुसैनी घराने के चश्मो चराग जो थे ।
उस मुश्किल घड़ी में भी अहले बैत से अगर कोई मिलने आता और अहले बैत की इस हालत को देखकर रोने लगता तो जैनब उनको भी हौसला देकर कहती
देखो भाई हुसैन हमारे साथ है, ए लोगों क्या तुमने कुरान नही पढ़ा है जिसमे अल्लाह ने फरमाया है की
शहीद को मुर्दा मत कहो, वे ज़िंदा है । फिर भाई हुसैन के सरे मुबारक की तरफ़ इशारा कर उन्हे बतलाती
देखो भाई हुसैन तो हर लम्हे हमारे साथ है।
हुसैन कल भी हमारे निगहबान थे,आज भी निगेहबान है और इंशाल्लाह कल सुबहे कयामत तक भी निगेहबान रहेगें।
जैनब की बातें सुनकर ना जाने कितनी ही औरतों ने उसी वक़्त ईमान भी लाया । और यह बाते जब ये औरते दूसरों को जाकर बतलाती तो उन पर भी इसका गहरा असर होता। वे सब हज़रते जैनब का हौंसला देखकर, उनकी बाते सुनकर यजीद पर लानत भेजती ।
हजरते जैनब ने जो कुछ भी कहा ।
इमामे हुसैन के सरे मुबारक के ज़रिए भी बेशुमार करामतो का ज़िक्र उलमाओ ने किया है ने जिसमे से कुछ करामातो का ज़िक्र यहां किया जा रहा है।
चलते चलते रास्ते में काफ़िले वालो का पानी खत्म हो गया तो एक जगह मैदान मे इस काफिले को रोका गया । यजीदी सिपाही प्यास से परेशान थे । उन्होंने चारों तरफ पानी ढूंढना शुरू किया मगर दूर दूर तक पानी का नामो निशान नहीं था । सभी प्यास से बेहाल हो गए थे, यहाँ तक की आगे बढ़ना दुश्वार हो गया । मैदान मे खेमे लगा दिये गए । मगर इस हालात मे भी ज़ालिमो ने इमाम ए आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम के घर वालों के लिए खेमा नहीं लगाया बल्कि उन्हें खुले आसमान के नीचे चिलचिलाती धूप में रखा गया।
अल्लाह अल्लाह कितना सब्र था हुसैनी घराने वालों में । मासूम सकीना भी प्यास से बेहाल थी मगर अब वह किसी से नहीं कहती कि मुझे प्यास लगी है कोई सकीना को पानी पिला दो । चिलचिलाती धूप ने उसे जब परेशान कर दिया तो कुछ दूरी पर ही उसे झाड़ियों का एक झुरमुट नज़र आया । सकीना खामोशी से बिना किसी को कुछ भी बतलाए उस झाड़ी की तरफ चल पड़ी ।
सकीना को पानी तो नहीं मिला मगर उस झाड़ी में उसे चिलचिलाती धूप से कुछ राहत जरूर मिल गई थी इस वजह से सकीना वहां पर आराम करने लेट गई। और फिर उसकी नींद लग गई बल्कि यह कहा जाए कि भूख प्यास और कमजोरी की वजह से सकीना पर नीम बेहोशी तारी हो गई और वह सोती रही । कुछ देर बाद काफ़िले में पानी आ गया और यजीदी सिपाहियों ने पानी पिया और फिर काफिला आगे बढ़ने लगा ।
सकीना अब भी उसी झाड़ियों के झुरमुट में सो रही थी, मगर जिनकी निगेहबानी इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम खुद कर रहे हो वो काफिला भला सकीना को छोडकर आगे किस तरह जा सकता था । काफिला अभी कुछ ही दूर आगे बढ़ा होगा की जिस नेजे पर आपका सरे मुबारक था उस नेजे को सिपाही ने रेत में कुछ पल के लिए गड़ा दिया । वह नेज़ा कुछ इस तरह से गड़ गया कि वह लाख कोशिशों के बावजूद भी नहीं निकला यहां तक कि तमाम सिपाहियों ने जोर लगा दिया मगर नेजा ज़मीन से बाहर नहीं निकला ।
यज़ीदी सिपाहियों ने इमामे हुसैन की करामात को इससे पहले भी देखा भी था और महसूस भी कर लिया था लिहाजा वे समझ गए की इसके पीछे भी कोई ना कोई वजह ज़रूर है लिहाज़ा उन्होंने यह बात इमाम जैनुल आबदीन से दरयाफ्त करते हुए उनसे मदद मांगी ।
हजरत जैनुल आब्दीन समझ गए की जरूर उनके घर का कोई ना कोई फरज़ंद पीछे छूट गया हैं जिस वजह से काफिला आगे नहीं बढ़ रहा है । आपने हज़रते जेनब से जाकर कहा कि सभी लोग ऊंट में बैठे हैं या नहीं ज़रा पता कर लें। तो हज़रते ज़ैनब ने सभी लोगों को पुकार लगाई तो पाया की सकीना नहीं है। और फिर हजरते जेनब सकीना को ढूँढने पीछे की तरफ भागी जहां वे लोग रुके थे।
सकीना सकीना आवाज देते हुए जब जैनब ने चारों तरफ नजरें दौड़ाई तो झाड़ियों के पास हजरत जेनब को कुछ परछाई सी नजर आई । हजरते जेनब झाड़ियों के उस झुरमुट के पास पहुंची तो आपने देखा की सकीना एक नकाबपोश औरत की गोद में बैठकर उन्हें कर्बला के वाकयात सुना रही है ।
जेनब ने उस नकाबपोश खातून से कहा आपका बहोत शुक्रिया कि आपने हमारी बेटी को सहारा दिया मगर यह तो बताएं इस वीराने में आप यहां पर क्या कर रही हैं?
आप है कौन ?
तब उस नकाबपोश खातून ने तड़प कर जवाब दिया बेटी जैनब तुमने अपनी मां को नहीं पहचाना। मैं तुम्हारी मां फातिमा हूं । बेटी मैं तो हर वक्त तुम्हारे साथ ही हूं। क्या तुमने मुझे मैदान ए कर्बला में नही देखा था जब बेटे हुसैन का सर मैरी गोदी में था।वहां भी मैं हुसैन के साथ थी।
बेटी मैंने भी कर्बला का मंज़र देखा है। जब मेरे बेटे हुसैन को शहीद किया जा रहा था, जहां पर हुसैन ने आखिरी सजदा किया था उस जगह पर भी मै मौजूद थी और अपने इन्ही हाथो से ज़मीन पर मौजूद कंकरिया को हटाकर ज़मीन को इसलिए साफ किया था, ताकि यह कंकरिया मेरे हुसैन को चुभने ना पाए ।
सुनकर ज़ैनब भी रोने लगी तो हजरत फातिमा ने उन्हें सब्र करने कहा और फ़िर हजरत फातिमा जहरा रजी अल्लाह तआला अनहुमा नज़रों से ओझल हो गई ।
सकीना जब वापस आ गई और जब सभी ने पूछा कि वह कहां रह गई थी तो सकीना ने मासूमियत से सभी को बतलाया की दादी कहानी सुना रही थी और कहानी सुनते सुनते मेरी नींद लग गई ।
दादी से मैंने अपने बाबा के बारे में अली अकबर, कासिम और अली असगर के बारे में और सभी लोगो के बारे में बतलाया ।
और इस तरह जब सकीना वापस आ गयी तो वह नेजा जिस पर इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सरे मुबारक था वह इस आसानी से जमीन से निकल गया की यज़ीदी सैनिक हैरान रह गए । और फिर काफिला आगे की सिम्त बढ़ता रहा। सुभानल्लाह ।
यहूदी राकिब ‘अजीज बिन हारून’ का वाक्या
काफिला आगे बढ़ता रहा । आगे जाने पर फिर एक बस्ती आई जहां पर काफिला रुक गया । हजरत जेनब ने अपनी एक कनीज जिसका नाम ‘शीरी’ था से कहा
‘हमारे पास और कुछ तो नहीं मगर ये मामूली जेवरात ही बाकी है । जैनब ने इसे अपनी कनीज शीरी को देकर कहा इसे ले जाओ और अगर कुछ खाने पीने का सामान मिले तो ले आओ ।
कनीज शीरी इसे लेकर करीब के ही एक मकान में गई और इस मकान का दरवाजा खटखटाया । वह मकान एक नेक इन्सान ‘अजीज बिन हारून’ का था, जो हजरत मूसा अलैहिस्सलाम को मानने वालों में से था। उस वक्त वह सोया हुआ था । जैसे ही उसने आवाज सुनी वह फौरन उठा और अंदर से ही आवाज देते हुए कहा
अए शीरी रुको मै दरवाजा खोल रहा हूँ ।
और फिर उसने दरवाजा खोला और कहा आओ ‘शीरी’ आओ । उस शक्स को अपना नाम लेते देख शीरी को बहुत ताज्जुब हुआ की वो उसका नाम कैसे जानता हैं ।उसे हैरान देखकर उस शख्स ने कहा
‘ क्या तुम हजरत इमामे हुसैन की बहन जैनब की कनीज़ शीरी नहीं हो ?
शीरी ने जवाब दिया
‘हां’ मगर आप मेरा नाम कैसे जानते हैं ?
तब उसने जवाब दिया की
मैं अभी सोया हुआ था कि मैंने ख्वाब में अपने पैगंबर मूसा अलैहिस्सलाम को देखा । उन्होंने मुझसे कहा की उठो और नबी के नवासे इमाम आली मकाम हुसैन के सरे मुबारक की ज़ियारत करो। जिसे ज़ालिम यजीदी नेज़े पर रखे हुए हैं। इन काफिले वालों मे ही इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम के घरवाले भी है ।
हुसैन की बहन जैनब की एक कनीज जिसका नाम शीरी होगा तुम्हारे घर पर आ रही है उन्हे खाना पीना कपड़े और जरूरी सामान देकर उनकी ख़ूब खिदमत करो ।
मेरे नबी मूसा अलैहिस्सलाम ने यह भी हुक्म दिया की
इमामे हुसैन तुम्हें कलमा पढ़ा कर मुसलमान करे तो तुम जरूर मुसलमान हो जाना अगर तुमने ऐसा किया तो तुम यकीनन जन्नती कहलाओगे और अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो फिर जहन्नम वालो में तुम्हारा शुमार होगा।
अभी मैं ख्वाब देख कर बिस्तर से उठ भी नही सका था की तुमने दरवाज़ा खटखटाया और मै समझ कहा गया की तुम कनीज़ शीरी ही हो।
फिर अजीज बिन हारून ने जरूरी सामान खाना-पीना कपड़े चादर उस कनीज को दिया और खुद भी पीछे पीछे आया और जब उसने इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नूरानी सरे मुबारक को देखा तो अदब से सलाम किया उसे सलाम का जवाब भी मिला जिसे देख कर ‘अजीज बिन हारून’ ने सरे मुबारक के सामने कलमा पढ़कर मुसलमान होने की मंशा ज़ाहिर की । इमामे आली मक़ाम ने उसे कलमा पढ़ाया और फिर इस तरह एक यहूदी मुसलमान हो गया सुभानल्लाह ।
यह सब कुछ यजीदी सिपाहियों की आंखों के सामने हो रहा था मगर उन्हें खबर ना थी। ये थी शान मेरे इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सरे मुबारक की जो घर वालों की हिफाज़त भी कर रहे थे तो वही दूसरी तरह पहले एक ईसाई पादरी को और फिर एक यहूदी आलिम को कलमा पढ़ा कर मुसलमान भी कर रहे थे । सुभान अल्लाह ।
क्रमशः ….
🖊️ तालिबे इल्म:एड.शाहिद इकबाल खान,चिश्ती – अशरफी
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