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ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥✒️- पार्ट-8

  • दीं पनाहअस्तहुसैन-
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क़ुर्बान खुद को कर के मुसल्ला बचा लिया
सर दे दिया हुसैन ने सजदा बचा लिया।

दीन-ए-नबी बचा लिया इतना ही मत कहो
कहिये अली के लाल ने क़ाबा बचा लिया।

रोज़ा-नमाज़ दीन-ए-मुह़म्मद की अज़मतें
तन्हा मेरे हुसैन ने क्या क्या बचा लिया।

क्या यज़ीद को खबर नही मिली होगी की इमाम हुसैन कूफे के करीब आ गए हैं उनके साथ कोई लश्कर नही बल्कि सिर्फ़ हुसैन के घराने के छोटे बड़े, मर्द औरते, बच्चो के आलावा, चंद खिदमतगुजार लोग ही है जिनमे ज़इफ सहाबा भी थे जो कोई जंग लड़ने नही आए थे बल्कि कूफे वालो के बुलाने पर उनके मेहमान बनकर आए थे।

यजीद को ये भी बतला दिया गया था की कूफे वाले इमाम हुसैन का साथ नहीं देंगे फ़िर भी उसे हुसैन इब्ने अली का खौफ था क्योंकि वो उनके घराने वालो की ताकत को बखूबी जानता था होता भी क्यों न सभी की रगों में शेरे खुदा का खून जो दौड़ रहा था इसलिए उसने बहुत बड़ी सेना का लशकर पहले ही कूफे रवाना कर दिया था।

नहरे फुरात के क़रीब एक तरफ यज़ीद की फौज थी जिसकी तादाद तकरीबन 22 हज़ार बतलाई जाती है तो दूसरी तरफ शेरे खुदा के लाल इमामे हुसैन थे जिनके साथ कुल 72 लोग ही थे और ये भी कोई लशकर के सिपाही नही बल्कि हुसैनी घराने के लोग जिनमे बच्चे और औरते भी शामिल थी ।

अब यज़ीद की तरफ़ से इमाम हुसैन को धमकी भरे पैगाम आना तेज़ हो गए इमाम हुसैन को खौफजदा करने की कोशिशें की गई और कहा गया की ए हुसैन यज़ीद की बैअत स्वीकार कर ले और उसकी हुक़ूमत पर अपनी रजामंदी की मुहर लगा दे I अगर यजीद के बदले कोई दीन दार होता तो बात अलग थी यहां तो बदबख्त यजीद पलीद था जो मक्के मोअज़्जामा जैसी मुकद्दस जगह में भी शराब और कनीजे साथ लेकर जाता भला उस पलीद के नापाक हाथों पर हुसैन अपना पाक हाथ कैसे दे सकते थे इमाम ए हुसैन को ये न तो पहले मंज़ूर था और न ही अब जंग के हालात मे मंज़ूर होना था ।

हुसैन यहां दीन बचाने ही तो कूफे आए थे लिहाज़ा उन्होंने यहां पर भी वही जवाब भेजा की कह देना उस यजीद पलीद से की हुसैन अपना सर तो कटा सकता है मगर अपना हाथ उस फासिक यज़ीद के नापाक हाथो में कभी नहीं दे सकता I

इस ख़बर को सुनकर यज़ीद आग बबूला हो गया I यज़ीद ने पैगाम भेजा की अगर हुसैन उनकी बात नहीं मानेंगे तो उन्हे और उनके साथियो को अंजाम भुगतना होगा और कर्बला की तपती रेत मे भूखे प्यासे रहना होगा । उस मौसम में कर्बला मे शिद्दत की गर्मी थी जहां तापमान 50 डिग्री तक हो जाता है । जिसे यजीद अच्छी तरह से जानता था उसे पता था की हुसैन के साथ औरते और बच्चे भी है जिनहे हुसैन तड़पता हुआ नहीं देख सकेंगे। मगर वो भूल गया की ये हुसैन और उनके घराने वाले है जो भूख प्यास और सारे ज़ुल्म तो बर्दाश्त कर सकते है मगर यजीद की बैअत कभी स्वीकार नहीं करेंगे।

फ़ुरात नदी (अलक़मा नहर) के करीब इमाम ए आली मकाम हुसैन के हुक्म पर जहां खेमें लगाए गए हुसैन ने उस जगह के मालिक को तलब किया और उसकी मनचाही कीमत पर इस जगह को ख़रीदने की जब बात कहीं तो उस शख़्स के साथ साथ हुसैन के घर वालो ने सवाल किया की इस जगह को हुसैन आख़िर क्यों ख़रीद रहे है तो इमामे हुसैन ने जवाब दिया कल को इसी जगह पर हुसैन के साथ उसके भाई बच्चे भी दफ़न होगे तो लोग ये कहे की हुसैन के बच्चें किसी और की जगह पर नही बल्कि अपने बाबा की ज़मीन पर आराम कर रहे है।

इधर कूफे वालों को भी इमाम हुसैन के आने का पता चल चुका था, वो जो कल तक इमाम आली मकाम से मोहब्बत का दम भरते थे और एक के बाद एक सैकड़ों ख़त भेजकर इमाम आली मकाम हुसैन को कूफे में बुलाया था,40000 लोगो ने हुसैन के ना होने के बाबजूद हुसैन के नाम की बै अत की थी,वे बुजदिल आाज अपने घरों में डर कर छुपे बैठे थे । कोई भी इमाम हुसैन से मिलने तक नहीं आया।

मोहर्रम की 2 तारीख़ से 7 तारीख़ तक यज़ीदी सेना का ज़ुल्मो सितम बढ़ता चला गया और मोहर्रम की 7 तारीख़ को ज़ालिमो ने ज़ुल्म की सारी हदें पार कर दी ओर नहरे फुरात के पानी पर पहरा लगा दिया ।

अल्लाह अल्लाह ये कैसा मंज़र था अली के ये घराने वाले तपती रेत पर शिद्दत की गर्मी में अपने अपने खेमों में भूखे और प्यासे है सब्र की इंतेहा तो देखो की किसी के चेहरों पर कोई शिकन तक नहीं हैं सभी तयम्मुम करके हुसैन के पीछे नमाज़ पढ़ रहे है ।

वो हुसैन जिन्हें भूख लगने पर ख़ुद रब आसमान से दस्तरखान उतार देता था,

नए कपडे की माँ से जिद करने पर अल्लाह फरिश्तों को हुक्म देता था और जन्नत से आसमानी लिबास उतर जाया करते थे।

हुसैन को रोता देख रब जिब्रिले अमीन को अर्श से ज़मीन पर भेज देता।

आज उस हुसैन और उनके घरवालो का रब कैसा इम्तेहान ले रहा है की हुसैन के घरवालो को भूखा –प्यासा रखा जा रहा है। सकीना के होठ सूख गए है मगर वो अली असगर के रोने पर अपनी ज़बान उसके मुंह पर डाल कर उसे दिलासा दिला रही है और कह रही हैं चचा अब्बास पानी लाते है चुप हो जा भाई। ,

अल्लाह अल्लाह ये कैसा सख्त इम्तेहान था । मासूम सकीना की बातें सुनकर और ख़ेमे के मंज़र को देखकर सारी कायनात रो रही थीं, तमाम जिन्नो मलायक रो रहे थे,तमाम अम्बिया रो रहे थे I

अगर कोई खुश था तो वो यजीद और उसके सिपाही जो ताने भी कस रहे थे। मगर हुसैन सब्र कर थे, जिनके लिए अल्लाह ने भी का दिया था ए हुसैन बेशक मै सब्र करने वालो के साथ हूं। अगर ये कहा जाए तो गलत ना होगा की अल्लाह ने हुसैन के सब्र के ज़रिए दुनिया वालो को बतला दिया था की मै हुसैन के साथ हूं।

दरिया-ए-फुरात का पानी भी जिनके लबो का मुंतज़िर था, मगर मेरे हुसैन और उनके घर वालो का सब्र तो देखिए की इस मुश्किल घड़ी मे भी किसी के चेहरों पर कोई शिकन नहीं थी ।

नमाज़ का वक्त होने पर वुजू के लिए पानी नहीं है, लेकिन तयम्मुम करके हुसैनी खेमे मे नमाज़ अदा हो रही थी I

दूसरी तरफ कौन लोग थे वो कोई गैर मुस्लिम नहीं बल्कि मुसलमान ही थे, जिनके पास पानी ही पानी था। कर्बला में दोनो ही तरफ अज़ान हो रही है, अज़ान में मोहम्मद रसूल अल्लाह का नाम भी पुकारा जा रहा है, मगर नबी ए करीम के घरवालों के साथ ऐसा सुलूक।अल्लाह अल्लाह क्या इन्हें मुसलमान कहना मुनासिब होगा। अज़ान के बाद दोनो तरफ़ नमाज़े भी हो रही है, सभी जानते है की इमाम अली के बेटे इमाम हुसैन यहां है ।

क्या उन से बढ़कर कोई और इमाम हो सकता है । यज़ीदी खेमे वाले भी यह बात अच्छी तरह से जानते थे की इमाम हुसैन से बढ़कर कोई और इमाम वहां कोई और नहीं है। हां मगर यज़ीदी खेमे में एक सिपहसालार हुर्र भी थे जिसे हुसैन ने कुछ दिन पहले ही तो पानी पिलाकर ज़िंदगी बख़्शी थी । उनके सीनों में ईमान अभी बाकी था लिहाजा वे बेताब हो उठे, हुसैन के पीछे नमाज़ पढ़ने के लिए क्योंकि उन्हे ये भी पता था की उनकी नमाज़ कहा कुबूल होगी, और अल्लाह किनके साथ है । उन्हे अपने अंजाम का भी पता था मगर वो बुजदिल नही थे, वे यह भी जानते थे की अगर मेरी आखिरत इमाम हुसैन के साथ नहीं हुई तो यक़ीनन मैं जहन्नमी होऊंगा ।

इसीलिए यज़ीदी खेमे में होने के बावजूद भी उन्होने जल्द ही फ़ैसला लेकर अपने घोड़े को एड़ लगाकर हुसैनी खेमे में आ गए और देखा की इमाम हुसैन नमाज़ पढ़ा रहे है सभी उनके पीछे नमाज़ पढ़ रहे है । हुर्र भी भी इमाम हुसैन के पीछे नमाज़ पढ़ने लगे । हुर्र अभी तक हुसैन के साथ ज़ाहिरी तौर पर शामिल नहीं हुवे थे मगर फिर भी वे नमाज़ हुसैनी खेमे में अदा कर रहे थे I

क्योकि अल्लाह ने ये बतला दिया था की जो हुसैन के साथ होगा नमाज़ सिर्फ़ उसी की कुबूल होगी और जो हुसैन के पीछे नहीं उसकी नमाज़ रब हरगिज़ कुबूल नहीं करेगा I

रावी बयान करते है की दिन तो दिन बल्कि सारी रात इमाम ए आली मकाम हुसैन और उनके घर वाले वो सभी जानिसार साथी अल्लाह की इबादत कर रहे होते थे उस वक्त भी ये हुसैनी दुवा ये नहीं कर रहे होते की

“अए अल्लाह हमारी ज़िन्दगी को बचा ले, अए अल्लाह हम भूखे प्यासे है जिस तरह से तूने पहले भी हुसैन के लिए आसमानी दस्तरखान उतारा था, वही दस्तरखान आज भी उतार दे । शिद्दत की इस गर्मी मे हमारे लब सूख गए है मौला तू हमारी प्यास मिटा दे I

उस वक्त भी सभी इमामे आली मक़ाम हुसैन की दुवा में सिर्फ़ आमीन ही कहा करते थे, क्योंकि सभी ये बात बखूबी जानते थे की हुसैन जो दुवा कर दे तो आज भी
तो उनके एक इशारो पर जन्नत से दस्तरखान उतर आएगा।

हुसैन अगर नहरे फ़ुरात को हुक्म दे तो पानी खुद उनके पास आ जाएगा ।

मगर नहीं उन सबने भी सब्र का साथ नही छोड़ा और उनके चेहरों पर कोई शिकन नहीं आई सभी को हुसैन के हुक्म का इंतज़ार था की कब हुसैन इजाज़त दे और वो यजीदी सेना की ईट से ईट बजा दे।

क्या आप जानते नही की हुसैन की औलाद की औलादों में से ही हिन्द के बादशाह हुजूर ख्वाजा ग़रीब नवाज़ सरकार ने क्या किया जब उनके साथियों पर अनासागर से पानी लेने बंदिशे लगाई गई तो आपने कहा इसमें क्या बड़ी बात है हम पानी को हुक्म देते है पानी ख़ुद यहां आ जाएगा।

हुवा भी यही उनके खादिम ने कांसे को आनासागर की तरफ़ करके सिर्फ़ इतना ही कहा था के ये ए पानी तुझे मेरे ख़्वाजा ने बुलाया है । और आनासागर का सारा पानी कांसे में आ गया था I

दरहकीकत हुज़ूर ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ ने इमाम ए आली मकाम हुसैन के नक्शे कदम पर चलने वालों को यह बतला दिया की पानी को अपने पास बुलाना हमारे लिए कोई कमाल की बात नहीं है, हुसैन भी चाहते तो दरिया ए फुरात का पानी हुसैनी खेमों में आसानी से आ जाता मगर वहां मक़सद दीन बचाना था और यहां मक़सद दीन फैलाना था ।

ज़रा सोचे जब उनकी आल का ये आलम है तो हुसैन और हुसैन के घर वालो का क्या आलम होगा । सुभान अल्लाह।

मुहर्रम की 7 तारीख तक हुसैनी खेमो मे खाने पीने का सारा सामान ख़त्म हो चुका था शिद्दत की गर्मी में हुसैनी खेमों में सब्र का इम्तेहान अल्लाह रब्बुल आलमीन ने भी किस तरह देखा होगा यह तो सिर्फ़ वो रब्बुल आलामीन ही जानता है । मगर इस मुश्किल वक्त मे भी सभी इबादते इलाही मे मशगूल है ।

इमाम हुसैन के बेटे ज़ैनूल आबदीन सख्त बीमार है, मासूम अली असगर की वालिदा का दूध पूरी तरह शुष्क हो चुका है ऐसे मे प्यास की शिद्दत से मासूम अली असगर रो रहे है, अली असगर को कभी झूले में लिटाया जाता है तो कभी गोद में सुलाया जाता है मगर एक बार भी उन्हें जमीन पर नहीं लिटाया गया क्योंकि हुसैन यह जानते थे कि कहीं ऐसा न हो की अली असगर की एड़ी से भी आबे जमजम ना निकल आए ।

सकीना खुद प्यास से बेहाल है मगर भाई अली असगर को दिलासा देकर उसे चुप करा रही है, और कभी खुश होकर तो कभी मुंह बनाकर अली असगर को बहला रही है, उसकी भी ज़ुबान सूख चुकी है, कमज़ोरी इतनी की आवाज़ निकलने में भी मुश्किल हो रही है, अल्लाह अल्लाह क्या मंज़र था खेमे का । अगर किसी को सब्र देखना हो तो वो आज इस हुसैनी खेमों में देखे।

क्रमशः ……

🖊️तालिबे इल्म: एड. शाहिद इकबाल ख़ान, चिश्ती -अशरफी

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