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ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला✒️ पार्ट-12

-दीं पनाह अस्त हुसैन –
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शहादत के बाद के वाक्यात
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जीती है जंग करबला की हुसैन ने।
तभी तो लहरा रहा है परचम हुसैन का ।।
यज़ीद की ना कोई खबर ना कब्र का पता ।
हर ज़माना गा रहा है नगमा हुसैन का ।।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत इस्लामिक महीने के मुताबिक सन् 61 हिजरी में आशूरे के रोज़ मुहर्रम की 10 तारीख़ और अंग्रेज़ी महीने के अनुसार 10 अक्टूबर सन 680 ईसवी में करबला, मौजूदा इराक मे हुई थी ।

एक रिवायत के मुताबिक़ इमामे आली मक़ाम हुसैन रदीयल्लाहू तआला अन्हु ने यजीदी कमांडर के ज़रिए यजीद के पास ये ख़बर भी भिजवाई थी की वे अपने साथियों को लेकर किसी अंजान मुल्क मे चले जाएंगे और
उन्होने मुल्के हिंद की जानिब इशारा करके कहा था की मुझे उस तरफ़ से वफ़ादारी की खुश्बू आ रही है मैं उस मुल्क मे चला जाऊंगा*

*यानि इमाम हुसैन को पता था की मुल्के हिन्द में उनके जितने शैदाई है उतने शायद ही किसी और मुल्क मे होंगे।

  • मेरा ये मानना है की इमाम आली मकाम हुसैन जानते थे की इस मुल्क में उनकी आल मे से ख़्वाजा गरीब नवाज़ तशरीफ लाएंगे जिनके ज़रिए इस्लाम मुल्के हिन्द में फैलेगा। जो इमाम हुसैन से अहले बैत से बेपनाह मोहब्बत करेगें। इस्लामिक नया साल मोहर्रम से ही कयो शुरू होता है ? मेरा ये मानना है की अल्लाह और उसके रसूल को भी या मालूम था की इमाम हुसैन की शहादत से दीन ए इस्लाम ज़िंदा होगा। इसी वजह से ख़्वाजा गरीबी नवाज़ ने भी इमाम हुसैन को दीन भी कहा है और दीन को पनाह देने वाला भी कहा है। यहीं वजह है की इस्लामिक नया साल मोहर्रम से शुरू हुवा है। मेरा ये सोचना है की इमाम ए आली मकाम और कर्बला के शहीदों का ज़िक्र हर घर मे मोहर्रम मे ज़रूर होना चाहिए।

मोहर्रम इमाम हुसैन की याद को ताज़ा करने का नाम है सारे वाक्यात सुनकर कर्बला का सारा मंज़र हमारी आंखो के सामने आ जाता है ।

मैदाने कर्बला में इमाम ए हुसैन के साथ जो लोग शहीद हुए थे, आइए इन सबको नाम लेकर फातिहा दिलाकर सबके वसीले से अल्लाह से दुवा मांगे।

शोहदाए करबला के सभी शहीदों का नाम भी ज़रा एक बार जुबां से लेकर देखिए तो ज़रा जुबान के साथ साथ दिल भी पाक जो जाएगा इन शा अल्लाह।

1.हजरत इमाम हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
2.हजरत अब्बास बिन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
3.हजरत अली अकबर बिन हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
4.हजरत अली असगर बिन हुसैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
5.हजरत अब्दुल्ला बिन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
6.हजरत जाफर बिन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
7.हजरत उस्मान बिन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
8.हजरत अबूबकर बिन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
9.हजरत अबूबकर बिन हसन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
10.हजरत कासिम बिन हसन बिन अली रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
11.हजरत अब्दुल्ला बिन हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
12.हजरत ओन बिन अब्दुल्ला बिन जाफर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
13.हजरत मोहम्मद बिन अब्दुल्ला बिन जाफर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
14.हजरत अब्दुल्ला बिन मुस्लिम बिन अकील रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
15.हजरत मोहम्मद बिन मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
16.हजरत मोहम्मद बिन सईद बिन अकील रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
17.हजरत अब्दुल रहमान बिन अकील रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
18.हजरत जाफर बिन अकील रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
19.हजरत अनस बिन हारिस असदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
20.हजरत हबीब बिन मजाहिर असदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
21.हजरत मुस्लिम बिन ओरजा असदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
22.केस बिन मशदर असदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
23.हजरत अब समाम ऊमरु बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
24..हजरत बुरेर हमदानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
25.हजरत अनजला बिन असद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
26.हजरत अबीस शकिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
27..हजरत अब्दुल रहमान वहाब रज़ियल्लाहु तआलाअन्हु
28..हजरत सैफ बिन हासिद
रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
29.हजरत आमीर बिन अब्दुल्लाह हमदानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
30.हजरत जुनैद बिन हासिद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
31..हजरत मजमा बिन अब्दुल्लाह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
32.हजरत माफ बिन हिलाल रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
33..हजरत हज्जाज बिन मसरुफ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
34.हजरत उमर बिन करफा रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
35.हजरत अब्दुल रहमान बिन अब्देख रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
36.हजरत जुनैद बिन काब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
37.हजरत आमिर बिन जुनैद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
38.हजरत नईम बिन अजलान रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
39.हजरत साद बिन हारिस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
40.हजरत जुहैर बिन कैन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
41.हजरत सलमान बिन मजारिब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
42.हजरत सईद बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
43.हजरत अब्दुल्लाह बिन बशीर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
44.हजरत यजीद बिन जाएद कनदी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
45.हजरत हर्व बिन उमर अल कैस रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
46.हजरत जहीर बिन आमिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
47.हजरत बशीर बिन आमिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
48.हजरत अब्दुल्लाह अरवाह गफ्फारी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
49.हजरत जोन (हजरत अबुजर के गुलाम) रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
50.हजरत अब्दुल्लाह बिन आमिर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
51.हजरत अब्दुल्लाह आला बिन यजीद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
52.हजरत सलीम बिन आमीर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
53.हजरत कासिम बिन हबीब रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
54.हजरत जाएद बिन सलीम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
55.हजरत नोमान बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
56.हजरत यजीद बिन साबीत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
57.हजरत आमिर बिन मुस्लिम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
58.हजरत सैफ बिन मलिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
59.हजरत जाबिर बिन हज्जाजी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
60.हजरत मसूद बिन हज्जाजी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
61.हजरत अब्दुल रहमान बिन मसूद रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
62.हजरत बाकिर बिन हई रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
63.हजरत अम्मार बिन हसन रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
64.हजरत जिरगाम बिन मलिक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
65.हजरत कनान बिन अतीक रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
66.हजरत अकबा बिन सल्ह रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
67.हजरत हुर बिन यजीद तमीमी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
68.हजरत उमर बिन खालिद सौदावी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
69.हजरत हबाला बिन अली शीबानी रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
70.हजरत कनाब बिन उमर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
71.हजरत अब्दुल्लाह बिन यकतर रज़ियल्लाहु तआला अन्हु
72.हजरत गुलाम ए तुर्की (इमाम सज्जाद के गुलाम) रज़ियल्लाहु तआला अन्हु।

इमाम ए आली मक़ाम और शोहदा ए कर्बला वालो की शहादत का ज़िक्र क्या ज़मीन वाले आसमान वाले और क्या जिन्नो मलक हत्ता की अल्लाह की सारी मखलूक मोहर्रम में ज़रूर करती है । गैर मुस्लिम के दिल मे भी हुसैन ओर कर्बला के शहीदों के लिए कसक ज़रूर उठती है और कोई भी मोहर्रम की मुबारकबाद नही देता है।

मगर कुछ ऐसे मुसलमान है जो मोहर्रम मे भी कर्बला को याद नहीं करते है, बाकी महीनो की इस महीने को भी समझते है। सच कहूं तो उन्हे कोइ गम ही नहीं होता है। अल्लाह इन्हे तौफिक दे।

इमाम हुसैन की शहादात की ख़बर ज़िब्रीले अमीन को किसने दी। अल्लाह रब्बुल आलामिन ने । इतना ही नहीं अल्लाह ने ज़िब्रइले अमीन को रसूल अल्लाह के पास भेजा। आका नबी ए करीम सल्लललाहु अलैहि वसल्लम ने जब सुना तो गमें हुसैन में खूब रोया।

आपने यह बात अपने तक ही नहीं रखी बल्कि उम्में सलमा को भी बतलाया और कर्बला की मिट्टी देकर बतलाया की मोहर्रम की 10 तारीख़ आशूरे के दिन जब ये मिट्टी खून आलूदा हो जाए तो समझ लेना मेरा हुसैन शहीद हो गया। अपने नवासे की शहादत की ख़बर से आका नबी ए करीम ख़ूब रोए थे ।

जब हुसैन पैदा हुए तो आका से बढ़कर खुशी किसी और को नही हुईं होगी। अल्लाह ने उसी वक्त जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए हुसैन की शहादत की भी खबर दे दी।

सभी जानते है की आका ए करीम अपने नवासे हुसैन से बेहद मोहब्बत करते थे । आका ने उम्मे कुलसुम को ही ये मिट्टी दी जिससे जो लोग ये कहते है कि आपको इल्मे गैब नही था उन्हें भी जान लेना चाहिए की आक़ा जानते थे जब तक हुसैन शहीद होंगे उस वक्त उम्मे सलमा ही ज़िंदा रहेगी ।

उम्मे सलमा ने ख्वाब मे आक़ा ए करीम को देखा जिनके सर पर इमामा नहीं था पाओ मे नायलैन शरीफ नहीं थी । सर ए मुबारक मे, शाने मुबारक (कान्धो) मे, चेहरे ए अनवर मे खून आलूदा गर्दो गुबार (धूल) थी ।

उम्मे सलमा ने तड़प कर पूछा

आका मेरे सरताज आपको ये क्या हुवा है?
आप कहाँ से आ रहे है ?

तो आका ने रंजीदा लहज़े मे फ़रमाया

मै मक्तले हुसैन से आ रहा हूँ ।
मेरे हुसैन को आज कत्ल कर दिया गया है,

ये मेरे हुसैन का खून और कर्बला की मिट्टी है ।

जिसे सुनकर उम्मे सलमा रोने लगी।

जब उम्में सलमा नींद से बेदार हुई तो उन्हे याद आया

‘नबी ए करीम ने उन्हें मिट्टी दी थी और कहा था इसे संभाल के रखना । आपने उस मिट्टी को एक ऊंची जगह पर अच्छी तरह संभाल कर रख भी दिया था

आपने फ़ौरन वो संदूक खोला और जब उस मिट्टी को निकाल कर देखा तो पाया वो मिट्टी खून आलूदा हो चुकी है ।
अल्लाह अल्लाह उम्मे सलमा पर क्या बीती होगी आप रोने लगी और रोते रोते कहती जाती

आज बेटा हुसैन, अली वो फातिमा का लाल शहीद हो गया है ।

उम्मे सलमा के रोने की आवाज उस वक़्त जिस किसी ने भी सुना वह रोने लगा । सभी ने पूछा किसने बतलाया तो उम्मे सलमा ने उन्हें यह मिट्टी दिखलाई जिसमें हुसैन का खून शामिल था, और सारी बाते भी बतलाई, जब बात आका ए करीम ने बतलाई थी तो ख़्वाब के गलत होने का सवाल ही नहीं था यह बात सभी जानते थे, लिहाज़ा जिसने भी सुना वो रोने लगे।

एक और रिवायत से पता चलता है की आशुरे के उस रोज़ रात में एक सहाबी ए रसूल ‘अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास’ ने भी मक्के शरीफ मे ख्वाब मे आक़ा ए करीम को देखा उनके हाथ मे एक शीशी थी जिसमे खून था ।

उन्होंने आक़ा ए करीम से पूछा

अये मेरे आक़ा नबी ए करीम रसूल सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम आप पर मेरी जान मेरे मां बाप कुर्बान । इस शीशी मे ये किसका खून है ?

आक़ा ने जवाब दिया

इस शीशी मे मेरे हुसैन का खून है, जिसे मैंने कर्बला मे जमा करके इस शीशी मे रखा है ।

जब वो सहाबिए रसूल नींद से बेदार हुए तो देखा की वो शीशी भी उनके करीब मौजूद थी जिसे देखकर वह सहावी ए रसूल भी रोने लगे और लोगो से कहने लगे

हाय हुसैन शहीद हो गए आका ए करीम के प्यारे नवासे हुसैन अब न रहे ।

अल्लाह अल्लाह ज़रा तसव्वुर तो करे आक़ा की आंखो का तारा जान से प्यारा हुसैन जब शहीद किया जा रहा होगा तो आका ने ये मंज़र किस तरह से देखा होगा । वो हुसैन जो जन्नती जवानो के सरदार है ।

इमामे हुसैन और उनके घराने वालो को कत्ल करने वालों का अंजाम क्या हुआ था? आइए ज़रा उसे भी देख कर इब्रत हासिल करे साथ ही वे लोग भी गौर करे जो की इमामे आली मक़ाम हुसैन और अहले बैत से बुग्ज़, हसद, दुश्मनी रखते है।

क्या आक़ा ने पहले ही नहीं कह दिया था की

जिसने हुसैन से अदावत की समझो उसने मुझसे अदावत की।

आका ए करीम ने फरमाया था

ए लोगों ‘मैं तुमसे उन दो भारी भरकम चीजों के बारे में पूछूंगा जो मैंने तुम सबके लिए छोड़ी हैं पहली अल्लाह की मुक़द्दस किताब यानि कुराने करीम और दूसरी अहले बैत से मोहब्बत । फिर भी तुमने अहले बैत से अदावत कर उन्हें रुसवा किया।

इमामे हुसैन ने बतला दिया की वो कूफ़े अपने नानाजान से किया हुआ वादा निभाने गए थे, साथ ही उन झूटे और गद्दार ख़ुद को दीनदार कहने वाले हत्यारों को उजागर करने और उनकी पहचान कराने के लिए गए, जिन्होने मुहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम के दीन को, यानि दीने इस्लाम को नेस्त-ओ-नाबूद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । जिन्होंने माँ फातिमाज्ज़हरा (रदीयल्लाहू तआला अन्हुम) पर ज़ुल्मो सितम किया, जिनहोने शेरे खुदा हैदरे कर्रार अली ए मुरतुजा (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) को मस्जिद मे क़त्ल किया, जिन्होंने इमामे हसन (रदीयल्लाहू तआला अन्हु) को ज़हर देकर क़त्ल किया । जिन्होंने फासिक यजीद को अमीरुल मोमिनीन बनाकर उसके नापाक हाथों पर बैत कर इस्लाम की तौहीन की । हुसैन ने बतला दिया दींन के इन दुश्मनों को बेनकाब करने वो कर्बला गए।

बहोत कम लोग है जो ये जानते है की

इमामे आली मक़ाम की शहादत के बाद क्या हुआ ।

यजीद का क्या अंजाम हुआ

उसकी सल्तनत का क्या हुआ

और जिन जालिमों ने इमाम आली मकाम और शोहदा ए कर्बला को शहीद किया था उनका अंजाम क्या हुआ ?

अगर आप सच्चे हुसैनी है तो आपकों सब कुछ जानना भी ज़रूरी है लिहाज़ा इमाम आली मकाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद जो कुछ भी हुआ उसे समाद फरमाए ।

इमामे अली और उनके बेटे, इमामे हसन,और इमामे आली मक़ाम हुसैन अलैहिस्सलाम जैसे शेरो को तो सभी जानते ही है मगर हज़रते जैनब यानि अली वो फातिमा की लाड़ली बेटी, इमामे हसन,ओ हुसैन की प्यारी बहन ने जिस बहादुरी से कर्बो बला का सामना किया और जो खुत्बा दिया अगर उसका कोई ज़िक्र न करे तो समझो उसने अपना हक अदा ही नहीं किया है । अगर जैनब ने कर्बला की दास्तान लोगो को सुनाई नहीं होती तो हो सकता है हुसैन और उनके घर वालो की अज़ीम कुर्बानी का किसी को पता ही नहीं चलता ।

हज़रते जैनब ने करबला का वो मंज़र कैसे देखा होगा और ये गम कैसे सहा होगा इसे तो सिर्फ जैनब ही जान सकती है ।

इमाम हुसैन के घर वालों ने, बीमार जैनुल आबदीन ने, किस तरह हालात पर काबू पाया होगा, खुद को संभाला होगा,इसे तो वो अहले बैत ही जानते होंगे जो उस वक्त खेमो में मौजूद थे । जैनब ने वो मंज़र किस तरह देखा होगा अल्लाह अल्लाह जब हर तरफ लाशे ही लाशे नजर आ रही होगी ,

एक तरफ़ अली अकबर और कासिम है,

तो कही नन्हा अली असगर है,

कही पर अब्बास के बाज़ू पड़े है

तो कहीं औन ओ मोहम्मद

और हुसैनियों का तीरो से छलनी जिस्म पड़ा है,

ये सारे गम कैसे सहा होगा जैनब और घर वालो ने ।

एक एक लाशो को ढूढती हुवी कभी जैनब एक सिम्त भागती है तो कभी दूसरी सिम्त दौड़ रही है I रोते रोते कभी अली अकबर को तो कभी कासिम को आवाज़ दे रही है, तो कभी मासूम अली असगर को गोद मे ले रही है, तो कभी बेटे औन ओ मोहम्मद को चूम रही है I जैनब में अब इतनी हिम्मत भी बाकि नहीं थी की वो और भाग सके मगर फिर भी वो दौड़ती भागती फिर रही है और अपने भाई इमामे आली मकाम हुसैन के जिस्म ए मुबारक को ढूंढ रही है जीटी, कही धड़ तो कहीं सिर बिखरे पड़े है ।

भाई हुसैन कहा हो? कहकर बेसाख्ता रोते हुए जैनब उन्हे पुकार रही है ।

जब जैनब ने देखा ज़ालिमो ने किसी के सरे मुबारक को नेजे मे उठा रखा है और वे ज़ालिम उसे नेजे मे रखकर खुश होकर नाच रहे है ।

जैनब ने देखा उस वक़्त भी उस सरे मुबारक से नूर निकल रहा है, भाई हुसैन को जैनब कैसे ना पहचानती।

जैनब ने चीख मारकर कहा , आह भाई हुसैन ।
फिर लोगो से कहा
ये मेरे भाई हुसैन का सरे मुबारक है । जालिमों तुमने इसे नेजे में रखा है

सरे मुबारक को देख कर जैनब बेसाख्ता रो रही थीं और तड़प कर भाई को पुकार रही थी ।

जैनब को ढूंढती ढूंढ़ती रोती हुई सकीना भी पीछे पीछे आ गई थीं और बाबा को पुकार रही थी।

जैनब कभी ख़ुद को तो कभी सकीना को संभाल रही थी ।

तभी जैनब ने देखा क़रीब ही एक औरत सफेद लिबास पहनी हुवी बैठी है जिसकी गोद में बेटे हुसैन का जिस्म ए मुबारक है ।

जैनब ने पास जाकर देखा तो पाया की भाई हुसैन के जिस्म मुबारक को जिसने अपनी गोद में रखा था वो कोई और नहीं बल्कि उनकी माँ फातिमा है।

माँ फातिमा ने बेटी जैनब की तरफ़ प्यार से देखा और सब्र करने कहा और फिर आसमान की तरफ़ इशारा कर कहा

‘जैनब वो देख तेरा भाई हुसैन तो अपने नाना के पास हौज़े कौसर मे खड़ा है ।

जैनब ने सर उठाकर देखा तो नाना के साथ अपने बाबा को भी देखा । नाना जैन हुसैन के माथे को चूम रहे थे और कह रहे थे ,

देख जैनब देख तेरे भाई का सर कल भी बुलन्दी पर था, आज भी बलंदी पर है और ता कयामत बलंदी पर ही रहेगा I

बेटी जैनब अपने भाई के लिए तू परेशान न हो अपने आंसुओं के सैलाब को रोक ले मेरी बच्ची वरना तबाही आ जाएगी।

जैनब होश में आई आंसुओ को पोछा और सकीना को संभाला, और फिर एक एक कर सभी को हौसला देती कहने लगी,

देखो भाई हुसैन हमारे साथ है,

क्या अल्लाह ने नही फरमाया की शहीद को मुर्दा ना कहो, वो ज़िंदा है, देखो देखो भाई हुसैन ज़िंदा है।

यजीद मिट जाएगा, कोई उसका नाम लेवा ना रहेगा मगर भाई हुसैन हमेशा जिन्दा रहेंगे।

क्रमशः ….

🖊️तालिबे इल्म: एड.शाहिद इकबाल खान, चिश्ती-अशरफी

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