Biography हज़रत सैय्यद मख़दूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह पार्ट-1
अए अशरफे ज़माना
जमानए मददनुमा
दरहाए बस्ताराज़
कलीदे करमकुशा
⛺ महबूबे यज़दानी,
⛺ गौसुल आलम,
⛺ मीर ओहउद्दीन सुल्तान
⛺ सैय्यद मख़दूम अशरफ
⛺ जहांगीर सिमनानी
रहमतुल्लाह अलैह
किछौछा शरीफ का उर्स शरीफ तमाम आशिको को बहुत बहुत मुबारक़ हो ….
जिनका उर्से मुबारक हर साल मुक़द्दस सरज़मीने हिन्द- के एक छोटे से क़स्बे, कछौछा शरीफ, अंबेडकर नगर,उत्तर प्रदेश में हर साल माहे मुहर्रम की 26 तारीख से 28 तारीख तक निहायत अदबो एहतेराम के साथ मनाया जाता है।
आपके उर्स मुबारक में शरीक होने लोग दूर दूर से आते है, और इस मुक़द्दस बारगाह में हाज़िर होकर फैज़याब होते है।
खानवादे अशरफ का दरिया सिर्फ़ मुल्क में ही नहीं बल्कि बहरूने मुल्क में भी निरन्तर बह रहा है और ना जाने इसने कितने ही प्यासे दिलों की प्यास बुझाई है।
🌅 सैय्यद मख्दूम अशरफ जहांगीर समनानी रहमतुल्लाह अलैह की पैदाइश से पहले ही आपका नाम ए मुबारक रख दिया गया था ।
क्या आप जानते है आपका नाम ए मुबारक किसने रखा है ?
इसका जवाब आपको सहाइफे अशरफी सफा 60–61 में मिलेगा।
महबूबे यजदानी, गौसुल आलम हजरत जिसमे आपकी पैदाइश के हवाले से बतलाया गया है की आपके वालिद ए मोहतरम के कोई बेटे नहीं होने की वजह से आपको फ़िक्र हुवा करती थी की उनके बाद सल्तनत का वली अहेद कौन होगा ।
आप हमेशा अल्लाह से बेटे के लिए दुवा किया करते थे, की एक रात पैगम्बरे इस्लाम, ताजदारे मदीना, साहिबे जमालो कमाल, रसूले मकबूल ए अकरम जनाबे मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहे व आलिहि वसल्लम आपके वालिद ए मोहतरम के ख़्वाब में तशरीफ़ लाते है और आपसे पूछते है की
“अए बेटे इब्राहिम तुम क्यों इतने परेशान हो “
तब आपने रोते हुवे जवाब दिया
या रसूलल्लाह मुझे 12 सालो से औलाद नहीं है और वारिस ए सल्तनत की आरज़ू रखता हूँ।
तब रसूलअल्लाह ने आपको ये खुशखबरी सुनाई की
“अये बेटे इब्राहिम हक़ तआला तुम को दो बेटे इनायत फरमाएगा, एक का नाम “अशरफ” और दूसरे का नाम “आरिफ” मोहम्मद रखना ।
आपने आगे ये भी फरमाया की तुम्हारा पहला फरजंद “अशरफ” साहिबे सल्तनत ज़ाहिरी व बातिनी होगा I
इसी तरह से आपकी वालिदा को भी आपकी आमद से पहले ही बशारत दी जाकर बतलाया गया था की
“तुम को ऐसा फरजंद नसीब होगा की सारी दुनिया उसकी आफ़ताबे विलायत की चमक से रौशन हो जाएगी, और उसकी नूरे हिदायत की बदौलत जहाँ से गुमराही मिट जाएगी I
“हज़रत ख्वाजा अहमद यस्वी” की रूहानियत ने भी आपकी वालदा को बशारत देकर कहा था की
“अये ख़दीजा तेरी गोद में एक ऐसा बेटा आने वाला है, जिसके नूरे विलायत और तबलीग से सारी दुनिया मुनव्वर होगी, उसकी पैदाइश सिर्फ इस सल्तनत के लिए नहीं है बल्कि सारी दुनिया के लिए होगी, सुभान अल्लाह ।
आपकी विलादत से पहले सल्तनत में हर तरफ़ से गैबी निदा सुनाई पड़ती थी, मरहबा अशरफ तशरीफ़ लाने वाले है।
मज्जूब ए कामिल वली हज़रत इब्राहिम ने भी खुश होकर आपके विलादत की खुशखबरी सुनाई थी।
*इस तरह *सैय्यद मखदूम अशरफ सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह सन 1308 ईस्वी यानी 708 हिज़री में ईरान के शहर सिमनान में शाही खानदान में पैदा हुवे* I
आपके वालिद ए मोहतरम सुल्तान सैय्यद इब्राहीम नूर बख्श ईरान के सिमनान प्रांत के बादशाह थे
और आपकी वालिदा बीबी खदीजा बेगम, हजरत ख्वाजा अहमद की बेटी थीं, जो तुर्किस्तान के सिलसिले ख्वाजगान के मशहूर बुज़ुर्ग थे I
आपका घराना हज़रत मौला अली करमल्लाहू तआला वजहुल करीम और हजरत सैय्यदा फातिमाज्ज़हरा रज़ी अल्लाहु तआला अनहुम का घराना है हजरते मख़दूमें सिमना की ज़हेनियत और इल्म का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते है कि महज 7 साल की उम्र में ही 7 किरातों के साथ आपने मुकद्दस कुरान शरीफ के 30 पारों को
हिफ्ज (याद) कर लिया था और आप कुरान के हाफ़िज़ हो गए सुभान अल्लाह।
14 साल की उम्र तक पहुचते पहुचते आपने रूहानी तालीम भी मुकम्मल कर ली थी, शाही घराने के होने की वजह से तीरंदाजी और घुड़सवारी में भी आपको महारत हासिल थी।
🎇महज़ 13 साल की उम्र में ही आपके वालिद इस दुनिया ए फ़ानी से रुखसत हो गए, जिसके बाद आपको सिमनान की गद्दी पर बैठाया गया I
आपने अपने शासनकाल में न्याय और निष्पक्षता के साथ शासन किया. जिसकी वजह से सिमनान के कोने कोने में एक सच्चे और ईमानदार शासक के रूप में आप अवाम के चहेते बन गए I मगर आपका मन शासन करने में नहीं लग सका, आपकी मंजिल तो कुछ और ही थी। बादशाह होने के बावजूद आपको सूफियो- फकीरों की संगत ज़्यादा अच्छी लगती थी, लिहाज़ा जब आप का कल्ब बेकरार हो उठा तो आपने सल्तनत को छोड़ने का इरादा कर लिया। कौन ऐसा बादशाह होगा जो ऐशो आराम और तख्तो ताज को ठुकराना चाहेगा मगर आप अल्लाह के वली थे हजरत अली और फातिमा की ऑल थे जिन्हें तख्तो ताज से क्या मतलब लेकिन अभी तख्तो ताज छोड़ने का वक्त नहीं आया था लिहाजाअल्लाह के हुक्म से हज़रत खिज्र अलैहिस्सलाम एक शब् आपके पास तशरीफ़ लाये और फरमाया की
ए बेटे अशरफ अभी थोड़े दिन और सल्तनत का काम करो, और ज़िक्रे इलाही भी किया करो, इससे कभी इससे गाफिल न होना ।
अल्लाह के इस हुक्म को सुनकर आपके बेक़रार दिल को करार आ गया । इस तरह आप दिन में सल्तनत के कामो को किया करते थे और रात में ज़िक्र ओ अज़कार किया करते और इबादते इलाही में मशगुल रहते I
ऐसे ही एक रोज़ जब आप ज़िक्र ओ अज़कार में मश्गूल थे तभी हज़रत उबैस करनी रजि अल्लाह तआला अनहु तशरीफ लाये और उन्होंने आपको रूहानियत के इल्म से नवाज़ा I सुभान अल्लाह
जिनकी तालिम और बातिनी इल्म वो तरबियत हज़रत खिज्र अलैहिस्सलाम और हज़रत उबैस करनी रजि अल्लाह तआला अन्हु ने किया हो उनके मक़ाम और मर्तबा का कहना ही क्या।
❤ क़रीब 10 सालो के बाद आपको जिसका इंतज़ार था आखिरकार वो हुक्मे इलाही आ ही गया जिसके बाद आपने अपनी वालेदा से अपने दिल की हालत बयां करते हुए इल्म सीखने और पीर की तलाश में बाहर जाने की अपनी तड़प और इच्छा ज़ाहिर की तब वालेदा ने कहा बेटा,
आप सुलतान है, जिसे चाहे आप यहाँ बुलवा सकते है,
तब आपने अपनी वालिदा से अपनी कैफियत बतलाते हुवे कहा की
ए अम्मीजान मेरी पैदाइश शासन करने के लिए नहीं हुवी है, रब का हुक्म, और मेरे पीर का बुलावा आ चुका है, लिहाज़ा मै अब रुक नहीं सकता, आप मुझे जाने की इजाज़त दे।
आपकी वाल्दा अपने बेटे की कैफियत को तो पहले ही से जानती थी ये भी जानती थी की आपकी पैदाइश दीन को रौशन करने के लिए हुई थी आखिर वो सैय्यदा खातून थी लिहाज़ा आपने उन्हे अल्लाह के सुपुर्द करते हुवे जाने की इजाज़त दे दी।
वालिदा से इजाज़त हासिल करने के बाद आपने सल्तनत अपने भाई मोहम्मद आरफ को सौंप दिया और फ़िर अपनी मंज़िल की जानिब निकल पड़े I
🎇 अपने चहेते बादशाह से दूर होने की वजह से आवाम की आंखो से भी आंसू छलक रहे थे I आपकी वालिदा ने कुछ सैनिकों को भी आपके साथ जाने का हुक्म फ़रमाया, मां की बातों को मानते हुए आपने मुल्क की सरहद तक सैनिकों के साथ सफ़र किया और उसके बाद उन सैनिकों को वापस अपने भाई के पास जाने का हुक्म दे दिया ।
आपने फरमाया कि
“मैं किसी मुल्क पर कब्ज़ा करने के लिए नहीं जा रहा हूं, बल्कि मै तो लोगों के दिलों को जीतने के लिए जा रहा हूं, जिसके लिए फौज की नहीं विनम्रता और मोहब्बत की ज़रूरत होती है।
सैनिक भी आपसे बहोत मोहब्बत करते थे और आपके साथ ही जाना चाहते थे लेकिन अपने बादशाह के हुक्म को भलावी कैसे डाल सकते थे लिहाजा वे सरहद ही से वापस लौट गए।
आप सिमनान से बुखारा की सिम्त रवाना हुवे आपके साथ उस वक्त आपके दो ख़ास खादिम भी साथ थे आपने उनसे भी वापस चले जाने को कहा था, मगर वे आपसे इतनी ज्यादा मोहब्बत करते थे की वे आपसे अलग नहीं होना चाहते थे।उन्होंने कहा हम आप की हिफाजत के लिए आपके साथ रहा करेंगे । हुज़ूर गुज़ारिश है आप हमें अपनी खिदमत से महरूम न करे ।
क्रमशः
✒️एड.शाहिद इकबाल खान, चिश्ती-अशरफी