ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला✒️ पार्ट-13
-दीं पनाह अस्त हुसैन –
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शहादत के बाद के वाक्यात
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जन्नत का चांद अर्श का तारा हुसैन है,
डूबे ना कभी वह सितारा हुसैन है
शहादत तो देखिए जहरा के लाल की
*-हर *कौम कह रही है हमारा हुसैन है
मोहर्रम की 10 तारीख़ तक तकरीर भले ही खत्म हो जाती हो मगर वाक्या ए कर्बला मुकम्मल बयां नहीं हो पाता है । कर्बला के बाद क्या कुछ हुवा जाने बगैर कर्बला का बयान हो ही नही सकता है। लिहाज़ा मैने ये कोशिश की है की शहादत के बाद के भी जितने वाक्यात मुझे मालूम हो सके है उन सभीको को भी ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला मे शामिल कर सकूं ।
कुछ लोगो ने मुझे मैसेज के ज़रिए तो कुछ ने फ़ोनकर मुझे बतलाया की उन्हें मैरी अगली पोस्ट का इंतज़ार रहता है इस तरह आप सभी ने मेरी हौसला आफजाई करते हुए अपनी नेक दुवाओ से नवाज़ा है, जिसके लिए मै आप सभी का तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं।
आइए अब आगे के वाक्यात समाद फरमाए।
हजरत इमामे हुसैन अलैहिस्सलाम के शहीद होने के बाद हजरत हुर की बीबी यजीदी सिपाहियो से छिपते छिपाते किसी तरह पानी का एक मशकीजा लेकर हुसैनी ख़ेमे मे आती है, कदमों की आहट सुनकर हजरत ज़ैनब चिल्ला उठती है
खबरदार जो अंदर आने की कोशिश की।
जैनब की इस ललकार सुनकर वह खातून ख़ेमे के बाहर ही रुक जाती है और रोते हुए बतलाती है की
वो हजरत हुर की बेवा है ।
जिसे सुनकर जैनब उसे अंदर आने देती है। फिर इसके बाद वो खातून पानी का मशकिजा जनाबे जैनब को देकर कहती है मै किसी तरह से सिर्फ़ ये पानी ही ला सकी हूं।
जैनब ने कहा
मेरे भाई हुसैन ने मासूम बच्चो ने जब पानी नही पिया तो जैनब इस पानी को कैसे पी सकती है।
हुर की बीबी जैनब से इल्तेजा करती है मगर जैनब ये पानी भला कैसे पी सकती है। लेकीन उन्हें सकीना का खयाल आता है जो भूख प्यास से और अपने बाबा, चचा,भाई और एक एक कर घर वालो की शहादत को देखकर बेसुध होकर नीम बेहोशी की हालत में थी। जैनब उस खातून को लेकर सकीना के पास आती है और किसी तरह उसे होश मे लाकर पानी पी लेने की मिन्नते करती है मगर सकीना जवाब देती है
फुफ्फी क्या भाई अली असगर ने पानी पी लिया।
जवाब सुनकर जैनब सकीना को सीने से लगा लेती है और उसे सब्र करने कहती हैं। सकीना से पानी पीने की बार बार मिन्नते भी करती है मगर मासूम सकीना भी प्यासी होने के बाबजूद पानी नही पीती है।
अल्लाह हुसैन के घर वालो मे ये कैसा सब्र है जो प्यासे है मगर पानी सामने होने पर भी कोई पानी नही पी रहे है।
और फिर जल्द ही ज़ालिमो ने हुसैनी ख़ेमो में भी आग लगा दी और सभी को बंदी बना लिया, जिनमे बीमार जैनुल आबदीन के अलावा 9 खातूने थी।
जालिमो ने बीमार इमाम जैनुल आबदीन के जिस्म को ज़ंजीरो में जकड़कर उनके हाथो मे ऊंट की नकेल थमा दी थी, जिनके साथ उनके घरवाले थे । एक एक ऊंटों में दो लोगों को बिठाया गया ।
ज़ालिमो ने इमामे आली मक़ाम हुसैन के सरे मुबारक को नेज़े में उठा रखा था, और ख़ुशी से मतवाले होकर वो ज़ालिम नाचते हुए कूफे गवर्नर हाउस की जानिब बढ़ने लगे ।
उस हालात मे भी जैनब के जलाल और हुसैनी घराने की औरतों और बेटियो को नज़र उठाकर देखने की ताब किसी यज़ीदी सिपाही में नहीं थी ।जिसने भी उन्हें देखने की कोशिश की उसकी आंखो मे रेत का गुबार कुछ इस तरह से छा जाता की उन्हे कुछ भी नज़र नहीं आता और वे अंधे हो जाते I
और फिर रास्ते में ही इस काफ़िले को रोक दिया गया। वजह थी इमाम ए आली मकाम को, अली वो फातिमा के लाल, रसूल अल्लाह के नवासे को शहीद करने की खुशी मे ज़ालिम यजीद के इशारों पर इब्ने ज़ियाद ने पूरे कूफे को सजाने का हुक्म दिया था।
अल्लाह अल्लाह इन सब लम्हातो को कोई भला कैसे भूल सकता है।
और फिर इमाम ए आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सरे मुबारक के साथ ही उनके घरवालों को इब्ने ज़ियाद के सामने पेश किया गया ।
सभी ने देखा की गवर्नर हाउस में खुशियां मनाई जा रही है। महफ़िलें सजाई जाकर जीत का जश्न मनाया जा रहा था ।
इमाम हुसैन के घरवालो का हालचाल जानने के लिए इब्ने ज़ियाद उतावला था लिहाज़ा जब उन्हें दरबार में पेश किया गया तो इब्ने ज़ियाद ने सभी कैदियों की तरफ़ हिकारत की नज़रों से देखा और फ़िर जनाबे जैनब की तरफ इशारा करके पूछा
यह औरत कौन है ?
तो अम्र सअद ने कहा
“यह हुसैन की बहन जैनब है”।
जैनब और सभी हुसैनिया की तरफ़ देखकर इब्ने ज़ियाद ने मज़ाक उड़ाते हुवे तंज कसते हुए कहा
“क्या यह वही शहज़ादी ज़ैनब है जो यजीद के वालिद अमीर मुआविया के बाद अपने भाई हुसैन के तख्त नशीन होने का ख़्वाब देख रही थी !
ज़ालिम ने ताना देकर जैनब से कहा की
देखा जैनब, एक हुसैन की ना-फ़रमानी से किस तरह सारा खानदान तहस नहस हो गया ।
क्या ही अच्छा होता की हुसैन हमारे बादशाह यजीद के हाथों पर बैत कर लेते। तेरे भाई हुसैन को अपना ना सही तुम सब का तो कम से कम ख्याल करना चाहिए था।
कहकर जैनब की तरफ़ देखा मगर ये जैनब थी हुसैन की बहन जैनब शेरे खुदा की बेटी जैनब जैनब ने उस ज़ालिम की बाते सुनकर किसी शेरनी की तरह से हुंकार भरी और इब्ने ज़ियाद और यजीद को लानती कहा ।
जैनब की आवाज़ सुनकर महफिल में सन्नाटा छा गया।
वो जैनब जिसने आज तक किसी गैर मर्द से बात नहीं की थी, आज उसकी ललकार सुनकर यजीदियों को शेरे खुदा अली ए हैदर कर्रार का जलाल नज़र आने लगा ।
जैनब की आवाज़ की लर्जिश से ज़मीनों आसमान लरज़ उठे ।
ज़ैनब ने कहा
“ हुसैन ने जो कुछ किया वो खुदा और उसके हुक्म पर किया, दीन की हिफाज़त के लिए किया I
जब 72 ज़िन्दगी हुसैन के क़दमों पर कुर्बान हो रही थी तब भी तू और तेरा कायर सेनापति शिम्र हुसैन का सामना करने मे घबरा रहे थे ।
तूने देखा नही की भाई हुसैन ने यज़ीद के नापाक हाथो पर ना ही जीते जी बैत की और ना मरने के बाद उस जालिम के हाथों पर भाई हुसैन ने अपना दस्ते मुबारक सौंपा ।
फिर जैनब ने उस महफ़िल में जश्न मना रहे लोगो से मुखातिब होकर कहा
हक़ की राह में कौन था अरे ज़ालिम क्या तुम्हे पता नही ?
इस जंग में फासिक यजीद जीता नहीं बल्कि जंग हार गया है और हुसैन ने सर कटाकर भी जंग जीत लिया है I
तूने शिम्र ने और तेरे इन कायर सिपाहियो ने यज़ीद के इशारों पर जो गुनाह किया है उस पर खुश होने वाले जहन्नमियों तुम पर ये जैनब लानत भेजती है ।
हज़रते जैनब के इस हैरत अंगेज खुतबे को सुनकर इब्ने ज़ियाद के साथ सभी को सांप सूंघ गया।
यूं सन्नाटा देखकर इब्ने ज़ियाद गुस्से से तमतमा उठा क्योंकि उसे इस तरह के जवाब की उम्मीद ही नहीं थी । यहां तक की गुस्से से उसने तलवार निकाल ली और इस तलवार को इस तरह से लहराया मानो वह जैनब का सर अभी कलम कर देगा ।
जैनब ने बेख़ौफ़ होकर कहा,
इस तलवार से तू किसे डराता है ज़ालिम । कर दे हमे भी शहीद मगर याद रख तेरा ठिकाना तो यकीनन जहन्नम है ।
इब्ने जियाद ने गुस्से से कहा
अगर यजीद के पास तुम्हे भेजना नही होता तो अभी कत्ल कर देता ।
और फिर उसने हुक्म दिया
ले जाओ इन्हे इनके कूफ़े वालो के सामने, जिन्हें ये अपना हिमायती समझते थे और बतलाओ उन्हें भी की यजीद से बैत नहीं करने वालो का क्या अंजाम होता है इसे वे अपनी आंखों से देख ले।
ज़ंजीरो से खीचते हुवे इनका जुलुस कूफे ले जाओ ।
महफ़िल में मौजूद खौफजदा लोग उठ खड़े हुए ओर इस शेरनी को जाते हुए देखते रहे।
इमामे हुसैन के सरे मुबारक की करामात
फिर इसके बाद हुसैनी घराने वालो के साथ हुसैन इब्ने अली के सरे मुबारक को नेजे मे रखकर ये ज़ालिम ढोल ताशे के साथ जश्न मनाते आगे बढ़ते रहे। ।
जब ये जुलूस कूफ़े मे उस जगह पर पहुचा जहां अभी कुछ दिनों पहले ही कूफ़े वाले हज़रते मुस्लिम और उनके साहबजादो को हाथो हाथ ले रहे थे ।
यहां तक की उन्होंने हुसैन के नाम पर बैत भी की हुई थी, और इमामे हुसैन के आने की राह देख रहे थे । घरों को सजा रहे थे। वही बुज़दिल कूफ़े वाले आज अपने अपने घरो से निकलकर इस जुलुस को देख रहे थे ।
इस मंज़र को देखकर कूफ़े के ये कायर लोग घड़ियाली आंसू बहाने लगे।
हुसैन के बेटे जैनुल आब्दीन को यूं जंजीरों मे बंधा देख कर इन कायरो के दिल भी लरज उठे। कुछ लोग याजीदी सिपाहियो से आंखे बचाकर इशारों में दूर से ही माफ़ी भी मांग रहे थे ।
शहजादी ज़ैनब को देखकर कुछ लोग अपनी छातियो को भी पीटने लगे मानो वे कहना चाह रहें हों की वे भी गमगीन है ।
इस जगह पर काफिले को काफ़ी देर तक रोक दिया गया ।
हज़रते जैनब ने कायर कूफियो को जब ये सब करते देखा तो यहां भी इस शेरनी ने हुंकार भरते हुए उन कूफ़े वालों से कहा
‘अये बुज़दिलों अब तुम क्यों रो रहें हो छातियां पीट रहे हो ।
तुमने ही तो ना हुसैन को ख़त लिखा था । हुसैन के नाम की बैअत की थी। कायर छुप क्यों गए। अब तुम सारी उम्र यूं ही छाती पीटते रहो तो भी क्या अल्लाह तुम्हें माफ करेगा ?
जनाबे हज़रते जैनब की बाते सभी के दिलो में नश्तर की तरह चुभ रही थी, ये तमाशबीन मजमा नेज़े पर इमाम आली मक़ाम के सरे मुबारक को देख रहा था ।अगर कूफे वाले चाहते तो वे इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिससलाम के सामने ढाल बनकर खड़े होते मगर वे यजीद के खौफ से अपने घरों में दुबके रहे । यकीनन उन्होने जो बेवफाई की उसे अल्लाह यकीनन कभी माफ़ नही करेगा।
जुलूस के साथ ही ये काफिला कूफ़े से होता हुआ आगे दमिश्क की तरफ बढ्ने लगा ।
ये भी मेरे इमामे आली मक़ाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शान थी की ज़ालिमो के हाथो मे भले ही उनका सरे मुबारक था मगर इस वक्त भी वह बलन्दी पर ही था ।
जब ये काफिला यहूदियो की एक बस्ती के करीब पहुचा जहां पर एक चर्च भी मौजूद था तो इस काफिले को एक यहूदी पादरी ने भी देखा और जब इमामे आली मक़ाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सरे मुबारक को उस यहूदी ने देखा तो उसने काफिले वालो से पूछा की
ये किसका सर है ?
यजीदी सिपाहियो ने कहा
(माजल्लाह) ये एक बागी का सर है हम इसे लेकर दमिश्क ले जा रहे है ।
वो पादरी एक नेक इंसान था। उसने देखते ही समझ लिया था की ये सर ए मुबारक किसी मामूली इंसान का नहीं हो सकता । लिहाजा उसने उन सिपाहियो को लालच देते हुए कहा की
तुम सब थक गए हो आज यहाँ पर ही आराम कर लो । तुम्हारे लिए उम्दा खाने पीने का बंदोबस्त मै करवा देता हूँ ।
लालची सिपाहियो को और क्या चाहिए था।जब सिपाही मान गए तो फिर उस पादरी ने उन सिपाहियो से जिन्होने सरे मुबारक नेज़े मे रखा हुआ था धीरे से कहा की
सुनो इस नेजे को मुझे दे दो आज रात इसे मै हिफाज़त से अपने पास रखता हूँ बदले में तुम्हे इनाम भी दूंगा ।
लालची सिपाहियों ने इमामे आली मक़ाम का सरे मुबारक उस पादरी को दे दिया । सिर्फ़ इतना ही नही उस पादरी को ये भी पता चल चुका था की ये सरे मुबारक किसी और का नही बल्कि नबी के नवासे ईमाम ए हुसैन का है लिहाज़ा उस पादरी ने इमामे हुसैन के सरे मुबारक को नेज़े से निकाल कर एक साफ कपड़े मे रखा और फिर अम्बर ओ मुश्क से सरे मुबारक की मालिश की और इसे चर्च में एक ऊँची जगह पर रख कर सोने चला गया ।
रात में नींद खुलने पर उसने देखा की चर्च मे हर तरफ रौशनी ही रौशनी है, आखिर ये रौशनी कहा से आ रही है देखने के लिए वो पादरी जब सरे मुबारक को देखने आया तो ये देख का हैरान हो गया की सरे मुबारक नूर से चमक रहा है और नूर की ये किरने सरे मुबारक से होकर न सिर्फ चर्च मे हर तरफ़ फैली हुवी है बल्कि सीधे ऊपर आसमान की सिम्त भी जा रही है ।
और फिर उस पादरी ने एक और हैरतअंगेज मंज़र देखा की इस सरे मुबारक से नूर के साथ साथ, ज़बाने मुबारक से कुरान ए पाक की तिलावत भी हो रही है ।
ये माजरा देख कर वो पादरी दंग रह गया । और फिर उस पादरी ने अपने दोनों हाथो को उठाकर कहा ।
ए रब बेशक तू सबका खालिक ओ मालिक है। ए अल्लाह बेशक तू भी सच्चा और तेरे रसूल भी सच्चे है और मै आज ईमान लाता हूँ ।
कहकर उसने रोते हुए इल्तेजा की
ए मौला इमाम ए हुसैन मुझे आप कलमा पढ़ाकर ईमान वाला बना दे ।
इमाम ए आली मक़ाम के सरे मुबारक की ये करामात थी की वह पादरी कलमा पढ़कर उनके सामने मुसलमान हो गया । सुभान अल्लाह
क्रमशः ….
🖊️तालिबे इल्म: एड.शाहिद इकबाल खान,चिश्ती – अशरफी
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