EducationalInternationalNationalOtherSpecial All timeTop News

जानिए कुछ खास : पृथ्वी के नए भूगोल के अनुमान

अतीत में कोलंबिया, रोडिनिया, पैंजिया जैसे सुपर-महाद्वीप पृथ्वी पर बने और बिखर गए।

हाल ही में हुआ एक अध्ययन बताता है कि सुपर-महाद्वीप बनने का एक नियमित चक्र चलता रहता है, जो 60 करोड़ वर्ष में पूरा होता है।

पृथ्वी के मेंटल में गर्म पिघली चट्टानों के प्रवाह के आधार पर यह अनुमान भी लगाया गया है कि पृथ्वी पर अगला सुपर-महाद्वीप कब और कहां बनेगा।
हमारे महाद्वीप टेक्टॉनिक प्लेटों पर स्थित हैं, और ये टेक्टॉनिक प्लेटें पृथ्वी के मेंटल पर तैरती रहती हैं। मेंटल पानी उबालने वाले बर्तन की तरह कार्य करता है: पृथ्वी का गर्म पिघला कोर मेंटल के निचले हिस्से में मौजूद चट्टानों को गर्म करता है, जिससे वे धीरे-धीरे ऊपर उठने लगती हैं।

इसी दौरान, धंसान क्षेत्र में पृथ्वी की भूपर्पटी के निचले हिस्से में मौजूद ठंडी चट्टानें मेंटल के निचले हिस्से की ओर जाने लगती हैं। चट्टानों के इस चक्रीय प्रवाह को मेंटल संवहन कहते हैं।
मेंटल संवहन महाद्वीपीय प्लेटों के प्रवाह को गति और दिशा देता है, जिससे लाखों-करोड़ों वर्षों में उनका स्थान बदलता रहता है। इस दौरान कभी-कभी ये महाद्वीप आपस में जुड़कर सुपर-महाद्वीप बनाते हैं।
सुपर-महाद्वीप चक्र के बारे में अधिक जानने के लिए चाइनीज़ एकेडमी ऑफ साइंसेज़ के भूवैज्ञानिक रॉस मिशेल और उनके साथियों ने ‘मेगा-महाद्वीपों’ पर ध्यान केंद्रित किया। मेगा-महाद्वीप सुपर-महाद्वीप से छोटे होते हैं और कभी उनका हिस्सा रहे होते हैं। जैसे गोंडवाना मेगा-महाद्वीप जो लगभग 52 करोड़ साल पहले बना था, और इसके 20 करोड़ वर्ष बाद इसी से पैंजिया सुपर-महाद्वीप बनने की शुरुआत हुई थी।


गोंडवाना से पैंजिया कैसे बना,

यह जानने के लिए शोधकर्ताओं ने जीवाश्मों और विभिन्न काल के उपलब्ध अन्य प्रमाणों के आधार पर विभिन्न काल में महाद्वीपीय प्लेटों की स्थिति को चित्रित किया, और पता लगाया कि महाद्वीपों की स्थितियां मेंटल प्रवाह के विभिन्न मॉडल्स से किस तरह मेल खाती हैं।
पाया गया कि महाद्वीप का प्रवाह धंसान क्षेत्र की ओर बहाव की दिशा में था – इस क्षेत्र में मेंटल के ऊपरी हिस्से में मौजूद चट्टानें ठंडी होकर नीचे की ओर खिसकती हैं।

लेकिन यहां मिशेल इस क्षेत्र को ‘धंसान घेरा’ कहते हैं क्योंकि महाद्वीपीय प्लेटें बहुत मोटी होती हैं जो नीचे नहीं जा पातीं और इसलिए इस क्षेत्र में जाकर ‘अटक’ जाती है। वे केवल इस घेरे की परिधि से लगकर घूम सकती हैं और इस प्रक्रिया में अन्य महाद्वीपों से जुड़ सकती हैं। इस तरह गोंडवाना से पैंजिया बना।


शोधकर्ता यह भी बताते हैं कि अब आगे क्या होगा।

जियोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित उनके निष्कर्षों के अनुसार जब पैंजिया लगभग 17.5 करोड़ साल पहले टूटा तो प्रशांत महासागर के तटीय इलाकों के पास इसने रिंग ऑफ फायर नामक धंसान क्षेत्र का निर्माण किया, जहां ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप जैसी घटनाएं होती रहती हैं।

वर्तमान मेगा-महाद्वीप – युरेशिया – को बनाने वाले कई महाद्वीप पहले ही जुड़ चुके हैं। और युरेशिया रिंग ऑफ फायर के विपरीत दिशा में जा रहा है। इस तरह बहते-बहते 5-20 करोड़ वर्ष बाद युरेशिया अमेरिका से टकराएगा, जो एक नए सुपर-महाद्वीप को जन्म देगा। भूवैज्ञानिकों ने इस अगले सुपर-महाद्वीप को ‘अमेशिया’ नाम दिया है। इस बात पर बहस जारी है कि अमेशिया कहां जाकर रुकेगा, लेकिन मिशेल के मॉडल के अनुसार संभवत: यह वर्तमान के आर्कटिक महासागर के केंद्र में होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

Back to top button