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ज़िक्र ए शोहदाए कर्बला✒️ – पार्ट-1

दीं पनाह अस्त हुसैन

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“बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम”

#मलिकुल मुल्क ला शरीका लहू,
#वहदहु ला इलाहा इल्लल्लाहु

तमाम तारीफ़े वो खूबियां उस पाक ज़ात की है जो मालिक है सारे जहांन वालो का ।
बहुत मेहरबान, रहमत वाला ।रोज़े जज़ा (इंसाफ के दिन) का मालिक ।
या अल्लाह हम तेरी ही इबादत करते है और तुझी से मदद चाहते है ।
हमको सीधा रास्ता चला ।
रास्ता उनका जिन पर तूने अहसान किया न उनका जिन पर गज़ब(प्रकोप) हुवा । और न बहके हुओ का ।

शुक्र है उस मालिकुल मुल्क रब्बुल आलमीन का जिसने मुझ नाचीज़ में किसी तरह की काबिलियत नही होने के बाबजूद गुजिश्ता साल की तरह इस साल भी माहे मोहर्रम में इमाम ए आली मक़ाम हज़रत सैय्यद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और शोहदा ए कर्बला का ज़िक़्र सुनने सुनाने की सआदत बख्शी । दुवा करे की अल्लाह त आला अपने महबूब मोहम्मद मुस्तफा ﷺ‎ के सदके वो तुफैल मेरी इस कोशिश को कुबूल फरमा ले आमीन ।

बेशक ये सब हुजुर ख्वाजा ए ख्वाजगा ग़रीब नवाज़ और मेरे मुर्शिद का करम और दुवाएं है जिनके सदके वो तुफैल कर्बला की दास्तान लिख सका हूं ,यदि लिखने में किसी किस्म की कोई गलती या बेअदबी हो जाए तो माफ़ी चाहूंगा।

मेरी लिखी पोस्ट को आप बिना किसी काँट छांट और फेर बदल के आगे शेयर भी कर सकते है।

सबसे पहले हमें अपने खालिक़ और मालिक ‘रब्बुल आलमीन अल्लाह عزوجل को जानना, और उसका हुक्म मानना ज़रूरी है। अपने दीन को अच्छी तरह जानना और समझना ज़रूरी है।

मुक़द्दस कुरआन में हर सवाल का जवाब मौजूद होने के बाद भी हम गुमराह क्यो है, दीन से दूर क्यो है हमे इस पर गौर ओ फ़िक्र करने की ज़रूरत है। हमें चाहिए की मुकद्दस कुरआन को हिंदी तर्जुमे के साथ भी ज़रूर पढ़े । कुरान और अहले बैत का दामन थामने की हिदायत हमे ख़ुद आका ए करीम ने दी है। जिसने दोनो को समझा और माना बेशक वो कभी गुमराह नही होगा।

‘सूरए इखलास’ में उस जाते मुकद्दस यानि अल्लाह عزوجل के बारे में फरमाया गया है की:-

“अल्लाह एक है ।
अल्लाह बेनियाज़ है ।
न उसकी कोई औलाद है और
न वह किसी से पैदा हुवा और
न उसके जोड़ (जैसा/बराबरी) का कोई है।
सुभान अल्लाह।

एक सच्चा मुसलमान अल्लाह के सिवाय किसी और की इबादत नहीं करता है । और
इस बात की भी गवाही देता है की हजरत पैगम्बर मोहम्मद ﷺ अल्लाह के रसूल है ।जिनकी इताअत और फरमाबरदारी हर मुसलमान के लिए जरूरी है ।

जब न ही ये ज़मीन थी, न आसमान था, न सूरज, न चाँद, न सितारे कही कुछ भी न था तो उस वक़्त भी अगर कुछ था तो वो जाते मुक़द्दस थी जिसने सारी कायनात को बनाया जिसने हर चीज़ को हर शै को पैदा किया । जिसने हमें भी पैदा किया। और बेशक हम सभी उस पाक ‘रब्बुल आलमीन यानि अल्लाह عزوجل के बंदे है और उसके प्यारे महबूब के उम्मती भी है जिससे बढ़कर खुशमती भला हमारे लिए और क्या हो सकती है ।

नूरे मोहम्मदी और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की तखलीक

और फिर जब रब ने चाहा कि वह अपने सिवा किसी और को बनाए तो उसने ‘नूर ए मोहम्मदी’ को बनाया जो ना जाने कितने ही सालो तक अपने रब के क़रीब रहकर उसकी सना और इबादत मे मशगूल रहा।और फिर फरिश्तों को और जिन्नातो को पैदा किया ।

और फिर जब रब ने अशरफुल मखलूकात को बनाने का इरादा किया तो उसने गारे की तरह खनखनाती हुई मिट्टी से आदम का पुतला बनाया और फिर उसमे रूह दाखिल किया । रूह को करार ना मिला तो वो फ़ौरन बाहर निकल गई और जब नूरे मोहम्मदी को ‘हज़रत आदम अलैहिस्सलाम’ मे दाखिल किया तो रूह को करार मिल गया इस तरह अल्लाह ने हज़रत आदम की तखलीक फरमाई और फिर रब ने उन्हें हर चीजो के नाम सिखलाए, फिर फरिश्तो को हुक्म दिया की वे ‘हज़रत आदम अलैहिस्सलाम’ को सजदा करें ।

सिवाय इब्लीस के तमाम फरिश्तों ने अपने रब का हुक्म मानते हुए सजदा ए ताजीम किया । इब्लीस जो जिन्नातो में से था, और ख़ूब ख़ूब इबादतो की बिना पर जन्नत में रह रहा था उसको गुरुर हो गया और ये गुमान हो गया की वो हज़रत आदम से कहीं ज़्यादा बेहतर है, लिहाज़ा उसने रब का हुक्म नही माना और आदम को सजदा नहीं किया और वो मरदूद हुवा ।

अल्लाह ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम की पसली से ‘हज़रत ए हव्वा’ की भी तखलीक फरमाई । ‘हजरत आदम और हव्वा अलैहिससलाम’ एक मुद्दत तक जन्नत में आराम से रहे । रब ने उन्हें एक ख़ास पेड़ के पास जाने और उसके फल(गंदुम) खाने से मना किया था मगर शैतान ‘इब्लीस’ ने उन्हें बहकाया और फिर उसके बहकाने पर जब उन्होंने उस फल को खा लिया तो अल्लाह ने शैतान इब्लीस के साथ साथ हजरत आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम को भी जन्नत से निकल जाने का हुक्म दिया ।

इब्लीस ने रब से कहा कि तू मुझे इतनी मोहलत और इख़्तेयार दे कि मैं तेरे बन्दो को तेरी इबादत करने से बहका सकू । अल्लाह ने उसे मोहलत देते हुए फरमाया अये मरदूद तू चाहे जितनी कोशिश कर ले मगर याद रख जो मेरा नेक बंदा होगा उस पर तेरा कोई ज़ोर न चल सकेगा और उसे तू कभी बहका ना सकेगा ।

इस तरह रब ने उन्हें जमीन पर उतारा । जैसा की रब ने फ़रमाया है की उसने इन्सान को अपनी इबादत के लिए दुनिया मे भेजा है, लिहाज़ा हजरत आदम अलैहिस्सलाम ने दिन रात अपने रब की इबादत की और जो कलेमात रब से सीखा था उसका विर्द करके ख़ूब रो-रो कर रब से अपनी गलतियों की माफी मांगी और फिर अल्लाह के प्यारे महबूब का वसीला देकर दुवा मांगी तो अल्लाह ने हजरत आदम अलैहिस्सलाम की तौबा कुबूल करके उन्हें माफ कर दिया।

जिससे मालूम हुवा की
जिस किसी ने भी अपने रब के हुक्म को माना अल्लाह ने उनका मर्तबा बुलंद किया और उन्हें जन्नत की खुशखबरी दी और जिन्होंने अपने रब के हुक्म को नहीं माना और गुनाहो मे मुब्तिला रहा तो अल्लाह ने उन्हें जहन्नम के अजाब से डराया ।

हजरत आदम अलैहिस्सलाम की पेशानी मुबारक पर अल्लाह के प्यारे महबूब हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम का नूरे मुबारक रखा था जो उनके बाद अल्लाह के नबियो और रसूलो में मुन्तकिल होता रहा और फिर इस तरह
आज से करीब साढ़े चौदह सौ बरस पहले यह नूरे मुबारक हज़रत अब्दुल्लाह अलैहिस्स्सलाम से होकर हज़रते आमिना सलामुल्लाह अलैह के बतने मुबारक तक पंहुचा ।

इस तरह आप सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम मक्के में पैदा हुए। अल्लाह ने अपने महबूब को आखिरी नबी रसूल और पैगम्बर बनाकर भेजा। बेशक आप सारी दुनिया के लिए रहमत बनाकर भेजे गए है।

और फ़िर रब ने आप पर कुरान नाजिल की और जब आप सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम ने रब का हुक्म लोगो तक पहुंचा दिया तो रब ने फरमाया “ए महबूब हमने दीन को आज मुकम्मल कर दिया । अब तुम्हारे बाद हिदायत देने वाला कोई और पैगम्बर नहीं आने वाला, सुभानअल्लाह ।

इस तरह दीन ए इस्लाम उस वक़्त भी था जब दुनिया में सबसे पहले इन्सान हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ज़मीन पर सबसे पहले इंसान थे। फिर उनके बाद हज़रत नूह अलैहिस्सलाम, हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम, हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम, हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम सहित आखरी पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम ने दुनिया मे आकर अपनें रब का सन्देश लोगो तक पहुचाया

आज हम देख ही रहे है की दुनिया के हर एक खित्ते में इस्लाम मज़हब के मानने वाले मौजूद है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ उस एक रब की इबादत कर रहे है जो सबका पालन हार है।

मेरा मकसद कर्बला की मुकम्मल दास्तान बयान करना है लिहाज़ा मुख़्तसर में दीन ए इस्लाम को बतलाया है। आप सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम कि जाहिरा दुनियावी ज़िंदगी और उसके बाद क्या कुछ हुवा इसे काफ़ी शार्ट में बतलाया है ताकि इमाम ए आली मकाम हुसैन रदियल्लाहु तआला अन्हु और शोहदा ए कर्बला का मुकम्मल बयान पेश कर सकू।

पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलेही इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिससलाम के नानाजान है। आप सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम ने जब दीन की तबलीग की तो मक्के वालों ने आपकों बहुत तकलीफे दी मगर आपने सब्र किया यहां तक की आप अपने रब के हुक्म से मक्के से हिजरत करके अपने चन्द साथियों के साथ मदीने शरीफ में आकर रहने लगे ।

अल्लाह ने अपना पैगाम फरिश्ते हजरत जिब्राइल अलैहिस्सलाम के जरिए अपने महबूब पैगम्बर मोहम्मद सल्लल्लाहु तआला अलेही वसल्लम तक पहुंचाया, वही आने का सिलसिला तकरीबन 23 सालों तक चलता रहा। जिसके एक एक अल्फाज़ आपके सीने मे महफूज़ होते चले गए,

और फ़िर आपके कहने पर आपके साथ हर वक्त रहने वाले सहाबा से आपने इसे लिखवाया जिसे लिख लेने के बाद आपने दोबारा सुना और फिर इस तरह अल्लाह का पैग़ाम यानि सन्देश मुकद्दस कुरान में संग्रहित हुवा। जो सहाबा के सीनो मे महफूज़ रहा और उनसे होकर दूसरो तक पहुंचा और आज क़िताब की शक्ल मे तक़रीबन हर मुसलमान के घर मौजूद है । सुब्हानअल्लाह।

कुरआन वो मुक़द्दस किताब है जिसमे 1450 साल बाद भी कोई फेर बदल नहीं हुवा और इन शा अल्लाह होगा भी नही क्योंकि इसकी हिफाज़त का ज़िम्मा ख़ुद रब ने जो लिया है ।

क्रमशः ……

🖊️तालिबे इल्म : एड. शाहिद इक़बाल ख़ान, चिश्ती- अशरफी

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