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ज़िक्र ए शोहदा ए कर्बला🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥✒️ पार्ट- 3

दीं पनाह अस्त हुसैन
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# खातूने जन्नत सैय्यदा तैय्यबा- ताहेरा फातेमाज्ज़हरा
*सलामुल्लाह अलैह
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और क्या बात है रज़ा उस गुलिस्ताने चमन की, ज़हरा है कली जिसमे हसन और हुसैन फूल

पैगम्बर मोहम्मद रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की प्यारी शहजादी, और हज़रत अली मुर्तुज़ा करम अल्लाहु तआला वजहुल करीम की ज़ौजा ए मोहतरमा और इमाम ए हसन वो इमाम ए हुसैन वो हज़रत ज़ैनब, हज़रत कुलसुम, हज़रत रुक़य्या रिज़वानुल्लाहि तआला अलैहिम अजमईन की वालिदा ए मोहतरमा के मकाम और मर्तबे का कहना ही क्या है।
ये वो दौर था जब अरब में लड़कियों को मनहूस समझा जाता था यहां तक की लोग अपनी बेटियो को ज़िंदा दफ़्न कर देते थे।उस दौर में आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बेटियों का जो मर्तबा बढ़ाया उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है I आप सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम अपनी बेटी फातिमा से बेहद मोहब्बत करते थे । जब कभी बेटी घर आती या आप बेटी के घर तशरीफ ले जाते तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अदब से फौरन उठ कर खड़े हो जाते और आपकी पेशानी चूमकर अपने मसनद पर बिठाते i अपनी बेटी के मकाम और मर्तबे के बारे में आपने फ़रमाया की
दुनिया में अल्लाह के नज़दीक ख़ास ख़ातूनो में हज़रते मरियम, हज़रते आसिया, के बाद ख़दीजा और मेरी बेटी फ़ातिमा का नाम आता हैं । यहां तक की अल्लाह ने बेटी फातिमा को जन्नती औरतों की सरदार बनाया हैं।

आपने ये भी फ़रमाया की

“मै राज़ी नहीं हो सकता जब तक मेरी बेटी फ़ातिमा राज़ी न हों” और जिनसे नबी राज़ी हो बेशक उनसे अल्लाह भी राज़ी हो जाता है i

हज़रत अली और फातिमा का निकाह

जब आप बड़ी हुई और उनके निकाह का आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को खयाल आया तो आपके पास बड़े बड़े सहाबा रिश्ते के लिए आए, मगर आपने उनसे फ़रमाया मुझे अपनी बेटी के रिश्ते के लिए अल्लाह के हुक्म का इंतेज़ार है I हज़रत अबुबक्र सिद्दीक और हज़रत उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने आपस में बाते की कि हुज़ूर की बेटी के लिए हज़रत अली से बेहतर कोई रिश्ता नहीं हो सकता, वे यह भी जानते थे की हज़रत अली इतने शर्मीले है की वो अपनी शादी की बात कभी भी हुज़ूर से नहीं करने वाले लिहाज़ा वे हज़रत अली रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के पास आए और उन्हें किसी तरह हुज़ूर से उनकी बेटी सैय्यदा फातेमाज्ज़हरा सलामुल्लाह अलैह से रिश्ते की बात करने मना लिया, मगर हज़रत अली इतने शर्मीले थे की फिर भी बात करने नहीं जा रहे थे तो हज़रत अबुबक्र सिद्दीक और हज़रत उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ख़ुद हज़रत अली को साथ लेकर हुज़ूर के घर तक आए, आप दोनों बाहर ही खड़े रहे । हज़रत अली ने दोनो के कहने पर हुज़ूर के घर का दरवाज़ा खटखटाया और नज़रे नीची किए खड़े रहे, इधर अन्दर हुज़ूर ताजदारे मदीना आक़ा ए करीम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के गुलाबी मुख पर इस आवाज़ को सुनकर मुस्कान खिल उठी । उस वक्त हज़रत उम्मे सलमा भी क़रीब थी । आक़ा के होठो पर मीठी तबस्सुम को देखकर हज़रत उम्मे सलमा का दिल भी ख़ुशी से बागबाग हो उठा, इससे पहले की वो आका से कुछ कहती आक़ा ने फ़रमाया-

“ए उम्मे कुलसुम जाओ दरवाज़ा खोलो हज़रत अली आज ख़ास मकसद से आए है । उम्मे कुलसुम जानने को बेताब उठी तो आका ने फरमाया – अली फ़ातेमा के रिश्ते के लिए आए है, जाओ उन्हें बुला लाओ।जिसे सुनकर हज़रत उम्मे सलमा की ख़ुशी का ठिकाना न रहा क्योकि हज़रत फ़ातिमा उनकी भी उतनी ही लाडली थी जितनी हज़रत खदीजा की । वो तेज़ कदमों से चलती हुई दरवाज़े तक पहुची और दरवाज़ा खोला तो देखा की हज़रत अली नज़रे नीची किए खड़े है I

हज़रत अली ने पूछा” क्या हुज़ूर नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर पर है ?

हज़रत उम्मे सलमा ने हां कहा हा और कहा

ए बेटे अली आका ने आपको अन्दर आने कहा है I

इस तरह हज़रत अली हुज़ूर के पास तशरीफ़ लाते है और सलाम अर्ज़ करने के बाद ख़ामोशी से नज़रे नीची किए हाथ बांधकर खड़े हो जाते है ।

हुज़ूर उन्हें अपने पास बिठलाते है और फिर हज़रत अली से पूछा

“ कहो अली किस मक़सद से आज आना हुवा ?

हज़रत अली ने जवाब दिया बस हुज़ूर को देखने की तमन्ना थी सो चला आया I

हुज़ूर जानते थे अली उनसे रिश्ते की बात करने से शरमा रहे है और वे कभी कहेंगे भी नही लिहाज़ा हुज़ूर ने ख़ुद ही अली से फ़रमाया

“ ए अली मुझे बेटी के निकाह का खयाल आया तो आज जिब्रीले अमीन ने आकर बतलाया की

“अल्लाह के हुक्म से आपकी बेटी फ़ातिमा की शादी हज़रत अली के साथ तो पहले ही अर्श में कर दी गई है, अब वक़्त आ गया है की यह शादी ज़मीन पर भी कर दी जाए, “सुभानअल्लाह ।

जिनकी शादी अर्श में होती हो, और जिसके गवाह हूरो मलायक हो उस ख़ातूने जन्नत की अज़मत और मरतबे का क्या कहना I

और फ़िर हुज़ूर ने हज़रत अली से पूछा “अली क्या तुम्हे ये रिश्ता मंज़ूर है ? सुनकर हज़रत अली ने इशारों में ही हाँ में जवाब दिया, दोबारा पूछने पर फरमाया

आका हजरत अबू बकर और हजरत उमर के कहने पर मैं रिश्ते की बात करने ही आपके पास आया था, बेशक यह मेरी खुशनसीबी होगी ।

जिसके बाद आक़ा बेटी फ़ातिमा के पास आते है और उनसे पूछते है बेटी क्या तुम्हे अली से रिश्ता मंज़ूर है ?

हया की मूरत हज़रत फ़ातिमा ने भी जब इशारों में अपनी रजामंदी दे दी तो आका ए करीम ख़ुश होकर बेटी के सर पर शफक्कत से हाथ फेरा और अल्लाह का शुक्र अदा किया I सुभानअल्लाह ।

ये है इस्लामिक तरीका जहां लड़की से भी न सिर्फ़ रिश्ते के लिए रजामंदी ली जाती है बल्कि उसके हाँ कहने के बाद ही शादी हो सकती है I

आक़ा ने बाहर आकर अली से फ़रमाया अली फ़ातिमा ने भी हाँ कर दी है, जाओ शादी की तैय्यारी करो I

अली ने अपने दिल के हालात बयां करते हुवे अर्ज़ किया

“आक़ा मेरे पास तो कुछ भी नहीं है I मै शादी की तैयारी भला किस तरह से करू I

सुनकर आक़ा मुस्कुराए और फिर फ़रमाया

‘अली तुम्हारे पास एक ज़िरह है जाओ उसे बेचकर शादी की तैयारी करो I

इस तरह हज़रत अली खुश होकर वापस आ जाते है, और यह खुशख़बरी हज़रत अबुबक्र सिद्दीक और हज़रत उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्हु को सुनाते है जिसे सुनकर आप दोनों भी बेहद खुश हो जाते है । फिर इसके बाद हजरत अली उस ज़िरह को लेकर हज़रत ए उस्माने गनी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु के पास आते है और उन्हें ये ज़िरह बेचने की पेशकश करते है I

हज़रत ए उस्मान आली से इसकी कीमत पूछते है । अली भला इसकी कीमत कैसे बतला सकते थे, लिहाज़ा वे ख़ामोश रह जाते है, मगर हुज़ूर ने बेचने का हुक्म दिया था तो वे हुज़ूर का हुक्म भी तो नहीं टाल सकते थे लिहाज़ा काफ़ी इसरार के बाद आप इसकी कीमत 400 दिरहम बतलाते है I

हज़रत ए उस्मान गनी सुनकर मुस्कुरा उठते है। उन्हें भी आक़ा ए करीम की बेटी फातिमा से अली की शादी का पता चल ही गया था लिहाज़ा वे भी बेहद खुश थे I हज़रत उस्मान अली से पूछते है

“ए अली ये तो वही ज़िरह है न जिसे आक़ा ए करीम पहना करते थे और एक मौके पर खुश होकर उन्होंने इस ज़िरह को आपको तोहफ़े में दिया था I

हज़रत अली जवाब में सर हिला देते है, तो हज़रत उस्माने गनी खुश होकर कहते है

“ए अली ये बेहद बेशकीमती ज़िरह है मगर चूंकि हुज़ूर ने आपको इसे बेचने का हुक्म दिया है तो आक़ा के हुक्म को भला मै किस तरह टाल सकता हूँ, और इस तरह हज़रत उस्मान उस ज़िरह की कीमत उन्हें 400 नहीं बल्कि 800 देते है और फिर इसके बाद फरमाते है

“ए अली शादी में तोहफ़ा भी तो दिया जाता है लिहाज़ा इस ज़िरह को बतौर तोहफ़ा मै तुम्हे दे रहा हूँ देखो अली मना मत करना I

और इस तरह काफ़ी ज़िद वो इसरार करके हज़रत उस्मान ए गनी इस ज़िरह को अली को दे देते है I सुभानअल्लाह I

क्या मोहब्बत है, खुल्फा ए राशदीन की एक दूसरे के लिए, और फ़िर अली पर तो उस्मान ए गनी ही क्या सारे सहाबा जान छिड़कते थे I

मुकर्रीर हज़रत अमीनुल क़ादरी साहब क़िबला ने इस शादी का बेहद ख़ूब सूरत मंज़र पेश किया है जिसे मैंने अपने लफ्जों में लिखा है आप अपने बयान में आगे फरमाते है की जब जिब्रीले अमीन ने हुज़ूर को बतलाया की “अल्लाह के हुक्म से आपकी बेटी फ़ातिमा की शादी हज़रत अली के साथ अर्श में हो चुकी है, तो आक़ा ने यह भी पूछा था की ए जिब्रील इस शादी में कौन कौन लोग थे और शादी का खुदबा किसने पढाया था ?

तो जिब्रीले अमीन ने फ़रमाया की

अर्श के सारे फ़रिश्ते सारे अम्बिया इस शादी में शरीक हुए और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने खुदबा पढाया I

शादी के बाद अल्लाह ने भी ख़ुश होकर फरिश्तो को हुक्म दिया की

ए फरिश्तों जन्नत में जितने भी दरख़्त है उन्हें हिलाओ फरिश्तो ने उन्हें ज़ोर से हिलाया , फिर रब ने फरमाया ए फरिश्तों जितने भी पत्ते गिरे है उन्हे उठा लो और देखो हमने इन पत्तो पर अहले बैत से मोहब्बत करने वालो के नाम लिख दिए है । सुभान अल्लाह

रब ने फ़रमाया ए फरिश्तों तुम गवाह हो जाओ, अली,फातिमा, और उनकी औलादो यानि अहले बैता से सच्ची मोहब्बत करने वालो को हमने बख्श दिया । सुभानअल्लाह

इस तरह दुनिया में भी आपकी बेटी की शादी हज़रत अली के साथ हुई I तमाम सहाबा बाराती बने, ख़ुद आका ए करीम ने निकाह का खुदबा दिया ।
आक़ा ने बेटी का मेहर आज के हिसाब से क़रीब 150 तोला चांदी रखा I

आपकी लाडली बेटी ने फ़रमाया

“ बाबा सोने चांदी तो सभी का मेहर होता है, मेरा मेहर तो ये होना चाहिए की अल्लाह आपकी उम्मत को बख्श दे I सुभानअल्लाह I

ये जवाब सिर्फ़ आपकी शहजादी का ही हो सकता था I आक़ा ने अपनी बेटी को बिदा करते वक़्त तोहफ़े में चंद बर्तन बिस्तर और एक चक्की दी और एक चादर भी दी जिसमे 17 पेबंद लगे हुवे थे, फ़ातिमा ने उस चादर को सर आँखों पर लगाया और कहा “

ए बाबा ये चादर हमेशा फातिमा के साथ रहेगी I

और फिर इसी तरह आपने अपनी लाडली बेटी फातिमा को बिदा किया I

इस मुक़द्दस शादी का ज़िक्र बहुत से उलमा ने किया है बेशक कायनात में इस शादी से बढ़कर कोई शादी हो ही नहीं सकती I जहां दूल्हा खुदा के घर का था ( आप मक्के में ख़ाना ए काबा में पैदा हुए जिसे अल्लाह का घर कहा जाता है) और दुल्हन नबी के घर की थी। इससे बढ़कर शादी भला और क्या होगी। सुभानअल्लाह।

हज़रत फ़ातिमा की तारीफ़ के लिए मुझ जैसे हकीर के पास कोई अल्फ़ाज़ नहीं है बस इतना ज़रूर पूछना चाहूँगा आज हम बेटियों की शादी में जो इतना ज्यादा खर्च करते है, हो हंगामा करते है, क्या वो सही है ।

सभी बहन बेटियों से भी गुज़ारिश कर कहना चाहूँगा की वो सैय्यदा फ़ातिमा के किरदार को देखे, उनकी तरह बनने कोशिश करे, तो इंशाअल्लाह हमारे मआशरे में निश्चित ही एक बहुत बड़ा इन्कलाब आएगा।I

सैय्यदा फ़ातिमा खातुने जन्नत है बेशक़ वो आक़ा के साथ साथ रब की भी लाडली है इस वजह से अल्लाह ने उनमे वो खूबिया रखी जो उन्हें दूसरी औरतो से अलग रखती है, आप इंसानी शक्ल में जन्नत की हूर थीं इसीलिए आपको कभी हैज़ नहीं आया और बच्चा होने के बाद फौरन आप निफास से पाक हो जाती थीं जिसकी वजह से आपका लक़ब “ज़ुहरा” हुआ ।

आप अक्सर सारी रात इबादत में गुज़ार दिया करती थी आप कभी तो नमाज़ में क़याम में और कभी रूकू में होतीं और रात गुज़र जाती, तो कभी एक ही सजदे में सारी रात निकल जाती और फिर आप फरमाती ‘ऐ मौला तूने कितनी छोटी रातें बनायीं है कि फातिमा दिल खोलकर इबादत भी नहीं कर पाती ‘I
इमाम हसन अलैहिससलाम फरमाते हैं कि एक दिन उन्होंने सारी रात अपनी वालदा को इबादत में मशगूल देखा और उन्हें तमाम मोमिनीन के लिये दुआ माँगते सुना, यहाँ तक कि सुबह हो गयी तो इमाम हसन ने अपनी माँ से कहा कि अम्मी जान आपने अपने लिये तो अल्लाह से कुछ माँगा ही नहीं । जवाब में बीबी फातिमा ने फरमाया कि ए बेटे हसन पहले औरो का ख्याल करो फिर अपने बारे में सोचो i जिस माँ ने अपने बच्चो को ऐसी तरबीयत दी हो उस माँ का क्या कहना I आप घर का तमाम काम अपने हाथ से करती थीं झाड़ू देना, खाना पकाना, चक्की पीसना यह सब काम वह अकेली करती थीं I उम्मुल मोमेनीन सय्यदना आईशा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा फरमाती हैं कि मैंने उठने बैठने चाल ढाल और बर्ताव में फातिमा से बढ़कर हुज़ूर के मुशाबह किसी को नहीं देखा I

आपने ता उम्र पर्दा किया I 3 रमज़ान,11 हिजरी को आपके विसाल से पहले आपने हज़रत अस्मा बिन्त क़ैस जो कि हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की बीवी हैं से फरमाया कि ‘मर्दों की तरह औरतों का जनाज़ा ले जाना मुझे पसंद नहीं’,तो आपके लिए एक लकड़ी का गहवारा बनाया गया और उस पर पर्दा डालकर आपको दिखाया गया जिसे देखकर आप बहुत खुश हुईं I आपने अपनी ख़ादिमा को गुस्ल का पानी रखने का हुक्म दिया और फिर गुस्ल करने के बाद आपने कपड़े बदले और ख़ादिमा से कहा की सुनो, फातिमा ने गुस्ल कर लिया है अब मेरी मौत के बाद मुझे दोबारा गुस्ल न कराया जाए, जिसे सुनकर ख़ादिमा रोने लगी । और फिर इस तरह हज़रते फातिमाज्जहरा रज़ियल्लाहु तआला अन्हा ने भी आखरी वक्त अपने बाबा को खूब याद किया । हज़रत अली को बुलवाया और कहा मेरे बाद आप दूसरा निकाह कर लेना । आज फातिमा आपसे जुदा हो रही है, सभी बच्चों को भी पास बुलाया और उन्हे खूब प्यार किया । और फ़िर फातिमा ने देखा की बाबा आक़ा ए करीम उसे लेने आए है और मुस्कुरा कर कह रहे है ‘ बेटी जैसी तेरी ख़्वाहिश थी उसके मुताबिक सबसे पहले तू ही मेरे पास आ रही है ।

और इस तरह हज़रत फातिमा सलामुल्लाह अलैह ने अपनी आंखे बंद कर ली । (इन्नालिल्लाहे व इन्नाइलैहे राजेउन)

नबी ए करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने अपनी बेटी फातिमा के बारे में लोगों से फ़रमाया की

क़यामत के दिन जब बेटी फातिमा पुल सिरात से गुजरेगी तो हातिफ़ ‘ए’ ग़ैबी आवाज़ देगा और कहेगा

लोगों अपनी आँखे उस वक़्त तक नीची रखो जब तक फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैह की सवारी न गुज़र जाएँ I

तू बड़ी सखी है फ़ातिमा, मोहसिने अली है फ़ातिमा
इख्तेयार कुन के बावजूद चक्की पीसती है फ़ातिमा
मुस्तुफा को मांगना पड़ा तब कही मिली है फ़ातिमा
तू बड़ी सखी है फ़ातिमा, मोहसिने अली है फ़ातिमा

इंशा अल्लाह कल से इमाम हसन रजिअल्लाहु तआला अन्हु और फिर इमाम ए आली मकाम हुसैन रजिअल्लाहु तआला अन्हु और शोहदाए कर्बला के बारे में बयान किया जाएगा ।

क्रमशः….

🖊️तालिबे इल्म : एड. शाहिद इक़बाल ख़ान, चिश्ती- अशरफी

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