चौंकाने वाला आविष्कार! बिना सिलिकॉन के बना दुनिया का पहला Computer

Silicon-Free Computer: Scientists Create History, Know the Full News!



विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दुनिया में एक बड़ा और चौंकाने वाला आविष्कार हुआ है। वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसा कंप्यूटर बनाया है। जो सिलिकॉन का इस्तेमाल किए बिना काम करता है। यह अभूतपूर्व सफलता अमेरिका की ‘पेनसिल्वानिया स्टेट यूनिवर्सिटी’ में मिली है। विश्वविद्यालय की ‘नैनोफैब्रिकेशन यूनिट’ में इसे बनाया गया है। इस बिना सिलिकॉन के Computer का सफल संचालन भी करके दिखाया गया है।

यह इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में एक क्रांति है।



सीएमओएस: इलेक्ट्रॉनिक्स की नई राह

यह नया कंप्यूटर सीएमओएस तकनीक पर आधारित है। सीएमओएस का मतलब है ‘पूरक धातु-ऑक्साइड-अर्धचालक’। इस तकनीक का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बनाने में होता है। इसकी खासियत कम बिजली की खपत है। इस बिना सिलिकॉन के कंप्यूटर का बनना। न केवल सिलिकॉन के विकल्प की उम्मीद जगाता है। बल्कि यह छोटे इलेक्ट्रॉनिक्स की एक नई पीढ़ी का रोडमैप भी है।

यह भविष्य की तकनीक का संकेत है।

दो-आयामी सामग्रियों का कमाल

इस कंप्यूटर को बनाने में खास सामग्रियों का उपयोग हुआ है। ये दो-आयामी सामग्रियां हैं। जो कागज की तरह बहुत पतली होती हैं। लेकिन इनका स्तर नैनो-स्केल का है। ‘नेचर’ पत्रिका में इस आविष्कार के बारे में विस्तार से छपा है। विद्युत प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए। सिलिकॉन की चालकता में बदलाव किया जाता है। 1947 से सिलिकॉन इलेक्ट्रॉनिक्स का आधार रहा है।

अब यह बदलाव संभव हो पाया है।



सिलिकॉन: सात दशकों का आधार

1947 में पहली बार सिलिकॉन का उपयोग करके ट्रांजिस्टर बना था। तब से इलेक्ट्रॉनिक्स छोटे होते गए हैं। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि। उपकरणों को और छोटा करने की भी सीमा है। पेन स्टेट के प्रोफेसर सप्तर्षि दास के अनुसार। यह शोध एक मील का पत्थर है। यह दिखाता है कि एक दिन सिलिकॉन को बदला जा सकता है।

यह एक ऐतिहासिक क्षण है।



मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड और टंगस्टन डाइसेलेनाइड

शोधार्थी सुबीर घोष ने इस बारे में बताया। उन्होंने अर्धचालक उपकरण बनाने के लिए। मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड का उपयोग किया है। साथ ही टंगस्टन डाइसेलेनाइड का भी इस्तेमाल हुआ है। इन सामग्रियों को बड़ी वेफर पर विकसित किया जा सकता है। यह दो इंच तक की हो सकती है।

यह उत्पादन को आसान बनाएगा।

इलेक्ट्रॉनिक्स का भविष्य कैसा होगा?

बिना सिलिकॉन का Computer बनने से। इलेक्ट्रॉनिक्स का भविष्य बदल सकता है। छोटे, तेज और कम बिजली खपत वाले उपकरण बन सकते हैं। यह तकनीक वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए फायदेमंद होगी। साथ ही यह अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भी काम आ सकती है।

नई संभावनाओं के द्वार खुल गए हैं।



भारत के लिए क्या मायने रखता है?

प्रोफेसर सप्तर्षि दास एक भारतीय मूल के वैज्ञानिक हैं। इस आविष्कार में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। यह भारत के लिए गर्व की बात है। यह दिखाता है कि भारतीय वैज्ञानिक दुनिया में। महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

यह देश के लिए प्रेरणास्रोत है।

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