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ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला✒️ पार्ट-7

मुकम्मल ज़िक्र ‘हज़रत सैय्यदना इमाम हुसैन ‘ रदियल्लाहू त आला अन्हु’ वो ‘शोहदा ए कर्बला’
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_✒️ – पार्ट -7
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हज़रत मुस्लिम के मासूम बेटों की शहादत
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जिसने हक करबला में अदा कर दिया, अपने नाना का वादा वफा अदा कर दिया, सब कुछ उम्मत की खातिर फिदा कर दिया घर का घर ही सुपुर्द ए खुदा कर दिया उस हुसैन इब्ने हैदर पे लाखों सलाम

आपने पढ़ा की इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चचाजात भाई हजरत मुस्लिम बिन अकील किस तरह कुफे के हालात का जायजा लेने कूफें आए और किस तरह उन्हें और उनके बच्चों को कूफे वालो ने हाथों हाथ लिया और उनके हाथों पर हज़ारो लोगों ने इमाम हुसैन के नाम पर बैत की मगर कूफे वालों ने बुजदिली का जो सबूत दिया वह कभी भुलाया नहीं जा सकता है उन्होंने हजरत मुस्लिम को तन्हा छोड़ दिया और इस तरह
हजरत मुस्लिम को शहीद कर दिया गया अब आगे पढ़े

हज़रत मुस्लिम को शहीद कर देने के बाद भी उन जालिमों की प्यास नहीं बुझी और वे उनके दोनों मासूम बेटों को भी शहीद कर देने की गरज से उन दोनों की जोर शोर से तलाशी करने लगे। बच्चो को बचाने की खातिर आले नबी से मोहब्बत रखने वाले एक शख्स ने उन्हें अपने पास छुपा कर रखा था और जब उसे लगा कि दुश्मन किसी भी वक्त आ सकते हैं तो उसने उन दोनों बच्चो को रात में ही जितनी जल्दी हो सके उन्हें कूफ़े की सरहद से बाहर चले जाने की हिदायत देकर उन्हें कूफे से बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ़ छोड़ते हुए उन्हें कूफे से निकल जाने कहा मगर दोनों मासूमों ने जवाब दिया हम अपने बाबा जान को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे वह भला इन बच्चों को कैसे बतलाता कि उनके बाबा जान को तो जालिमों ने शहीद कर दिया है उसने बच्चों को हर तरह से समझाने की कोशिश की मगर जब बच्चे नहीं माने तो उसने बच्चों को बहलाने की खातिर कह दिया बेटा यहां तुम्हारी जान को खतरा है तुम कुफे की सरहद से बाहर निकल जाओ वहां तुम्हें तुम्हारे बाबा भी मिल जाएंगे। अपने बाबा से मिलने की खातिर रात के सन्नाटे में दोनों मासूम एक दूसरे का हाथ थामे सारी रात चलते रहे, भागते रहे, यहाँ तक की सुबह की लाली नमूदार हो गई। मगर वे मासूम रास्ता भी तो नहीं पहचानते थे और घूम फिरकर वो फिर कूफ़े में आ चुके थे। और सुबह आखिरकार दुश्मनों ने उन्हें देख लिया और फिर उनको गिरफ्तार कर कैदखाने में डाल दिया गया।

कैदखाने का दरोगा भी आले रसूल के इन बच्चो को जानता था, उसे भी अपनी आखिरत की फ़िक्र थी लिहाज़ा उसने इन मासूम बच्चो को किसी तरह कैदखाने से बाहर लाया और बतलाया की तुम दोनों इस रास्ते से आगे चले जाना और आगे तुम्हे एक काफिला नज़र आएगा, जो मदीने की जानिब जा रहा होगा। उन्हें बतला देना वो तुम्हे ज़रूर मदीने ले जाएंगे । बच्चों ने मासूमियत से उस दरोगा से भी अपने बाबा के बारे में सवाल किया साथ ही यह भी कहा की कल भी हम इसी तरह सारी रात भागते रहे थे लेकिन हम बाहर नहीं निकल सके यह बात सुनकर कैदखाने के उस दरोगा की आंखों में आंसू आ गए और वह बोलने लगा बोला बेटा काश कि मैं तुम्हें खुद वहां तक छोड़ कर आता लेकिन मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता । वह काफिला ज्यादा दूर नहीं गया होगा तुम जरूर उस काफिले तक पहुंच जाओगे हो सकता है तुम्हारे बाबा भी तुम्हें उस काफिले में मिल जाए । जिसे सुनकर वे दोनों मासूम दूसरी रात भी एक दूसरे का हाथ थामे काफिले की तलाश में भागते रहे, भागते रहे, यहाँ तक की सुबह हो गयी, थक हार कर वे एक दरिया के किनारे रुक गए I वहां पर उन्हें एक खोखले पेड़ का तना नज़र आया, जिसमे एक बड़ा सा खोह था, तो वे दोनों उस खोह में छुप गए और चिपट कर नींद की आगोश में समां गये। सुबह जब एक औरत दरिया में पानी लेने आयी तो उसे पानी में दोनों मासूम बच्चो की छवि दिखाई दी और उसने उन मासूमो को देखते ही पहचान लिया। वो औरत अपनी मालकिन के पास उन बच्चो को लेकर गयी. जो फातिमा की खिदमत कर चुकी थी उसने जब बच्चो को देखा तो उन बच्चो को सीने से लिपटा लिया उन्हें अच्छी तरह नहलाया धुलाया और खाना खिलाया और शौहर के आने से पहले बच्चो को घर के कमरे में छिपा दिया । उस औरत का शौहर जुवारी और शराबी था, उसने आते ही औरत से कहा काश की वो दोनों बच्चे मिल जाते तो मुझे मुंहमांगा इनाम मिल जाता I इधर दोनों बच्चे गहरी नींद सोते रहे ।उन्होंने एक ख्वाब देखा जिसमे यज़ीदी सिपाही उन्हें तलवार से मार रहे थे और बड़ा भाई कह रहा था पहले उसकी गर्दन काटी जाये और छोटा कह रहा था, पहले उसे शहीद किया जाए, और जैसे ही बड़े भाई पर तलवार चली तो छोटा चीख उठा और नींद से उठकर रोने लगा I उसके रोने की आवाज़ उस औरत के शौहर ने भी सुनी । जब उसने उन दोनों मासूम बच्चो को देखा तो उनसे उनका नाम पूछा I बच्चो ने कहा हम मुस्लिम के साहबज़ादे है जिसे सुनकर वो शख्स बहोत खुश हो गया और अपनी औरत से कहा की वाह इन बच्चो के सर पर तो बहोत बड़ा इनाम रखा गया है और अब इनके सर मै जब उबैदुल्लाह के पास पेश करूँगा तो हम मालामाल हो जायेंगे I उस औरत ने अपने शौहर को हर तरह से समझाया और रोका भी I मगर उस लालची शख्स ने अपनी औरत को भी बेरहमी से मारा और बच्चो को दरिया ए फुरात के किनारे ले जाकर उन दोनों ही मासूमो को बड़ी बेरहमी से क़त्ल कर दिया और इस तरह हज़रत मुस्लिम के ये दोनों मासूम शहज़ादे मोहम्मद और इब्राहिम भी कर्बला की सरजमीन पर शहीद हो गए ।
( इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैही राजेऊन )

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मासूम बच्चो के कातिल की सज़ा का वाक्या
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उस बदबख्त ने उन दोनों मासूम बच्चो के धड़ को दरिया ए फुरात में फेक दिया और मासूमो का सरे मुबारक कपडे में बांध कर थाली में सजाकर उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के पास ले गया। और बड़े फक्र से दिखाकर अपना इनाम hn माँगा। उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद ने कहा लेकिन तुमने उन बच्चो को क़त्ल क्यों कर दिया जबकि मैंने यज़ीद के पास ये खबर भिजवा दी है की दोनों बच्चे कैदखाने में है उन्हें ज़िंदा भेजु या उनका सर काटकर भेजू अब अगर यज़ीद ने कह दिया उन्हें ज़िंदा भेजो तो मै क्या जवाब दूंगा। उसने हुक्म दिया की दोनों बच्चो के सर भी दरिया में बहा दो और इस गुस्ताख़ को भी वही क़त्ल करके इसे भी दरिया में फेक दो। दोनों बच्चो के सरो को वापस उसी जगह लाकर दरिया में डाल दिया गया अल्लाह की कुदरत की “दरिया ए फुरात” ने उन बच्चो के सरे मुबारक को उनके जिस्मो में जोड़ दिया मगर उस ज़ालिम की लाश को दरिया ए फुरात ने भी बाहर फेक दिया और बता दिया की आले रसूल के साथ दरिया भी दुश्मनाने हुसैन को जगह नहीं दे सकता । इस वाकये से एक बात और समझ आ गयी की जिस दरिया ए फुरात के पानी में हुसैन के घराने का खून मिल चुका हो उस पानी को हुसैन या कोई भी घरवाले भला किस तरह पी सकते थे ।

जो लोग यह सोचते हैं कि हज़रत मुस्लिम ने इमामे आली मकाम हुसैन रदीअल्लाहो तआला अन्हों को कूफ़े में आने के लिए ख़त लिखा और खत से मुतमईन होने के बाद ही हुसैन कूफे के लिए रवाना हुए तो उनकी सोच निश्चित ही गलत है । इमामे हुसैन को तो खत से कोई सरोकार ही नहीं था क्योकि वे सब कुछ पहले ही से जानते थे कि कर्बला में क्या कुछ होने वाला है ।
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जन्नत में इमाम हसन और इमाम हुसैन के महल
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इमाम हुसैन को तो उनके नाना जान बाबा अली और भाई हसन ने भी पहले ही बतला दिया था । हुसैन को याद है जब भाई हसन ने शहीद होने से पहले उन्हें यह वाक्या सुनाया था की जब उनके नानाजान को मेराज में अल्लाह ने अपने पास बुलवाया था और जब नानाजान को जन्नत की सैर करवाई जा रही थी तो उन्होंने जन्नत में दो बड़े-बड़े महल देखे जो बेहद खूबसूरत थे उनमें से एक महल हरे रंग का था दूसरा महल लाल रंग का था। नानाजान ने जन्नत के दरोगा से जब यह पूछा की यह महल किसके हैं ? तो जन्नत के दरोगा ने यह जवाब दिया था की हुजूर यह दोनों महल आपके दोनों शहजादे हसन और हुसैन के हैं जो जन्नत में नौजवानों के सरदार होंगे। आपने पूछा मगर इन दोनों महलों में से एक का रंग हरा और दूसरे का लाल क्यों है ? सुनकर जन्नत के दरोगा ने आंखें झुका ली और वो कोई जवाब नहीं दे सका ।फिर आपने जिब्राइल अलैहिस्सलाम से भी यही सवाल किया तो जिब्रील अलैहिस्सलाम भी ख़ामोश रह गए ।आका ए करीम ने जिब्राइल अलैहिस्सलाम से दोबारा फिर यही सवाल किया तो अल्लाह ने जिब्रील अलैहिस्सलाम से फरमाया ए जिब्राइल हमारे महबूब से कुछ ना छुपाओ । बेशक तुम्हारे रब के सिवा गैब के इल्म को कोई नहीं जानता है मगर तुम्हारा रब जिसे चाहता है उसे ये इल्म अता करता है । और हमने अपने महबूब को यह इल्म अता किया है । तो तुम चाहे बताओ या ना बताओ मेरे महबूब को पता है । और इस तरह से जिब्रील अलैहिस्सलाम ने आका ए सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम को बतलाया की हुज़ूर आपके दोनों नवासे इमाम हसन और हुसैन शहीद होंगे । हसन को जहर देकर शहीद किया जाएगा और हुसैन के गले में खंजर चलाकर उन्हें शहीद कर दिया जाएगा । लिहाजा हुसैन यह जानते थी कि उनकी मंजिल अब अनकरीब है और हुसैन अपने नानाजान से किया गया वादा निभाने और दीन को बचाने की खातिर कर्बला आ रहे थे
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मक्के मो अज़्ज़मा से कर्बला का सफ़र
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मक्के मो अज़्ज़मा में हज़रत अबू सईद ख़ुदरी, हज़रत बिन अब्दुर्ररहमान हजरत अब्दुल्ला बिना अब्बास रदियल्लाहु त आला अन्हु ने गुजारिश की की

ए हुसैन अभी कुछ दिन और मक्के मे ही रहो कुफ़े वाले एतबार के काबिल नहीं है

उनकी बाते सुनकर सभी अर्ज़ करने लगे ए शहजादा ए रसूल अभी आप ना जाए

इमाम हुसैन ने फ़रमाया

मैं जानता हूँ आप मेरे सच्चे हमदर्द हैं मैं आपकी नसीहत और शफक्कत का शुक्र गुजार हूं अगर मैं नहीं गया तो कूफा वाले यही कहेंगे कि हमने तो इमाम आपको बुलाया था मगर आप नहीं आए और हमें मजबूरन यजीद की बैत करनी पड़ी तब मै अपने नाना को क्या मुँह दिखलाऊंगा

जब हुसैन nahi रुके तो अब्दुल्लाह बिन अब्बास ने फिर रोते हुए अर्ज़ किया ए हुसैन बच्चों को मत ले जाओ हमारा दिल घबरा रहा है

हुसैन ने बच्चों की तरफ देखा मगर कोई भी हुसैन का साथ छोड़ने को तैयार न थे लिहाजा सभी ने रोते हुए हुसैन को आख़री सलाम अर्ज़ कर अल्लाह से अहले बैत की सलामती के लिए दुवा मांगी

जब यह काफिला मक्के से निकाला तो अब्दुल्ला बिन उमर और बहुत सी मोअज़्ज़ीज़ हस्तिया भी साथ साथ चल रहे थे जिनमे कुछ सहाबा भी थे उन्होंने आगे बढ़कर हुसैन की पेशानी को चूमते हुए कहा

ए जन्नती जवानों के सरदार हम आपको खुद के हवाले करते है हालांकि दिल गवाही देता है कि आप शहीद कर दिए जाएंगे

सुनकर इमाम हुसैन मुस्कुराए और कहा नाना के दीन की खातिर अगर अली के घराने के एक एक फर्द को सर कटाना पड़ा तो हुसैन ख़ुशी से सबको कुर्बान कर देगा
इसतरह ये हुसैनी काफिला मक्के से आगे बढ़ता है

इमाम ए आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने खानदान वालों के साथ, जिनमे औरते भी थी बच्चे भी थे और उनके चन्द जानिसार साथी भी शामिल थे के साथ कूफे की सिम्त रवाना हो चुके थे ।

इसी दौरान मदीना से एक काफिला आता है और हज़रते ज़ैनब के बेटे यानि इमाम हुसैन के भांजे औन और मोहम्मद आते है और अपने वालिद अब्दुल्लाह बिन ज़ाफ़र का ख़त अपने मामू जान को देते है हुसैन ख़त पढ़ते है जिसमे लिखा होता है की
ए हुसैन मुझे इत्तेला मिली है की आप कुफ़े जा रहे है आपको ख़ुदा का वास्ता आप कुफ़े हरगिज़ न जाए कुफ़े वालो से वफ़ा की उम्मीद नहीं की जा सकती

फ़िर भी अगर आपने इरादा कर ही लिया है तो ए इमाम हुसैन अपने दोनों बेटो को आपके सुपुर्द करता हूँ ए हुसैन वादा करे की अगर जंग होती है तो मेरे दोनों बेटों को जंग मे शहीद होने का आप पहले मौका देंगे

हुसैन दोनों नन्हे शहज़ादो को गले से लगा लेते है हज़रते जैनब भी दोनों बच्चों को देख कर बहुत ख़ुश होती है

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हज़रत ए हुर की फ़ौज से सामना
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आपका ये काफिला अब “ज़ुहसम” नाम के एक स्थान पर आ पंहुचा था I जहाँ पर आपने डेरा डाला हुवा था वही पर इमाम हुसैन क़ा सामना यज़ीद की फ़ौज के पहले दस्ते से हुआ। लगभग एक हज़ार फ़ौजियों के इस दस्ते क़ा सेनापति “हुर्र बिन यज़िद रियाही” था। जब हुर्र की सैनिक टुकड़ी इमाम के सामने आई तो रेगिस्तान में भटकने के कारण सैनिकों क़ा प्यास के मारे बुरा हाल था। उनकी जान उनके हलक में अटकी हुवी थी I जब हुर्र की नज़र इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के खेमों पर पड़ी तो वे जान गए की ये वही हुसैनी काफिला है जिनकी गिरफ़्तारी के लिए यज़ीद ने उन्हें भेजा है

उस प्यास हुर्र और उनकी सेना का प्यास से बुरा हाल था

हुर की आवाज सुनकर हुसैन खेमे से बाहर आए । हुर ने जब हुसैन को देखा तो उन्होंने फ़ौरन उन्हें पहचान लिया I और पूछा की क्या आप इमाम हुसैन इब्ने अली है ? हुसैन जो पहले ही से जान चुके थे की ये यजीद के सिपाही है जो इस वक़्त प्यास से निढाल थे । दुश्मन के सिपाही होने के बावजूद इमाम आली मक़ाम हुसैन ने मुस्कुराते हुवे हूर से कहा ‘ आप बहुत प्यासे हैं पहले पानी पी लो फिर बात करते है ’ और इस तरह आपने खुद अपने हाथो से हुर और उनकी प्यासी सेना को पानी पिलाया और इन्सानियत की जो मिसाल कायम की वो क़यामत तक कायम रहेगी I अगर इमाम हुसैन उस वक्त हुर्र और उनके सिपाहियों को पानी नही पिलाते तो इस सैनिक टुकड़ी के सभी लोग प्यास से मर भी सकते थे, लेकिन इमाम हुसैन उस नबी के नवासे थे जो ख़ुद प्यासे रह जाते मगर दुश्मन को भी पानी ज़रूर पिलाते ।

हुर्र ने भी पानी पीने के बाद हुसैन इब्ने अली को अपने आने का मक़सद बताया सुनकर आपने फ़रमाया की हमें तो कूफे वालो ने ख़त लिखकर बुलवाया है हुसैन ने वे सारे ख़त भी हुर्र को दिखलाया

तब हुर्र ने कहा मुझे हुक्म हुवा है की मै आपको गिरफ्तार करके इब्ने ज़ियाद के पास ले जाऊ ए हुसैन इब्ने अली दिल न चाहने के बावजूद मै मजबूर हूँ
इस तरह दोनों काफिले आगे पीछे बढ़ते रहे मगर जब नमाज़ का वक़्त होता तो हुर्र हुसैनी खेमे मे आ जाते और इमाम हुसैन के पीछे नमाज़ पढ़ते

और फ़िर इब्ने ज़ियाद का ख़त हुर्र के पास आता है जिसे पढ़कर हुर्र बेचैन हो जाते है और फ़िर इमाम हुसैन से फरमाते है
ए हुसैन मै आपको कोई नुकसान नहीं पंहुचा सकता आपसे इल्तिज़ा है की रात होने पर आप राह बदलकर कही दूर निकल जाए

रात होने पर हुसैन का यह काफिला हुर्र के काफिले से अलग होकर चलता रहा मगर हुसैन को तो अपनी मंज़िल का पहले ही से पता था । लिहाज़ा उनका काफिला आगे बढ़ता रहा और एक जगह पर आकर वो रुक गए और वहां की मिट्टी उठाकर सूंघा फ़िर काफिले को यही खेमे लगाने कहा सभी हैरान थे हुसैन ने यहाँ खेमे लगाने क्यों कहा
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इमाम हुसैन की कर्बला में आमद
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और फ़िर जब एक राहगीर से हुसैन ने इस जगह का नाम पूछा तो मालूम हुवा ये जगह करबो बला यानि कर्बला है

इस तरह तक़रीबन 22 दिन तक रेगिस्तान के मुश्किल भरे सफ़र के बाद इमाम ए आली मकाम हुसैन क़ा ये काफ़िला 2 अक्तूबर सन 680 ई० यानि 2 मुहर्रम 61 हिजरी को आज के मौजूदा देश इराक़ के उस स्थान पर पहुँचा, जिसको क़र्बला कहा जाता है। हुर्र की सैनिक टुकड़ी भी कर्बला में आ चुकी थी। और हुर्र हुसैनी खेमे को देखकर हैरान थे क्योंकि वो ये सोच रहे थे हुसैन किसी सुरक्षित जगह पहुंच गए होंगे मगर हुर्र की कैफियत अब बदल चुकी थी वे कहने को तो दुश्मन के सिपाही थे लेकिन दिल से इमाम ए आली मकाम के शैदाई हो चुके थे । होते भी क्यो न उन्होने हुसैन और उनके घराने की सखवात को इतने करीब से जो देख लिया था ।

क्रमशः

🎍 तालिबे इल्म: एड.शाहिद इकबाल खान,चिश्ती-अशरफी

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