Motivational Story:साथ मिल जाए तो हिम्मत हो ही जाती है…
रायपुर(स्मार्ट सिटी). उन आठों की एक ही कहानी थी। दिव्यांग होने के कारण जगह-जगह ठोकर खाई। कभी किसी ने धिक्कारा तो कभी किसी ने लाचार मानकर कुछ दे दिया। दया के पात्र तो वे सब थे ही, लेकिन अवसर उन्हें कोई देता नहीं। पढ़े-लिखे, युवा लेकिन बात ठहरती वहाँ, जहाँ ये कुछ कर भी पाएँगे? वे विकलाँग हैं! संयोग से आठों का मिलना एक ही जगह हुआ। साथ मिल जाए तो हिम्मत हो ही जाती है।
जब कोई रास्ता नहीं दिखता तब व्यक्ति उस वक़्त धरती में भी सुराख कर लेता है।
आज ही अपने परिवार को दें ये जरूरी जानकारी…
सोच बदली, इरादा बदला और स्वाभिमान ने ठाना कि कुछ कर दिखाना है।
इन स्वाभिमानी दिव्यांगों ने जीवन व्यापन के लिए गाय की सेवा करने का फैसला किया।
छत्तीसगढ़ के बालोद स्थित मड़वापथरा गाँव के दिव्यांगों ने एकजुट होकर एक संगठन बनाया।
उन्होंने अनूठा फैसला लेते हुए रानिमाई सियादेही 12 पठार से घिरे जंगल में एक गोशाला Cow shed खोल ली।
अपनी गोशाला Cow shed का नाम इन्होंने ‘दिव्यांग पुनर्वास केंद्र’ रखा है।
गोशाला में एक साथ काम करना संभव नहीं था, तो प्रत्येक की समय सीमा तय की गई.
गोशाला Cow shed खोलने के समय आठ सदस्य ही थे, अब 40 हो चुके हैं।
इनके बुलंद हौसले देख गांव के एक व्यक्ति भारत कोशरिया ने एक एकड़ जमीन इन्हें दान कर दी।
गोशाला बनते ही और लोग भी आगे आए। आसपास गाँवों के कई लोगों ने अपनी गाय यहां दान कर दी।
जंगल में गोशाला खोलने के विचार पर विकलांगों का कहना है कि पशुओं को चारे की समस्या न रहे, इसलिए ऐसा स्थान चुना।
30 वर्षीय भोज सिन्हा जन्म से पैर से दिव्यांग थी, इसलिए कुछ करने की इच्छा ही नहीं होती थी। सिलाई सिखने के बाद भी काम नहीं मिला। न ही अभी तक जीवन साथी मिला। फलस्वरूप गोशाला Cow shed में आई। उन्होंने बताया कि, यहां मेहनत कर रोटी खाती हूं तो सुकून मिलता है।
पति की मौत बाद सास द्वारा घर से निकाली गई अंजनी कहती हैं कि मैं वैसे ही गोशाला Cow shed देखने आई थी, अब यहीं रहने लगी हूं, घर जैसा माहौल लगता है।
इनके अलावा परिवार में महत्व नहीं मिला तो दिगंबर सोनबोईर भी सबकुछ छोड़ इन पशुओं की देखभाल करने यहाँ आ गए।
ये 40 दिव्यांग उन लोगों के लिए प्रेरणा बने हैं, जो दिव्यांग होते हुए भी खुद को असहाय मानते हैं और जो नहीं हैं, उन्हें सोचने पर मजबूर कर रहे हैं। इन स्वाभिमानी दिव्यांगों का कहना है कि 350 रुपए की पेंशन से जीवन नहीं चलता, इसलिए कुछ करना होता है।
कितना अच्छा हो इस गौशाला से सबक लेकर हम ऐसे समाज का निर्माण करें जहाँ हर इंसान के पास बराबर के मौका हों।
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