वर्धा महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति तथा ख्यातिलब्ध दर्शनशास्त्री आचार्य रजनीश कुमार शुक्ल ने कहा है कि मातृभाषा पढ़ने और आगे बढ़ने का सर्वोत्तम माध्यम है।
प्रो. शुक्ल विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के अवसर पर आयोजित ऑनलाइन काव्यपाठ कार्यक्रम में अध्यक्षीय वक्तव्य दे रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें अपनी मातृभाषा को सीखने की, समझने की, व्यवहार की, कर्म की और ज्ञान को विस्तारित करने की भाषा बनानी चाहिए। जो देश मातृभाषा को भूलता है, उसका वैभव समाप्त हो जाता है।
प्रो. शुक्ल ने भारतेंदु हरिश्चंद्र की काव्य पंक्ति ‘निज भाषा उन्नति अहै’ का उल्लेख करते हुए कहा कि हृदय के शूल को मिटाने का काम मातृभाषा ही करती है।
उन्होंने कहा कि दुनिया के उन्नत देश अपनी मातृभाषा में काम करते हैं।
मातृभाषा से क्षमताओं का विकास और मौलिकता का सृजन होता है।
मातृभाषा और नई शिक्षा नीति का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षा दिये जाने पर बल दिया गया है। उससे मातृभाषा को व्यवहार, पहचान और अस्मिता की भाषा के रूप में विकसित करने में मदद मिलेगी।
कार्यक्रम में अनुवाद अध्ययन विभाग की सहायक आचार्य डॉ. मीरा निचले ने मराठी भाषा में ‘पारायणी’ शीर्षक कविता, शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो. गोपालकृष्ण ठाकुर ने कालीकांत झा की ‘तुम ही हो’ शीर्षक से मैथिली कविता का पाठ किया।
हिंदी विश्वविद्यालय के छात्र सुजान साहा (बांग्लादेश) ने अब्दुल गफ्फार चौधरी की कविता ‘इक्कीस फरवरी’ का पाठ किया। हिंदी विश्वविद्यालय के छात्र शशारी सुवर्णदीपिया (थाईलैंड) ने थाई भाषा में कविता सुनायी जिसका हिंदी रूपांतर है – गरीब होने पर कोई मिलने नहीं आता। अनुवाद अध्ययन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. ज्योतिष पायेड. ने असमिया के साहित्याचार्य मित्रदेव महंत की ‘सदा स्नेहशीला भाषा जननी’ कविता का सस्वर पाठ किया।
भाषाविज्ञान एवं भाषा प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ. एच.ए. हुनगुन्द ने कन्नड़ भाषा में ‘जय हे कर्नाटक माते’ कविता का पाठ करते हुए कन्नड़ संस्कृति, कला, वेश-भूषा को रेखांकित किया। दूर शिक्षा निदेशालय के सह आचार्य डॉ. शंभू जोशी ने राजस्थानी भाषा में कन्हैयालाल सेठिया की ‘पातलर पीथल’ शीर्षक कविता का पाठ किया।
महात्मा गांधी फ्यूजी गुरुजी सामाजिक कार्य अध्ययन केंद्र के सह आचार्य डॉ. के. बालाराजु ने तेलुगू में श्रीनाध कवि सार्वभौम की कविता ‘नल, दमयंती और हंस’ का पाठ किया।
उन्होंने ‘ना तेलंगाना… जननी संस्कृतम’ कविता से बात शुरू करते हुए कहा कि
संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है और तेलुगू एक उत्कृष्ट भाषा है। कवयित्री डॉ. हरप्रीत कौर ने पंजाबी भाषा में ‘मातृभाषा’ शीर्षक कविता का पाठ किया। उसका भावार्थ था कि किस प्रकार से एक वृक्ष पेंदु (हाइब्रिड) वृक्ष बनता है तो मूल छूटता जाता है। आज यही मातृभाषा के साथ हो रहा है, हम मातृभाषा के शब्दों को हँसकर भूलते जा रहे हैं।
हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग के सह आचार्य डॉ. रामानुज अस्थाना अवधी भाषा में ‘गांव’ शीर्षक कविता सुनायी जिसकी पंक्ति थी – ‘ई मातृभाषा दिवस के अवसर पर आवति है गांव यादि हमका’।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. वागीशराज शुक्ल ने कहा कि लोक संस्कृति, संस्कार को लोक भाषा और मातृभाषा में अभिव्यक्ति करने की अद्भुत क्षमता होती है। आज भले ही दूसरी भाषा हमारे जेहन में होती है पर हमारी मातृभाषा जेहन से जिह्वा में विराजती है। उन्होंने बेटी के ब्याहने के दौरान सिंदूर दान पर प्रसिद्ध अवधी लोकगीत सुनाया।
संस्कृत विभाग के सहायक आचार्य डॉ. जगदीश नारायण तिवारी ने संस्कृत भाषा में ‘मातृभाषा अष्टकम्’ शीर्षक कविता का पाठ किया। विश्वविद्यालय के प्रयागराज केंद्र के अकादमिक निदेशक प्रो. अखिलेश दुबे ने हिंदी भाषा में ‘गंगा किनारे वाला गांव’ कविता का पाठ किया; मैं लौटूंगा बहुत जल्द/ गंगा किनारे वाले अपने गांव…। क्या हमारी यंत्र सभ्यता बचा पाएगी गंगा किनारे वाला गांव।
मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. कृपाशंकर चौबे ने प्रास्ताविकी वक्तव्य दिया।
काव्यपाठ का शुभारंभ डॉ. जगदीश नारायण तिवारी द्वारा मंगलाचरण से किया गया। हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. के.के. सिंह ने भोजपुरी में आभार ज्ञापन किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अध्यापक, कर्मी, शोधार्थी, विद्यार्थी एवं देश-दुनिया के मातृभाषा प्रेमी और कविता प्रेमी सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़े रहे।